हस्तरेखा शास्त्री के लिए स्मरणीय तथ्य विजय कुमार हस्तरेखा शास्त्र के सिद्धांतों और नियमों को ध्यान में रखकर पूरी गहराई के साथ रेखाओं का विश्लेषण करने पर ही किसी विषय अथवा घटना के सही तथ्य का पता चल सकता है। हस्तरेखा का परीक्षण करने से पहले यह देख लेना चहिए कि हाथ साफ-सुथरे हों, उनमें किसी प्रकार का घाव आदि नहीं हो। हाथ की बनावट, आकृति, त्वचा, नाखूनों आदि का भी भलीभांति परीक्षण करना चाहिए। हाथों की बनावट का निरीक्षण रेखाओं की जानकारी से अधिक आवश्यक है। स हस्तरेखाविद को ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति का हस्त परीक्षण करते समय वहां कोई दूसरा न हो अन्यथा वह जीवन की किसी ऐसी घटना के बारे में नहीं बताएगा जिसे व्यक्त करने में उसे शर्म महसूस हो। सहस्त परीक्षण करते समय हस्तरेखाविद को जातक की मानसीक स्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए। स हाथ दिखाते समय व्यक्ति का मुंह पूर्व की तरफ हो और देखने वाले का उत्तर की तरफ। स हस्तरेखाविद को हाथों की बनावट का ज्ञान भली भांति होना चाहिए। हाथ की रेखाओं से महत्वपूर्ण उसकी बनावट होती है। किसी वर्गाकार हाथ पर ढलवां मस्तिष्क रेखा का फल नुकीले या दार्शनिक हाथ की मस्तिष्क रेखा से भिन्न होता है। स हस्तरेखा शास्त्र को मनोरंजन का साधन नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यह एक गूढ़ विषय है। स रेखाओं का अध्ययन करने के साथ-साथ ग्रहों के पर्वत तथा अन्य चिह्नों का भी अध्ययन करने के बाद फलादेश करना चाहिए। हाथों के रंग आदि का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। स ज्योतिषी या हस्तरेखाविद को चाहिए की वह व्यक्ति को पूरे विश्वास में लेकर फलादेश करे। कोई ऐसी बात न कहे जिससे उसे ठेस पहुंचे या जो उसके धर्म के विरुद्ध हो। स फलादेश करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्ति को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो, उसके घरेलू जीवन को आधार बना कर फलादेश नहीं करना चाहिए। हस्तरेखाविद व्यक्ति को हर तरह से संतुष्ट रखने का प्रयास करे। ऐसा करने से वह पूरा सहयोग करेगा। स हस्तरेखा विद को अमीर-गरीब जात-पात से ऊपर उठकर लोगों का अपने ज्ञान से कल्याण करना चाहिए। इस तरह अगर एक हस्तरेखाविद इन सिद्धांतों और विषयों को याद रखें तो सही फलादेश कर सकने में समर्थ हो सकता है।