प्रकृति ने आंखों की सुरक्षा के लिए इनको कोटरों में रखा है, इनकी सफाई के लिए कोटरों में पानी भरा है, ताकि हर वक्त यह पानी आंखों की सफाई कर सके। आंखांे की अपनी भाषा होती है, अपनी अभिव्यक्ति होती है। शायरी और कवियों की भाषा में आंखें सागर से भी ज्यादा गहरी हैं जिसमें कोई भी डूब सकता है, समा सकता है। यह सब तभी संभव है जब आंखें साफ और स्वस्थ रहें। इसलिए इनका विशेष ध्यान रखना हर व्यक्ति का फर्ज है। आयुर्वेद शास्त्र में विभिन्न चक्षु रोगों के लिए बहुत ही कारगर औषधियां एवं उपचार पद्धतियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ये उपचार आज भी नेत्र रोगियों के लिए बहुत ही कारगर हैं। इन्हीं औषधियों एवं उपचार पद्ध तियों का उपयोग करके विभिन्न नेत्र रोगों से बचा जा सकता है।
आंखों से संबंधित विभिन्न प्रकार के रोग तथा विकार होते हैं- जैसे
- नज़र की कमजोरी, मोतियाबिंद आखंे दुखना आंखों के रोहे इत्यादि। नेत्र रोग के कारण
- धूप में घूमकर आने के तुंरत बाद ठंडे पानी से नहाना।
- आंखों की चोट लगना
- रात देर तक जागना और दिन में सोना।
- कंप्यूटर पर लगातार काम करना।
- निरंतर क्रोध या शोक करना या दुखी रहना।
- दूर की वस्तुओं को एकटक देर तक देखना।
- आहार में सिरका, कुलथी, उड़द, खट्टी चीजें अधिक खाना।
- मल-मूत्रादि की प्रवृत्ति को रोकना
- धुएं से युक्त स्थान में अधिक समय रहना। आयुर्वेदिक घरेलू उपचार आयुर्वेद में काजल का विधान खास तौर पर बच्चों के लिए किया गया है
परंतु इसका उपयोग बड़े भी करते हैं। यह बाहर की गर्मी से आंखों को बचाता है। इससे विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ प्राप्त होते हैं, जो आंखों के लिए बहुत ही लाभदायक हैं।
- गुलाब जल और रसांजन को मिलाकर दो-दो बूंद दिन में चार-पांच बार आंखों में डालने से आंख का आना ठीक हो जाता है।
- दूध में घी डालकर पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
- अश्वगंध और मुलेठी के चूर्ण को मिलाकर उसमें आंवले का रस डालकर रोजाना एक बार सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
- त्रिफला और पोस्त की कलियों को पानी में उबालकर रखें और रोज दुखती आंख में दो-दो बूंद डालें तो दुखती हुई आंख ठीक हो जाएगी।
- रोजाना शुद्ध शहद सूरमे की तरह आंखों में लगाने और नंगे पांव ओस पर चलने से आंखों की रोशनी तेज होती है, चश्मा भी उतर जाता है।
- त्रिफला को शहद और घी में मिलाकर प्रतिदिन खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और आंखों से पानी आना बंद हो जाता है।
- काली मिर्च का चूर्ण, मिस्री और घी में मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से आंखों की ज्योति तीव्र होती है। मोतियाबिंद शुरू होते ही नींबू का रस दो-दो बूंद आंखों में डालने से मोतियाबिंद नहीं बढ़ता।
-बंग भस्म और वंश लोचन खूब पीस लें और सलाई से सूरमे की तरह लगाने से मोतिया बिंद, जाला, खुजली आदि रोग तथा विकार नष्ट होते हैं। जैतून के तेल की एक-एक बूंद आंखों में डालने से रोशनी बढ़ती है। खुजली और जाले के विकार नष्ट होते हैं।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चंद्र नेत्र रोग में विशेष महत्व रखते हैं। ये दोनों ग्रह रोशनी कारक हैं जिससे हम देख सकते हैं। अगर सूर्य और चंद्र रोशनी न दें तो हम देख नहीं सकते। इसलिए रात को सूर्य की रोशनी नहीं रहती तो उपकरणों की सहायता से रोशनी कर के हम देख सकते हैं। हमारी आंखों में सूर्य और चंद्र से प्रभावित होने वाले तत्व हैं, जो बहुत ही कोमल हैं।
जब ये तत्व विकार युक्त हो जाते हैं तो हमारे नेत्र रोगी हो जाते हैं और रोग अधिक होने से अंधापन भी आ जाता है। काल पुरूष की कुंडली में द्वितीय और द्वादश भाव परस्पर दायीं और बायीं आंख का नेतृत्व करते हैं, छठा भाव नैसर्गिक रोग कारक है।
जब सूर्य, चंद्र शत्रु रूप में और रोग कारक ग्रह मिलकर उपर्युक्त भावों को प्रभावित करते हैं तो नेत्र रोग होता है। अर्थात सूर्य, चंद्र, द्वितीय भाव, द्वितीयेश, द्वादश भाव, द्वादशेश, लग्नेश एवं लग्न जब दुष्प्रभावों में रहते हैं तो नेत्र रोग होता है।
विभिन्न लग्नों में नेत्र रोग
मेष लग्न: लग्नेश मंगल एवं द्वितीयेश शुक्र षष्ठ भाव में हो, सूर्य अष्टम भाव में राहु से युक्त या दृष्ट हो तो नेत्र रोग से जातक पीड़ित रहता है।
वृष लग्न: द्वितीयेश एवं द्वादशेश सूर्य से अस्त होकर द्वितीय, अष्टम या द्वादश भाव में हो और चंद्र पूर्णिमा का होकर राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को नेत्र रोग का सामना करना पड़ता है।
मिथुन लग्न: चंद्र-शुक्र अकारक मंगल से युक्त होकर द्वितीय, द्वादश, सप्तम अष्टम भाव में स्थित हो, सूर्य राहु-केतु से युक्त व दृष्ट हो, लग्नेश बाधक गुरु से युक्त हो या दृष्ट हो तो जातक नेत्र रोग से परेशान रहता है।
कर्क लग्न: राहु सूर्य द्वितीय भाव में, बुध लग्न में, चंद्र अष्टम भाव में गुरु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को बचपन से ही चश्मा लग जाता है।
सिंह लग्न: सूर्य-शनि-बुध तीनों षष्ठ, सप्तम या अष्टम भाव में हो, गुरु द्वितीय भाव में या द्वादश भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक की नजर कमजोर रहती है।
कन्या लग्न: सूर्य-शुक्र, राहु-केतु से युक्त या दृष्ट होकर चतुर्थ भाव में स्थित हो और मंगल लग्न में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को जीवन में जल्द ही आंखों से परेशानी रहती है।
तुला लग्न: गुरु राहु से युक्त द्वितीय भाव, षष्ठ भाव, अष्टम भाव या द्वादश भाव में हो और सूर्य गुरु से सप्तम रहे, मंगल-बुध साथ होकर कुंडली में कहीं स्थित हों तो जातक को नेत्र संबंधित रोग रहता है।
वृश्चिक लग्न: सूर्य-बुध द्वितीय भाव में हो और राहु केतु से युक्त या दृष्ट हो, लग्नेश मंगल षष्ठ भाव में शनि से दृष्ट या युक्त हो तो जातक की आंखों में परेशानी आती है।
धनु लग्न: शुक्र द्वितीय या द्वादश भाव में, मंगल-शनि षष्ठ या अष्टम् में हो, चंद्र-सूर्य से अस्त हो और राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को नेत्र संबंधित रोग होता है।
मकर लग्न: लग्नेश शनि षष्ठ भाव या अष्टम भाव में सूर्य से अस्त हो, गुरु द्वितीय या द्वादश भाव में राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को नेत्र रोग होता है।
कुंभ लग्न: शनि षष्ठ भाव में गुरु, द्वादश भाव में चंद्र से युक्त हो, सूर्य-राहु युक्त होकर द्वितीय भाव में हो तो जातक नेत्र रोग से पीड़ित होता है।
मीन लग्न: शनि द्वितीय भाव में, शुक्र द्वादश भाव में, गुरु सूर्य से अस्त होकर षष्ठ या अष्टम भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट, चंद्र लग्न में हो तो जातक को नेत्र रोग से पीड़ित होना पड़ता है।
रोग का समय एवं अवधि संबंधित ग्रहों की दशा, अंतर्दशा एवं गोचर स्थिति प्रतिकूल होने पर रोग होता है उपरांत रोग से छुटकारा मिल जाता है।