हस्तरेखा द्वारा ग्रह स्थिति ज्ञान नागेंद्र भारद्वाज ज्योतिष एवं हस्त रेखा विज्ञान में एक प्रमुख अंतर यह है कि ज्योतिष में जन्म के समय से ही जन्मांग नियत हो जाता है। जबकि हमारे कर्मानुसार हमारी हस्त रेखाएं बदलती रहती हैं। इस प्रकार ये रेखाएं हमारे परिवर्तित भाग्य को दर्शाती है। हस्त रेखाओं व लक्षणों के आधार पर जन्म पत्री के निर्माण की विधि दी गई है। परंतु यह शास्त्रों के गूढ़ चिंतन, मनन एवं निरंतर अभ्यास से ही सिद्ध होता है। इस विषय की सिद्धि के लिए हस्त तल में स्थित स्वयं हस्त स्वरूपा भगवती पंचांगुली देवी की साधना का विशेष महत्व है। आचार्यों ने हस्त रेखा द्वारा जन्म पत्री गणना की विधियां बतायी है परंतु यह आवश्यक नहीं कि हाथ देखकर जन्म पत्री का निर्माण पूर्ण रूप से किया जा सके। परंतु गहन अध्ययन व हस्त रेखा के मूल गं्रथ ‘‘हस्त संजीवनी’’ की सहायता व अध्ययन से हाथ देखकर ग्रहों की जन्म पत्रिका में स्थिति या जिन व्यक्तियों को अपने जन्मांग पत्र पर संदेह हो तो इस विद्या के द्वारा हम जन्मांग में पड़े ग्रहों का मिलान अवश्य कर सकते हें कि वह सही भी है या गलत है। इस संदर्भ में कहा जाए तो यदि किसी का हाथ चपटा या वर्गाकार हो तो चर लग्न का जन्म होता है, नुकीला तथा लंबा हाथ स्थिर लग्न व दार्शनिक हाथ होने से द्विस्वभाव लग्नों में जन्म समझा जाता है। समय ज्ञात करने के लिए यदि व्यक्ति के दोनों अंगूठों में यव का चिह्न हो तो शुक्ल पक्ष तथा एक अंगूठे में यव होने पर कृष्ण पक्ष का जन्म समझा जाता है। इसी तरह सूर्य की स्थिति का ज्ञान किया जा सकता है परंतु इसमें मस्तिष्क रेखा का समाप्ति स्थल विशेष द्रष्टव्य है मस्तिष्क रेखा यदि चंद्र पर्वत पर समाप्त होकर दो या तीन भागों में बंट जाए या क्रास, यव का चिह्न बने तो व्यक्ति के जन्म समय सूर्य कर्क राशि या सिंह राशि में समझा जाता है। यदि मस्तिष्क रेखा का समापन मंगल पर्वत पर हो तो मेष या वृश्चिक राशि में सूर्य माना जाता है इसी प्रकार यदि मस्तिष्क रेखा शनि पर्वत के नीचे से निकली हो या जीवन रेखा से चलकर भी शनि पर्वत के नीचे पहंुचकर हल्की, फीकी या कमजोर हो गई हो तो व्यक्ति का जनम मकर के सूर्य या कुंभ के सूर्य में होता है। इस तरह सूर्य की राशि जानकर जन्म मास भी जाना जा सकता है। अंगुलियों के आधार पर कहें तो यदि सूर्य की अंगुली तर्जनी से लम्बी हो तो सूर्य की स्थिति चैथे स्थान से नवे स्थान तक होती है। यदि तर्जनी लम्बी हो तो सूर्य प्रायः दसवें स्थान से तीसरे स्थान के बीच कहीं होता है। चंद्र पर्वत की स्थिति के लिए चंद्र पर्वत के उभार व चिह्नों पर तथा इस पर्वत से निकलकर किसी दूसरे पर्वत की ओर जाने वाली रेखाओं को विशेष रूप से देखा जाता है यदि सूर्य पर्वत की ओर चंद्र पर्वत से कोई रेखा आती हो तो चंद्र की स्थिति मित्र राशि या स्वराशि में समझी जाती है। इसी तरह यदि मंगल पर्वत कुछ दबा या कटा-फटा हो तथा शुक्र पर्वत से रेखाएं मंगल पर्वत पर आती हों तो मंगल की स्थिति शत्रु राशि या शुक्र की राशि में समझी जाती है। बुध पर्वत यदि सूर्य की तरफ व सूर्य पर्वत बुध की तरफ झुका हो तो ऐसी स्थिति जन्म पत्रिका में बुधादित्य योग को दर्शाती है। गुरु पर्वत यदि दबा हो तथा जीवन रेखा से कोई रेखा गुरु पर्वत पर आती हो तथा गुरु पर्वत पर क्रास का चिह्न हो तो गुरु की स्थिति चर राशियों में समझी जाती है। शुक्र पर्वत की स्थिति ज्ञात करने के लिए सूक्ष्म अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है यदि बुध पर्वत से कोई रेखा शुक्र पर्वत तक आती हो तथा शुक्र पर्वत पर आड़ी रिछी रेखाएं या जाल बनता हो तो शुक्र को मित्र राशि या द्विस्वभाव राशि में समझा जाता है इसके विपरीत यदि शुक्र पर्वत दबा हुआ हो तथा सूक्ष्म नाड़ीयां नजर आती हो तो शुक्र ग्रह अस्त, नीच राशि या शनि राहु के साथ उसकी जन्मांग में युति समझी जाएंगी। शनि पर्वत मांसल हो तथा शनि व सूर्य रेखा सुस्पष्ट हो तो शनि की स्थिति उच्च राशि या स्वराशि में समझी जाती है। इसके विपरीत यदि शनि पर्वत दबा हुआ व शनि रेखा टूटी या खंडित हो तो श्ािन नीच राशि, अस्त, या शत्रु राशि में माना जाता है। पर्वतों रेखाओं व चिह्नों का भली भांति अध्ययन कर व कौन सा पर्वत अपने ठीक स्थान पर है कौन सा पर्वत दायीं या बायीं ओर झुका है। इसका सूक्ष्मता से अध्ययन करें, तदुपरांत यदि पर्वत अपने सही स्थान पर उभार लिए है तो वे ग्रह जन्म कुंडली में प्रायः केंद्र स्थानों यदि ये अपने स्थान से बायी ओर झुके हों तो (2, 3, 5, 6) स्थानों तथा दायीं ओर झुके होने पर (8, 9, 11, 12) स्थानों में होते हैं। इस प्रकार इन महत्वपूर्ण तथ्यों के आधार पर कहा जाए तो भले ही हाथ देखकर जन्मपत्री निर्माण पूर्ण रूप से न किया जा सकता हो पंरतु गहन अध्ययन, अभ्यास, हाथों की बनावट व रेखाओं के आधार पर हम ग्रहों की जन्मांग स्थितियों को अवश्य जान सकते हैं। नागेंद्र भारद्वाज