भारतीय वास्तुशास्त्र पूर्ण रूप से पांच तत्वों पर आधारित है- वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश एवं जल। इन्हीं पांच तत्वों से मानव शरीर का भी निर्माण होता है। इनमें से किसी भी एक तत्व की कमी होने पर मृत्यु हो सकती है।
इसी प्रकार भवन निर्माण में वास्तुशास्त्र के अनुसार इन पांच तत्वों का संतुलन नहीं होने पर उसमें वास करने वालों पर वास्तु पुरुष का कोप होता है। यहां वास्तु दोषों से मुक्ति के कुछ सरल उपायों का विवरण प्रस्तुत है।
वास्तुदोष से युक्त आवासीय या व्यावसायिक भवन में पारद शिवलिंग की स्थापना कर उसकी नित्य श्रद्ध ापूर्वक पूजा -अर्चना करने से दोषों का निवारण हो जाता है। घर में तांबे का पिरामिड रखने और नौ दिनों तक अखंड भगवत कीर्तन कराने से वास्तुदोष के प्रभाव में कमी आती है।
घर के मुख्य द्वार पर सिंदूर से स्वस्तिक का नौ अंगुल लंबा तथा नौ अंगुल चैड़ा बनाने से वास्तुदोष के प्रभाव में कमी आती है। चांदी का एक तार घर के मुख्य फाटक के नीचे दबाने और पंचमुखी हनुमान जी का फोटो लगाने से दोष दूर होता है। फोटो का मुंह फाटक की ओर हो।
पिरामिड के आकार का मंगल यंत्र घर में लगाने से वास्तु दोषों का नाश होता है। घर के मुख्य द्वार पर तुलसी एवं केले का वक्ष्ृ ा लगान े स े वास्त ु दाष्े ा दरू हाते ा ह।ै अशोक, आम, पीपल और कनेर के पत्ते बहुत ही शुभ माने गए हैं।
इनके पत्तों को एक धागे में बांधकर उसका तोरण बनाकर मकान के मुख्य द्वार पर लटका देने से वास्तु दोष दूर होते हैं। घर में गुग्गुल या कपूर सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य जलाएं। इसका धुआं वास्तु दोष दूर करता है।
आॅफिस व घर में क्रिस्टल के अधिक से अधिक प्रयोग से वास्तुदोष दूर होते हैं। जो व्यक्ति नित्य वास्तुदेव के नाम पर काले तिल, जौ और घी को मिलाकर अग्नि को समर्पित करता है उसके घर में वास्तुदोषों का प्रभाव न्यून होता है।
वास्तुदोष से मुक्ति पाने हेतु वास्तु पूजन अवश्य करवाना चाहिए। इससे दोष लगभग समाप्त हो जाता है। धन कोष कभी खाली नहीं रहे इसके लिए तिजोरी या गल्ले में कुबेर यंत्र या श्री यंत्र स्थापित करना चाहिए। घर में मनीप्लांट की बेल धन समृद्धि की सूचक है। कुबेर उत्तर दिशा के अधिपति हैं अतः तिजोरी उत्तर दिशा की ओर होनी तथा उसका मुंह उत्तर दिशा की ओर खुलना चाहिए।
हल्दी की गांठ व दाल चीनी की छाल जिस किसी भी घर में रहती है वहां लक्ष्मी की कृपा अवश्य रहती है। घर एवं आॅफिस में मछली रखने से धन व भाग्य में वृद्धि होती है। विशेष लाभ के लिए पश्चिमी दीवार के सहारे पश्चिम की ओर पैर करके सोना चाहिए। ईशान कोण में सीढ़ियां कभी नहीं बनानी चाहिए।
ईशान कोण में सीढ़ियां बनी हों तो र्नैत्य कोण में एक बड़ा कमरा अवश्य होना चाहिए। रसोई घर का दरवाजा अन्य दरवाजों से छोटा रखना चाहिए। भोजन बनाते समय गृहिणी का मंुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। यदि भोजन नौकर बनाता हो तो उसका मुंह उत्तर दिशा की तरफ हो सकता है। भवन के ईशान कोण में एक छोटा सा मंदिर अवश्य होना चाहिए।
नित्य आरती करनी चाहिए और घंटी बजानी चाहिए। घंटी की ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है तथा सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है। पानी का हौद अथवा कुआं ईशान कोण में शुभ तथा अन्य दिशाओं में अशुभ होता है।
गलत स्थान पर बने हौद अथवा कुंड का दोष दूर करने के लिए ईशान कोण में उस हौद से गहरा एवं बड़ा हौद खुदवा लेना चाहिए। द्वार दोष और वेध दोष दूर करने के लिए शंख, सीप, समुद्री झाग और तांबे या सोने की तुश को लाल कपड़े में बांधकर मौली से दरवाजे पर लटकाना चाहिए। शयनकक्ष में कभी भी जूठे बर्तन नहीं रखने चाहिए। अन्यथा घर की गृहिणी का स्वास्थ्य खराब रहने की संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त परिवार में क्लेश और धन का अभाव पैदा हो जाता है।
अब कहीं भी कभी भी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषाचार्यों से। अभी परामर्श करने के लिये यहां क्लिक करें।