भारतीय परम्परा के 16 संस्कारों में गर्भाधान संस्कार सबसे पहला व महत्वपूर्ण संस्कार है। भावी संतान के संस्कार की आधारषिला इसी प्रथम संस्कार पर आधारित है। इस संसार में सभी व्यक्ति चाहते हैं कि उसे सब कुछ मिल जाये परंतु उसे मिलता वही है जो उसके संचित कर्मों द्वारा भाग्य में होता है किंतु भाग्य के सहारे कर्म को छोड़कर नहीं बैठा जा सकता। कर्म करना हमारा कत्र्तव्य होता है।
इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए। कामनाओं की पूर्ति के अनेकों तरीके हो सकते हैं मगर यहां ज्योतिष शास्त्र या हस्तरेखा शास्त्र या अन्य किसी भी तरीके से यह निर्णय लिया जाये कि जातक की कामनाऐं या इच्छायें सिद्ध होगी या नहीं तब इसके लिये प्रयास किया जाये। इस विषय में जातक की जन्म कुण्डली सर्वश्रेष्ठ है कि इच्छाओं की पूर्ति का समय कब कैसे होगा। इस गर्भाधान मुहूत्र्त में प्रसन्नचित्त होकर रहा जाये। इससे कुछ दिनों पूर्व सात्विक भोजन ग्रहण किया जाये विचारों को शुद्ध रखा जाये।
जैसे बीज के उपजाने में सही समय व वातावारण तथा साधनों का प्रयोग किया जाता है इसी प्रकार पति पत्नी दोनों के चेतन व अवचेतन मन तथा देह की पवित्रता का ज्यादा ध्यान रखा जाये। सुसमय में गर्भाधान होने से संतान गुणी व दीर्घजीवी होती है। किसी भी जातक की जन्म कुण्डली का मिलान करते समय निम्न बिंदुओं को अवष्य ही देखें:-
1. पुरुष की कुंडली में बीज स्फूट
2. स्त्री की कुंडली में क्षेत्र स्फूट
3. पुरुष की कुंडली में शट्क्लीव योग
4. स्त्री की कुंडली में बन्ध्या व काक बन्ध्या इत्यादि योग
5. निःसंतानता का कोई योग हो तो ध्यान दें।
6. संतान शाप योग हो तो उसका निवारण करें।
7. जन्म कुंडली में संतान कारक देव गुरु बृहस्पति की स्थिति
8. वर्ग कुंडली में सप्तमांष कुंडली इसके पष्चात ही गर्भाधान के मुहूत्र्त का विचार करना चाहिए।
मुहूत्र्त: रजोदर्षन की पहली चार रात्रियां छोड़कर- समरात्रियों में स्त्री संपर्क करने से पुत्र और विषम रात्रि में स्त्री संपर्क करने से पुत्री का जन्म होता है। रजोदर्षन की पहली चार रात्रियां छोडकर 16 रात्रियों तक शुभ समय होता है। मासिक धर्म के समय जब चंद्रमा अनुपचय स्थानों (1, 2, 4, 5, 7, 8, 9, 12) में हो और मंगल उसे देखे तो उस समय गर्भधारण की संभावना होती है। यदि यह स्थिति न बने तो उस मास में गर्भधारण की संभावना निर्बल रहती है।
ऐसे गर्भधारण योग्य मास में जब पुरुष की जन्म राषि से 3, 6, 10, 11 स्थानों में चंद्रमा गोचर करे और देव गुरु बृहस्पति उसे देखे तो गर्भधारण करना चाहिए। यही समय उचित होता है। शुभ तिथियां- 1, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13 (तिथि दषमी व एकादषी में आचार्यों का मतभेद भी है) शुक्ल पक्ष विषेषतया अच्छा होता है।
शुभ वार- बुधवार, बृहस्पतिवार व शुक्रवार शुभ नक्षत्र- रोहिणी, मृगषिरा, तीनों उत्तरा, हस्त, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मतांतर से अष्विनी, पुनवर्सु, पुष्य, अनुराधा- ये इस कार्य के लिये मध्य नक्षत्र कहलाते हैं। शुभ योग- प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, सुकर्मा, घृति, वृद्धि, ध्रुव, हर्षण, सिद्धि, वरियान, षिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, व इन्द्र ये कुल अठारह योग होते हैं। शुभ करण- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, एवं वणिज ये कुल छः होते हैं।
शुभ लग्न - मेष, कर्क, सिंह, धनु, मकर (1, 4, 5, 7, 9, 10) केंद्र व त्रिकोण में शुभ ग्रह हो और (3, 6, 11) त्रिषडाय भाव भाव में पाप ग्रह हो। सूर्य मंगल व बृहस्पति लग्न को देखे तथा विषम राषि के नवमांष में हो तो उत्तम होंगे। चन्द्रमा विषम राषि के नवमांष में हो। गर्भाधान संस्कार के समय पति-पत्नी दोनों का चंद्रमा शुभावस्था या भाव में हो। गर्भाधान संस्कार में स्त्री का चंद्रबल विषेष रुप से होना चाहिए। गर्भाधान संस्कार के लग्न का नवमांष भी विषम राषि में हो तो अति उत्तम होता है।
नोट: दिन में या अर्धरात्रि से पहले रजोदर्षन हो तो ऋतुकाल का वही दिन मानना चाहिए जिस दिन मासिक हुआ। यदि अर्धरात्रि के बाद मासिक होने पर अग्रिम दिन को ऋतुकाल प्रथम दिन मानना चाहिए। मतान्तर से सूर्य उदय से अगले दिन के सूर्योदय तक को वही दिन माना जायेगा। गर्भाधान में वर्जित व ध्यान देने योग्य बातें मासिक धर्म प्रारंभ से पहली चार रातें।
रिक्ता तिथिया, अष्टमी (दोनों पक्षों की), अमावस्या, पूर्णिमा, भद्रा (विष्टिकरण) भद्रा तिथियां 2, 7, 12, क्षय तिथि, व्यतिपात, वैधृति योग, संक्रांति का दिन, ग्रहण (सूर्य, चंद्र दोनों) काल दिवस, दिन का समय एवं संध्या काल, जन्म नक्षत्र, जन्म दिवस (विषेषकर धर्म पत्नी का) मतांतर से, माता-पिता का श्राद्ध दिवस, जन्म लग्न, जन्म से अष्टम लग्न, पापयुक्त लग्न, पापहत या उत्पातहत नक्षत्र व दिन, मंगलवार, शनिवार मतांतर से रविवार, दीपावली, दषहरा, नवरात्र, होली, रक्षाबंधन आदि पर्व, तीनों गंडांत तिथि गंडांत नंदा तिथियां (1, 6, 11) के आदि की एक घड़ी - 24 मिनट पूर्ण तिथियां (5, 10, 15) के अंत की एक घड़ी - 24 मिनट लग्न गंडांत मेष, सिंह, धनु (अग्नि तत्व के लग्न) लग्नों के आरंभ की आधी घटी- 12 मिनट कर्क, वृष्चिक, मीन (जल तत्व के लग्न) लग्नों के अंत की आधी घटी- 12 मिनट नक्षत्र गंडांत अष्विनी, मघा व मूल नक्षत्रों के आरंभ की दो घटियां - 48 मिनट आष्लेषा, ज्येष्ठा व रेवती नक्षत्रों के अंत की दो घटियां - 48 मिनट निर्बल तारा- विषेषकर सातवीं तारा (जन्म एवं वध तारा) विभिन्न रात्रियों में गर्भाधान के फल चैथी रात्रि के निषेक में - अल्पायु पुत्र पांचवीं रात्रि के निषेक में - कन्या छठी रात्रि के निषेक में - वंष वृद्धिकर्ता पुत्र सातवीं रात्रि के निषेक में - बांझ कन्या आठवीं रात्रि के निषेक में - पुत्र नवमी रात्रि के निषेक में - सुंदर कन्या दषमी रात्रि के निषेक में - प्रभावषाली पुत्र ग्यारहवीं रात्रि के निषेक में - कुरुप कन्या बारहवीं रात्रि के निषेक में - भाग्यषाली पुत्र तेहरवीं रात्रि के निषेक में - पाप विचारषील कन्या चैदहवीं रात्रि के निषेक में - धर्मात्मा पुत्र पंद्रहवीं रात्रि के निषेक में - लक्ष्मीवती व पतिव्रता कन्या सोलहवीं रात्रि के निषेक में - सर्वज्ञ पुत्र प्राप्त होता है। अर्थात शुभ सम रात्रियों में गर्भाधान संस्कार शुभ होता है ।
नोटः जिस मास का स्वामी क्रूर ग्रहों से पीड़ित हो उस मास में गर्भ हानि होने के विषेष संभावना होती है।
विभिन्न गर्भ मासों के स्वामी प्रथम शुक्र द्वितीय मंगल तृतीय बृहस्पति चतुर्थ सूर्य पंचम चंद्रमा षष्टम शनि सप्तम बुध अष्टम गर्भाधान समय का लग्नेष नवम चंद्रमा दषम सूर्य राषियों की प्रजनन शक्तियां 4, 8, 10, 11, 12 ये प्रजनन युक्त शुभ राषियां हैं। 3, 5, 6, 9 येे बांझ राषियां है। 1, 2, 7 अल्प प्रजनन राषियां है। तुला राषि का उत्तरार्ध वृष्चिक राषि का पूर्वार्ध इन सब राषियों का पंचम भाव से विचार किया जाता है।