मनुष्य कर्ज लेकर, जेवर तक गिरवी रख घर बनाता है और तब यदि उस घर में निवास करने पर उसे रोग, कष्ट आदि का सामना करना पड़ता है तो घोर निराशा होती है। अतः उसे घर बनाने से पूर्व किसी वास्तु विशेषज्ञ से उचित सलाह कर लेनी चाहिए। यहां सेहत के अनुकूल वास्तु के कुछ प्रमुख उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है।
- भोजन बनाते समय पीठ के पीछे रसोईघर का दरवाजा या खिड़की होने से कमर दर्द की शिकायत आ जाती है, क्योंकि किसी के आवाज देने या कोई आहट होने पर पीछे मुड़कर देखने से शरीर का नाभि से सिर तक का ऊपरी भाग मुड़ता रहता है
जबकि नीचे का भाग स्थिर रहता है। इसी कारण रीढ़ की हड्डियों में भी तकलीफ हो जाती है। ऐसी स्थिति में रसोई घर में कन्वेक्स मिरर का प्रयोग लाभकारी है।
- रसोई की स्लैब का पत्थर ग्रेनाइट का नहीं होना चाहिए, क्योंकि वह ताप को अवशोषित नहीं करता। इससे अपेन्डिसाइटिस अर्थात आंत की सूजन या पेट के अन्य रोग हो सकते हैं। स्त्रियों के पेट के आॅपरेशन होने की संभावना बढ़ जाती है। अतः ग्रेनाइट के स्थान पर संगमरमर का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि संगमरमर ऊर्जा को सोख लेता है।
- घर का स्वास्थ्य आप से जुड़ा होता है और आपका स्वास्थ्य घर से। अतः स्वस्थ रहने के लिए घर के दर्पणों को साफ रखें। दर्पणों को दक्षिण, दक्षिण-पूर्व व दक्षिण-पश्चिम में लगाना भी विभिन्न रोगों का कारक होता है। इस पर पड़ी धूल-मिट्टी इसके शुभ प्रभाव को घटाती है। घर में टूटे दर्पण व शीशे, टपकते नल, खराब बल्ब आदि न रहने दें तथा खिड़कियां साफ रखें। इससे आपकी सोच सकारात्मक होगी।
- उच्च या निम्न रक्तचाप वालों को दक्षिण में सिर करके सोना चाहिए ताकि पांव उत्तर दिशा में रहें, क्योंकि उत्तर दिशा में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहमान रहती है। इस अवस्था में सोने से रक्तचाप में सुधार होगा।
- शयनकक्ष में ऐसे दर्पण कभी न लगाएं जो पलंग को परावर्तित करें। इस प्रकार के दर्पण कक्ष से शुभ फेंगशुई ऊर्जा को बाहर कर देते हैं और वैवाहिक जीवन कड़वाहट से भर जाता है। शयनकक्ष की भीतरी छत पर दर्पण लगाना और भी अधिक हानिकारक होता है। यह दर्पण कक्ष में स्थान बढ़ाने का भ्रम तो उत्पन्न कर देता है, लेकिन अशुभ फेंग शुई ऊर्जा को भी उतना ही अधिक बढ़ा देता है।
ऐसे घरों में दर्पण में नजर आने वाले हिस्से में रहने वालों को दर्द, बीमारी, आलस, आदि घेरे रहते हैं। यदि संभव हो तो शयनकक्ष में दर्पण रखें ही नहीं। यदि रखना ही पड़े तो ईशान, पूर्वी, उत्तरी, पश्चिमी भाग में इस प्रकार रखें कि उसमें पलंग परावर्तित न हो। - शयनकक्ष में बनावटी फूल अथवा इनके गुलदस्ते कभी न रखें। ये गृह स्वामी को स्वार्थी बनाते हैं। पति-पत्नी में एक दूसरे के प्रति स्वार्थ की भावना आ जाए तो मन रोगी होगा जिससे अनबन या मनमुटाव होगा और जीवन में निराशा उत्पन्न हो सकती है। - एक ही सीध में तीन या तीन से अधिक द्वार नहीं होने चाहिए। द्वार के सामने बाधाएं घर के सुख को घटाती हैं। इसके लिए द्वारों के बीच में ऊर्जा युक्त सिलिका बाल, झाड़फानूस आदि लगाना लाभदायक होगा।
- बीम और खंभों पर टिकी हुई छतें घर में रहने वालों के लिए अनेक समस्याएं खड़ी कर देती हैं। इनके कारण आधे सिर में दर्द, तनाव, पारिवारिक संबंधों में दरार आदि स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। - बीम के ठीक नीचे पलंग बिछाकर सोने से पति-पत्नी एक दूसरे से दूर हो जाते हैं। अतः इस स्थान पर नहीं सोना चाहिए।
- बीम की अशुभ ऊर्जा को समाप्त करने की सबसे अच्छी विधि है छत पर प्लाइवुड लगा कर बीम को ढक देना।
- बीम के साथ बांसुरी टांगकर भी अशुभ ऊर्जा के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- फेंगशुई के अनुसार घर में मंदिर हमेशा मुख्य द्वार के सामने घर के उत्तर-पूर्व भाग में या उत्तर पश्चिमी भाग में बनाना बहुत शुभ होता है। मूर्तियों का मुंह हमेशा पूर्व या पश्चिम में रहना चाहिए। मंदिर को हमेशा साफ और स्वच्छ रखें। मंदिर में दीपक अथवा बल्ब जलाना चाहिए, ताकि यहां हमेशा अच्छी ‘ची’ ऊर्जा आती रहे। मंदिर वाले कक्ष में सदैव झूमर जलाए रखना शुभ होता है। यह हर कामना की पूर्ति करने में सहायक होता है।
- मंदिर शौचालय के निकट, सीढ़ियों के नीचे अथवा सामने कभी नहीं बनाना चाहिए। यह बहुत अशुभ होता है। पूजा-अर्चना का फल प्राप्त नहीं होता है। - शयन कक्ष में मंदिर कभी न बनाएं।
- पूर्वी दिशा को पारिवारिक पीढ़ी की दिशा कहा जाता है। अतः गृह निर्माण के समय पूर्व दिशा में कुछ स्थान खुला छोड़ देना चाहिए। इससे परिवार के मुखिया को लंबा सुखमय जीवन प्राप्त होता है।
- उत्तरी दिशा माता की दिशा होती है। उत्तर में खुला स्थान छोड़ने से मातृत्व पक्ष को लाभ होता है।
- दक्षिणी दिशा धन, सफलता, खुशी, संपन्नता और शांति की दिशा है। भारत के दक्षिण में स्थित तिरुपति मंदिर संपन्नता का एक जीवंत उदाहरण है।
- उत्तर-पूर्व अथवा ईशान क्षेत्र में किसी भी प्रकार का दोष नहीं होना चाहिए। यह क्षेत्र वंश वृद्धि कारक है। यह परिवार को स्थायित्व प्रदान करता है।
- आग्नेय अथवा दक्षिण-पूर्व क्षेत्र बहुत गर्म होता है, यह मनुष्य को स्वास्थ्य प्रदान करता है। लेकिन यदि इस क्षेत्र में कोई दोष हो, तो यह परिवार के मुखिया को क्रोधी बना देता है।
- नैर्ऋत्य अथवा दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र नम्र प्रकृति और अच्छे चरित्र का द्योतक है। इस खंड में कोई दोष होने पर परिवार का मुखिया परेशानियों से घिरा रहता है।
- यदि उत्तर-पूर्व भाग ऊंचा और दक्षिण-पश्चिम भाग नीचा हो, तो यक्ष, भूत-प्रेत आदि का भय बना रहता है और लक्ष्मी का अभाव रहता है।
- यदि दक्षिण-पूर्व उठा हुआ हो और उत्तर-पश्चिम नीचा हो, तो सर्प और शत्रुओं आदि का भय बना रहता है।
- यदि पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व उच्च तथा पश्चिम और उत्तर-पश्चिम भाग नीचा हो, तो धन की वृद्धि होती है और संतान लाभ प्राप्त होता है।
- यदि पूर्व और दक्षिण-पूर्व नीचे, उत्तर-पश्चिम और पश्चिम ऊंचे हों; तो भूस्वामी को अनेक शत्रुओं, वंश-बैर और मानसिक संकट का सामना करना पड़ता है।
- यदि दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिण नीचे हों, उत्तर-पूर्व उच्च, तो भूस्वामी के मूर्ख और मानसिक रूप से पागल होने तथा व्यसन में पड़ने की संभावना रहती है।
-यदि दक्षिण-पश्चिम ऊंचा हो लेकिन दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पूर्व (ईशान से) नीचे, तो धन, पुत्रों और पत्नी की ओर से खतरा रहता है।
- शौचालय या स्नान घर यदि दक्षिण-पश्चिम में हो, तो घर में तनाव, अस्वस्थता और परेशानियां बनी रहती हैं। अतः जीवन में सुख शांति व उत्तम स्वास्थ्य के लिए इस दिशा में शौचालय, स्नानघर, रसोई आदि का निर्माण न करें।
इस प्रकार वास्तुशास्त्र और फेंग शुई की मदद से निर्माण या साज सज्जा करते समय थोड़ी सी सावधानियां बरतने पर आरोग्य, सुख व संपन्नता की प्राप्ति हो सकती है।