अस्पताल
अस्पताल

अस्पताल  

मनोज कुमार
व्यूस : 4649 | आगस्त 2015

वास्तु सिद्धांतों का अनुपालन करके निर्मित किया गया अस्पताल रोग के जल्दी ठीक होने में काफी मददगार होता है तथा रोगी किसी दूसरे प्रकार की परेशानियां विकसित होने से बचता है। डाॅक्टर को ‘वैद्यो नारायणो हरि’ की संज्ञा दी गई है जिसका तात्पर्य यह है कि डाॅक्टर भगवान होते हैं।

आजकल हर जगह पर नर्सिग होम एवं अस्पताल शहरों में विकसित एवं लोकप्रिय हो रहे हैं। किसी भी नर्सिंग होम या अस्पताल की प्रसिद्धि डाॅक्टर की निष्ठा के साथ-साथ भवन के वास्तु पर भी निर्भर करता है। आज भी हमारे बड़े कहते हैं कि जब उनके डाॅक्टर उनका हाथ भर छू देते थे तो उनका बुखार ठीक हो जाता था।

कई डाॅक्टर वास्तु विज्ञान की अनदेखी करते हैं तथा इस पर अधिक विश्वास नहीं करते। हालांकि हाल के समय में वास्तु विज्ञान ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है तथा डाॅक्टर भी अस्पताल निर्माण के पूर्व वास्तुविदों की सलाह लेना नहीं भूलते तथा उन्हीं की सलाह के अनुरूप अस्पताल का निर्माण करते हैं। ऐसे ही अस्पताल लोकप्रियता हासिल करते हैं तथा आर्थिक रूप से भी सफल होते हैं।

जिन अस्पतालों में वास्तु सिद्धांतों की अनदेखी की जाती है उन अस्पतालों को या तो अस्पताल किसी न किसी विवाद में नियमित रूप से उलझे रहते हैं। कई बार इन्हें रखरखाव, स्टाफ की अनुपलब्धता एवं संसाधन की कमी जैसी परेशानियों से भी जूझना पड़ता है। वास्तुनुरूप अस्पताल का निर्माण शीघ्र ही अच्छा मुनाफा देना प्रारंभ कर देता है तथा इसकी प्रसिद्धि दिन-दूनी रात चैगुनी फैलती है।

ऐसे अस्पतालों में आकर रोगी भी काफी सहज महसूस करते हैं तथा उनका रोग शीघ्रातिशीघ्र ठीक हो जाता है। वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप अस्पताल के निर्माण में निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है:

भौगोलिक स्थिति: अस्पताल निर्माण हेतु स्थान चयन के लिए उसकी भौगोलिक स्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है। जहां अस्पताल निर्माण की सोच रहे हैं वहां यह देखना आवश्यक है कि उस स्थान के पूर्व एवं उत्तर दिशा में जल स्रोत अथवा प्राकृतिक दृश्य आदि हैं अथवा नहीं।

इन चीजों की उपलब्धता अस्पताल के लिए काफी सकारात्मक है। दूसरी ओर जल स्रोत दक्षिण दिशा की ओर काफी नकारात्मक माना जाता है। दक्षिण दिशा की ओर पहाड़ अथवा ऊंचे निर्माण अच्छे माने जाते हैं। भूखंड: अस्पताल निर्माण के लिए सबसे उपयुक्त भूखंड नियमित आकार का माना जाता है अर्थात भूखंड आयताकार अथवा वर्गाकार होना चाहिए।

प्रवेश द्वार: अस्पताल का प्रवेशद्वार पूर्व अथवा उत्तर दिशा से उपयुक्त ग्रिड में होना चाहिए। अन्य दिशाओं से प्रवेश द्वार बनाने की स्थिति में किसी योग्य वास्तुविद से सलाह लेना आवश्यक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्य दिशाओं से भी प्रवेश द्वार बनाये जा सकते हैं लेकिन इसके लिए कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक होती हैं।

आॅपरेशन थियेटर: आॅपरेशन थियेटर का निर्माण ईशान, आग्नेय एवं वायव्य कोणों को छोड़कर कहीं पर भी किया जा सकता है। आॅपरेशन थियेटर में आॅपरेशन करते वक्त डाॅक्टर का मुख सदैव पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर होना आवश्यक है जबकि रोगी का सिर दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। ऐसा होने पर आॅपरेशन काफी सहजता से संपन्न होगा तथा सफल रहेगा।

सफलता की दर किसी भी अस्पताल की प्रसिद्धि एवं मुनाफा को प्रभावित करते हैं। यदि रोगी खुश होकर जाता है तो उसके द्वारा अस्पताल के पक्ष में निःशुल्क प्रचार हो जाता है। आॅपरेशन थियेटर में मशीनें एव अन्य उपकरण दक्षिण-पूर्व दिशा में व्यवस्थित किया जाना चाहिए। आवश्यक औजारों को रोगी के बेड से दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम अथवा पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है।

परामर्श कक्ष: डाॅक्टर से परामर्श का कमरा मुख्य भवन के दक्षिण-पश्चिम अथवा दक्षिण अथवा पश्चिम अथवा उत्तर-पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है। रोगी की जांच करते वक्त डाॅक्टर का मुंह सदैव उत्तर-पूर्व अथवा पूर्व अथवा उत्तर की ओर होना चाहिए। कमरे में उसे दक्षिण-पश्चिम अथवा दक्षिण भाग में ही बैठना चाहिए तथा रोगी को उसके सामने नहीं बल्कि उसके बगल में इस प्रकार बैठना चाहिए कि स् का आकार बने तथा यह स् उत्तर-पूर्व दिशा की ओर उन्मुख हो। यह संस्थान के सबसे प्रमुख डाॅक्टर की प्रसिद्धि एवं समृद्धि बढ़ायेगा। चिकित्सकीय उपकरण कक्ष चिकित्सकीय उपकरण मुख्य भवन के दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम अथवा दक्षिण भाग में बने कक्ष में रखा जाना चाहिए।

स्टोर रूम: स्टोर रूम का निर्माण दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम अथवा दक्षिण भाग में करवाया जा सकता है। स्टोर रूम का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि यह उस फ्लोर के अन्य कमरों से अधिक उंचा हो। मेडिकल वार्ड/ आई. सी. यूआपातकालीन वार्ड का निर्माण इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि जैसे ही रोगी अस्पताल में आए वह दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थित कक्ष में भेजा जा सके। इससे रोगी को त्वरित लाभ मिलता है।

बेड को इस प्रकार से स्थापित किया जाना चाहिए कि रोगी का सिर सदैव दक्षिण दिशा की ओर हो क्योंकि इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है तथा इलाज की गति में तेजी आती है जिससे रोगी को तुरंत लाभ का एहसास होता है। विकल्प के तौर पर यह भाग दक्षिण अथवा पश्चिम में भी निर्मित किया जा सकता है।

मंदिर: किसी भी अस्पताल में एक मंदिर का निर्माण अवश्य होना चाहिए। मंदिर का निर्माण भूखंड के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में किया जाना आवश्यक है।

विद्युत उपकरण: सभी प्रकार के बड़े विद्युत उपकरण भूखंड के आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण-पूर्व भूभाग में लगाया जाना चाहिए। कक्ष में अथवा आवश्यक भूभाग पर इनकी स्थापना उस कक्ष अथवा भूभाग के दक्षिण-पूर्व दिशा में किया जाना आवश्यक है।

रोगी कक्ष: रोगी का कमरा पूर्ण रूप से हवादार होना चाहिए और इसका प्रवेश द्वार उत्तर-पूर्व दिशा से होना चाहिए जिससे कि सकारात्मक किरणों का निर्बाध प्रवेश रोगी के कमरे में हो सके जिससे कि वह जल्दी ठीक होकर घर जा सके।

पीने का पानी: पीने के पानी की व्यवस्था अस्पताल के उत्तर-पूर्व हिस्से में किया जाना चाहिए। बाथरूम के लिए सबसे उपयुक्त स्थान पूर्व अथवा उत्तर का भाग है।

पुस्तकालय: मेडिकल की किताबों एवं पत्रिकाओं के लिए पुस्तकालय दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में अच्छा माना जाता है।

एक्सरे: एक्सरे के लिए दक्षिण-पूर्व दिशा सबसे उपयुक्त है अतः भूखंड के दक्षिण-पूर्व दिशा में ही एक्सरे कक्ष का निर्माण किया जाना चाहिए। कक्ष में भी कक्ष के दक्षिण-पूर्व के हिस्से में मुख्य मशीन रखा जाना चाहिए।

नर्स क्वार्टर: अस्पताल में कार्यरत नर्सों के लिए स्टाफ क्वार्टर की व्यवस्था दक्षिण-पूर्व एवं उत्तर-पश्चिम के हिस्से में किया जा सकता है।

चेंज रूम एवं टाॅयलेट: चेंज रूम एवं टाॅयलेट भूखंड के दक्षिण अथवा पश्चिम भाग में निर्मित किया जाना चाहिए।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.