मंगल पंचम व द्वादश का स्वामी होने से इष्ट कृपा, संतान सुख व खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु मूंगा अवश्य धारण करें। बुध सप्तमेश व दशमेश होकर केंद्राधिपत्य दोष से पीड़ित होने से पन्ना धारण नहीं करें। बृहस्पति लग्नेश होने से जीवनदायक है, अतः आत्मविश्वास, उत्तम स्वास्थ्य, जमीन-जायदाद की प्राप्ति हेतु पुखराज अवश्य धारण करें।
शुक्र षष्ठेश व एकादशेश होने से पापी है, अतः हीरा धारण नहीं करना चाहिए। शनि द्वितीयेश व तृतीयेश होने से मारक है, अतः नीलम कभी भी धारण नहीं करें। विश्व की प्रत्येक मानव सभ्यता ने रत्नों के अद्भूत प्रभाव को स्वीकारा है। रत्नों की उत्पत्ति दैत्यराज बली से मानी जाती है।
बली के रूधिर से सूर्य रत्न माणिक्य, मनस्तत्व से चंद्र रत्न मोती, समुद्र में गिरे हुए रक्त से मंगल का प्रवाल, पित्त से बुध का रत्न पन्ना मांस से बृहस्पति रत्न पुखराज, कपाल खंडों से शुक्र रत्न हीरा, नेत्रांे की पुतलियों से शनि रत्न नीलम, मेद से राहु रत्न गोमेद एवं याज्ञोपवीत से केतु रत्न लहसुनिया उत्पन्न हुआ।
इन रत्नों को सभी ग्रहों ने अंगीकार किया जिससे इनको धारण करने से इन ग्रहों का प्रभाव शुभ हो जाता है। रत्न को संबंधित ग्रह के वार के दिन शुभकाल में खरीदकर लाएं तत्पश्चात रेशमी वस्त्र मंे सात दिन तक दायें बाजू में बांधने से या तकिये के नीचे रखकर सोने से उसका प्रभाव स्पष्ट पता चल जाता है।
एक से अधिक रत्न पहनें तो शत्रुग्रह का रत्न कभी नहीं पहनना चाहिए। रत्न धारण करते समय संबंधित ग्रह की धातु यथा सूर्य स्वर्ण, चंद्र चांदी, मंगल तांबा, बुध कांस्य, पंचधातु, बृहस्पति-स्वर्ण, शुक्र चांदी व शनि त्रिलौह में ही रत्न धारण करना चाहिए।
अंगूठी में रत्न जड़वाकर धारण करें तो सूर्य रत्न व शुक्र रत्न अनामिका, चंद्र रत्न कनिष्ठिका या अनामिका, मंगल रत्न अनामिका, बुध रत्न कनिष्ठिका, गृह रत्न तर्जनी, शनि रत्न मध्यमा व राहु केतु के रत्न मध्यमा या अनामिका में ही धारण करने चाहिए।
रत्नों के शुभ प्रभाव हेतु जन्म राशि, के स्वामी ग्रह का रत्न धारण करते हैं लेकिन कभी-कभी यह रत्न किसी व्यक्ति को वांछित लाभ नहीं दे पाते। इसके लिए लग्न को आधार मानकर यदि रत्न धारण कराया जाए या किया जाए तो उसका शुभ प्रभाव अवश्य मिलता है। लग्नानुसार रत्नों के शुभ अशुभ प्रभाव का विवरण निम्न प्रकार है।
मेष लग्न: मेष लग्न का स्वामी ग्रह मंगल है। मंगल के मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र व बृहस्पति हैं। सूर्य पंचमेश होने से माणिक्य धारण करने पर धारक को बुद्धि तीव्र होती है और संतान सुख, सत्ता सुख व इष्ट कृपा की प्राप्ति होती है। चंद्र चतुर्थेश है अतः मोती धारण करने पर मानसिक शांति, मकान, वाहन व माता का सुख और विद्या की प्राप्ति होती है तथा लोगों से मधुर संबंध बनते हैं। मूंगा लग्नेश होने से जीवन को प्रत्येक दृष्टिकोण से सक्षम बनाने हेतु अवश्य धारण करना चाहिए। बुध तृतीय व षष्ठ दो अशुभ भावों का स्वामी होने से कभी धारण नहीं करें। बृहस्पति नवमेश व द्वादशेश है। वह यदि त्रिकोण का स्वामी हो तो वृहस्पति रत्न पुखराज धारण करने से पिता से संबंध सुधार व भाग्योदय होता है और धन लाभ एवं विद्या की प्राप्ति होती है। शुक्र दो मारक स्थानों का स्वामी है अतः हीरा कभी धारण नहीं करें। शनि दशम व एकादश का स्वामी होने से व कुंडली में स्थिति के आधार पर कार्य एवं व्यवसाय में वृद्धि हेतु विशेषज्ञ की सलाह पर धारण करें। राहु व केतु की स्थिति शुभ होने पर उनके रत्न धारण करने चाहिए। संयुक्त रत्नों के रूप में मूंगा व मोती जमीन जायदाद, मूंगा और पुखराज भाग्योदय, मूंगा व माणिक्य संतान सुख एवं सर्वसिद्धि हेतु मूंगा, माणिक्य व पुखराज तीनों को एक कवच रूप में धारण कर सकते हैं।
वृष लग्न: वृष लग्न का स्वामी ग्रह शुक्र है। वृष लग्न से सूर्य चतुर्थ का स्वामी होने से शुभ है लेकिन लग्नेश शुक्र का शत्रु होने से माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए। शुभ स्थिति में होने पर दशांतर्दशा में धारण किया जा सकता है। चंद्र तृतीयेश होने से अशुभ है अतः मोती धारण नहीं करना चाहिए। मंगल द्वादशेश व सप्तमेश होने से प्रबल मारक है एवं लग्नेश का शत्रु भी है अतः मूंगा भूलकर भी धारण नहीं करें। बुध द्वितीय व पंचम का स्वामी है। त्रिकोण का स्वामी व लग्नेश का मित्र होने से इसके रत्न पन्ना को धारण करने से पारिवारिक सुख में वृद्धि, आकस्मिक धन लाभ, संतान सुख एवं उत्तम विद्या की प्राप्ति होती है। परंतु यदि द्वितीय भाव में बुध स्थित हो तो त्याज्य है। बृहस्पति अष्टमेश व एकादशेश होने से परम अशुभ है। इसलिए पुखराज धारण नहीं करना चाहिए। शुक्र लग्नेश होने से हीरा धारण कर उत्तम लाभ प्राप्त किया जा सकता है। शनि केंद्र त्रिकोण का स्वामी होने से नीलम हमेशा धारण करना चाहिए ताकि भाग्य, कर्म एवं राज्य सुख की प्राप्ति हो सके। संयुक्त रत्नों के रूप में पन्ना व हीरा आर्थिक लाभ व संतान सुख, शरीर सुख हेतु हीरा व नीलम, भाग्य, कर्म एवं शारीरिक विकास हेतु हीरा, पन्ना व नीलम को सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण किया जा सकता है।
मिथुन लग्न: मिथुन लग्न का स्वामी बुध है। इस लग्न में सूर्य के तृतीयेश व चंद्र के द्वितीयेश होने, मंगल के षष्ठेश व एकादशेश होने और वृहस्पति के दशमेश व सप्तमेश होकर केंद्राधिपत्य दोष से पीड़ित होने के कारण इनके रत्न धारण नहीं करने चाहिए। बुध के लग्नेश होने के कारण पन्ना हमेशा पहने रहें ताकि धन, मान सम्मान, जमीन जायदाद एवं उतम विद्या की प्राप्ति हो सके। शुक्र द्वादशेश व पंचमेश होता है। एक त्रिकोण का स्वामी होने के कारण शुक्र धन लाभ, विद्या, संतान सुख, प्रेम, विवाह हेतु शुभ है। अतः इसका रत्न धारण करना चाहिए। शनि अष्टमेश होने से अशुभ किंतु पुनः नवमेश होकर शुभ बन गया है। अतः शनि की दशांतर्दशा में इसका रत्न धारण कर भाग्योदय किया जा सकता है। यह ध्यान रहे कि शनि अष्टम भाव में स्थित नही होना चाहिए। संयुक्त रत्नों के रूप में पन्ना व हीरा शरीर सुख, जमीन जायदाद, संतान सुख, उत्तम विद्या एवं धन लाभ हेतु, पन्ना व नीलम जमीन जायदाद एवं वाहन सुख और उत्तम भाग्य प्राप्ति हेतु व पन्ना, हीरा और नीलम सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण करें।
कर्क लग्न: कर्क लग्न का स्वामी चंद्र है। सूर्य द्वितीयेश होने से मारक है। अतः माणिक्य धारण नहीं किया जा सकता है। चंद्र लग्नेश होने से मोती आजीवन धारण कर सकते हैं ताकि मानसिक शांति, आयु में वृद्धि एवं उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति हो सके। मंगल पंचम व दशम का स्वामी होने से परम शुभ है। मूंगा धारण करने से राजनीतिक लाभ व संतान सुख की प्राप्ति तथा व्यापार व्यवसाय में वृद्धि होती है। बुध के दो अशुभ भावों तृतीय व द्वादश के स्वामी होने के कारण पन्ना कभी धारण करना नहीं चाहिए। बृहस्पति षष्ठेश व नवमेश होता है। वह त्रिकोण का स्वामी हो तो उसकी दशांतर्दशा में पुखराज धारण करने से भाग्योदय होगा। शुक्र चतुर्थ व एकादश का स्वामी होने से हीरा विशेषज्ञ की सलाह पर धारण करना चाहिए। शनि सप्तमेश व अष्टमेश होने के कारण परम मारक है अतः नीलम भूलकर भी धारण नहीं करें। संयुक्त रत्नों के रूप में मोती और मूंगा विद्या व लक्ष्मी प्राप्ति हेतु, मोती व पुखराज मानसिक शांति एवं भाग्योदय हेतु और मोती, मूंगा व पुखराज सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण कर सकते हैं।
सिंह लग्न: सिंह लग्न का स्वामी सूर्य है। सूर्य लग्नेश होने से माणिक्य धारण करने से आत्मविश्वास में वृद्धि, राज्य की प्राप्ति, शत्रु का नाश एवं आयु में वृद्धि होती है। चंद्र द्वादशेश है तो मोती धारण नहीं करना चाहिए। मंगल चतुर्थ व नवम केंद्र त्रिकोण का स्वामी होने से परम शुभ है अतः भूमि, भवन लाभ, उत्तम विद्या प्राप्ति एवं भाग्योदय हेतु धारण करें। बुध द्वितीय व एकादश स्थानों का स्वामी है। बुध का रत्न विशेष परिस्थिति में सिर्फ आमदनी वृद्धि हेतु कुछ समय के लिए धारण कर सकते हैं। अन्यथा त्याज्य है। बृहस्पति पंचम व अष्टम का स्वामी होता है। यदि गुरु पंचम में स्थित हो तो लाभकारी अन्यथा हानिकारक होता है। अष्टमेश होने के कारण पुखराज रत्न धारण नहीं किया जा सकता है। शुक्र तृतीय व दशम का स्वामी होने से हीरा कभी धारण नहीं करना चाहिए। शनि षष्ठेश व सप्तमेश होने से परम अशुभ है अतः नीलम धारण नहीं करना चाहिए। संयुक्त रत्नों के रूप में माणिक्य और मूंगा विद्या , जमीन जायदाद एवं वाहन, माणिक्य और पुखराज संतान सुख, शारीरिक स्वास्थ्य एवं धन और माणिक्य, मूंगा व पुखराज सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण किए जा सकते हंै।
कन्या लग्न: कन्या लग्न का स्वामी बुध है। सूर्य के द्वादशेश होने के कारण माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए। चंद्र एकादशेश होने व लग्नेश बुध द्वारा चंद्र से शत्रुता होने से मोती धारण नहीं कर सकते। मंगल तृतीयेश व अष्टमेश होने के कारण परम पापी है। अतः भूलकर भी धारण नहीं करें। बुध लग्नेश होने से स्वास्थ्य सुख, व्यापार-व्यवसाय में लाभ, पदोन्नति, राज्य सुख हेतु धारण कर सकते हैं। बृहस्पति चतुर्थ व सप्तम का स्वामी होने से केंद्राधिपत्य दोष से पीड़ित होता है। अतः पुखराज नहीं धारण करना चाहिए। शुक्र द्वितीय और नवम का स्वामी होने से शुभ है। अतः हीरा कभी भी धारण किया जा सकता है। शनि पंचम एवं षष्ठ भावेश है। इसकी मूल त्रिकोण राशि षष्ठ में पड़ने से नीलम धारण नहीं कर सकते हैं। संयुक्त रत्नों के रूप में पन्ना व हीरा आर्थिक लाभ एवं भाग्योदय, पन्ना और नीलम शारीरिक, आर्थिक एवं संतान सुख व राजनीतिक सफलता, एवं पन्ना, हीरा और नीलम सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण कर सकते हैं।
तुला लग्न: तुला लग्न का स्वामी शुक्र है। सूर्य एकादशेश होकर पापी होने के कारण माणिक्य कभी धारण नहीं करें। चंद्र के दशमेश एवं शुक्र का शत्रु होने से चंद्र की दशांतर्दशा में व्यापार-व्यवसाय और कर्म में प्रगति हेतु मोती धारण कर सकते हैं। मंगल द्वितीय व सप्तम का स्वामी होकर परम मारक एवं लग्नेश का शत्रु है, अतः मूंगा भूलकर भी धारण नहीं करें। बुध नवम व द्वादश का स्वामी होने से भाग्योदय हेतु पन्ना धारण करें। बृहस्पति के दो अशुभ भावों तृतीय व षष्ठ के स्वामी होने से पुखराज धारण नहीं करें। शुक्र लग्नेश होने से हीरा धारण कर सकते हैं। य ह अ ा प क ा जीवन रत्न होने से शुभ फलदायक रहेगा। शनि चतुर्थ व पंचम केंद्र त्रिकोण का स्वामी होने से जमीन जायदाद, शेयर-लाटरी, राजनीति में लाभ, प्रेम प्रसंग एवं संतान सुख हेतु नीलम अवश्य धारण करना चाहिए। संयुक्त रत्नों के रूप में हीरा व नीलम जमीन जायदाद एवं संतान सुख, हीरा व पन्ना उत्तम भाग्योदय एवं हीरा, पन्ना और नीलम सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण करें।
वृश्चिक लग्न: वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है। सूर्य दशमेश होने से राज्य लाभ एवं व्यवसाय में प्रगति हेतु माणिक्य धारण करना चाहिए। चंद्र नवम का स्वामी होने से उत्तम भाग्योदय हेतु मोती, बुध अष्टम व एकादश का स्वामी होने से पन्ना धारण नहीं करें। बृहस्पति द्वितीय व पंचम का स्वामी होने से आर्थिक लाभ एवं संतान सुख हेतु पुखराज धारण करें। शुक्र सप्तम व द्वादश का स्वामी होने से हीरा धारण नहीं करें। शनि तृतीय व चतुर्थ का स्वामी होने से उसकी दशांतर्दशा में नीलम धारण करने से यश प्रतिष्ठा में वृद्धि एवं जमीन जायदाद का सुख मिलता है। संयुक्त रत्नों के रूप में मूंगा और पुखराज इष्ट कृपा व राजनीति में लाभ एवं संतान सुख, मूंगा व मोती उत्तम भाग्यादे य एव ं माते ी, मगंू ा आरै पख्ु ाराज सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण करें।
धनु लग्न: धनु लग्न का स्वामी गुरु है। सूर्य नवमेश होने से उत्तम भाग्योदय हेतु माणिक्य धारण करें। चंद्र अष्टमेश होने से मोती धारण नहीं करना चाहिए। मंगल पंचम व द्वादश का स्वामी होने से इष्ट कृपा, संतान सुख व खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु मूंगा अवश्य धारण करें। बुध सप्तमेश व दशमेश होकर केंद्राधिपत्य दोष से पीड़ित होने से पन्ना धारण नहीं करें। बृहस्पति लग्नेश होने से जीवनदायक है, अतः आत्मविश्वास, उ त्त् ा म स् व ा स् थ् य , जमीन-जायदाद की प्राप्ति हेतु पुखराज अवश्य धारण करें। शुक्र षष्ठेश व एकादशेश होने से पापी है, अतः हीरा धारण नहीं करना चाहिए। शनि द्वितीयेश व तृतीयेश होने से मारक है, अतः नीलम कभी भी धारण नहीं करें। संयुक्त रत्नों के रूप में पुखराज व मूंगा संतान सुख व शेयर बाजार में लाभ, पुखराज व माणिक्य उत्तम भाग्योदय एवं पुखराज, मूंगा और माण् िाक्य सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण करें।
मकर: मकर लग्न का स्वामी शनि है। सूर्य अष्टमेश होने व चंद्र सप्तमेश होने से माणिक्य व मोती कभी भी धारण नहीं करें। मंगल चतुर्थ व एकादशेश होने से केवल केंद्र त्रिकोण में होने पर दशांतर्दशा में मूंगा धारण कर जमीन-जायदाद एवं वाहन सुख प्राप्त किया जा सकता है। बुध षष्ठेश व नवमेश होने से यदि शुभ स्थिति में हो तो भाग्योदय हेतु बुध की दशांतर्दशा में पन्ना धारण करें। बृहस्पति के तृतीय व द्वादश का स्वामी होने से पुखराज धारण नहीं करें। शुक्र के पंचम व दशम का स्वामी होने से हीरा धारण करना चाहिए ताकि व्यापार व्यवसाय मंे प्रगति, इष्ट कृपा, संतान सुख, सत्ता से लाभ एवं आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके। शनि के लग्नेश होने से नीलम जीवन रत्न है। अतः उत्तम स्वास्थ्य एवं आर्थिक लाभ हेतु नीलम हमेशा धारण करें। संयुक्त रत्नों के रूप में नीलम व हीरा इष्ट कृपा एवं व्यापार व्यवसाय में निरंतर प्रगति हेतु, नीलम व पन्ना उत्तम भाग्योदय और नीलम, पन्ना व हीरा सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण करें।
कुंभ लग्न: कंुभ लग्न का स्वामी शनि है। सूर्य सप्तमेश और चंद्र षष्ठेश होने से माणिक्य व मोती कभी धारण नहीं करें। मंगल तृतीय व दशम का स्वामी होने और लग्नेश का शत्रु होकर केंद्र त्रिकोण में स्थित हो तो उसकी दशांतर्दशा मंे कार्य विस्तार हते ु मगंू ा धारण कर सकते हैं। बुध पंचमेश व अष्टमेश होने से तथा इसकी मूल त्रिकोण राशि अष्टमेश होने के कारण पन्ना धारण नहीं करना चाहिए। बृहस्पति द्वितीय व एकादश का स्वामी होने से परम मारक है, अतः पुखराज धारण नहीं करें। शुक्र चतुर्थ व नवम का स्वामी होने से जमीन जायदाद, वाहन सुख व उत्तम भाग्योदय हेतु हीरा अवश्य धारण करें। शनि लग्नेश होने से शारीरिक स्वास्थ्य एवं आत्मविश्वास में वृद्धि हेतु नीलम हमेशा धारण कर सकते हैं। संयुक्त रत्नों के रूप में नीलम एवं हीरा शारीरिक स्वास्थ्य, वाहन सुख व उत्तम भाग्योदय, नीलम व पन्ना संतान सुख और नीलम, हीरा व पन्ना सर्वकार्य सिद्धि हेतु धारण कर सकते हैं।
मीन लग्न: मीन लग्न का स्वामी गुरु है। सूर्य षष्ठेश होने से माण् िाक्य धारण नहीं करना चाहिए। चंद्र पंचमेश होने से संतान सुख, इष्ट कृपा एवं राजनीतिक लाभ के लिए मोती धारण करें। मंगल द्वितीयेश व नवमेश होने से आर्थिक लाभ, पारिवारिक शांति एवं उत्तम भाग्योदय हेतु मूंगा हमेशा धारण करें। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो तो त्याज्य है। बुध चतुर्थ व सप्तम का स्वामी होकर केंद्राधिपत्य दोष से पीड़ित है। अतः पन्ना धारण नहीं करें। बृहस्पति लग्नेश होने से व्यवसाय, धन, मान एवं आर्थिक लाभ हेतु पुखराज अवश्य धारण करें। शुक्र तृतीय व अष्टम का स्वामी होने से परम मारक है, अतः हीरा धारण नहीं करें। शनि एकादशेश व द्वादशेश होकर परम पापी है, अतः नीलम धारण नहीं करें।
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