योगासनों में सिरमौर है शीर्षासन स्वामी सत्यार्थ सूत्रा यह विचार एकदम गलत है कि सिर नीचे टिकाकर उलटा खड़े होने वाले आसन को ही शीर्षासन कहते हैं। योगासनों में सबसे महत्वपूर्ण आसन होने के कारण ही इसका नाम शीर्षासन रखा गया है।
शीर्ष शब्द का अर्थ होता है श्रेष्ठ और ऊंचा यानी उच्च श्रेणी का। शीर्षासन जहां गुणकारी और श्रेष्ठ आसन है, वहीं यदि इसे गलत ढंग से किया जाए, तो हानि भी उतनी ही अधिक होती है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें शौच जाने से पूर्व इस आसन को कदापि न करें। पेट भली प्रकार स्वच्छ होने पर ही, दातुन-मंजन, आदि करने के बाद ही यह आसन करना चाहिए। यदि आपको सदैव कब्ज रहता है, तो पहले अन्य आसनों अथवा अन्य उपायों से इसमें सुधार कर लें, शीर्षासन का अभ्यास करें। शीर्षासन केवल प्रातःकाल बिना भोजन किए ही करना चाहिए।
कुछ लोग स्नान के बाद व्यायाम करते हैं और कुछ लोग स्नान से पूर्व। उचित और सही विधि तो यह है कि शीत ऋतु में स्नान के बाद योगासन किए जाएं। इससे आपको एक लाभ यह होगा कि आपके शरीर में योगासनों से जो स्फूर्ति आती है, वह दोगुनी बढ़ जाएगी। परंतु शीर्षासन अथवा अन्य कोई भी योगासन करने से पूर्व शरीर को तौलिए आदि से रगड़कर अच्छी तरह सुखा लें।
सिर के बाल भी गीले नहीं रहने चाहिए। गर्मियों में खुली स्वच्छ वायु में स्नान से पूर्व ही योगासन करना उत्तम है, क्योंकि उन दिनों शरीर से पसीना निकलता है। योगासनों में इतना अधिक पसीना तो नहीं निकलेगा, जितना दंड-बैठक या कुश्ती से निकलता है, फिर भी अच्छा यही है कि गर्मियों में स्नान के पूर्व ही शीर्षासन आदि करें। शीर्षासन करने के तुरंत बाद अथवा पांच-दस मिनट बाद तक स्नान नहीं करना चाहिए।
शीर्षासन दिन में केवल एक बार ही करना चाहिए और वह भी केवल प्रातःकाल। शीर्षासन से पूर्व मुख, गला, नाक, दांत, आदि को साफ करना अत्यंत आवश्यक है। यदि ये अंग साफ न हो तो अशुद्ध वायु आपके शरीर में प्रवेश करेगी और आपको लाभ के स्थान पर हानि होगी। आरंभिक अवस्था में 15-20 सेकेंड से अधिक शीर्षासन नहीं करना चाहिए।
धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाएं, 10-12 मिनट से अधिक नहीं करें। जिनका सिर सदा भारी रहता हो या जिन्हें चक्कर आते हों या जिनकी आंखें लाल रहती हांे, वे शीर्षासन न करें।
विधि: सबसे पहले यह देख लें कि जहां आप शीर्षासन करने जा रहे हैं, वहां आस-पास कोई ऐसी वस्तु तो नहीं रखी, जिससे यदि आप इस आसन का अभ्यास करते हुए गिर पड़े, तो चोट लग जाए। तेज हवा वाले और दमघोंटू स्थान पर भी यह आसन न करें। सबसे पहले कपडे़ की गेंडुली-सी बना लें- इसका स्वरूप वैसा ही होगा, जैसा मजदूर कोई भारी वस्तु उठाने से पूर्व सिर पर रखते हैं।
इस गेंडुली को किसी कालीन या बिछे हुए कम्बल पर रखकर ही उस पर अपना सिर रखें। यहां यह समझ लेना अत्यंत आवश्यक है कि सिर का कौन-सा भाग इस गेंडुली पर टिकाना है। गड़बड़ यहीं से आरंभ होती है, क्योंकि अभ्यासी को यह पता नहीं होता कि सिर के किस भाग को शीर्षासन का आधार बनाना है। इसके लिए जरूरी है कि जानकार प्रशिक्षक की देखरेख में ही यह आसन करें।
शीर्षासन से लाभ शीर्षासन से लाभ तो अनेक हैं, इसीलिए इसे आसनों में शीर्ष स्थान दिया गया है, परंतु ये लाभ तभी प्राप्त किए जा सकते हैं, जब संपूर्ण विषय पर ध्यान दिया जाए और उसके अनुरूप ही कार्य किया जाए। आंखों से संबंधित रोग दूर होकर दृष्टि पुनः सामान्य हो जाती है, अर्थात नेत्र-ज्योति का विकास होता है। सिर की त्वचा सशक्त होती है, रूसी दूर हो जाती है और केशों का श्वेत होना और झड़ना रुक जाता है।
रक्त वाहिकाएं सशक्त और शुद्ध होती है और कुष्ठ रोग दूर हो जाता है। मूत्राशय से संबंधित प्रायः सभी रोग दूर होते हैं और विशेषकर महिलाओं के गर्भाशय संबंधी सभी विकार नष्ट होते हैं। बवासीर, भगंदर आदि रोगों में आराम मिलता है। फेफड़े सुदृढ़ होते हैं और खांसी व जुकाम का भय नहीं रहता। शरीर का े एकदम विषम स्थिति में लाने से हृदय को रक्त-संचार के लिए अधिक बल लगाना पड़ता है।
अतः हृदय पुष्ट और अपना कार्य भली प्रकार करने में समर्थ होता है। इस आसन से स्मरणशक्ति बढ़ती है और पागलपन भी दूर होता है। शवासन अवश्य करें शीर्षासन करने के पश्चात एक-दो मिनट बिलकुल सीधे खड़े रहने के बाद शवासन करें।
वैसे तो यह मुद्रा बहुत सरल है, परंतु शव के समान पूर्णतया तनावमुक्त होना कठिन है। जहां जिस कम्बल या कालीन पर आप योगासन करें, उसी पर पीठ के बल लेट कर बिलकुल सीधे हो जाएं। हाथ पैर बिल्कुल ढीले छोड़ दें।
लाभ- शवासन का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि इसके करने से शरीर में पुनः नई स्फूर्ति, शक्ति और नया जीवन आ जाता है। थकान पूर्णतया मिट जाती है और शरीर हल्कापन अनुभव करने लगता है।
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