मस्तिष्क रेखा एवं आपका व्यक्तित्व एन. पी. थरेजा हिदू हस्तरेखा शास्त्र में मस्तिष्क रेखा को धन और मातृ रेखा कहा जाता है। इस रेखा से जातक की संयम क्षमता, मन की एकाग्रता की शक्ति तथा मनोवृत्ति का विश्लेषण किया जाता है। हम जानते हैं कि हमारे भविष्य को संवारने में हमारे मन की भूमिका अहम होती है। मनुष्य की शरीर रचना सुगठित हो सकती है, पर यदि मनोवृत्ति ठीक न हो तो शरीर सुचारु रूप से काम नहीं कर सकता। मनोबल मजबूत हो तो व्यक्ति जीवन में परिवर्तन ला सकता है। व्यक्ति का भविष्य उसकी मनोदशा पर निर्भर करता है। फिर मस्तिष्क रेखा के विश्लेषण से मस्तिष्क की शक्ति की गुणवत्ता और परिमाण का निर्धारण किया जा सकता है। मस्तिष्क रेखा हृदय रेखा के नीचे होती है-कमोवेश समानांतर। यह रेखा तर्जनी व अंगूठे के लगभग बीच से शुरू होती है। इस रेखा की स्थिति में किसी तरह की गड़बड़ी से व्यक्ति की अस्वाभाविक प्रवृत्ति का पता चलता है। सामान्यतः यह रेखा तर्जनी के नीचे से शुरू होती है- जीवन रेखा से जुड़ी या फिर इससे कुछ दूर। यह जीवन रेखा के भीतर किसी स्थान से भी शुरू हो सकती है। इस रेखा की तीन अलग-अलग अवस्थितियां इस प्रकार हैं: मंगल के निचले पर्वत पर जीवन रेखा के अंदर उठती हुई। मस्तिष्क तथा जीवन रेखाएं करीबी से एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से हटकर शुरू होती है। जिन लोगों की मस्तिष्क रेखा मंगल के निचले पर्वत पर जीवन रेखा के भीतर से उभरती है वे मंगल द्वारा संचालित होते हैं। वे विवादप्रिय होते हैं और उनका स्वभाव झगड़ालू होता है। यदि मस्तिष्क रेखा सीधी बढ़कर मंगल के ऊपरी पर्वत से ऊपर तथा बुध के पर्वत के नीचे तक जाती हो तो उक्त गुण और भी उग्र होते हैं। मस्तिष्क रेखा का निचला सिरा ऊपर हृदय रेखा की तरफ मुड़ता हो तो व्यक्ति का स्वभाव झगड़ालू और चिड़चिड़ा होगा। वह हत्यारा भी हो सकता है। किंतु यदि मस्तिष्क रेखा का निचला सिरा नीचे चंद्र पर्वत की तरफ जाता हो तो व्यक्ति में आत्मविश्लेषण की भावना होती है, फलतः उसके स्वभाव में उग्रता अपेक्षाकृत कम होती है। जिन लोगों की मस्तिष्क रेखा अपने उद्गम स्थल से निकल कर जीवन रेखा से करीबी से जुड़ती हो और हल्की सी दूरी पर विलीन हो जाती हो, वे सतर्क, सजग, शर्मीले तथा डरपोक होते हैं। वे स्वयं कोई निर्णय नहीं ले सकते, हमेशा अपने माता पिता और बड़ों के निर्देशों के अनुसार चलते हैं। जीवन से जुड़े मामलों के प्रति निर्णय लेने में जिस आत्मविश्वास की जरूरत होती है उसका उनमें अभाव होता है। उनके माता पिता और बड़ों का मार्गदर्शन यदि वरदान सिद्ध हो सकता है तो उसके बाधक होने की संभावना भी रहती है। जीवन रेखा से थोड़ी दूर स्थित तीसरी प्रकार की मस्तिष्क रेखा वाले ल ा े ग आत्मविश्वासी व दृढ़निश्चयी होते हैं। उन्हें ईश्वर से अंतज्र्ञान का वरदान मिला होता है। यदि मस्तिष्क व भाग्य रेखाओं के बीच का स्थान संकीर्ण हो तो व्यक्ति का आत्मविश्वास और निर्णय क्षमता कुछ कमजोर होती है। यदि यह भाग बहुत चैड़ा हो तो व्यक्ति प्रबल निर्णय क्षमता का स्वामी होता है, किंतु उसके स्वभाव में लापरवाही होती है। फलतः वह अपने कार्यों के अच्छे बुरे परिणामों पर अधिक ध्यान नहीं देता। मस्तिष्क रेखा की आरंभ से अंत तक की तीन स्थितियां होती हैं। पहली एक से दूसरे सिरे तक सीधी। ऐसी रेखा व्यक्ति के नितांत व्यावहारिक होने का संकेत देती है। उसकी गुण-दोष विवेचन की क्षमता मजबूत होती है और वह संतुलित व समझदार होता है। इस तरह की मस्तिष्क रेखा वाले लोग जीवन के जिस किसी भी क्षेत्र में होते हैं उनमें संगठन की क्षमता प्रबल होती है। इस स्थिति की मस्तिष्क रेखा स्त्रियां भी उत्तम संगठन क्षमता व कार्य कौशल की स्वामिनी तथा उद्यमशील होती हैं। अपनी दूसरी स्थिति में मस्तिष्क रेखा अपने अंतिम सिरे से ऊपर की ओर थोड़ा मुड़ती है या उसकी कोई शाखा ऊपर की ओर जाती है। ऐसी रेखा वाले लोग प्रबल मानसिक शक्ति और अर्जनशील स्वभाव के स्वामी होते हैं। मस्तिष्क रेखा की दिशा हथेली के चतुर्भुज (हृदय तथा मस्तिष्क रेखाओं के बीच का भाग) पर अपना प्रभाव डालती है। यदि यह चतुर्भुज समतल व सुगठित हो, न संकीर्ण और न ज्यादा चैड़ी हो और मस्तिष्क रेखा भी समतल हो तो जातक की गुण दोष विवेचन क्षमता संतुलित होती है। यदि मस्तिष्क रेखा हृदय रेखा के करीब से होकर गुजरे जिससे चतुर्भुज संकीर्ण होता हो तो जातक दमे का रोगी होता है। संकीर्ण चतुर्भुज वाले लोगों की मानसिकता संकीर्ण होती है और वे दूसरों पर अपना धन खर्च करना नहीं चाहते। मस्तिष्क रेखा से आयु की संभावित सीमा का पता भी चलता है। जीवन रेखा, हृदय रेखा जिससे हृदय की कार्यप्रणाली का पता चलता है, और मस्तिष्क रेखा ये तीन प्रमुख रेखाएं हैं जिनके आधार पर आयु सीमा का अनुमान किया जाता है। यदि जीवन तथा आयु रेखाएं छोटी हों तो आयु इन दोनों के द्वारा निर्धारित समय तक चलेगी। सीधी हथेली के पार जाती मस्तिष्क रेखा इस बात का संकेत देती है कि व्यक्ति की मानसिक शक्ति प्रबल है। यदि किसी की हृदय रेखा छोटी या मस्तिष्क रेखा की लंबाई के बराबर हो तो वह निष्ठुर और स्वार्थी होता है। सीधी मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति में व्यवहारलता प्रबल होती है। किंतु यदि यह नीचे की ओर झुकी हो तो व्यावहारिकता का सर्वथा अभाव होता है। व्यक्ति कल्पनालोक में विचरण करता है। जिस व्यक्ति की मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत की ओर झुकी हुई हो वह अत्यंत कल्पनाशील होता है। उसकी कल्पनाशक्ति बहुत मजबूत होती है, जिसकी बदौलत वह यश और नाम अर्जित कर सकता है। गहरी और सुगठित वाली मस्तिष्क रेखा उत्तम समझी जाती है। यदि यह कुछ दूर तक इसी अवस्था में हो और फिर लंबाई में कुछ दूर तक पतली और तब जंजीरनुमा हो तो यह इस बात का संकेत है कि व्यक्ति का मस्तिष्क शुरू में भला चंगा रहा होगा, फिर इसके पतला होने पर कमजोर और जंजीरनुमा होने पर विकृत हो गया होगा। सामान्य अवस्था में मस्तिष्क रेखा सीधी हथेली के पार जाती है या फिर नीचे की ओर झुकी होती है। इसका ऊपर हृदय की रेखा की तरफ जाना शुभ नहीं होता। यदि यह शनि पर्वत की ओर जाए तो बुरे प्रभावों में वृद्धि होती है और इससे अचानक मौत भी हो सकती है। यदि शनि पर्वत पर इसके सिरे पर कोई क्राॅस, बिंदु या तारा हो तो आकस्मिक मृत्यु निश्चित है। किंतु इसे अन्य लक्षणों से भी निश्चित कर लेना चाहिए। शनि पर्वत पर मस्तिष्क रेखा गुच्छेदार हो तो व्यक्ति के लकवाग्रस्त होने की संभावना रहती है। यदि यह ऊपर की ओर जाकर हृदय रेखा में लय हो जाती हो तो व्यक्ति का खुद पर नियंत्रण नहीं रह जाता और उस पर संवेग तथा वासना प्रभावी हो जाते हैं। ऐसी मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति में पाशविकता पाई जाती है। उसका शुक्र (काम वासना का स्वामी) पर्वत बड़ा तथा लाल होता है। उसका मंगल का पर्वत भी गोल तथा लाल होता है। अपनी कामवासना की तृप्ति के लिए वह अपराध तक कर सकता है। मस्तिष्क रेखा सीधी हो, तो व्यक्ति में व्यवहारपटुता पाई जाती है किंतु यदि झुकी हो तो वह कल्पनाशील होता है। रेखा झुकी हुई हो और चंद्र पर्वत पर जाती हो तथा तारा, क्राॅस, द्वीप या बिंदु जैसे अशुभ चिह्नों से प्रभावित हो तो इसके प्रभाव अशुभ होते हैं। हल्की झुकी और अंत में कांटे से युक्त मस्तिष्क रेखा शुभ होती है। ऐसी रेखा से युक्त लोगों में व्यावहारिकता व कल्पनाशीलता दोनों पाई जाती हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा वाले तथा कामयाब होते हैं। कांटेदार मस्तिष्क रेखा अशुभ होती है। इस स्थिति की रेखा जिसके हाथ में होती है उसके विचार में दोहरापन होता है। वह झूठा भी हो सकता है। किंतु कुछ हाथों में मस्तिष्क रेखा अंत में तीन सुगठित शाखाओं में बंटी होती है जिनमें एक बुध पर्वत की ओर जाती है, बीच की मंगल पर्वत की ओर तथा तीसरी चंद्र पर्वत की ओर झुकी हुई होती है। ऐसी रेखा अत्यंत लाभदायक होती है ऐसी रेखा वाले लोग जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल होते हैं। प्रबल मस्तिष्क रेखा से मस्तिष्क के सोचने और कार्य करने की क्षमता का पता चलता है। ऐसी रेखा वाले लोग भरोसेमंद होते हैं और अपनी बुद्धिमत्ता के कारण दूसरों के प्रभाव में नहीं आते। यदि हाथ बड़ा, मस्तिष्क रेखा पतली या छोटी तथा अन्य रेखाएं बड़ी हों तो व्यक्ति को मानसिक उत्तेजना की स्थिति से बचना चाहिए क्योंकि अधिक दबाव पड़ने से मस्तिष्क में खराबी आ सकती है और परिणामतः लकवा हो सकता है। विश्लेषण दोनों ही हाथों की रेखाओं का करना चाहिए अन्यथा फलकथन त्रुटिपूर्ण हो सकता है। यदि बायें हाथ की मस्तिष्क रेखा कमजोर और दायें हाथ की गहरी हो तो मस्तिष्क बली होगा। मस्तिष्क रेखा को छोटी छोटी रेखाएं काटती हों तो व्यक्ति सिरदर्द से पीड़ित हो सकता है। यह रेखा पतली और उसे काटने वाली रेखाएं गहरी हों तो व्यक्ति को मस्तिष्क ज्वर हो सकता है। बायें हाथ की मस्तिष्क रेखा सबल और दायें हाथ की दुर्बल हो तो व्यक्ति का दिमाग कमजोर होता है, और ऐसी स्थिति में दिमाग से अधिक काम लेना घातक हो सकता है। यह रेखा उथली और चैड़ी हो तो यह शक्ति में कमी और व्यक्ति के हठधर्मी होने का लक्षण है। व्यक्ति लोभी होता है और दूसरों के प्रभाव में शीघ्र आ जाता है। दिमाग की स्थिरता के लिए मस्तिष्क रेखा का समतल होना जरूरी है। यह कुछ दूर पतली, फिर मोटी और फिर पतली हो, तो व्यक्ति का दिमाग स्थिर नहीं होता - उसके विचारों में बदलाव आते रहते हैं। यदि गहरी हो तो व्यक्ति उत्साह और जोश से भरा होता है, किंतु पतली होने पर उसमें निराशा आ जाती है। छोटी रेखाएं यदि मस्तिष्क रेखा से ऊपर उठी हों तो शुभ और नीचे गिरी हों तो अशुभ होती हैं।