सूर्य का नीच भंग राजयोग आचार्य किशोर वायु तत्व राशि मिथुन, तुला व कुंभ हैं। मिथुन राशि का स्वामी बुध सूर्य का सम, तुला का स्वामी शुक्र सूर्य का शत्रु व कुंभ राशि का स्वामी शनि भी सूर्य का शत्रु है। तुला राशि में नीच का सूर्य लग्न में होने पर मनुष्य सामाजिक गुण संपन्न होते हैं। सूर्य इस स्थान में विशेष रूप से अपना कुछ गुण देने में असमर्थ रहते हैं। तुला राशि चर राशि होने के कारण जातक घूमने का शौक रखते हैं परंतु उनकी चिंता बढ़ती रहती है। बडे़-छोटे सबको समान नजर से देखते हैं। लोकप्रिय भी होते हैं। अपनी बुद्धि, विवेक और ज्ञान से लोगों को बराबर आकर्षित करते हैं।
अच्छा रास्ता दिखाते हैं। ताकि उन्हें कोई बदनाम न करे। स्त्रियों से पूर्ण समर्थन प्राप्त नहीं कर पाते। तुला लग्न में बुध शुक्र, सूर्य पर गुरु की दृष्टि है व नवांश में उच्च का सूर्य है। यहां पर सूर्य नीच का फल नहीं देता इसीलिए उन्होंने समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाकर रखी। वे लोगों को दिशा दिखाते रहे। कुंडली-1 देश बंधु चितरंजन दास की है। जिनके नाम से बंगाल में रेल बनती है। अपने बल कौशल से बिना झुके और मिलके हर प्रकार का काम करवा लेते थे। बुध, शुक्र को नैसर्गिक शुभ ग्रह गुरु की दृष्टि के कारण उदार नेता भी रहे और लोगों के हित के कार्य करते रहे। अन्याय करने की प्रवृत्ति कभी नहीं दिखाई दी।
चंद्रमा को छोड़कर समस्त ग्रह पुरुष राशि में बैठे हैं इसलिए पुरुष शक्ति, बलवान नेता जैसे उभरते रहे। शनि एवं गुरु परस्पर एक-दूसरे को देख रहे हैं इसलिए गुरु, शनि का प्रभाव भी रहा। गुरु उच्चाभिलाषी व उच्च का राहु धर्म से नहीं भटकाएगा। कुंडली-2 एक अरबपति की है। लग्न में सूर्य नीच राशिस्थ है। इनका जन्म सूर्य उदय के समय, नीच सूर्य को गुरु की दृष्टि के कारण नीच भंग हो रहा है। चारों केंद्रों में चार ग्रह हैं। जन्म के समय बुध की महादशा चली। 1986-1992 तक जातक की सूर्य की महादशा चली। देखते-देखते जातक अरबपति-खरबपति बन गया क्योंकि धन कारक गुरु एकादशेश सूर्य को दृष्टि दे रहे हैं। द्वितीय धन भाव में शुक्र, बुध को योगकारक शनि की दृष्टि व धनेश मंगल को गुरु की दृष्टि। चंद्र लग्न से धनेश सूर्य को गुरु की दृष्टि। पंचमेश, दशमेश मंगल को गुरु की दृष्टि यानी धन लाभ। गुरु का संबंध निरंतर बना हुआ है। तात्पर्य यह है कि नीच राशि में वायु तत्व राशि में सूर्य रहने से भी नीच का फल कभी-कभी नहीं मिलता। इस प्रकार का संबंध जैसे नीच भंग राजयोग, धनादि योग और कई प्रकार के राजयोग बने हुए हैं। इसलिए नीच का सूर्य कहकर उसे तुच्छ समझना उचित नहीं।
कुंडली-3 में नीच का सूर्य एकादश भाव में भाग्येश होकर बैठा है। पंचमेश मंगल एकादश भाव को देख रहे हैं। नीच का गुरु नीच भंग करके धन स्थान में स्थित है। क्योंकि गुरु कर्क राशि में उच्च होते हैं, उसका स्वामी लग्न से, चंद्र लग्न से केंद्र में और गुरु की दृष्टि में और गुरु शनि की दृष्टि में स्थित है और शनि लग्न से, चंद्र लग्न से केंद्र में और चंद्र लग्न से धन स्थान में सूर्य नीच का होने के बावजूद सूर्य जहां उच्च होता है उसका स्वामी मंगल सूर्य का नीच भंग कर रहा है। इसी प्रकार कई तरह से गुरु सूर्य का नीच भंग हुआ तभी जातक को कई राजयोग मिले हैं। नीच का ग्रह नीच में होने से ही जातक कमजोर नहीं हो जाता। यह जातक आस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में अपना दबदबा बनाए हुए है। अरबों रुपयों का मालिक है। कई प्रकार के कार्यों में व्यस्त हैं और उनके अधीन हजारों लोग कार्यरत हैं। कुंडली-4 में नीच के सूर्य को शनि की दृष्टि, परंतु स्त्री जातक के मुताबिक यदि सप्तम भाव का लग्न किया जाए तो उसके पति का भाग्य अति बलवान है। क्योंकि सूर्य जहां उच्च होता है उसके स्वामी मंगल पर गुरु की दृष्टि है। सूर्य लग्न में नीच का होने से भी राशि का स्वामी शुक्र सूर्य के साथ है इसलिए भी सूर्य का नीच भंग हुआ।
पति की कुंडली का विचार जातक के सप्तम भाव को लग्न मानकर करने से होता है। सूर्य लग्न में बुध, शुक्र, दशम में गुरु, एकादश में शनि, द्वादश में चंद्र राहू है। चंद्र लग्न से धन भाव में सूर्य बुध, शुक्र। अपार रुपया पति के पास है क्योंकि इससे पहले कुंडली नं. 3 जातक के पति की कुंडली है। अतः नीच का सूर्य हमेशा बुरा फल नहीं देते। कुंडली-5 में नीच का सूर्य शुक्र के साथ नीच भंग योग बना रहा है क्योंकि सूर्य शुक्र के साथ शुक्र के घर में और केंद्र में है। सूर्य मेष में उच्च होता है उसका स्वामी मंगल भी साथ ही केंद्र में है। पंचमेश सूर्य सप्तम भाव में नीच भंग राजयोग किया है। इस जातक की कुंडली में राजयोग अनेक हैं। इसलिए शनि की महादशा 1979-1998 तक 19 वर्ष तक एम.एल.ए. से लेकर एम.पी. एवं मंत्री तक बन चुके थे। भले ही पारीवारिक जीवन में वह संतुष्ट नहीं थे।
परंतु धन भाव सम्मान पूर्ण रूप से मिला था। जातक गरीब परिवार में जन्म लेकर केंद्र सरकार में मंत्री तक बने। इस तरह नीच राशि का सूर्य अक्सर उच्च फल दे देता है परंतु ध्यान रखना चाहिए कि नीच भंग हुआ है या नहीं। कुंडली-6 अर्जुन सिंह की है जो केंद्रीय मंत्री मंडल में थे। नीच के सूर्य ने नीच भंग किया है क्योंकि सूर्य पूर्ण चंद्रमा से सप्तम केंद्र में और सूर्य की उच्च राशि के स्वामी मंगल की दृष्टि के कारण नीच भंग हुआ है। सूर्य को गुरु की दृष्टि विशेष रूप से आर्थिक लाभ का भी कारण है। क्योंकि धन कारक गुरु सूर्य को देख रहे हैं, धनेश चंद्रमा सूर्य को देख रहे हैं और धन स्थान में एकादशेश मंगल और एकादश भाव में धनेश चंद्रमा में परिवर्तन योग है। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में, स्वामी राहु दशम भाव में व भाव चलित में चंद्र राहु एकादश भाव में है। इसलिए जातक राहु की महादशा 1993 तक प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। इस जातक में विशेषकर सूर्य नीच का और लग्नेश बुध सूर्य के साथ पंचम भाव में गुरु की दृष्टि में, पंचम भाव अत्यधिक बलवान है। इसलिए उनका पुत्र भी मंत्री पद पर है और उनकी अंर्तज्ञान शक्ति अति प्रबल है। नीच के सूर्य का नीच भंग होने के कारण धन, संतान सुख की प्राप्ति हुई।