दिशाओं का शुभाशुभ फल
दिशाओं का शुभाशुभ फल

दिशाओं का शुभाशुभ फल  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 12167 | दिसम्बर 2007

वास्तुशास्त्र की चार मुख्य दिशाएं - पूर्व, उत्तर, पश्चिम और दक्षिण। इसी तरह इसकी चार ही उपदिशाएं भी होती हैं उत्तर पूर्व, उत्तर पश्चिम, दक्षिण पूर्व और दक्षिण पश्चिम। वास्तु शास्त्र में ब्रह्मस्थल का स्थान भी महत्वपूर्ण है।

वास्तुशास्त्र के अनुसार हर दिशा का अपना एक महत्व है। पूर्व पूर्व दिशा स्वामी इंद्र देव हैं। यह सूर्य के उदय की दिशा है। वास्तु नियमानुसार हमारे लिए यह अनिवार्य है कि हम पूर्व दिशा को साफ-सुथरा तथा हल्का एवं कम भारी रखें। 

1. पूर्व दिशा पढ़ने वाले बच्चों के लिए बहुत ही शुभ दिशा है। 

2. पूर्व दिशा में बना मंदिर बहुत ही शुभ होता है। 

3. भूमिगत पंप यदि पूर्व दिशा में लगाया जाए तो इससे चहुंमुखी सफलता प्राप्त होती है और मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है। 

4. भवन का ढलान पूर्व दिशा की तरफ होने से संपन्नता सुगम होती है। 

5. पानी की ऊपरी टंकी भवन की पूर्व दिशा में रखने से पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। गृह स्वामी को मधुमेह तथा हृदय संबंधी रोग होने की प्रबल संभावना रहती है। 

6. खाना बनाते समय यदि गृहिणियों का मुख पूर्व दिशा की तरफ रहे तो उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है। 

7. बच्चों को रहने के लिए पूर्व दिशा 

8. राकेश सिंह गुजेला में बना कमरा देने से उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है और मानसिक विकास ठीक प्रकार से होता है। 

9. पूर्व दिशा वंश वृद्धि की दिशा है। 

10. पूर्व दिशा में स्टोर, सीढ़ियां एवं शौचालय नहीं बनाने चाहिए। 

11. पूर्व दिशा में भारी भरकम समान रखने से इस दिशा में दोष उत्पन्न हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

उत्तर उत्तर दिशा धन के स्वामी कुबेर की दिशा कहलाती है। इसे जल का स्थान भी कहते हैं। आधुनिक युग में धन के बिना किसी भी कार्य की कल्पना करना भी एक स्वप्न की तरह ही है। आज समाज में धन के बिना पहचान बनाना असंभव सी बात है। 

1. घर, फैक्टरी, भवन, इत्यादि में अगर भूमिगत पंप उत्तर दिशा में लगाया जाए तो धन के स्वामी कुबेर का आशीर्वाद निरंतर प्राप्त होता रहता है। 

2. उत्तर दिशा भी एक उच्च दिशा है। जिसे साफ-सुथरा एवं हल्का रखना आवश्यक होता है। 

3. अगर भवन में मंदिर के लिए पूर्व दिशा में स्थान उपलब्ध न हो तो उत्तर दिशा में मंदिर बनाया जा सकता है। 

4. उत्तर दिशा में ड्राईंग रूम का निर्माण किया जा सकता है। 

5. भवन के उत्तर दिशा में सीढ़ियां नहीं बनानी चाहिए। अन्यथा कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है जैसे व्यवसाय में पैसे बाजार से रुक-रुक कर तथा देर से आते हैं। 

6. भवन के उत्तरी भाग में ऊपरी पानी की टंकी भी नहीं बनानी चाहिए। इससे भी व्यवसाय में बाधा आती है तथा व्यक्ति मानसिक चिंता से ग्रस्त हो सकता है। 

7. उत्तर दिशा में भारीसामान, मशीनरी, स्टोर, टायलेट आदि न बनाएं इससे भी धन के आगमन में बाधाएं उत्पन्न होती हंै। 

8. उत्तर दिशा की तरफ एक मछली घर या किसी जल स्रोत की तस्वीर लगाकर उत्तर दिशा को ऊर्जावान बनाया जा सकता है। 

9. भवन की ढलान उत्तर दिशा की तरफ रखने से निश्चय ही हम संप. न्नता का मार्ग आसान कर सकते हैं।

मंदिर में या भवन की उत्तर दिशा में कुबेर यंत्र स्थापित कर कुबेर देवता का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। दक्षिण कुछ लोग दक्षिण दिशा को अशुभ मानते हैं क्योंकि इस दिशा के स्वामी यम देवता हैं। यम देवता न्यायाधीश हैं जो इस पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार दंड और न्याय देते हैं। 

1. दक्षिण दिशा स्थिरता, सुदृढ़ता एवं बल प्रदान करती है। 

2. घर या भवन में दक्षिण दिशा का भाग भारी और ऊंचा रखें। 

3. दक्षिण दिशा का भाग किराए पर नहीं लगाना चाहिए अन्यथा किरायादार मकान खाली करने में आना कानी कर सकता है। इसके अतिरिक्त बहुत सी अन्य कठिनाइयों का समना भी करना पड़ सकता है। 

4. दक्षिण दिशा का भाग नौकरों को या अन्य किसी को बेचना नहीं चाहिए क्योंकि इस भाग में जो भी रहेगा भवन में उसी का प्रभुत्व कायम रहेगा। 

5. स्टोर एवं भारी सामान के लिए दक्षिण का स्थान उपयुक्त रहता है। 

6. घर में मुखिया के शयन कक्ष के लिए दक्षिण का स्थान सबसे अधिक उपयुक्त है। 

7. दक्षिण दिशा में भूमिगत पंप न लगाएं, इससे घर के मुखिया को भयंकर रोग हो सकता है और उसके प्राण भी जा सकते हैं। 

8. व्यापार में घाटे या नुकसान के पीछे भूमिगत पंप बोरिंग बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। 

9. तैयार माल दक्षिण दिशा में रखने से माल वहीं स्थिर हो जाता है। 

10. दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का छोटा या बड़ा गढ्ढा नहीं होना चाहिए, इससे भी व्यवसाय में हानि का भय बना रहता है। 

11. सीढ़ियों के लिए दक्षिण का भाग सबसे अधिक उपयुक्त है। 

12. दक्षिण का भाग पूर्व व उत्तर से नीचा नहीं होना चाहिए अन्यथा धन घर में आने के बजाय तेजी से बाहर जाने का रास्ता ढंूढ लेगा।

पश्चिम पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देवता हैं जो जल एवं वर्षा के अधिपति हैं। 

1. पश्चिम दिशा एक बहुत ही शुभ दिशा है। 

2. यह दिशा कई प्रकार के छोटे या बड़े वास्तु दोषों को दूर करने की क्षमता रखती है। 

3. छत पर ऊपरी पानी की टंकी के लिए सबसे अधिक उपयुक्त स्थान भवन का पश्चिमी भाग है। 

4. रसोई घर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्थान दक्षिण पूर्व है। यदि इस दिशा में संभव न हो तो रसोई घर पश्चिम में भी बनाया जा सकता है। किंतु गृहिणी खाना पूर्व की तरफ मुंह करके ही बनाए। 

6. रसोई घर में उत्तर के अलावा पश्चिम म ंे भी सिकं लगाया जा सकता है। 

7. भवन में शौचालय के लिए पश्चिम दिशा भी एक उपयुक्त स्थान है। 

8. सीढिय़ ा ंे क े लिए दक्षिण और दक्षिण पश्चिम का स्थान उपयुक्त होता है। यदि ऐसा संभव न हो तो पश्चिम में भी सीढ़ियां बनाई जा सकती हंै। 

9. भूमिगत पंप पश्चिम में लगाने से धन की कमी तो नहीं होती किंतु घर की स्त्रियों का स्वास्थ्य खराब रह सकता है। 

10. शिक्षा के लिए पूर्व और उत्तर पूर्व का स्थान सर्वोत्तम स्थान है। यदि ऐसा संभव न हो तो भवन के पश्चिमी भाग में पूर्व मुखी होकर पढ़ाई की जा सकती है।

11. औद्योगिक संस्थानों में भारी मशीनरी पश्चिम में भी रखी जा सकती है।

दक्षिण पूर्व दक्षिण पूर्व के अधिपति अग्नि देव हैं और इस दिशा को आग्नेय कोण कहते हैं। यह दिशा वास्तु पुरुष का दायां हाथ है। दक्षिण पूर्व दिशा में भूमिगत पंप अति घातक सिद्ध हो सकता है। इस दिशा में पंप होने से कई प्रकार की परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। घर में स्त्रियों तथा ज्येष्ठ पुत्र का स्वास्थ्य खराब होने की संभावना रहती है।

साथ ही घर वालों में आपसी मतभेद की स्थिति तक आ सकती है और सड़क दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। भवन के ऊपरी भाग में पानी की टंकी कदापि न रखें। दक्षिण पूर्व का हिस्सा अन्य दिशाओं के अनुपात में किसी भी हालत में नीचा नहीं होना चाहिए। इससे पति-पत्नी में मतभेद तथा आग लगने की प्रबल संभावना रहती है।

दक्षिण पूर्व का स्थान रसोई घर के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है। गृहिणी यदि पूर्व की तरफ मुख करके खाना बनाए तो उसका स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहेगा। दक्षिण पूर्व अग्नि और विद्युतीय उपकरणों के लिए उपयुक्त स्थान है।

औद्योगिक इकाइयों के दक्षिण पूर्वी भाग में शौचालय होने से उत्पादन क्षमता घटती है जिसके परिणामस्वरूप कर्मचारी अपनी पूरी ऊर्जा के साथ काम नहीं कर पाते। दक्षिण पूर्व दिशा होटल, रेस्टोरेंट तथा केटरिंग व्यवसाय के लिए अति उत्तम है। वाहन शोरूम के लिए भी दक्षिण पूर्व दिशा एक शुभ दिशा है।

इस दिशा में यदि ऊपर वर्णित व्यवसाय किए जाएं तो सफलता निश्चय ही प्राप्त होगी। उत्तर पूर्व चारों दिशाओं और चारों ही उप दिशाओं में उत्तर पूर्व दिशा को ही सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उत्तर पूर्व कोण को ही ईशान कोण कहा जाता है और यहीं पर वास्तु पुरुष का सिर होता है। उत्तर पूर्व दिशा के स्वामी वृहस्पति देवता हैं तथा भगवान यहां स्वयं विराजमान हैं।

इस दिशा में किसी भी प्रकार का दोष महादोष कहलाता है। उत्तर पूर्व दिशा में लगा बोरिंग चहुंमुखी सफलता का द्योतक है। इस दिशा में रसोई घर होने से घर की गृहिणी के सिर एवं कंधों में दर्द की शिकायत सदैव बनी रहती है।

उत्तर-पूर्व को यथा संभव खाली, साफ सुथरा और नीचा रखने से संपन्नता सुगमता से प्रवेश करती है। उत्तर पूर्व में शौचालय होना एक महादोष है जो जीवन में किसी भी प्रकार की हानि करवा सकता है। इसी प्रकार से सीढ़ियों का भी उत्तर पूर्व दिशा में बना होना दिवालियेपन का द्योतक है।

इस प्रकार के भवन में पुत्र सुख की संभावना कम रहती है तथा स्त्री को बार-बार गर्भपात का कष्ट झेलना पड़ता है। इस प्रकार के भवन में निवास करने वाले के व्यापार में घाटे लगातार होते रहते हैं जिससे व्यापार बंद होने की कगार पर पहुंच जाता है।

घर में उत्तर पूर्व के कमरे का सदैव बच्चों की पढ़ाई के कमरे तथा पूजा घर के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे ईश्वर का आशीर्वाद निरंतर प्राप्त होता रहता है। उत्तर पश्चिम दिशा उत्तर पश्चिम दिशा को वायव्य कोण कहते हैं। इस दिशा के अधिपति चंद्र देव हैं। यह वास्तु पुरुष का बायां हाथ है।

इस दिशा में बोरिंग होने से कई प्रकार की परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। घर की स्त्रियों का स्वास्थ्य खराब रह सकता है। यह स्थान शौचालय एवं स्नानघर के लिए उत्तम स्थान है। व्यापार में तैयार माल को यदि उत्तर पश्चिम में रखा जाए तो उसकी बिक्री जल्दी हो जाती है। उत्तर पश्चिम का बढ़ा हुआ काण्े ा चारे ी, मुकदम े या काननू ी विवाद में उलझा सकता है। मुख्यद्वार के उत्तर पश्चिम के टी प्वाइंट पर होने से व्यापार में तैयार माल की बिक्री न होने की संभावना रहती है।

इसके अतिरिक्त स्त्रियों के स्वास्थ्य में भी गिरावट आ सकती है। उत्तर पश्चिम में बोरिंग होने से परिवार के सदस्यों के आपसी रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है। दोस्त दुश्मन बन जाते हैं। परिवार ऋणग्रस्त हो सकता है। सीढ़ियों के लिए उत्तर पश्चिम का स्थान उपयुक्त नहीं है।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.