अधक राक्षस का वध करने के उपरांत भगवान शंकर के थकित शरीर के पसीने से उत्पन्न एक क्रूर भूखे सेवक की उत्पत्ति हुई जिसने अंधक राक्षस के शरीर से बहते हुए खून को पिया फिर भी उसकी क्षुधा शांत नहीं हुई। तब उसने शिवजी की तपस्या की और भगवान से त्रिलोकों को खा जाने का वर प्राप्त कर लिया।
जब वह तीनों लोकों को अपने अधीन कर भूलोक को चबा डालने के लिए झपटा तो देवतागण, प्राणी सभी भयभीत हो गए। तब समस्त देवता ब्रह्मा जी के पास रक्षा सहायता हेतु पहुंचे। ब्रह्मा जी ने उन्हें अभयदान देते हुए उसे औंधे मुंह गिरा देने की आज्ञा दी और इस तरह शिव जी के पसीने से उत्पन्न वह क्रूर सेवक देवताओं के द्व ारा पेट के बल गिरा दिया गया और उसे गिराने वाले ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र आदि पैंतालीस देवता उसके विभिन्न अंगों पर बैठ गए। यही वास्तु-पुरुष कहलाया। दे
वताओं ने वास्तु पुरुष से कहा तुम जैसे भूमि पर पड़े हुए हो वैसे ही सदा पड़े रहना और तीन माह में केवल एक बार दिशा बदलना। भादों, क्वार और कार्तिक में पूरब दिशा में सिर व पश्चिम में पैर, अगहन, पूस और माघ के महीनों में पश्चिम की ओर दृष्टि रखते हुए दक्षिण की ओर सिर और उत्तर की ओर पैर, फाल्गुन, चैत और बैसाख के महीनों में उत्तर की ओर दृष्टि रखते हुए पश्चिम में सिर और पूरब में पैर तथा ज्येष्ठ, आषाढ़ और सावन मासों में पूर्व की ओर दृष्टि और उत्तर दिशा में सिर व दक्षिण में पैर।
वास्तु पुरुष ने देवताओं के बंधन में पड़े हुए उनसे पूछा कि मैं अपनी भूख कैसे मिटाऊं। तब देवताओं ने उससे कहा कि जो लोग तुम्हारे प्रतिकूल भूमि पर किसी भी प्रकार का निर्माण का कार्य करें उन लोगों का तुम भक्षण करना। तुम्हारी पूजन, शांति के हवनादि के बगैर शिलान्यास, गृह-निर्माण, गृह-प्रवेश आदि करने वालों को और तुम्हारे अनुकूल कुआं तालाब, बाबड़ी, घर, मंदिर आदि का निर्माण न करने वालों को अपनी इच्छानुसार कष्ट देकर सदा पीड़ा पहुंचाते रहना।
उपर्युक्त तथ्यों को देखते हुए किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य वास्तु के अनुरूप करना चाहिए। सुख, शांति समृद्धि के लिए निर्माण के पूर्व वास्तुदेव का पूजन करना चाहिए एवं निर्माण के पश्चात् गृह-प्रवेश के शुभ अवसर पर वास्तु-शांति, होम इत्यादि किसी योग्य और अनुभवी ब्राह्मण, गुरु अथवा पुरोहित के द्वारा अवश्य करवाना चाहिए। लंबाई चैड़ाई को तीन भागों में विभक्त किया जाए तो ऐसे भूखंड या भवन का मध्यवर्ती हिस्सा ब्रह्म स्थान कहलाता है।
ब्रह्म स्थान धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है अतः इसे स्वच्छ रखा जाना चाहिए। ब्रह्म स्थान में तलघर, पाकशाला, पशुशाला, सेप्टिक टैंक, शौचालय, शयन कक्ष, स्नान गृह, स्वीमिंग पूल, स्टोर रूम, कुआं, बोरिंग, वाटर-टैंक आदि नहीं बनाने चाहिए।
ब्रह्म स्थान में सफेद रंग शुभ होता है। नवरत्नों में माणिक्य का, पंचदशी यंत्र में पंचांक का और नवग्रह यंत्र में सूर्य का जो स्थान है वही स्थान मकान के ब्रह्म स्थान का स्थान है। दसू र े शब्दा ंे म ंे यह कह सकत े हंै कि यदि भवन निर्माण की जगह को नौ बराबर-बराबर वर्गों में विभाजित किया जाए तो पांचवंे वर्ग वाली जगह ब्रह्म स्थान की जगह होगी।
इसे छोड़कर शेष आठ वर्गों की जगह पर पांच तत्वों के अनुरूप निर्माण करना चाहिए। यदि चीनी वास्तु फेंगशुई के चमत्कारी कहे जाने वाले ‘लो- शु’ वर्ग पर ध्यान दें तो हम पाएंगे कि उसका केंद्रीय पंचम वर्ग ‘सेहत’ का होता है। इसे भारतीय वास्तु के ब्रह्म स्थान का रहस्य माना जा सकता है। ब्रह्म स्थान आकाश तत्व व ाला म ाना जाता है।
इसको खुला रखना इसलिए जरूरी है कि भवन में रहने वालों को आका श् ा की ओर से आने वाली नैसर्गिक ऊर्जाएं सतत प्राप्त होती रहें। चूंकि ब्रह्मांड में आकाशीय तत्वों का बाहुल्य है एवम् मानव मस्तिष्क का नियामक आकाश ही है अतः सुख, संपदा, स्वास्थ्य और दीर्घायु के निमित्त वास्तु में ब्रह्म स्थान की महत्ता का प्रतिपादन वास्तु शास्त्र करता है।
पुराने समय में भगवान ब्रह्मा के निमित्त घर के बीच वाले स्थान में चैक या आंगन बनाया जाता था। ब्रह्म स्थान खुला रखने से घर को वायु व प्रकाश भरपूर मिलता है और उस भवन में वास करने वाले सुखी, समृद्ध व स्वस्थ रहते हैं। स्वस्तिक मिटाता है वास्तुदोष शुभ मांगलिक पर्वों के अवसर पर पूजा-घर, द्व ार की चैखट और प्रवेश द्वार के आसपास अथवा घर की दीवारों पर प्राचीन समय से ही स्वस्तिक चिह्न लगाने की प्रथा रही है। यह एक शुभ मंगल चिह्न है जिसे लगाने से सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
इसे लगाने से आत्म संतुष्टि, शांति, एकाग्रता आदि की प्राप्ति और सदबुद्धि, प्रगति, पारिवारिक सौहार्द आदि में वृद्धि होती है। साथ ही द्वेष भावना का शमन और कार्यक्षमता का विकास होता है। इस तरह स्वस्तिक शुभ होता है। हिंदू धर्म और संस्कृति में रोली, हल्दी या सिंदूर से भी स्वस्तिक बनाने की प्रथा है।
भवन के मुख्य द्व ार की चैखट पर सोना, चांदी, तांबा अथवा पंचधातु से निर्मित ‘स्वस्तिक’ की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश आरै सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है, घर की स्थिति अनुकूल होने लगती है। स्वस्तिक वास्तु दोष को दूर करता है। नौ अंगुल की लंबाई चैड़ाई वाला स्वस्तिक स्थापित करने से शीघ्र शुभ प्रभाव देने वाला होता है। घर, दुकान, निजी कार्यालय आदि के प्रत्येक कमरे की पूर्वी दीवार पर शुभ मुहूर्त में स्वस्तिक यंत्र की स्थापना करने से विभिन्न वास्तु दोषों का शमन हो जाता है।
श्री गणेश जी की मूर्ति की तरह ही स्वस्तिक यंत्र भी सौ हजार बोविस धनात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम होता है। उसके इस गुण के कारण कई वास्तु दोष दूर हो जाते हंै। गुरु पुष्यामृत योग, रविपुष्य योग, दीवाली, गणेश चतुर्थी, नव संवत्सरारंभ, नव वर्ष के दिन, बुधवार को अथवा अपने मन को अच्छी लगने वाली किसी शुभ तिथि या पर्व आदि के दिन इसे लगाया जा सकता है। प्लास्टिक, कांच, लोहे लकड़ी, स्टील या टिन का स्वस्तिक प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। स्वस्तिक का उपयोग कोई भी कर सकता है। इसे प्रतीक के रूप में अंगूठी और लाॅकेट में धारण कर लोग स्वयं को ऊर्जावान महसूस करते हैं।
गृह-निर्माण आदि के समय निर्माण कार्य जनित कई प्रकार के वास्तु दोष रह जाना आम बात होती है। निर्माण के बाद हर जगह सुधार, कार्य, मरम्मत, तोड़फोड़, काट-छांट के जरिए वास्तु दोष हटाना संभव नहीं होता। ऐसी स्थिति में ¬, स्वस्तिक आदि शुभ चिह्नों आदि के उपयोग से वास्तु दोषों का शमन होता है।
इसी तरह बिना तोड़-फोड़ किए धर्म, ज्योतिष और वास्तु से संबंधित कुछ विशेष प्रकार के मंत्र युक्त यंत्र वास्तु दोष मिटाने में सहायक होते हैं इनमें कुछ यंत्रों का उल्लेख यहां प्रस्तुत है।
दिशा नाशक यंत्र: यह निर्माण कार्य के दौरान विद्यमान वास्तु दोष निवारण का प्रमुख यंत्र है। गृह, व्यावसायिक स्थल, उद्योग, कार्यालय परिसर आदि के निर्माण में जहां वास्तु संबंधी दोष आ गया हो और जिसे सुधारा न जा सके, उसके निवारण हेतु दोष वाली जगह पर दिशादोष नाशक यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करा कर शुभ मुहूर्त में स्थापना की जाती है। यह दिशा संबंधी दोष को नष्ट करन े म ंे सक्षम हाते ा है। इसमें वास्तु पुरुष का कल्पित चित्र रेखांकित किया जाता है।
वास्तु महायंत्र: वास्तु दोष निवारण का दूसरा यंत्र श्री वास्तु महायंत्र के नाम से जाना जाता है। इसमें इक्यासी वर्गों में उन पैंतालीस देवताओं के नाम दर्शाए जाते हैं जिन्होंने वास्तु पुरुष को भूमि पर गिराया था और उसके विभिन्न अंगों पर बैठकर उसे बंधक बनाया था। यंत्र के मध्य भाग वाले नौ वर्गों में ब्रह्मा का नाम होने से यह ब्रह्मा वाला ‘‘वास्तु दोष निवारक यंत्र’’ अथवा ब्रह्म वाला ‘‘वास्तु दोष नाशक यंत्र’’ भी कहलाता है।
इक्यासी वर्गों के बाह्य कोष्ठक में अंदर की ओर पूर्व दिशा में ¬ गं गणपतये नमः, पश्चिम में ¬ यं योगिनीभ्यो नमः, उत्तर में ¬ क्षं क्षेत्रपालाय नमः तथा दक्षिण में ¬ बं बटुकाय नम लिखा जाता है। साथ ही भू शय्या वाले वास्तुदेवता को प्रणाम करते हुए उनसे गृह को धन-धान्यादि से समृद्ध करने वाली प्रार्थना यंत्र में अंकित की जाती है। इस यंत्र को पूजा गृह में पूर्व दिशा में स्थापित किया जाता है। इस यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा स्थापना के समय अवश्य करना चाहिए। समस्त प्रकार के ज्ञात एवं अज्ञात वास्तु-दोषों के निवारण का यह एक अद्भुत लाभकारी यंत्र है। इसे प्रतिदिन सुगंधित धूप, अगर इत्र आदि से सुवासित करते रहना चाहिए।
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