कालजयी धरोहर – सेतुबंध रामेश्वरम
कालजयी धरोहर – सेतुबंध रामेश्वरम

कालजयी धरोहर – सेतुबंध रामेश्वरम  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8378 | अकतूबर 2007

रामेश्वर शंख के आकार में द्वीप के रूप में तमिलनाडु प्रदेश में दक्षिण भारत में लगभग 62 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। रामेश्वरम को दक्षिण भारत का बनारस (काशी) माना जाता है।

हिंदू धर्म में यह धारणा है कि काशी की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक कि रामेश्वरम की यात्रा पूरी न हो जाएं। यहां पर श्री राम द्व ारा भारत और लंका के बीच में सेतु बनाया गया था। वैष्णव व शैव धर्म के अनुयायी इस तीर्थ की यात्रा करते हैं। यहां पर भारत के द्वादश ज्याेि तलिंर्ग म ंे स े एक रगं नाथ का ज्योतिर्लिंग भी स्थित है।

माना जाता है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए रामश्ेवरम की यात्रा आवश्यक है। रामेश्वरम का मुख्य क्षेत्र रामानाथ स्वामी का मंदिर है। भारत में धर्म की जड़ें काफी गहरी हैं। प्रत्येक देश किसी न किसी आदर्श (धर्म) पर टिका होता है। उसका प्रयास अपने लोक जीवन में उस आदर्श को स्थापित करना होता है। भारतीय लोक मर्यादा के आदर्श श्रीराम हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में यत्र तत्र सर्वत्र राम जन्म के लगभग 200, 250 स्मृति विग्रह विद्यमान हैं यथा श्री रामेश्वर मंदिर, चित्रकूट, पंचवटी, शबरी आश्रम, भारद्वाज आश्रम, अत्रि आश्रम, रामसेतु आदि।

भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित यह रामेश्वर तीर्थ सभी तीर्थ क्षेत्रों में उत्तम है। इस सेतु के दर्शनमात्र से इस भव सागर से मुक्ति मिल जाती है। आज भी सेतुबंध रामेश्वरम भारतीय सनातन परम्परा में आस्था का प्रतीक धाम है। श्रद्धालु इसका दर्शन करने आदर, श्रद्धा व विश्वास के साथ आते हैं। हमारे शास्त्र पुराणों में इसकी मान्यता एक धाम के रूप में स्थापित है।

रामायण, इतिहास, पुराणों में सेतु का वर्णन तथा महत्व विस्तार से लिखा है। करोड़ों वर्षों से समुद्र में डूबे पड़े इस सेतु को किसी ने नहीं देखा था। अंग्रेजों के शासन काल में उनकी एक सैनिक नाविक टुकड़ी को सन् 1860 ई. में श्रीलंका और रामेश्वरम के मध्य समुद्र में डूबा एक अवरोध मिला था।

इसे हटाने के लिए 147 वर्षों में अनेक समितियां बनीं जो समुद्री यात्रा में अवरोध मानकर उसे उखाड़ने का प्रयास करती रहीं। परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली। कुछ वर्षों पूर्व एक विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक ऐजेन्सी ‘‘नासा’’ उपग्रह के माध्यम से प्राप्त चित्रों और तथ्यों से ज्ञात हुआ कि श्रीलंका और रामेश्वरम के बीच 30 मील लंबा तथा सवा मील चैड़ा सेतु पानी में डूबा पड़ा है।

इस सेतु के ऊपर 5 से 30 फुट तक जल स्तर है। इनके अनुसार यह रेत और पत्थर से मानव निर्मित सेतु है तथा लगभग साढ़े सत्तर लाख वर्ष पुराना है। परंतु श्रीराम अवतार 24वें त्रेतायुग में सिद्ध होता है। यदि हम चारों युगों की गणना करते हुए वर्तमान में 28 वें कलयुग 510 वें विक्रम संवत 2064 की गणना करें, तो भगवान श्रीराम का जन्म आज से ठीक 1 करोड़ 81 लाख 29 हजार 109 वर्ष पूर्व हुआ था।

राम द्वारा निर्मित सेतुबंध कितना पुराना है इसका सहज अनुमान इसी से लगाया जा सकता है। यह काल त्रेता व द्वापरयुग का संधिकाल था। यह वही सेतु है जो लंका विजय के पूर्व भगवान श्रीराम के द्वारा निर्मित हुआ था। भगवान श्रीराम ने श्री हनुमान जी, नल, नील तथा सुग्रीव की विशाल वानरसेना की सहायता से समुद्रतट पर सेतु का निर्माण कराया था। लोक कल्याण के लिए ही श्रीराम ने अवतार लिया था और अपने अधर्म पर धर्म की जय हेतु इस धर्म रूपी सेतु का निर्माण किया।

श्रीराम ने आने वाली भारत की पीढ़ियों से इस धर्मसेतु की रक्षा की विनम्रता से प्रार्थना की थी। श्रीराम ने कहा कि ‘‘मेरे द्व ारा जिस धर्म की, जिस मर्यादा की स्थापना की गई है उसका पूर्णतया परिपालन धर्मप्राण भारत के शासकों को अवश्य ही करना चाहिए।’

श्रीराम ने स्वयं कहा कि -

भूयो भूयो भविनो भूमिपाला।

नत्वा नत्वा याचते रामचन्द्रः ।

सामान्योऽयं धर्म सेतुराणां।

काले-काले पालनीयो भवद्धि:।।

(स्कन्द पु. ब्रम्हां धर्मा 034/40) अर्थात - ‘‘हे भविष्य में होने वाले राजाओं ! यह रामचंद्र आप लोगों से अत्यंत विनम्रतापूर्वक बारंबार प्रणाम कर याचना करता है कि आप लोग मेरे द्वारा निर्मित धर्म सेतु की सुरक्षा सदा करते रहें।’’ इसलिए भारत वर्ष के प्रत्येक नागरिक पर इस धर्मसेतु की रक्षा का दायित्व है। इस दायित्व को हमें बड़ी आस्था विश्वास के साथ निभाना है।

श्रीराम ने जिस प्रकार वेदशास्त्र, सिद्ध ांतों की रक्षा की, मर्यादा का पालन किया, उसी प्रकार हमें भी उनके सिद्ध ांतों, मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए अपने धर्म का पालन करना है।

रामेश्वर तीर्थ यात्रा के आकर्षण :

रामनाथ स्वामी मंदिर: 17वीं शताब्दी में बना था। यह समुद्र के पूर्वी तट पर स्थित है। इसमें 1200 बड़े विशालकाय स्तंभ स्थित हैं। इसमें 22 कुएं स्थित हैं। जिनके प्रत्येक कुएं का पानी एक दूसरे से भिन्न है। अग्नि तीर्थम: मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर अग्नि तीर्थम स्थित है। यहां पर श्रीराम जी ने भगवान शिव की पूजा की थी। जिससे कि उन्हें रावण को मारने की शक्ति प्राप्त हो सके। 

गंधमदन पर्वत: यहां पर श्रीराम के पैरों में चक्र की छाप है। यह स्थान रामेश्वरम से 2 किमी. दूर है और रामेश्वरम द्वीप का उच्चतम स्थान है। 

धनुषकोडी: यह रामेश्वरम से 8 किमी. दूर पूर्वी छोर पर स्थित है। रामेश्वर सेतु को आश्रम सेतु भी कहा जाता है। और यह माना जाता है कि हनुमान जी को लंका जाने के लिए इस पुल का निर्माण करना पड़ा था। जिसका प्रयोग करके हनुमान जी की सेना ने लंका में प्रवेश किया था। धनुषकोडी श्री राम के धनुष के बाद नाम रखा गया था। धनुषकोडी 1964 के चक्रवात के बाद पूरी तरह नष्ट हो गया था। चक्रवात में मात्र कोठानदारा स्वामी जी का मंदिर बचा है। इसमें राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रावण के भाई विभीषण की मूर्तियां इसमें स्थापित हैं।

कैसे जाएं हवाई यात्रा द्वारा: यहां से 160 किमी. दूर मदुरै में निकटतम एयरपोर्ट स्थित है। यहां भारत और विदेश से हवाई सेवाओं से जुड़ा हुआ है।

रेल द्वारा: देश के विभिन्न महत्वपूर्ण शहरों जैसे चेन्नई, मदुरै, कोयम्बटूर, त्रिची, थंजावुर से यह जुड़ा हुआ है। चेन्नई से प्रतिदिन दो ट्रेन सेतु एक्सप्रेस और रामेश्वर एक्सप्रेस रामेश्वर आती जाती है।

सड़क द्वारा: मदुरै से कन्याकुमारी प्रतिदिन चार बार जाती हैं। उसके द्वारा शहर से 2 किमी. दूर बस स्टैंड से यहां पहुंचा जा सकता है।

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