हस्तरेखा सम्बन्धी कुछ नए तथ्य
हस्तरेखा सम्बन्धी कुछ नए तथ्य

हस्तरेखा सम्बन्धी कुछ नए तथ्य  

व्यूस : 6914 | जुलाई 2009
हस्तरेखा संबंधी कुछ नए तथ्य दयानंद वर्मा अक्सर पूछा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की हथेली की त्वचा किसी घाव के कारण और इलाज के बाद नई त्वचा बने, तो क्या उस पर पुरानी त्वचा वाली रेखाएं पुनः प्रकट होती हैं, या फिर उनमें कोई परिवर्तन होता है? उत्तर यही है कि नई त्वचा के निकलने पर रेखाएं ज्यों की त्यों रहती हैं, उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। शोधों से पता चला है कि हस्तरेखाओं के बनने का कारण मनुष्य का अचेतन मन होता है। अचेतन मन पर पूर्व जन्म के कर्मों की छाप होती है। इस छाप को सामान्य भाषा में ‘जन्मजात संस्कार’ कहा जाता है। ये संस्कार मनुष्य के वर्तमान जीवन की नींव होते हैं। इस जीवन के कर्म, माता-पिता के जीन तथा वातावरण मिलकर व्यक्ति के भाग्य का निर्माण करते हैं। वर्तमान जीवन के शुभ कर्म भाग्य को सौभाग्य और दुष्कर्म या समाज विरोधी कर्म भाग्य को दुर्भाग्य बना सकते हैं। हस्त रेखाएं व्यक्ति के सौभाग्य या दुर्भाग्य को प्रतिबिंबित करती हैं। इन रेखाओं के बनने में केवल अचेतन मन की भूमिका होती है, हाथ की त्वचा की नहीं। अचेतन मन से प्रेरित होकर मस्तिष्क की विद्युत धाराएं हस्तरेखाओं का निर्माण करती हैं। जिस प्रकार हृदय की दशा जानने के लिए हृदय रोग विशेषज्ञ द्वारा तैयार इसीजी के ग्राफ को देखकर चिकित्सक तदनुकूल दवा देता है, उसी प्रकार मस्तिष्क की विद्युत तरंगों द्वारा हथेली पर निर्मित रेखाओं के ग्राफ का अर्थ कोई कुशल हस्त रेखा विशेषज्ञ ही बता सकता है। जन्म के समय शिशु के हाथ की रेखाएं उसके पूर्व जन्म के संस्कारों के आधार पर बनी होती हैं। उसके होश संभालने पर इन रेखाओं में होने वाले परिवर्तनों का कारण वर्तमान जन्म के कर्म होते हैं। भाग्य वृद्धि के जितने उपाय शास्त्रों में बताए गए हैं, उन उपायोंप र श्रद्धापूर्वक कार्य करने से भाग्य में सुधार हो सकता है। मारण, उच्चाटन, वशीकरण जैसे तांत्रिक अनुष्ठान भाग्य को दुर्भाग्य में बदल सकते हैं। इसके विपरीत दान, पुण्य, मंत्र जप आदि भाग्य में वृद्धि कर सकते हैं। उपयुक्त रत्नों के धारण से मस्तिष्क की विद्युत तरंगों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। जिसका अचेतन मन अधिक शक्तिशाली होता है, उसकी रेखाओं में परिवर्तन की संभावना रहती है। यह परिवर्तन शुभ होगा या अशुभ उसके वर्तमान कर्मों पर निर्भर करता है। मनुष्य योनि कर्मप्रधान है, इसलिए कर्मों की दिशा बदलने से भाग्य बदल सकता है। तात्पर्य यह कि रेखाओं में किंचित परिवर्तन संभव तो है, किंतु जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह व्यक्ति के अचेतन मन पर निर्भर करता है। किसी घाव या चोट के फलस्वरूप इनमें कोई परिवर्तन नहीं होता।



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