हस्तरेखा द्वारा कुंडली मिलान भौरी लाल काला विवाह स्वर्ग में निर्धारित किए जाते हैं, हम केवल यहां पृथ्वी पर उन्हें संपन्न करते हैं। फिर मेलापक की आवश्यकता क्यों? हमारे मन में उत्पन्न होने वाला प्रत्येक भाव या विचार परम पिता परमात्मा की इच्छा से ही उत्पन्न होता है। अतः मेलापक का विचार या भाव भी उन्हीं स्वर्गाधिपति परमात्मा की इच्छा से उत्पन्न हुआ तथा उसी प्रेरणा से हमने ‘मेलापक’ का प्रयोग किया। किंतु परिणाम परमात्मा पर ही निर्भर रहता है। मेलापक से तात्पर्य वर व कन्या की कुंडलियों के सांगोपाग विश्लेषण के आधार पर दोनों के गुण दोषों का फल कथन करना है। विवाह समाजिक जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव है। सोलह संस्कारों में से 15 वां संस्कार विवाह है। वैवाहिक जीवन की खुशियां जीवन भर साथ रहने वाले दो व्यक्तियों के पारस्परिक तालमेल पर पूर्णतः निर्भर करती हैं अतः मेलापक महत्वपूर्ण ही नहीं अपितु अनिवार्य व अपरिहार्य भी है। हस्त रेखाओं द्वारा मेलापक का अध्ययन करते समय मुख्यतः 5 बातों का ध्यान रखा जाता है- 1. संवाद 2. वाह्य व्यक्तित्व 3. आत्मिक मिलन 4. यौन मेलापक 5. समानुभूति भाव इसके अतिरिक्त जीवन के सुख एवं समृद्धि के पक्ष, विपरीत परिस्थितियों में धैर्य, परस्पर प्रेम भाव आदि का विचार भी किया जाता है। परिणय सूत्र में बंधने से पूर्व हाथ द्वारा कुंडली मिलान मिलान में अंगूठे का महत्व: अंगूठे का निचला अथवा तीसरा पोर, जीवन रेखा द्वारा जिसे विशेष आकार दिया जाता है, शुक्र पर्वत को उत्कृष्ट बनाने में विशेष भूमिका निभाता है। शुक्र पर्वत का पूर्ण रूप से उभरा होना गृहस्थ जीवन के सफल होने का सूचक है, अतः इस पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। क) सुदृढ़ अंगूठे से संतुलित जीवन का अनुमान लगाया जाता है। ख) अंगूठा सीधा, सुडौल तथा लंबा हो और उसके पोरों की लंबाई भी बराबर हो (अनुपात 2ः3 का हो तो सर्वश्रेष्ठ) तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है और अपनी बात या अपने निर्णय पर अडिग रहता है। वह समय का सदुपयोग करता है व समय के महत्व को समझता है। सामाजिक बंधन ऐसे व्यक्ति के विचारों को प्रभावित नहीं करते। वह अपने काम के प्रति पूरा इमानदार होता है। और स्वयं अपने जीवन को सफल बनाता है। ग) कन्या का अंगूठा सुंदर हो और सुंदरता के साथ-साथ लचीला हो, तो वह नई परिस्थितियों में अपने आप को ढाल लेने में सक्षम होती है। वह अपनी वाकपटुता से दूसरों का मन जीत लेती है। यदि अंगूठा छोटा और उसका पहला पोर मोटा या मांस हो, तो व्यक्ति जिद्दी तथा गंदा स्वभाव का होता है। यदि विवाह रेखा गहरी हो व लालिमा लिए हो और मस्तिष्क रेखा पर शनि पर्वत के नीचे यदि काला बिंदु हो तो यह लक्षण पति की स्थिति में पत्नी के लिए और पत्नी की स्थिति में पति के लिए प्राणघातक होती है। यदि विवाह रेखा धीरे-धीरे हृदय रेखा की ओर झुकती है तो जीवन साथी का स्वास्थ्य खराब होता है। यदि जीवन रेखा का उदगम् दो स्थान से हो और फिर वह एक होकर चले तो पति-पत्नी के बीच अलगाव होता है। यदि बायें हाथ में विवाह रेखा, हृदय रेखा को काटती झुकती हुई शुक्र पर्वत पर पहुंचती हो तो तलाक होने की संभावना रहती (यदि बायंे हाथ में हो तो) है। यदि यह लक्षण दोनों हाथों में हो तो तलाक निश्चित रूप से होता है। यदि विवाह रेखा से एक हस्त मेलापक सारणी अंगूठा सीधा और सुडौल हो और उसके पोर समान हों। विवाह रेखा दोष रहित हो। गुरु पर्वत पर क्राॅस (ग) या तारा (’) हो। बुध पर्वत पूर्ण रूप से विकसित हो। शुक्र क्षेत्र पूर्ण रूप से विकसित होना चाहिए। हाथ भारी हो और उंगलियां सुदृढ़ गांठ से युक्त हों। तर्जनी लंबी हो मंगल रेखा स्पष्ट व दोष रहित हो। कनिष्ठिका सीधी हो और अनामिका के तीसरे पोर से छोटी व नुकीली नहीं हो। हृदय रेखा गुरु व शनि के मध्य से आरंभ हो। लचीलापन होने के साथ सुंदर भी हो और उसका दूसरा पोर लंबा हो। विवाह रेखा स्पष्ट, सुंदर, सीधी, पतली व दोष रहित हो। गुरु पर्वत पूर्ण विकसित हो और उस पर (ग) या (’) चिह्न होना चाहिए। शुक्र क्षेत्र भी विकसित हो। मस्तिष्क रेखा मंगल को स्पर्श करती हो व लंबी हो। हाथ मुलायम व नरम हो। तर्जनी व अनामिका समान हो। यदि भाग्य रेखा चंद्र क्षेत्र से आरंभ हो तो शुभ होती है। मंगल रेखा स्पष्ट व दोष रहित हो। वर कन्या शाखा नीचे की तरफ आकर सूर्य रेखा को काटती हो तो जीवन साथी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ध्यान देने योग्य बातें यदि विवाह रेखा से एक शाखा निकलकर ऊपर की ओर सूर्य पर्वत पर जाती हो तो शुभ होती है। इसके अतिरिक्त यौन मेलापक, आर्थिक पक्ष, सामाज में सम्मान, स्वास्थ्य पक्ष, संतान पक्ष आदि का विश्लेषण भी हस्तरेखाओं के आधार पर किया जाता है। साथ ही ये रेखाएं आय की स्थिति भी बताती हैं। इस प्रकार हस्तरेखाओं के आधार पर मेलापक का विशेष महत्व है इस विधि से कुंडलियों का मिलान कर वर और कन्या के वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के उपाय बताए जा सकते हैं।