माघ स्नान
माघ स्नान

माघ स्नान  

व्यूस : 6561 | जनवरी 2008
माघ स्नान स्नात्वा माघे शुभे तीर्थे प्राप्नुवन्तीप्सितं फलम्। सर्वेऽधिकारिणो ह्यत्र विष्णुभक्तो यथा नृप।। मारे धर्मशास्त्र पुराणादि ग्रंथों में माघ, कार्तिक और वैशाख महीनों को महापुण्यफलदायी पवित्र मास माना गया है। इन मासों में तीर्थ स्थलों पर नित्य स्नान, दानादि करने से अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में सूर्योदय के समय को उत्तम माना गया है। उसके पश्चात् जितने विलंब से स्नान किया जाता है उसी अनुपात में स्नान का पुण्य फल कम होता जाता है। अतः जहां तक संभव हो, उत्तम समय में ही स्नान करें। स्नान के लिए प्रयाग, काशी, हरिद्वार आदि प्रमुख तीर्थ स्थल उत्तम माने गए हैं। यदि इन तीर्थों में नहीं जा सकें तो जहां भी स्नान करें, वहीं उनका स्मरण करें। इसके अतिरिक्त ‘पुष्करादीनि तीर्थानि गंगाद्याः रतिस्तथा। आगच्छन्तु पवित्राणि स्नान काले सदा मम। अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका। पुरी द्वारावती ज्ञेयाः सप्तैता मोक्षदायिका’ का उच्चारण करें। या वेग से वहने वाली नदी के जल में स्नान करें। इसके अलावा रात भर छत पर रखे हुए जल पूरित घट से स्नान करें अथवा दिन भर सूर्य किरणों से तपे हुए जल से स्नान करें। स्नान के उपरांत सूर्यनारायण को जल का अघ्र्य दें और भगवान विष्णु की पूजा करें। अपनी शक्ति सामथ्र्य के अनुसार अन्न और वस्त्र का दान करें। माघ स्नान बाल युवा, वृद्ध वाले स्त्रियां, पुरुष, गृहस्थ, ब्रह्मचारी, संन्यासी, वानप्रस्थी सभी कर सकते हैं। कहा गया है ब्रह्मचारी गृहस्थो वा वानप्रस्थोऽथ भिक्षुकः। वालवृद्धयुवानश्च नरनारीनपुंसकाः।। माघ स्नान की अवधि के संबंध में शास्त्रों में तीन प्रकार से उल्लेख हैं- पौष शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल एकादशीपर्यंत पौष शुक्ल पूर्णिमा से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक तथा मकर संक्रांति से कुंभ संक्रांति तक। माघ मास में यथा संभव नित्य स्नान करें। इसके अतिरिक्त माघ मास के प्रमुख पर्व संक्रांति, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि तिथियों को तीर्थस्थल में श्रद्धा विश्वासपूर्वक स्नान, दान करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। अगर संपूर्ण मास में तीर्थ में स्नान आदि न कर सकें तो इन प्रमुख पुण्य पर्वों में स्नान करने से माघ स्नान का फल प्राप्त होता है। माघ स्नान करने से व्यक्ति को पाप, ताप, शाप से मुक्ति मिलती है तथा जीवन में विशेष सुख शांति प्राप्त होती है। तीर्थ क्षेत्र जाने पर अपने विचार एवं भावनाओं को पवित्र रखें। संयम पूर्वक सात्विक जीवन शैली का पालन करें क्योंकि शास्त्र में कहा गया है कि अन्य स्थान में किए गए पापों का प्रायश्चित तीर्थ क्षेत्र में किए गए पुण्य कर्म से हो जाता है, लेकिन तीर्थ क्षेत्र में किए गए पापों से मुक्ति नहीं मिलती। अन्य क्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति। तीर्थ क्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति। अतः स्नानकर्ता को चाहिए कि वह तीर्थस्थल में जाकर शुद्ध सात्विक भाव से श्रद्धा विश्वासपूर्वक धर्म का आचरण करे। ताकि तीर्थ स्नान, दानादि का पूर्ण फल प्राप्त हो सके तथा तीर्थस्थलों की गरिमा भी बनी रहे।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.