सुखी दाम्पत्य के ज्योतिषीय उपाय भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वैवाहिक सुख एवं सुखी दांपत्य जीवन के बारे में कुंडली मिलान की प्रधानता है। विवाह के बारे में लग्न कुंडली के सप्तम भाव, सप्तमेश तथा पति एवं पत्नी के कारक ग्रहों की स्थिति का निरीक्षण कर यह जानकारी हासिल की जाती है कि जातक का वैवाहिक जीवन कैसा होगा। पं. रमेश शास्त्री जब दो जातकों का विवाह संबंध स्थापित होता है, तो उनकी कुंडली मिलान की जाती है। कुंडली मिलान से दोनों के सूझ-बूझ, निर्णय शक्ति, सहन शक्ति, प्रेम, अनुराग, प्रजनन शक्ति, आयु आदि कई बातों का पता चल जाता है कि जातक सुखी होंगे, या नहीं। कभी-कभी यह भी देखने को आया है कि जातकों की कुंडली मिल नहीं रही है, परंतु विवाह करना आवश्यक है, या दोनों में से किसी एक की कुंडली नहीं है, तो ऐसी स्थिति में दोष परिहार के उपाय करने होते हैं। कभी-कभी बिना कुंडली मिलान के विवाह हो जाते हैं। बाद में उनमें परस्पर अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में भी दोषों का परिहार करना होता है। ऐसी घटनाएं आम सुनने में आती हैं कि अमुक व्यक्ति को सुयोग्य संतान नहीं हैं, अमुक की संतान आज्ञा मानने वाली नहीं है। अमुक में प्रेम नहीं है, अमुक की लड़की आज्ञा नहीं मानती, अमुक लड़की असमय विधवा हो गयी है। इसका मुख्य कारण दोषपूर्ण कुंडली मिलान होता है। कुंडली मिलान न होने की स्थिति में उसका परिहार आवश्यक है। यदि जातक की कुंडली में कुयोग हा,े या मिलान उत्तम न हो और शादी करना आवश्यक हो, तो निराकरण के लिए निम्न उपाय करने होते हंै: शालिग्राम, पीपल वृक्ष, आक वृक्ष, कुंभ से यथाविधि विवाह कर के गोदान, सुवर्ण दान, महामृत्युंजय जप आदि कर के विवाह करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी विधि से मंगली दोष, नाड़ी दोष एवं अन्य दोषयुक्त कुंडली वाले जातक का विवाह कराया जाता है। कुंडली मिलान से लाभ: कुंडली मिलान के मुख्यतः दस अंग हैं, जिनसे निम्न लिखित लाभ हैं: वर्ण: बारह राशियों को ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्णों में बांटा गया है। वर्ण के मिलान को व्यक्ति के विकास एवं जातीय कर्म का मापदंड माना जाता है। इससे व्यक्ति के वैवाहिक जीवन का विकास जाना जाता है। वश्य: कुंडली में वश्य से यह जाना जाता है कि जातक के जीवन में परस्पर कितना प्रेम और आकर्षण होगा। तारा: कुंडली मिलान के समय तारा से भाग्य के बारे में जाना जाता है। योनि: योनि से संतान के बारे में जाना जाता है। ग्रह मैत्री: ग्रह मैत्री परस्पर संबंधों को स्पष्ट करती है। इसके द्वारा संबंधों की मधुरता-कटुता आदि के बारे में जाना जाता है। गणः कुंडली मिलान में गण द्वारा वैवाहिक जीवन में सामाजिकता के बारे में जाना जाता है। नाड़ी: नाड़ी से वैवाहिक जीवन में प्रजनन और पारिवारिक उन्नति के बारे में जाना जाता है। भकूट: भकूट अशुभ होने से वह जीवन में धन, संतान और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। शीघ्र विवाह के ज्योतिषीय उपाय: जातक की कुंडली में किसी प्रकार का कुयोग, या दोष होने से जातक का विवाह विलंब से होता है। कुछ जातकों के विवाह होने में बार-बार अड़चनें आती हैं। ऐसी स्थिति में निम्न उपाय करने से शीघ्र ही मनोनुकूल विवाह संपन्न होता हैः वर पाने के लिए: शीघ्र वर प्राप्त करने के लिए, शुभ मुहूर्त में, शुक्रवार, गुरुवार (शुभ नक्षत्र में) फिरोजा की माला धारण करें तथा माता गौरी का पूजन करें। तत्पश्चात उपर्युक्त मंत्र का जप दस हजार की संख्या में करें। मंत्र जप के समय माता भुवनेश्वरी यंत्र सम्मुख रखें। उपर्युक्त यंत्र का विधिपूर्वक पूजन कर मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह होगा। मंत्र: ¬ क्लीं विश्वासुर्नाम गन्धर्वः कन्यानामधिपतिः लभामि। देवदत्तां कन्यां सुरूपां सालंकारां तस्मै विश्वावसवे स्वाहा।। भुवनेश्वरी मंत्र: ¬ वहिप्रेयसी स्वाहा। भुवनेश्वरी यंत्र के सम्मुख यह मंत्र सवा लाख की संख्या में सविधि जप करने से शीघ्र ही विवाह बाधा नष्ट होती है। विजय संुदरी मंत्र: ¬ विजय सुंदरी क्लीं। श्री ललिता त्रिपुर संुदरी यंत्र के सम्मुख विजय सुंदरी मंत्र सवा लाख की संख्या में जपने से वैवाहिक अड़चनें नष्ट होती हैं और मनोनुकूल विवाह होता है। कुमार मंत्रः ¬ ह्रीं कुमाराय नमः स्वाहा। शिव यंत्र के सम्मुख कुमार मंत्र सवा लाख की संख्या में जपने से विवाह बाधा दूर होती है। अविवाहित वर के लिए शीघ्र विवाहः दुर्गा यंत्र के सम्मुख पत्नी मनोरमां देहि - मंत्र का 10,000 पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होता है और शीघ्र ही विवाह के प्रस्ताव आते हैं। लक्ष्मी यंत्र के सामने 108 कनक धारा स्तोत्र का पाठ करने से लाभ होता है। सौंदर्य लहरी के 21 पाठ प्रतिदिन 30 दिनों तक करने से अच्छा लाभ होता है। श्री यंत्र के सम्मुख श्री सूक्त का पाठ 1600 की संख्या में करने से लाभ होता है। सुखी वैवाहिक जीवन हेतु रत्नराज पुखराज: पति सुख न मिलने पर पुखराज धारण करने से लाभ होता है। कुंडली में गुरु एवं शुक्र ग्रह पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि होने से वैवाहिक जीवन में कटुता आती है, तो पुखराज धारण करने से लाभ होता है। संतान उत्पत्ति में विलंब होने पर या कन्या अधिक होने पर रत्न पुखराज को, सोने की अंगूठी में बनवा कर, तर्जनी उंगली में गुरुवार को सुबह के समय धारण करने से श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति होती है। जिन स्त्रियों के पति बार-बार हानि का सामना कर रहें हों तथा ऋण के भार से दबे हों, वे पुखराज धारण से लाभान्वित होते हैं। जिन स्त्रियों के लिए पुखराज धारण करना संभव न हो, वे गुरु पुष्य नक्षत्र में कच्ची हल्दी की प्राण प्रतिष्ठा कर के, गुरुवार को पीले कपड़े में लपेट कर, दाहिनी भुजा में धारण करें, तो पुखराज का फल मिलेगा। पति से स्नेहपूर्ण व्यवहार न होने पर फिरोजा रत्न की माला धारण करने से लाभ होता है। मंगलीक दोष का परिहार: वर-कन्या की परस्पर कुंडलियों में मंगलीक दोष होने पर विवाह में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। मंगलीक दोष कम करने के लिए, मंगल ग्रह के यंत्र को सम्मुख रख कर, मंगल ग्रह के वैदिक मंत्र को 10,000 की संख्या में विधिपूर्वक जप कर के, लाल चंदन की लकड़ी से 1,008 हवन कर के, सविधि तर्पण/मार्जनादि करने से मंगल ग्रह की शांति होती है और शीघ्र विवाह हो कर वैवाहिक जीवन सुखी होता है। महामृत्युंजय मंत्र द्वारा द्रोणपुष्प और कनेर का हवन करने से उत्तम वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है। मंगलीक दोष होने पर अनजाने में विवाह होने के पश्चात मंगलीक दोष को कम करने के लिए, शुभ मुहूर्त में नव ग्रह यंत्र को स्थापित कर के, श्री मंगल चंद्रिका स्तोत्र का पाठ करने से मंगल शुभ प्रभाव देता है। इसके अतिरिक्त अंगारक स्तोत्र एवं मंगल कवच का पाठ करने से भी शुभ फल प्राप्त होता है।