आज के जाने माने आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविषंकर जी के अनुसार अध्यात्म की आवष्यकता रोजमर्रा की जिंदगी में ही अधिक है, हिमालय की कदंराओं में बैठने वालों को आध्यात्म की कोई जरूरत नहीं है, जो बाजार में जाएगा उसे ही पैसे की जरूरत पड़ेगी। मरुभूमि में पैसे ले जाने की क्या जरूरत है। आम आदमी की जिंदगी में तरह-तरह के लोगों से मिलना पड़ता है व जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं।
ऐसे में अध्यात्म का बल बहुत जरूरी है इसके बिना व्यक्ति टूट जाता है। अध्यात्म एक व्यक्ति को संसार की परिस्थितियों से जीत दिलाता है और जीवन के अंतिम लक्ष्य तक पहंुचा देता है। मु स्कराते रहो, हंसो और हंसाओ,’’ जी हां ये उŸाम विचार हैं श्री श्री रविषंकर जी के। श्री श्री रविषंकर जी ‘‘द आर्ट आॅफ लिविंग’’ फाउंडेशन के संस्थापक हैं। आज पूरी दुनिया जब आतंकवाद, आर्थिक समस्या, प्राकृतिक आपदा और हिंसा से त्रस्त है तो जीवन में सुख शांति को बढ़ाने और हिंसा पर विजय प्राप्ति का चमत्कारिक मंत्र देकर श्री श्री रविशंकर जी ने दुनिया को सुख चैन से जीने की राह दिखाई है।
श्री श्री रविशंकर जी ने समृद्ध और सुखी जीवन जीने के लिए सात आसान सूत्र बताए हैं-
1. समय-समय पर इस विशाल ब्रह्मांड के सापेक्ष में अपने जीवन को देखो। यह समुद्र में एक बूंद के बराबर भी नहीं है। बस इतनी सी जागरुकता तुम्हें अपने छोटेपन से निकाल देगी और तुम अपने जीवन के हर पल को जीने के लिए सक्षम हो जाओगे।
2. अपने आप को जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की याद दिलाओ। तुम यहां शिकायत करने और भुनभुनाने के लिए नहीं आए हो। तुम यहां पर कुछ अधिक बड़ा करने के लिए आए हो।
3. सेवा करो! अधिक से अधिक संभव सामुदायिक सेवा में शामिल हो जाओ।
4. विश्वास रखो कि दिव्य शक्ति तुमसे अत्यधिक प्यार करती है और तुम्हारा ख्याल रख रही है। यह आस्था और विश्वास रखो कि तुम्हारे जीवन के लिए जो कुछ भी आवश्यक है वह तुम्हें जरूर मिलेगा।
5. जैसे हम कैलेंडर के पन्नों को पलट देते हैं, उसी प्रकार से हमें अपने मन को भी पलटते रहने की जरूरत है। अक्सर हमारी डायरी यादों से भरी हुई रहती है। ध्यान रखो कि तुम अपने भविष्य की तिथियों को अतीत की घटनाओं के साथ न भर दो। अपने अतीत से कुछ सीखो और कुछ छोड़ो और आगे बढ़ो।
6. मुस्कराते रहो, हंसो और हंसाओ और अधिक मुस्कराओ तुम्हारे चेहरे पर एक अमिट मुस्कान सच्ची समृद्धि की निशानी है।
7. अपने साथ सैर के लिए कुछ समय निकालो। संगीत, प्रार्थना और मौन से अपने आप को पोषण करो।
कुछ मिनट ध्यान, प्राणायाम और योग करो। यह तुम्हें रोग मुक्त करता है और तरोताजा करता है और तुम में महानता और स्थिरता लाता है। श्री श्री रविशंकर जी इस बात पर विशेष जोर देते हैं कि ध्यान के अलावा इंसान को दूसरे लोगों की सेवा भी करनी चाहिए। वह विज्ञान व अध्यात्म को एक दूसरे का विरोधी नहीं बल्कि पूरक मानते हैं। एक ऐसी दुनिया बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं जिसमें रहने वाले लोग ज्ञान से परिपूर्ण हों ताकि वे तनाव और हिंसा से दूर रह सकें। 2001 को जब आतंकवादियों ने विश्व व्यापार संगठन पर हमला किया तो आर्ट आॅफ लिविंग फाउंडेशन ने पूरे न्यूयार्क के लोगों के तनाव को दूर करने के लिए निःशुल्क कोर्स करवाए।
कोसोवो में युद्ध से प्रभावित लोगों के लिए सहायता कैम्प भी लगाया था। ईराक में भी इस संस्था ने 2003 में युद्ध से प्रभावित लोगों को तनाव मुक्ति के उपाय बताए। ईराक के प्रधान मंत्री के निमंत्रण पर श्री श्री रवि शंकर जी ने ईराक का दौरा किया और वहां के शिया सुन्नी तथा कुरदिश समुदाय के नेताओं से बातचीत की। 2004 में पाकिस्तान के उन नेताओं से भी मिले जो विश्व शांति स्थापना के पक्षधर थे। संसार में सुनामी आया तो संस्था के लोग मदद के लिए वहां भी खड़े थे। दुनिया भर के कैदियों के उत्थान के लिए भी संस्था निरंतर कार्य करती रहती है। श्री श्री रविशंकर जी की संस्था आर्ट आॅफ लिविंग अर्थात् जीने की कला का सार उनके शब्दों में ‘‘जीवन में आनंद का जो भी अनुभव करते हैं वह आपको स्वयं से ही प्राप्त होता है। जब आप वह सभी छोड़कर शांत हो जाते हैं जिसने आपको जकड़ा हुआ है। यह ही ध्यान कहलाता है। ध्यान कोई क्रिया नहीं है यह कुछ भी नहीं करने की कला है।
ध्यान में आपकी गहरी नींद से भी अधिक विश्राम मिलता है क्योंकि आप सभी इच्छाओं के पार होते हैं। यह मस्तिष्क को गहरी शीतलता देता है। यह मस्तिष्क व शरीर तंत्र को पुनर्जीवन देने के समान है। श्री श्री रविशंकर जी के जीवन चक्र पर नजर डालें तो उनका जन्म भारत के तमिलनाडु राज्य में 13 मई 1956 को हुआ था बचपन से ही वे आध्यात्मिक प्रवृŸिा के थे। चार साल की उम्र में उन्हें भगवत गीता के श्लोक याद हो गये थे और उन्होंने ध्यान लगाना भी शुरु कर दिया था। इनका जन्म आदि शंकराचार्य के जन्मदिवस पर हुआ था इसलिए इनके माता पिता ने इनका नाम रविशंकर रखा। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम स्कूल में हुई। इसके पश्चात इनकी मुलाकात अनेक प्रसिद्ध विद्वानों से हुई। उसी दौरान ट्रांसेन्डेटल मेडिटेशन मूवमेंट के प्रचारक महर्षि महेश योगी जी से अभिन्नता बनी। सŸार के दशक में रविशंकर जी ने महेश योगी के साथ विश्व के कई देशों में वैदिक ज्ञान के महत्व को प्रचारित किया।
कुछ समय पश्चात 1982 में इन्होंने महसूस किया कि मानव जीवन को सुधारने के लिए कुछ अन्य प्रयास भी किये जाने चाहिए। इस आत्म मंथन के लिए रविशंकर जी ने शिमोगा में भद्रा नदी के तट पर दस दिन का मौन ध्यान किया इसी आत्म मंथन के दौरान उन्हें सुदर्शन क्रिया के सूत्र प्राप्त हुए और उन्होंने 1982 के आर्ट आॅफ लिविंग नामक शैक्षिक व मानवतावादी स्वयं सेवी संस्था की स्थापना की। इसी संस्था के अंतर्गत रविशंकर जी ने 1982 से विदेश यात्रा प्रारंभ की और दुनिया में बढ़ रहे तनाव, हिंसा व अशांति को दूर करने के मिशन में लग गये। आज दुनिया के 157 देशों में डेढ़ लाख से भी ज्यादा समर्पित सदस्य अपनी संस्था के शांति संदेश दूर-दूर तक फैलाने में लगे हैं। 1997 में ‘इंटरनेशनल एसोसिएशन फाॅर ह्यूमन वैल्यू’ की स्थापना की जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उन मूल्यों को फैलाना है जो लोगों को आपस में जोड़ते हंै। हाल ही में लाॅस एन्जलिस में वहां की स्थानीय सरकार ने सहयोग देकर सौ वर्ष पुराने चर्च में आर्ट आॅफ लिविंग की शाखा प्रारंभ कराई।
इनकी आर्ट आॅफ लिविंग न्यूयार्क, शिकागो तथा वाशिंगटन में भी हाई स्कूल के छात्रों को हिंसा व नशा मुक्ति अभियान में जोड़ रही है। श्री श्री रविशंकर जी के अनुसार सांस शरीर और मन के बीच एक कड़ी की तरह है जो दोनों को जोड़ती है। सांसो पर ध्यान लगाकर मन बहुत शांत होता है इनके द्वारा सिखाई जा रही सुदर्शन क्रिया शरीर, मन और भावनाओं को ऊर्जा से भर देती है और उन्हें प्राकृतिक स्वरूप में ले आती है। आईये अब करते हैं श्री श्री रविशंकर की कुंडली का अवलोकन जिसके कारण आज वे दुनिया भर में लोक प्रिय हो रहे हैं- श्री श्री रविशंकर जी की कुंडली को देखते ही हम जान सकते हैं कि यह एक महान व्यक्ति की कुंडली है, क्योंकि लग्नेश शनि और लाभेश मंगल का स्थान परिवर्तन योग है और इन्हीं दो ग्रहों ने उन्हें इतना कार्यशील और ऊर्जावान बनाया है। लग्नेश शनि व लग्न और एकादशेश मंगल को उच्च के गुरु की पूर्ण दृष्टि भी प्राप्त हो रही है। सूर्य, गुरु, मंगल उच्च राशि में बलवान होकर अत्यंत शुभ स्थिति में हैं।
गुरु हंसयोग एवं मंगल रुचक योग बना रहे हैं। तीन उच्च के ग्रह, एकादश भाव का राहू, लग्नेश व एकादशेश तथा पंचमेश व भाग्येश के स्थान परिवर्तन के कारण इनको विश्व प्रसिद्धि मिल रही है और पूरी दुनिया में इनकी लोकप्रियता बराबर बढ़ रही है। जनता के भाव (चतुर्थ भाव) में उच्च के सूर्य को मंगल की दृष्टि होने से इनके प्रशंसकों की संख्या लाखों में है और इनके शिष्य पूरे विश्व में फैले हुए हैं। श्री श्री जी की कुंडली में केंद्र के साथ-साथ त्रिकोण स्थान भी बलवान हैं, क्योंकि धर्म का स्वामी बुध नवम से पंचम भाव में आध्यात्मिक ग्रह केतु के साथ स्थित है और बुध एवं शुक्र का भी परिवर्तन योग है। चंद्र लग्न से द्वादश भाव में लग्नेश बुध मोक्ष कारक ग्रह केतु के साथ व बृहस्पति से लाभ स्थान में है। बुध एवं केतु वर्गोŸाम भी हैं जिसके फलस्वरूप बुध की महादशा में धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में बहुत बड़े नाम के साथ-साथ धन भी प्रचुर मात्रा में अपनी संस्था के लिए प्राप्त किया। क्योंकि धनेश शनि लाभ स्थान में बैठकर पंचम भाव व लग्न भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं।
धनकारक ग्रह गुरु लग्नेश एवं शनि को भी देख रहे हैं। इसलिए इनकी सभी संस्थाओं को देश विदेश से लोग स्वेच्छा से भारी मात्रा में दान के रूप में धन देते रहते हैं। इन राजयोगों के अतिरिक्त इनकी कुंडली में राजकुल उत्पन्न योग, पर्वत योग, सुपारिजात योग, महादान योग, सुनफा योग, अनफा योग, बुद्धि मानव योग, नीतमान योग भी मौजूद हैं। जिनके कारण इन्हें विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त हो रही है। दशमांश कुंडली में धनु लग्न में गुरु के कारण गुरु की महादशा से ही इन्हें अध्यात्म के प्रति रुचि हुई तथा आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। आने वाले समय में बुध की महादशा में इनके अनुयाइयों की संख्या में निरंतर बढ़ोŸारी होती रहेगी और इनके बताए हुए अध्यात्म के मार्ग को अनुसरण कर लोगों को काफी मदद भी मिलेगी। इनकी ग्रह स्थिति इतनी अच्छी है कि भविष्य में देश के राजनेताओं के वरिष्ठ परामर्शकर्Ÿाा के रूप में भी ख्याति प्राप्त हो सकती है और राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के भी पूरे आसार हैं और भारत के शांति गुरु के रूप में इनका परचम दूर-दूर तक लहराएगा इसमें संदेह नहीं है।
क्योंकि जिस कुंडली में मंगल उच्च राशिस्थ या स्वराशिस्थ होता है और गुरु से दृष्ट होता है वह व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान चुटकी बजाते ही कर लेता है और वह अत्ुल्य धन संपत्ति का स्वामी होता है और उसे अत्यधिक मान सम्मान भी प्राप्त होता है। अभी हाल ही में 30 मई को रविशंकर जी के आश्रम में किसी अंजान व्यक्ति ने गोली चलाई जिसमें उनके एक भक्त को चोट भी लगी पर श्री श्री जी भगवान की कृपा से बच गये। क्योंकि कंुडली में दीर्घायु योग है और उनका कोई चाह कर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। गोली चलाने वाला जिस नीयत से आया था उसमें तो वह विफल ही रहा उल्टे श्री श्री रविशंकर जी को और अधिक लोकप्रियता मिल गई। इस घटना से श्री श्री रविशंकर जी को देश व्यापी प्रसिद्धि ही मिली और अपने असीम शुभचिंतकों की शुभकामनाएं भी प्राप्त हुई।