शिवम शिव शक्ति जब कृपा करते हैं, जीव सभी पाशों से मुक्त होकर सभी धर्मों, सभी रहस्यों को देख व समझ लेता है। कहीं विरोध नहीं, किसी का अपमान नहीं, कोई धर्म छोटा नहीं, सभी देव-देवी पूजनीय हैं। शिव इस सृष्टि का परम सत्य हैं, और शिव सुंदर हैं। उनकी आराध्य त्रिपुर सुंदरी ही माता भुवनेश्वरी हैं। शिव ‘मृत्युंजय’ हैं, तो शक्ति काली, बगला, तारा, भुवनेश्वरी हैं। निराकार ब्रह्म जब साकार रूप धारण करता है, जब वह महाशून्य से प्रकट होकर सगुण रूप धारण करता है, तो शिव कहलाता है और उसकी शक्ति मां भगवती ही मूल आदि शक्ति के नाम से विख्यात है।
जीव कई पाशों में बंधा है, वह आत्मदर्शन की चाह रखता है, आत्मा-परमात्मा के दर्शन की चाह रखता है, शिव और शक्ति साकार रूप धारण कर जीव का कल्याण करते हैं, उसकी अभिलाषा पूरी करते हैं। राम यही हैं, श्याम भी यही हैं- लीलाभेद के कारण अनेक रूपों में लीला करते हैं। मातृसत्ता की कृपा के बिना यह सृष्टि नहीं बन सकती, इसलिए संसार में जहां ‘म’ है वहीं पूर्णता है। ¬ में ‘म’, राम में ‘म’, श्याम में ‘म’, प्रेम में ‘म’, आत्मा-परमात्मा में ‘म’, परंतु परमात्मा में दो ‘म’ शिव शक्ति की एकता का बोध कराते हंै।
भगवती के किसी भी बीजाक्षर में ‘म’ का उच्चारण बिंदु के बदले करने से विशेष मंत्र चैतन्य होता है। यह सृष्टि काल आधारित है इसलिए शिव महाकाल प्रथम और आद्या महाकाली प्रथमा ही मूल शक्ति हैं। शिव के अनेक रूप हैं जो महाकल्याणकारी हैं।
वहीं आद्या शक्ति भी नाना रूपों में लीला करती हैं। हर जीवात्मा के शरीर आधार चक्र में शक्ति स्थापित हैं और सिर के ऊपर सहस्रार में शिव बैठे हैं परंतु वे नीचे नहीं उतरते, स्वयं शक्ति ही सारे चक्रों का भेदन कर उनसे जा मिलती हैं। शिव परम तत्व हैं परंतु उन्हें भी शक्ति प्रदान करने वाली, साथ रहने वाली आदि जगदंबा ही पर ब्रह्म परमेश्वरी हैं। शिव गुरु हैं, परमात्मा हैं।
बिना इनकी कृपा के शक्ति को कौन जानेगा। जब जीवात्मा में शिव तत्व का प्रवेश होता है तभी जीव शक्ति को समझ पाता है। वेद, पुराण, तंत्र, शास्त्र आदि को पढ़कर अध्यात्म को नहीं समझा जा सकता है। इससे ज्ञान का विकास होगा, समझने की लालसा जगेगी, जानने की, देखने की तड़प पैदा होगी परंतु यह तो गुरु मार्ग की साधना है, शिव कृपा करेंगे तभी सही रास्ता मिलेगा।
वैसे शिव शक्ति के पूर्ण रहस्य को जीव कभी नहीं जान सकता, वे बुद्धि, दृष्टि, ज्ञान से भी परे हैं। शिव के अर्धनारीश्वर रूप में शक्ति वाम भाग में विराजमान हैं, वहीं हरिहर रूप में वाम भाग में विष्णु विराजमान हैं। हर पुरुष में स्त्री छुपी होती है। उसी तरह हर स्त्री में पुरुष छुपा होता है। शक्ति भिन्न-भिन्न रूप धारण कर सृष्टि का संचालन करती है।
शक्ति को हर जीव संभाल नहीं पाता परंतु शिव प्रेम हैं, परमात्मा हैं, सब कुछ हैं, इसी कारण शिव पिता व शक्ति माता हैं। दोनों के प्रति प्रेम ही उच्च स्थिति प्राप्त कराता है। जीवन में शिव तत्व का विकास हो, उनका नियम, उनका गुण आ जाए, तो शक्ति स्वयं शिव से मिलन करती हैं- यही तो रहस्य है कुंडलिनी शक्ति का।
साधक जब निष्ठापूर्वक ध्यान, योग, जप करता है, तो कुंडलिनी सारे चक्र को भेदकर शिव से मिलन कर ही लेती है। शिव आरै शक्ति क े अनके रूप धारण करने का यही रहस्य है। व्यक्ति को शिव और शक्ति की उपासना का ज्ञान गुरु के मार्ग दर्शन से प्राप्त होता है। महाकाल महाकाली के नीचे लेटे हैं, शिव के लेटने का मूल कारण शक्ति के उग्र रूप से सृष्टि को बचाना है, वहीं कालिका के सौम्य रूप से सृजन कराना है।
शिव को नीचे देख काली की उग्रता समाप्त हो गई। जो शिव के भक्त हैं उन्हें शक्ति को भी प्रसन्न करना पड़ेगा और जो शक्ति के उपासक हैं, उन्हें भी शिव को पूजना पड़ेगा- यही तो आखिरी सत्य है। उपासना दक्षिण तथा वाम दोनों पद्ध तियों से की जाती है। तंत्र शास्त्र कहता है कि वाम मार्ग योगियों के लिए भी कठिन है।
यदि गुरु योग्य, तपस्वी व सच्चा नहीं हो, तो वाचाल, मांसाहारी, शराबी बन साधक भटक जाएगा। अतः दक्षिण मार्ग को अपनाना उचित है। आदिशक्ति मूल महाशक्ति कुमारी रूप में हैं। वही पार्वती, नवदुर्गा, दशमहाविद्या हैं, सीता, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती भी वही हैं। शिव शक्ति जब कृपा करते हैं, जीव सभी पाशों से मुक्त होकर सभी धर्मों, सभी रहस्यों को देख व समझ लेता है।
कहीं विरोध नहीं, किसी का अपमान नहीं, कोई धर्म छोटा नहीं, सभी देव- देवी पूजनीय हैं। शिव इस सृष्टि का परम सत्य हैं, और शिव सुंदर हैं और उनकी आराध्य त्रिपुर सुंदरी ही माता भुवनेश्वरी हैं। शिव मृत्युंजय हैं, तो शक्ति काली, बगला, तारा, भुवनेश्वरी हैं। सभी शिव या शक्ति रूपों की पूजन पद्ध तियां, यंत्र मंत्र अलग-अलग हैं।
वे साधक के कर्मानुसार फल देते हैं। शिव शक्ति कलातीत, शब्द ज्ञान से परे हैं। परमात्मा का पवित्र प्रणव बीज ¬ है। वहीं शक्ति का प्रणव ह्रीं है। शिव शक्ति के रहस्य की एक छोटी अनुभूति शिव का बीजाक्षर ह्रां, ह्रीं है। वहीं शक्ति के बीजाक्षर ह्रीं, क्रीं, श्रीं ऐं, क्लीं आदि हैं। परंतु शिव ह्रां में राम ह्रीं में हरी (विष्णु) क्लीं में काली कृष्ण, श्रीं में लक्ष्मी, ऐं में गुरु और सरस्वती यही तो परम रहस्य है शिव शक्ति का। शिव का अपमान शक्ति सह नहीं पाईं, तो दक्ष यज्ञ मृत्यु यज्ञ बन गया।
वहीं शक्ति का वियोग शिव सह नहीं पाए और शव लेकर विलाप करते हुए भटकने लगे। सृष्टि का नाश होने के भय से विष्णु को आना पड़ा। शिव शक्ति का प्रेम ही ऐसा है कि ये एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते। शक्ति मूल महाशक्ति हैं। शक्ति एक उपासक हैं, राम के उपासक हैं या श्याम के, गणेश के या हनुमान अर्थात् शिव के किसी भी रूप के उपासक हैं।
सभी के केंद्र में साथ शक्ति थी और वहां भी शिव हनुमान के रूप विद्यमान थे। यही तो लीला है। शिव त्रिकोण ऊध्र्वमुख है, वहीं शक्ति त्रिकोण अधोमुख है। शिव शक्ति की लीला तो परम आनंद प्रदान करती है। काली के नीचे शिव, तारा के माथे पर शिव, बगला के आगे शिव। वियोग में शक्ति आंसू बहाती हैं, वहीं सीता शोक में विलाप कर रही हैं, वहीं पार्वती घोर तप कर रही हैं, राम रो रहे हैं, श्याम भी रो रहे हैं और सती के लिए शिव भी रो रहे हैं।
भक्त भी रोते हैं, साधु भी रोते हैं, पापी भी रोते हंै अपनी बर्बादी पर। माता-पिता भी रोते हैं संतान के लिए, संतान भी रोती है, सभी रोते हैं। परंतु जो शिव शक्ति के लिए रोता है, वही इस जीवन में कुछ पा सकता है। शिव सहस्रार में मूल शक्ति के लिए रोता है तभी तो शक्ति दौड़कर भागी-भागी जीव के लिए शिव के पास पहुंच जाती हैं।
नकली आंसू से कुछ नहीं होगा, शिव ही भाव देंगे, आंसू देंगे, शरण देंगे। तभी कुछ हो पाएगा। शिव शीघ्र सभी कुछ प्रदान करते हैं। शिव पिता हैं, गुरु हैं, परमात्मा हैं। शिव सिर्फ अमतृ दते े हैं, लेते हैं हमारा विष, हमारे पाप, हमारे ताप।
तभी तो हम शुद्ध बुद्ध होकर परम पद को प्राप्त करते हैं, और शक्ति तो सब के पीछे, सबके कल्याण हेतु तत्पर रहती हैं। वह सबकी स्वामिनी हैं और जो शक्ति हैं वही शिव हैं और जो शिव हैं वही शक्ति हैं। दोनों में कोई भेद नहीं है। इन दोनों के परम लाड़ले हैं गणेश और कार्तिकेय।
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