शिव आदि देव हैं। फिर भी भोले हैं। इस चलायमान जगत के आदि देवता परमात्मा हैं। वायु पुराण के अनुसार शिव ‘‘बीजी’’ हैं जबकि ब्रह्मा, विष्ण् ाु बीज योनि। इन दोनों की स्तुति से कालांतर में ‘‘शार्व’’ नामधारी हुए और विष्णु के अर्धशरीर धारण से हरिहर हुए। देव व दानव के समान रूप से पूज्य शिव नीलकंठ कहलाए। शिव कौन हैं?
इस पर चिंतन करने से पूर्व, सृष्टि निर्माण को जानना आवश्यक है। हमारे वेद, शास्त्र आदि पुरातन ग्रंथों में स्पष्टतः वर्णित है कि सूर्य के घूमते रहने के कारण उससे कई पिंड निकलकर ब्रह्मांड में बिखर गए। उनमें एक पृथ्वी भी है। किसी लिजलिजे पदार्थ का कोई गोला जब बहुत द्रुत गति से अपने ही केंद्र बिंदु पर घूमता हो, तो निश्चित रूप से उससे कुछ पिंड टूटकर बाहर आ जाएंगे और स्वकेंद्रित होकर घूमते हुए गोले की आकर्षण परिधि में मूल गोले से निश्चित दूरी पर उसके चारों ओर चक्कर लगाते रहेंगे। पृथ्वी के निर्माण में भी कुछ ऐसा ही है।
यह वैज्ञानिक आधार है और तर्क की संभावनाएं नगण्य हैं। किसी लिजलिजे पदार्थ का गोला एकदम सुडौल गोल नहीं होता, उस गोलाकार पिंड में एक स्थान गोले की परिधि से ऊंचा, उठा हुआ होता है जो हमारी पृथ्वी का हिमालय और कैलाश क्षेत्र है। यही स्थान सबसे अंत में सूर्य से अलग हुआ होगा।
जैसे एक फल जब डाल से अलग किया जाता है तो उसमें एक बिंदु होता है जहां से उस पूरे फल में वृक्ष का पोषक तत्व प्रविष्ट होता है और उसे जीवित रखता है और उस फल में बीज का निर्माण करता है। उस उभरे हुए क्षेत्र को हमारे मनीषियों ने कैलाश नाम दिया। समागम से जीवों की उत्पत्ति होती है। कैलाश क्षेत्र हमारे मनीषियों का उद्गम क्षेत्र है और शिव उसके आदि देवता हैं।
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
अर्थात शिव ही सत्य है, अति सुंदर है और कल्याण् ाकारी है। ब्रह्मांड से पृथ्वी पिंड में जो ध्वनि प्रवाहित हुई वह ॐकार थी। ॐ शब्द में मनुष्य, पृथ्वी और ब्रह्मांड को एकाकार करने की भावना निहित है। वैसे ही जैसे बीज, फल और वृक्ष तीनों का समन्वय सृष्टि का स्वरूप है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वर्णन जन्मदाता, पालनकर्ता और संहारक के रूप में हुआ है। जब तक किसी पात्र में रखा हुआ कोई सामान वहां से हटाया नहीं जाएगा, वहां दूसरे को जगह नहीं मिल सकती है। जब तक हम नहीं हटेंगे, दूसरे का अस्तित्व नहीं बनेगा। अतः शिव एक शिव आदि देव हैं। फिर भी भोले हैं। इस चलायमान जगत के आदि देवता परमात्मा हैं।
वायु पुराण के अनुसार शिव ‘‘बीजी’’ हैं जबकि ब्रह्मा, विष्ण् ाु बीज योनि। इन दोनों की स्तुति से कालांतर में ‘‘शार्व’’ नामधारी हुए और विष्णु के अर्धशरीर धारण से हरिहर हुए। देव व दानव के समान रूप से पूज्य शिव नीलकंठ कहलाए। भौतिक तीनों शूलों को हरने वाले शिव त्रिशूलधारी बने। सुगंधित पुष्पों को छोड़ बेल पत्र और मदार पुष्प से अति प्रसन्न शिव आशुतोष हुए।
वह एक ओर प्रलयंकर तो दूसरी ओर भोले भंडारी हैं। कामदेव को राख करने वाले, कालों के काल महाकाल हैं शिव। सृष्टि के परमकारक ईशान शिव ही हैं। ऐसा शिव पुराण में वर्णित है। लिंग पुराण के अनुसार लिंग शब्द ‘लम्य’ से आया अर्थात अपने में लीन करने वाला, समाहित करने का कारक तत्व। वह पुरुषात्मक तथा देवी वेदी स्वरूपा हैं- ‘‘लिंग वेदी महादेवी, लिंग साक्षान्महेश्वर।’’
इनकी आराधना-स्तुति में मानव सक्षम हो सकता है लेकिन त्रिकाल द्रष्टा के हर रहस्य को खोलना उसके लिए संभव नहीं है। पुराणों में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु की नाभि से जन्म लेने के बाद ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि वही विश्व के रचयिता हैं।
विष्णुजी ने कहा कि यह उनका भ्रम है, योगदृष्टि से इसे समझने का प्रयत्न करें। ब्रह्माजी ने जब ऐसा किया तो उन्हें त्रिशूलधारी दिखे। तब विष्णुजी ने उन्हें ज्ञान कराया कि ये ही देवाधिदेव महादेव हैं, सबको जन्म देकर उनका भरण-पोषण करते हैं और अंत में सब इन्हीं में विलय हो जाते हंै।
If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi