अपने घर को बनाएं वास्तुसम्मत
अपने घर को बनाएं वास्तुसम्मत

अपने घर को बनाएं वास्तुसम्मत  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 10746 | दिसम्बर 2007

अपने घर को बनाएं वास्तुसम्मत रंजू नारंग पर्यावरण में अनेक प्रकार की शक्तियां कार्यरत रहती हैं। धन आयन एवं ऋण आयन दोनों का बल समान है। श्वसन क्रिया की एक निश्चित गति होती है।

वास्तु दोष युक्त स्थान में प्रवेश करने से इसकी गति में परिवर्तन अनुभव किया जा सकता है। यदि घर पूर्णतया वास्तुसम्मत न हो और उसमें तोड़-फोड़ करना भी संभव न हो तो आंतरिक सज्जा में कुछ परिवर्तन करके भी आप स्वयं अपने घर को वास्तुसम्मत बना सकते हैं और सुखद परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।

आंतरिक सज्जा एक रचनात्मक कला है जिसमें रंगों का उचित संयोजन, दीवारों पर लगाने वाली पेंटिंग्स, फर्नीचर, पर्दे, कालीन, दरियां, सजावटी पौधे एवं विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है।

परंतु वास्तुसम्मत आंतरिक सज्जा वह है जिसमें पूर्व निर्धारित उद्देश्य के अनुसार रंगों व धातुओं का संयोजन करके, मांगलिक वस्तुओं, चिह्नों एवं चित्रों का प्रयोग करके, सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करने वाले पेड़ पौधे लगाकर, समृद्धि एवं वैभव लाने वाली ध्वनियों का प्रयोग करके प्रकृति के पंचतत्वों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश को संतुलित किया जाता है और अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया जाता है।

मुख्य द्वार मुख्य द्वार अवरोध रहित होना चाहिए अर्थात् उसके सामने कोई खंभा, पेड़ या कोना न हो। परंतु यदि ऐसा कोई अवरोध हो जिसे हटाया न जा सके तो मुख्य द्वार पर बाहर की तरफ अष्टकोणीय दर्पण लगा दें।

इससे घर में प्रवेश करने वाली नकारात्मक ऊर्जा परावर्तित होकर लौट जाएगी। इसके अतिरिक्त स्वास्तिक ।, मुस्लिम संप्रदाय का 786 या ईसाई संप्रदाय का क्रास ($) का चिह्न यदि मुख्य द्वार पर अंकित कर दिया जाए तो वहां किसी भी तरह का वास्तुदोष नहीं रहता है। मुख्य द्वार के अंदर की तरफ हो तो एक तुलसी का पौधा बहुत ही कल्याणकारी होता है।

ड्राॅइंग रूम (बैठक) रंगों के संयोजन की दृष्टि से बैठक में हल्का गुलाबी, आसमानी या हल्का हरा रंग उत्तम होता है। बैठक में दक्षिण की दीवार पर यदि लाल रंग के चित्र अथवा पेंटिंग्स हों तो संगठक होते हैं। युद्ध एवं हिंसा वाले चित्र बैठक में या घर में कहीं भी न लगाएं। जिस चित्र में श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देते हों, वह शुभ नहीं होता है।

स्नेह, वात्सल्य, प्रेम आदि भावनाओं को प्रकट करने वाले चित्र लगाए जा सकते हैं। बांसुरी बजाते कृष्ण और राधा का चित्र जिसमें पीछे मोर भी दिखाई देते हों, अत्यंत शुभ होता है। इसके अतिरिक्त यशोदा कृष्ण का चित्र भी सकारात्मक ऊर्जा को प्रवाहित करता है। उत्तर की दीवार की तरफ जल से संबंधित चित्र जैसे झरना, नदी आदि हो सकते हैं। कुछ सजावटी पौधे भी बैठक में रखे जाते हंै।

यदि पर्याप्त स्थान हो तो पीले फलों वाला नारंगी का पौधा भी गमले में लगाया जा सकता है। यह पौधा सौभाग्य और संपन्नता का प्रतीक है। इसे दक्षिण पूर्व दिशा में लगाया जाता है। इस दिशा में नारंगी का कृत्रिम पौधा भी शुभ फलदायी होता है। इसके अतिरिक्त हरी पत्तियों वाले कलात्मक पौधे भी लगाए जा सकते हैं। ये सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते हैं।

बैठक में एक क्रिस्टल बाॅल लगाना शुभ होता है। इस बाॅल को शक्ति का पुंज माना गया है। क्रिस्टल प्रकाश की किरणों को परावर्तित कर घर में शुभ किरणों का प्रभाव उत्पन्न करता है। पूजा घर पूजा घर पूर्व दिशा, ईशान कोण अथवा उत्तर दिशा में होना उत्तम होता है। पूजा घर में देवी देवताओं की तस्वीरें लगानी चाहिए, मूर्तियां नहीं। यदि मूर्ति लगाना चाहते हैं तो वह नौ इंच से छोटी हो क्योंकि इससे बड़ी मूर्तियां लगाने के विशेष नियम होते हैं जिन्हें हर व्यक्ति पूरा नहीं कर सकता। समय-समय पर पूजा घर की सफाई आवश्यक है।

इसमें कपूर का दीपक अवश्य जलाएं। दक्षिणावर्ती शंख, श्री यंत्र आदि को पूजा घर में स्थान दें। स्मरण रहे कि घर में पूजा एक ही स्थान पर हो। पूजा घर का पेंट सुनहरा अथवा हल्का पीला हो सकता है। रसोई घर वास्तु के अनुकूल रसोई घर में पका भोजन स्वास्थ्यवद्धर् क एवं प्रसन्नतादायक होता है। गृहिण् ाी का अधिकांश समय रसोई घर में व्यतीत होता है इसलिए रसोई में स्वच्छ वायु का आवागमन आवश्यक है। आग्नेय कोण रसोई घर के लिए वास्तुसम्मत माना गया है।

रसोई घर में एग्जाॅस्ट फैन लगाया जाना आवश्यक है। गैस का चूल्हा और पानी का सिंक साथ-साथ या एकदम आमने सामने नहीं होना चाहिए क्योंकि अग्नि और जल परस्पर विरोधी तत्व हैं। आग तथा पानी को दूर रखने का प्रयास करना चाहिए- न तो ये दोनों एकदम सामने हों न ही एक साथ। ऐसी स्थिति में बीच में कोई अवरोध लगा देना चाहिए। भोजन पकाते समय गृहिणी का मुंह पूर्व की तरफ होना चाहिए।

यदि नौकर खाना पकाए तो उसका मुंह उत्तर की तरफ हो। हाॅट प्लेट, ओवन, मिक्सी आदि उपकरण् ाों को रसोईघर के आग्नेय क्षेत्र में रखना चाहिए। रसोई घर का पेंट सफेद अथवा हल्का गुलाबी या पीला होना चाहिए। रसोई में यदि वास्तु दोष हो तो कांच के कटोरे में फिटकरी रखें तथा दरवाजे पर छोटी सी पांच छड़ों वाली पवन घंटी (विंड चाइम) लगाएं। रसोई घर में पूजा स्थल कदापि न बनाएं।

सीढ़ियां सीढ़ियां पश्चिम दिशा या र्नैत्य कोण में होनी चाहिए। ये दक्षिणावर्ती होनी चाहिए और इनकी संख्या विषम होनी चाहिए। इनके नीचे तथा ऊपर दोनों तरफ दरवाजा बनाएं। इनके टूटने पर तुरंत मरम्मत कराएं। इस स्थान पर जूते चप्पल, बाल्टी आदि नहीं रखने चाहिए। घर की बगिया घर की उत्तर दिशा में छोटी बगिया अत्यंत शुभ होती है।

नींबू, नारंगी, अशोक, जामुन, नीम के वृक्ष सम्पन्नता वर्धक माने गए हैं। अशोक वृक्ष को घर के समीप लगाने से अन्य अशुभ वृक्षों के दोष भी समाप्त हो जाते हैं। फलों से लदे नींबू व नारंगी के वृक्ष संपन्नता के द्योतक हैं। जामुन का वृक्ष दक्षिण दिशा में विशेष शुभ होता है। यह मानसिक तनाव को दूर करता है। वृक्षों में बांस का पौधा भी लंबी आयु का प्रतीक है। शयन कक्ष गृहस्वामी का शयनकक्ष दक्षिण पश्चिम (र्नैत्य) में होना चाहिए। यह कक्ष ऐसा हो जहां चिड़ियों के चहचहाने की आवाज सुनाई दे। शयनकक्ष में देवी देवताओं के चित्र नहीं लगाने चाहिए।

इसमें पलंग के सामने दर्पण भी नहीं होना चाहिए। सिरहाना दक्षिण दिशा की ओर रखना चाहिए। दरवाजे के एकदम सामने नहीं सोना चाहिए। दीवारों का रंग श्वेत, हरा, गुलाबी रखा जा सकता है। दक्षिण पूर्व दिशा में ‘कबूतर का जोड़ा’ (खिलौना) आरोग्य देता है। लव बर्ड्स भी रखे जा सकते हैं। शयन कक्ष में तांबे के पात्र में जल रखें रात को विद्युत उपकरणों के कारण कुछ तरंगें बनती हैं जिन्हें यह अवशोषित करता है। इनका मानव शरीर पर कुप्रभाव कम हो जाता है।

शयनकक्ष में बीम के नीचे नहीं सोना चाहिए। परंतु यदि शयनकक्ष या घर में कहीं भी बीम हो तो उसके कुप्रभाव को कम करने के लिए उसके ऊपर 450 डिग्री कोण पर बांस की बनी बांसुरी लगानी चाहिए। अविवाहित कन्याओं का शयनकक्ष वायव्य कोण (उत्तर पश्चिम) में उत्तम होता है। इस कोने में मेहमानों का शयन कक्ष भी बनाया जा सकता है। अध्ययन कक्ष अध्ययन कक्ष शांत हो तो मनोहारी वातावरण और एकाग्रता प्रदान करता है।

यह कक्ष पूर्व, ईशान अथवा उत्तर दिशा में अच्छा होता है। अगर ऐसा न हो तो भी पढ़ते समय मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर ही होना चाहिए। पश्चिम की ठोस दीवार की ओर पीठ करके बैठना चाहिए। अध्ययन कक्ष में ताजे फूल सजाने चाहिए। कंप्यूटर आग्नेय कोण में रखना चाहिए। पुस्तकों की अलमारी र्नैत्य कोण में रखें। र्नैत्य कोण में सदा भारी वस्तुएं रखी जाती हंै। अलमारियां कभी खुली हुई नहीं होनी चाहिए। दरवाजा न हो तो परदा अवश्य लगाएं।

परदे व दीवारों का रंग सुनहरा, हल्का हरा अथवा हल्का पीला रखें। एकाग्रता बढ़ाने के लिए श्रीयंत्र अथवा क्रिस्टल बाॅल का प्रयोग किया जा सकता है। इस कक्ष के उत्तर पश्चिम दिशा में ग्लोब रखें और दिन में तीन बार उसे अवश्य घुमाएं। ब्रह्मस्थान भवन के मध्य भाग (आंगन) को ब्रह्मस्थान कहा जाता है। यह थोड़ा ऊंचा और खुला होना चाहिए। इसमें भारी सामान नहीं रखना चाहिए।

यह वास्तु पुरुष का नाभि स्थल होता है। इस पर वजन रखने से घर के सदस्यों को पेट की बीमारी हो सकती है। इस स्थान को रंगोली से सजाना चाहिए। यदि यहां थोड़ा खुला आकाश भी दिखे तो भविष्य संवर जाता है। ब्रह्मस्थान की सफाई पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। तिजोरी या धन रखने का स्थान उत्तर दिशा के स्वामी देवता कोषाध्यक्ष कुबेर हैं अतः धन तथा तिजोरी रखने की सर्वोत्तम दिशा उत्तर है। इसके अतिरिक्त ईशान कोण में भी तिजोरी रख सकते हैं, परंतु दक्षिण, वायव्य र्नैत्य या आग्नेय कोण में तिजोरी न रखें।

यह भी ध्यान रखें कि तिजोरी इस प्रकार रखी जाए कि उसका मुंह सदैव पूर्व या उत्तर दिशा में खुले। स्नानघर स्नानघर आग्नेयकोण के बाजू में अर्थात् कुछ पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। स्नान के बाद पूर्व की तरफ से सूर्य किरणों का शरीर पर आना अच्छा होता है। स्नानघर व शौचालय अलग होना उचित है। परंतु यदि शौचालय भी साथ में हो तो स्नान घर में सदा एक कांच का कटोरा साबुत नमक भरकर रखें। एक सप्ताह बाद नमक बदल दें। नमक नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेता है।

गीजर, स्विच बोर्ड आदि आग्नेय कोण में होने चाहिए तथा वाॅश बेसिन पूर्व की तरफ होना चाहिए। स्नानघर के पास रसोईघर के पीछे बर्तन व कपड़े धोने का एक स्थान होना चाहिए। शौचालय यह पश्चिम या उत्तर पश्चिम दिशा में होना चाहिए। ईशान, आग्नेय, र्नैत्य में शौचालय वर्जित है। फिनाइल आदि से साफ सफाई आवश्यक है। प्रयोग के बाद नल बंद रखने चाहिए। इसकी दीवारों का रंग सफेद होना चाहिए।

वाहन, गाडी रखने का स्थान घर का दक्षिण पश्चिम की तरफ का ही एक भाग वाहन आदि भारी सामान रखने के लिए उपयुक्त होता है। इस स्थान पर वायु का आवागमन सुगम होना चाहिए। गृह आंतरिक सज्जा से संबंधित सामान्य वास्तु नियम घर का रंग रोगन पुराना न होने दें, समय-समय पर पेंट कराते रहें। घर का कोई भी नल टपकना नहीं चाहिए, इससे धन का अपव्यय होता है।

घर में नवरत्नों का पेड़ लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। कांटेदार पेड़ जैसे - बबूल और खैर, कैक्टस आदि घर में न लगाएं। बोन्साई पौधे भी नहीं लगाने चाहिए क्योंकि सुंदर होने पर भी ये प्रगति में बाधक होते हैं। घर में उत्तर दिशा में धातु का बना कछुआ रखना चाहिए। यह लंबी आयु का प्रतीक है। घर में प्रातः काल व गोधूलि वेला में शुभमंत्रों की ध्वनि सुनाई दे तो सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अतः गायत्री मंत्र तथा अन्य पवित्र मंत्रों का कैसेट लगा सकते हैं।

टूटे फूटे बर्तनों का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए तथा टूटी खाट और फटी चादर पर कभी नहीं सोना चाहिए। इससे घर में दरिद्रता का वास होता है। घर के उत्तर पश्चिम में धातु के सिक्कों से भरा कांच का कटोरा रखें। इससे संपन्नता आती है। टेलीफोन, फैक्स मशीन आदि उत्तर पश्चिम में रखने चाहिए क्योंकि यह क्षेत्र सहायक व्यक्तियों का क्षेत्र है। इन दिशाओं में टेलीफोन, फैक्स आदि का संबंध होने से इनसे होने वाला संपर्क सदैव सहायक होगा। 

महिलाओं को प्रातः जल्दी उठकर मेन गेट के बाहर सफाई का कार्य करना चाहिए। घर के फर्श पर नमक मिले पानी का पोंछा लगाना चाहिए। इससे अशुभ ऊर्जा बाहर निकल जाती हैं। घर हो अथवा कार्यालय कामकाजी व्यक्ति को दरवाजे की ओर पीठ करके नहीं बैठना चाहिए।

इस तरह बैठने पर कोई आपके साथ विश्वासघात कर सकता है। कामकाजी व्यक्ति को अपनी पीठ के पीछे पर्वत का चित्र लगाना चाहिए ताकि काम में एकाग्रता आए। सूखे फूल घर में नहीं रखने चाहिए। 

जन्म कुंडली के विश्लेषण के लिए बात करें देश के प्रसिद्ध ज्योतिषियों से केवल फ्यूचर पॉइंट पर



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.