कैलाश मानसरोवर एक अदभुत अनुभूति कलाश मानसरोवर क्षेत्र या मानस खंड क्षेत्र यद्यपि कश्मीर से भूटान तक फैला है, किंतु कैलाश ल्हाचू और झांगचू के बीच स्थित है। तिब्बत 12,000 से 10,000 फीट तक का सबसे ऊंचा पठार है।
इस क्षेत्र में चार प्रमुख पवित्र नदियां निकलती हैं - ब्रह्मपुत्र, सिंधु, करनाली व सतलज। कैलाश मानसरोवर यद्यपि चीन के अधीन है लेकिन हिंदुओं का सबसे पवित्र दिव्य धाम माना जाता है, क्योंकि यहां स्वयं शिव का निवास है। कैलाश हिंदुओं का ही नहीं अन्य कई धर्मों का आध्यात्मिक स्थल है। यहां पूजा अराधना के लिए बौद्ध, हिंदू, जैन तिब्बती लामा सभी आते हैं।
बौद्ध इसका संबंध तांत्रिक देवता चकसंभव व सहयोगी वज्रवाराही से मानते हैं। जैन धर्म में कैलाश पर्वत प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव की पावन स्थली है। यहीं उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और इसके निकट का अष्टपाद पर्वत उनकी निर्वाण स्थली है। इसमें अंदर बड़ी बड़ी गुफाएं हैं जिनमें जल की बूंदें टपक टपक कर विचित्र आकृतियां बनाती हैं।
एक स्तंभ पर एक चेहरा स्पष्ट बना हुआ है जिसे जैन पूज्य मानते हैं। तिब्बती लामा कैलाश को पृथ्वी और स्वर्ग के बीच की कड़ी मानते हैं - एक शक्ति स्रोत। वेदों में कैलाश सुमेरु या मेरु पर्वत के नाम से जाना जाता है। समुद्र मंथन के समय इसे ही मथनी बनाया गया था। इसे पृथ्वी का मध्य माना जाता है। कैलाश पर्वत के सबसे निचले हिस्से पर आड़ी धारियां हैं। इन्हें शेष नाग के घर्षण से बनी धारियां माना जाता है। कैलाश शिव धाम है, शिव का सिंहासन है।
जिसने शिवत्व प्राप्त किया हो वही उस पर चढ़ सकता है। आज तक किसी ने उस पर पैर नहीं रखा है। परिक्रमा भी पर्वत से तीन किलोमीटर दूर से लगाई जाती है। पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 22027 फुट है। कहा जाता है युधिष्ठिर द्रौपदी और भाइयों के साथ इसी पर्वत पर चढ़े थे लेकिन सब रास्ते में गल गये केवल युधिष्ठर ऊपर तक पहुंचे थे। आसपास शुष्क पहाड़ है, अक्तूबर से इन पर भी वर्फ गिरनी प्रारंभ हो जाती है।
सदा बादलों से घिरा रहने वाला कैलाश जब सूर्य की किरणों में चमकता है तो लगता है जैसे चांदी का पर्वत झिलमिला रहा हो। दक्षिण में गुरला मांधाता कुछ आगे से तिरछा है जो ऐसा लगता है जैसे कैलाश को सिर झुका कर नमन कर रहा हो। कैलाश की परिक्रमा इस यात्रा का सबसे कठिन किंतु सबसे सुखद हिस्सा है।
पूरा परिक्रमा मार्ग सुंदर झरने, हरियाली वर्फ आदि से ढका है। गौरी कुंड मां पार्वती का स्नान कुंड माना जाता है गहराई में सीधी उतराई वाला वृत्ताकार बेहद स्वच्छ नीला जल, उस तक अच्छे कुशल पर्वतारोही ही पहुंच पाते हैं। पूरे परिक्रमा मार्ग में अनेक गुफाएं हैं जहां साधु संत तपस्या करते रहते हैं। कभी कभी परिक्रमा करने वालों पर हनुमानजी की भी कृपा हो जाती है और वे उन्हें दर्शन दे देते हैं। परिक्रमा दारचेन से प्रारंभ होती है और दारचेन के दूसरे हिस्से पर समाप्त होती है। कहा जाता है कि शिव की पूरी परिक्रमा नहीं लगाई जाती।
कार से कैलाश मान सरोवर की यात्रा करने वालों के लिए परिक्रमा मार्ग अब 42 किलोमीटर रह गया है। पहले 52 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी लेकिन कार मार्ग बन जाने से दस किलोमीटर की यात्रा कम रह गई है। इस यात्रा में तीन दिन लगते हैं।
यात्रियों को यह यात्रा पहले दिन बारह किलोमीटर कराई जाती है। यात्रा यम द्वार से प्रारंभ होती है। डेरापुक पहुंचने में आठ घंटे लगते हैं।
दूसरे दिन का परिक्रमा मार्ग सबसे कठिन है। लेकिन मार्ग की सुंदरता सब थकान मिटा देती है। इसी मार्ग पर गौरी कुंड है। यह परिक्रमा मार्ग 22 किलोमीटर का है जिसमें 9 किलोमीटर सीधी चढ़ाई है और सात किलोमीटर सीधी ढलान। बाकी का मार्ग सीधा सहज है। डोलमा दर्रा दिन में ही पार कर लेना अच्छा रहता है। इसलिए इस मार्ग को इस हिसाब से बांटा गया है कि प्रातः बारह बजे तक डोलमा दर्रा पार हो जाए।
तीसरे दिन का दस किलोमीटर का मार्ग भी सहज है। इसमें सात आठ घंटे लगते हैं। रात्रि विश्राम टेंट में करना पड़ता है। अभी तक परिक्रमा पैदल या याक पर की जाती थी लेकिन अब इसके लिए घोड़े उपलब्ध हो गए हैं।
चीन सरकार द्वारा यात्रा मार्ग को सुविधापूर्ण बना देने के कारण यात्री अधिक संख्या में पहुंच रहे हैं। भारत से ही नहीं अन्य देशों से भी बड़ी संख्या में यात्री यहां पहुंच रहे हैं। घोड़े पर केवल सवारी जा सकती है उसका सामान नहीं। इसलिए पोर्टर साथ रखना आवश्यक सा हो जाता है। पोर्टर तिब्बती ही होते हैं। उनका वस्त्र विन्यास लंबा चोगा और लंबी टोपी या फिर छोटा ऊनी लबादा, नीचे ऊनी पाजामा सिर पर गोल फुंदने वाली टोपी है।
ये पोर्टर यात्रा में बहुत सहायक होते हैं। ये सामान तो पकड़ते ही हैं खतरनाक रास्ते हाथ पकड़ कर पार भी करा देते हैं। यदि साथियों से पीछे रह गए तो मार्गदर्शक होते हैं। भाषा की समस्या तो आती है लेकिन सांकेतिक भाषा विश्वव्यापी है जिससे काम चल जाता है। मान सरोवर ब्रह्मा जी के मानस से उत्पन्न हुआ विश्व का सबसे ऊंचा मीठे जल का विशाल सरोवर है।
यह सरोवर 8.5 किमी के व्यास में फैला है। इसमें कहीं कहीं पानी 100 मीटर तक गहरा है। यह 14950 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। बौद्ध ग्रंथों में मान सरोवर को ‘अनोप्ता’ या ‘अनवतपता’ कहा जाता है -झील बिना ताप वाली और बिना कष्ट वाली। स्वच्छ, निर्मल व मीठे जल के इस सरोवर का रंग पल पल बदलता रहता है।
इस क्षेत्र में प्रकृति के पांचों तत्वों की अनुभूति की जा सकती है। कैलाश पर्वत जो बारह महीने हिम से ढका और हरियाली से परिपूर्ण रहता है वहीं मान सरोवर मई के पश्चात शुष्क हो जाता है। हरियाली के नाम पर वृत्ताकार रूप में दूर दूर पर छोटी वनस्पति कहीं कहीं उगती है जिसे स्थानीय निवासी सब्जी के रूप में प्रयोग में लाते हैं। एक प्रकार की लंबी घास उगती है जिसे प्याज के रूप में जाना जाता है। मान सरोवर के आसपास कुश घास पाई जाती है -एकदम कड़ी तीखी। कहीं कहीं दूर दूर पर छोटे फूल वाले पौधे दिख जाते हैं।
इनमें बैंगनी और पीले रंग के फूल अधिक होते हैं। कहते हैं कि सूखने पर भी उनका रंग रूप नहीं बदलता है। मान सरोवर पर सूर्य का ताप है तो तीक्ष्ण और बेहद ठंडी है। आकाश लगता है चंद सीढ़ियां लगा कर छुआ जा सकता है। जल चाहे जब बरस जाता है। इस प्रकार पांच तत्व अपनी उपस्थिति का एहसास कराते हैं। मान सरोवर का जल रात में बहुत ठंडा किंतु दिन में सूर्य के ताप की वजह से कम ठंडा होता है। सर्दियों में झील जम जाती है।
मई, जून व जुलाई का समय यात्रा के लिए श्रेष्ठ है। कहते हैं मान सरोवर में स्नान करके कैलाश परिक्रमा करने से मनुष्य भव बंधन से मुक्त हो जाता है और मृत्योपरांत शिव में एकाकार हो जाता है। मान सरोवर में मोती हैं या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन हंस किलोल करते देखे जा सकते हैं। जन श्रुति है कि मान सरोवर के बीच में एक पेड़ है जिस पर हर समय फल लगे रहते हैं। जो वह फल खा लेता है वह देवत्व प्राप्त कर लेता है। मान सरोवर में जल गुरला मांधाता पर्वत से आता है और कैलाश पर्वत का जल राक्षस ताल में जाता है। राक्षस ताल वही स्थान है जहां रावण ने शिव की आराधना कर दस शीश चढ़ाए थे। राक्षस ताल के एक ओर गुरला मांधाता और दूसरी ओर कैलाश पर्वत है। यह पूर्व से पश्चिम की ओर लंबा है।
यद्यपि राक्षस ताल का पानी भी मान सरोवर की तरह स्वच्छ और उसका रंग भी नीला है लेकिन न उसमें स्नान किया जाता है न उसे पीया जाता है। उसमें सीसे की मात्रा अधिक है। उस के आसपास के पत्थर व मिट्टी वजनी है। कैलाश मान सरोवर क्षेत्र को तिब्बती लामा भी बहुत पवित्र मानते हैं। स्थान स्थान पर याक के पवित्र सींगों को स्थापित करते हैं, मान्यता स्वरूप उसकी परिक्रमा करते हैं और झंडे और चिंदियां बांधते हैं।
दारचेन में यमद्वार से दस किलोमीटर पूर्व तिब्बतियों का स्तंभ है। उनकी मान्यता है कि जो कैलाश पर्वत की परिक्रमा न लगा पाए वह उस स्तंभ की तीन परिक्रमा लगा ले तो कैलाश परिक्रमा का पुण्य मिलता है। पूर्णिमा की रात्रि को शुक्र बेहद चमकीला दिखाई देता है और मान सरोवर के निकट आ जाता है।
मान्यता है कि दो ज्योतियां रात्रि के तृतीय प्रहर में आकाश से उतर कर मानसरोवर में स्नान करने आती हैं अन्य देवी, देवता, ऋषि, मुनि आदि भी तारों के रूप में मानसरोवर में स्नान करने आते हैं। महान शक्तियों की सरोवर के ऊपर अनुभूति होती है। मानसरोवर की परिक्रमा होडेचू गांव से प्रारंभ होती है। वहीं छोटे से टीले पर चियू गोंपा अवस्थित है।
इसमें लामाओं के गुरु के चित्र व मूर्तियां स्थापित हैं। उसके पास ही एक पर्वत है जिस की मिट्टी लाल है। कहते हैं उसमें सोना पाया जाता है। होडेचू से छः किलोमीटर दूर सेरुलम गोंपा है। इसमें भी लामा गुरुओं के चित्र, मूर्तियां व धर्म ग्रंथ रखे हैं। प्राचीन पांडुलिपियां रखी भी हैं। उन्हें देखकर कहीं भी नहीं लगता कि हम हिंदुत्व से दूर किसी दूसरे धर्म के सामने खड़े हैं।
कमोवेश उनके देवी देवताओं का स्वरूप हिंदू देवी देवताओं जैसा है। वैसे तो पूरे मानसरोवर की मिट्टी पवित्र मानी जाती है लेकिन सेरालुम गोंपा के सामने की मानसरोवर की मिट्टी पंचधातु की मानी जाती है इसकी रेती में चांदी व सोना धातुएं मिली हैं।
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