शीत ऋतु का अपना अलग महत्व है। इस ऋतु में चारांे तरफ ठंडी हवाएं चलती हंै तथा दिन का तापमान भी सामान्य तापमान से कम रहता है। स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सभी इस ऋतु में गर्म कपड़े पहने रहते हैं ताकि उनके शरीर को ठंड न लगे। यह भी कहा जाता है कि ठंड बच्चों को बहुत कम लगती है। किशोरों और युवाओं को भी यह बहुत कम सताती है लेकिन अधेड़ उम्र के लोगों और बूढ़ों को तो ठंड काफी लगती है। अवस्था के अनुसार ठंड के मानव जीवन में होने वाले इस प्रभाव को जानने के बाद यह भी जानें कि मोटे व्यक्तियों को ठंड कम लगती है। इसके पीछे प्रमुख कारण यह हो सकता है कि मोटे व्यक्तियों के शरीर में वसा का स्तर पाया जाता है जो ठंड के दिनों में उनके शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा देता है। ऐसे जीव वैज्ञानिक तथ्यों को जानने के बाद हम यह भी जानें कि ठंड सहना और कड़ाके की सर्दी में भी सामान्य बने रहना व्यक्ति के आत्मविश्वास को प्रदर्शित करता है। पुराने जमाने में भारत के ऋषि मुनि ठंड के दिनों में ब्राह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर लिया करते थे। फिर ध्यान साधना कर प्रकृति को अपने ज्ञान से आलोकित करते थे। इस तरह ऋषि मुनियों की ठंड में भी यह ध्यान साधना उनके प्रबल आत्मविश्वास का परिचायक है। आज भी अनेक साधु महात्मा कड़ाके की सर्दी में तपस्या करते हुए हिमालय में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इन लोगों से अलग हटकर सामान्य लोगों की बात करें तो पाएंगे कि हमारे आसपास ऐसे लोग भी हैं जिनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। कम ठंड में भी वे बीमार पड़ जाते हैं। परिस्थिति थोड़ी भी प्रतिकूल हो, तो घबरा जाते हैं। हर काम में हड़बड़ाहट करते हैं। ऐसे लक्षणों से एक बात साफ हो जाती है कि व्यक्ति में अगर जीवन संघर्ष से मुकाबला करने की क्षमता नहीं हो तो वह कई मोर्चों पर असफल हो जाएगा। व्यक्ति के दुबला होने या उसके जीवट अथवा ठंड सहने की उसकी प्रवृत्ति का थोड़ा बहुत संबंध उसकी ग्रह दशा और हस्त रेखाओं की स्थिति से होता है।
Û जिनके हाथ कोमल, गुदगुदे और ऊपर से चिकने हों उन लोगों पर बदलते मौसम का प्रभाव एकदम से पड़ता है। उन्हें रोग अधिक होते हैं और ठंड के मौसम में कमर में दर्द भी होता है।
Û यदि व्यक्ति का अंगूठा कम खुलता हो, हाथ सख्त हो, मस्तिष्क रेखा पर द्वीप हो तो उस परर शीत ऋतु का प्रभाव अधिक होता है। ऐसे लोग जल्दबाज और अपने प्रति लापरवाह होते हैं, इसलिए उन पर ठंड का प्रभाव अधिक पड़ता है।
Û यदि जीवन रेखा पतली और छोटे-छोटे द्वीपों से मिलकर जंजीरनुमा हो तो व्यक्ति के शरीर में कोई न कोई दोष या स्नायु विकार होता है, उसके फेफड़े खराब होते हैं तथा शीतऋतु में अनेक रोगों का सामना करना पड़ता है।
Û जिन बच्चों की मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकले उन पर सर्दी का प्रभाव अधिक होता है तथा सर्दी में वे अक्सर बीमार हो जाते हैं। अतः मां बाप ऐसे बच्चों का विशेष ध्यान रखें।
Û यदि मस्तिष्क रेखा पतली हो, जीवन रेखा भी पतली हो तो व्यक्ति की प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होती है। इसलिए ऐसे लोग शीत ऋतु के समय अपना विशेष ध्यान रखें। Û यदि हाथ लाल एवं सख्त हो तो व्यक्ति शीत ऋतु में अक्सर अपने प्रति लापरवाही होता है। इसलिए वह बीमार हो जाता है।
Û यदि अंगूठा कम खुले हाथ सख्त हो, भाग्य रेखा कटी फटी हो तो व्यक्ति पर शीत ऋतु का प्रभाव अधिक पड़ता है।
Û यदि हाथ में सभी ग्रह उन्नत न हों और रेखाओं का जाल हो, हाथ नरम हो तो इस स्थिति में भी व्यक्ति को जीवन में यदा-कदा रोगों से जूझना ही पड़ता है।
Û यदि मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो, उंगलियां मोटी हों, भाग्य रेखा खंडित हो, तोे व्यक्ति सर्दियों में नजले, जुकाम, खांसी आदि का शिकार होता है।
Û यदि मस्तिष्क रेखा लंबी हो, मंगल पर जाती हो तथा बीच में टूट भी जाए तो जातक पेट के रोग जैसे अम्ल समस्या, अल्सर आदि से ग्रस्त हो सकता है। साथ ही उस पर शीत ऋतु का प्रभाव भी पड़ता है।
Û भाग्य रेखा में द्वीप हो तथा उन्हें गहरी राहु रेखा काटती हो और शुक्र तथा चंद्र ढ़ीले हांे, मस्तिष्क तथा जीवन रेखाओं का जोड़ लंबा हो तो व्यक्ति को शीत ऋतु अधिक परेशान करती है। ऐसे लोग वहमी होते हैं तथा उनका मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं रहता।
Û यदि हाथ में रेखाओं का जाल अधिक हो, सभी ग्रह उठे हुए हों, हाथ नरम हो, स्वास्थ्य रेखा टूटी फूटी हो, जीवन रेखा को कई रेखाएं काटती हांे तो व्यक्ति पर सर्दी गर्मी का प्रभाव बना रहता है।
Û यदि जीवन रेखा अधूरी हो, उंगलियां टेढ़ी मेढ़ी हों, भाग्य रेखा जीवन रेखा के साथ हो तो व्यक्ति कई बीमारियों से ग्रस्त होता है लेकिन सर्दी-गर्मी का प्रभाव उस पर जल्दी होता है। Û यदि हाथ नरम, उंगलियां लंबी व पतली तथा नाखून चोंचदार और पतले हांे, हाथ नरम हो तो व्यक्ति पर सर्दी गर्मी का प्रभाव ज्यादा होता है।