चैत्र, वैशाख आदि हिंदी महीने जिन्हें चांद्र-मास भी कहा जाता है, एक खास नक्षत्र वाले दिन समाप्त होते हैं जैसे कि चैत्र माह की पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र होता है, बैशाख सुदी पूर्णिमा को विशाखा नक्षत्र होता है। अन्य महीनों की पूर्णिमा के नक्षत्र इस प्रकार हैं- ज्येष्ठ की पूर्णिमा को ज्येष्ठा, आषाढ़ी पूर्णिमा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण पूर्णिमा श्रवण, भाद्रपद पूर्णिमा उत्तराभाद्रपद, आश्विन पूर्णिमा अश्विनी, कार्तिक पूर्णिमा कृत्तिका, मार्गशीर्ष पूर्णिमा मृगशिरा, पौष पूर्णिमा पुष्य, माघ पूर्णिमा मघा एवं फाल्गुन सुदी पूण्र् िामा को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र रहता है।
कृष्ण पक्ष को बुदी भी कहते ह जिसकी अंतिम तिथि अमावस्या होती है। शुक्ल पूर्णिमा या पून्दू होती है। कभी-कभी उक्त नक्षत्रों में कुछ घंटांे का फर्क आ जाता है कारण चंद्रमा की दैनिक गति हमेशा एक सी नही रहती। हिंदी महीनों का नामकरण पूर्णिमा को रहने वाले नक्षत्र के नाम पर किया गया है। अब हमें यह ज्ञात करना है कि आज किस महीने के कौन से पक्ष की कौन सी तिथि है? इसके लिए हमारे पास दो सूचनायें होना जरूरी है। पहली यह कि पिछली पूर्णिमा को कौन सा नक्षत्र था और दूसरी ये कि आज या अभिष्ट दिन को कौन सा नक्षत्र है? माना कि गत पूर्णिमा को विशाखा नक्षत्र था और आज पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र है। इस सूचना के आधार पर हम कह सकते हैं कि आज ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि है। गत पूर्णिमा को विशाखा नक्षत्र होने से हमें ज्ञात हुआ कि वैशाख मास समाप्त होकर ज्येष्ठ मास का कृष्णपक्ष चल रहा है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र विशाखा नक्षत्र के 4 दिन बाद आता है। एक दिन (24 घंटे) में औसत रूप से एक नक्षत्र और एक तिथि होती है। पूर्णिमा के 15 दिन बाद तक कृष्ण पक्ष रहता है अतः आज ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी है। नक्षत्र अश्विनी से रेवती तक 27 होते हैं
जिनका क्रम हमेशा एक ही रहता है जैसे कि अश्विनी के बाद भरणी नक्षत्र होगा, उसके बाद कृत्तिका आयेगा, उसके बाद रोहिणी आयेगा आदि। इसी क्रम में माना कि आज आद्र्रा नक्षत्र है जो विशाखा के 17 दिन बाद आता है। इसमें कृष्ण पक्ष के दिन घटाने पर आज ज्येष्ठ शुक्ल दोयज तिथि है, ऐसा उत्तर दिया जा सकता है। इस तरीके से किसी भी महीने की तिथि बताई जा सकती है। लेकिन यह अनुमानित तिथि मोटे तौर पर (रफली) ही मानना चाहिये क्योंकि तिथि और नक्षत्र का प्रारंभ और समाप्ति काल अलग-अलग होता है तथा चंद्रमा की गति में भी घट-बढ़ होती रहती है। इसके बावजूद पंचांग देखे बिना निकटतम तिथि की जानकारी देना ज्योतिष शास्त्र की विशिष्टता ही मानी जायेगी। कई दफा इस गणना से तिथि शत-प्रतिशत सही बैठती है। यदि वर्तमान महीना मालूम हो और केवल पक्ष तथा तिथि ज्ञात करनी हो तो गत महीने की पूर्णिमा का नक्षत्र ऊपर दी गई सूची से लें तथा उस नक्षत्र से आज के नक्षत्र तक गिनंे। मानो आज धनिष्ठा नक्षत्र है और मार्गशीर्ष महीना चल रहा है तो कृत्तिका से धनिष्ठा तक गिनने पर 20 संख्या आई। अतः आज मार्गशीर्ष सुदी पंचमी है। इसी उदाहरण में मानो आज अनुराधा नक्षत्र है। कृत्तिका से अनुराधा तक गिनने पर 14 संख्या आई। अतः आज मार्गशीर्ष कृष्ण 14 तिथि है, यह उत्तर बनता है। अपने उत्तर को बाद में पंचांग या कैलेंडर से मिलान करने पर पता चलेगा कि उत्तर कितना सही है।
पंचांग देखे बिना तिथि जानने का दूसरा तरीका भी सरल है। यह चंद्रमा की कलाओं पर आधारित है। चंद्रमा के प्रकाशित भाग को चंद्रमा की कला कहते हैं। चंद्रमा आकाश में जिस जगह उदित होता है, उससे अगले दिन 12 अंश खिसक कर उगता है। शुक्ल पक्ष में यह पूर्व दिशा की तरफ प्रतिदिन खिसकता हुआ पूर्णिमा को पूर्वी क्षितिज पर पहुंच जाता है। कृष्ण पक्ष में यह प्रतिदिन पश्चिम की तरफ खिसकते हुये अमावस्या को पश्चिमी क्षितिज पर पहुंच जाता है। उस दिन सूर्यास्त के समय ये दोनों एक ही नक्षत्र और एक ही राशि पर होते हैं। इसके विपरीत पूर्णिमा को सूर्यास्त के समय ये एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं अर्थात सूर्य पश्चिम में और चंद्रमा पूर्व के क्षितिज पर। शुक्ल पक्ष में चंद्रमा पश्चिम में उगना शुरू होता है और कृष्ण पक्ष में पूर्व में उगना शुरू होता है। लेकिन दोनों ही स्थितियों में चंद्रमा के अस्त होने की दिशा पश्चिम ही है। शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला 12 अंश प्रतिदिन की औसत दर से बढ़ती है। 180/15 = 12 तथा कृष्ण पक्ष में इसी दर से घटती है। अमावस्या को चंद्रमा की कला शून्य पर पहुंचने के कारण वह दिखाई नहीं देता। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन भी चंद्रमा की स्थिति कमो-बेश यही रहती है। शुक्ल पक्ष की दोयज का चंद्रमा सूर्यास्त के बाद पश्चिमी क्षितिज पर 2/15 प्रतिशत रोशनी लिये हुये दिखाई देता है। उस समय चंद्रमा की कला का अंशात्मक मान 24 होता है। शुक्ल पक्ष की अष्टमी का चंद्रमा आधी रोटी के आकार में सूर्यास्त के बाद आकाश के बीचों बीच (हमारे सिर के ऊपर) दिखाई देता है। सप्तमी का चंद्रमा आकार में इससे थोड़ा कम और नवमी का इससे थोड़ा अधिक होता है। पूर्णिमा का चंद्रमा सूर्यास्त के समय पूर्ण गोलाकार पूर्व क्षितिज पर दिखाई देता है।
शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का चांद पूर्ण वृत्त से थोड़ा कम होता है लेकिन यह सूर्यास्त से करीब एक घंटा पहले पूरब में दिखता है। चंद्रमा प्रतिदिन औसतन 52 मिनट देरी से उगता है चाहे कृष्ण पक्ष हो या शुक्ल पक्ष और उगने के करीब 12 घंटे बाद अस्त होता है। इस प्रकार चंद्रमा एक निश्चित क्रम से दिन में भी उदित रहता है लेकिन सूरज की रोशनी के कारण यह प्रकाशहीन रहता है। कृष्ण पक्ष में अष्टमी का चंद्रमा रात्रि 12 बजे के बाद उगता है और उसकी तेरस-चैदस का चंद्रमा सूर्योदय के करीब उदित होता है। कृष्ण पक्ष को ‘बुदी’ या अंधेरा पखवाड़ा और शुक्ल पक्ष को ‘सुदी’ या चांदनी रात वाला पखवाड़ा भी कहते हैं। तिथि और पक्ष ज्ञात करने के इस तरीके को हम ‘चंद्र-वेध-प्रणाली’ (मून ओब्जर्वेन्स सिस्टम) कह सकते हैं। लेकिन इस विधि से हिंदी महीने का नाम पता नहीं चलता, अतः महीने का नाम अन्य सूत्रों से लें।