वैदिक ज्ञान एवं शिक्षा
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वैदिक ज्ञान एवं शिक्षा  

आभा बंसल
व्यूस : 3558 | जुलाई 2004

अणिमा महिमा चैव गरिमा लघिमा तथा। प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्टसिद्धयः।।
अर्थात्
अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व, ये आठ सिद्धियां हैं। अणिमा - छोटा आकार धारण करना, महिमा - बड़ा आकार धारण करना, गरिमा - भारीपन प्राप्त करना, लघिमा - एकदम हल्का हो जाना, प्राप्ति - असंभव शक्ति प्राप्त करना, जैसे आकाश में तैरना, पानी में चलना आदि, प्राकाम्य- अपनी इच्छा से आकृति, रूप, वस्तु आदि का परिवर्तन करने में समर्थ होना, ईशित्व - संपूर्ण पदार्थों पर शासन होना एवं वशित्व - किसी को भी इच्छानुसार नियंत्रित करने की क्षमता प्राप्त कर लेना आदि सिद्धियों के प्राप्त कर लेने की चर्चा वेदों में अनेक स्थानों पर मिलती है।

इसके अतिरिक्त पक्षी आदि की बोली समझना, किसी के मन की बात जान लेना, कर्ण पिशाचिनी सिद्ध होना आदि अनेक सिद्धियां शास्त्रों में मिलती हैं। महर्षि पातंजलि के लिखे योग सूत्र नामक ग्रंथ में इस प्रकार की चमत्कारिक सिद्धियों के बारे में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। तंत्र शास्त्रों में विभिन्न देवताओं की विभिन्न प्रकार की साधनाओं के द्वारा प्राप्त की जा सकने वाली सिद्धियां उल्लिखित हैं। श्री हनुमान अष्ट सिद्धियों के दाता हैं, जैसा कि हनुमान चालीसा के श्लोक अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता से पता चलता है। अतः कोई भी सिद्धि प्राप्त करने के लिए हनुमान जी की आराधना आवश्यक है।

आज के युग में सिद्ध पुरुष के दर्शन दुर्लभ हैं। उनको अपना गुरु बना लेना तो नामुमकिन ही है। यदि सिद्ध पुरुष हैं भी, तो वे अपने को इतना छुपा लेते हैं कि साधारण मनुष्य उनके बारे में कुछ नहीं जान पाता। अतः इस गूढ़ विद्या को प्राप्त करना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि इस विद्या का विलय हो चुका है। भारत में अभी भी अनेक सिद्ध पुरुष होंगे, जो इन अष्ट सिद्धियों के ज्ञाता हैं।


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भारत वैदिक युग में विज्ञान के शिखर पर था। इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। उदाहरण के लिए विमान इस युग में बीसवीं शताब्दी की देन है, जबकि श्री राम लंका को जीतने के बाद वहां से अयोध्या विमान द्वारा ही आये थे। श्री तुलसी दास 16वीं शताब्दी में स्पष्ट लिख गये कि पुष्पक विमान के चलने से बहुत कोलाहल हुआ; श्री राम सीता जी को ऊपर से मार्ग में आने वाले स्थानों का वर्णन करते गये।

इसी प्रकार श्री राम ने एक तीर को, जो उन्होंने समुद्र को सोखने के लिए निकाल लिया था, अफी्रका की ओर फेंका, जिससे सारे जीव-जंतु जल गये एवं वहां मरुस्थल का निर्माण हुआ। शायद यह अणु बम ही रहा होगा। संजय ने कुरूक्षेत्र युद्ध की सारी जानकारी धृतराष्ट्र को महल में दी। अवश्य ही यह टेलीविजन का कोई रूप रहा होगा। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई से भी यही पता चलता है कि वैदिक काल में भारत अवश्य ही विश्व शक्ति रहा होगा। उस समय ज्योतिष बहुत विकसित था।

लेकिन जैसे विश्व युद्ध के बाद एक सभ्यता ही लुप्त हो जाती है, उसी प्रकार शायद महाभारत के बाद सभी वैज्ञानिक, या ज्योतिष ज्ञान प्रायः लुप्त हो गये। यही कारण है कि आज ज्योतिष उतना सटीक नहीं रह गया, जितना कि इस पर विश्वास करने के लिए होना चाहिए। हाल ही में अमेरिका में एक खोज हुई है कि शेयर बाजार के मूल्यों का ऊपर-नीचे होना एक संयोग नहीं है, वरन् गणित की इकाई द्वारा पहले से इसके बारे में जाना जा सकता है। इस खोज से यह सिद्ध होता है कि उतार-चढ़ाव किसी से संचालित होता है और केवल संयोग नहीं होता है। प्रश्न केवल यह है कि भारत में हजारों वर्ष पूर्व खोयी विद्या को आज हम कैसे ढंूढंे़? इसके लिए यह आवश्यक है कि इस विषय पर शोध हो। भारत सरकार ने इस बात को स्वीकार किया है कि इस विद्या को दोबारा ढूंढ निकालना होगा। यह तब ही संभव है, जब अधिक से अधिक व्यक्ति इस विद्या को सीखें।

शायद 50 या 100 वर्ष पूर्व हम यह अनुमान भी नहीं लगा सकते थे कि कभी कंप्यूटर इतने शक्तिशाली हो जाएंगे कि छोटे-छोटे काम के लिए भी मनुष्य इसे काम में लाएगा; या मनुष्य कभी पृथ्वी से चल कर दूसरे ग्रहों पर भी चला जाएगा, या एक बम से विश्व को तहसनहस किया जा सकता है, जबकि वेदों में इस प्रकार की चर्चाएं मिलती हैं। इसी प्रकार से यह भी आवश्यक नहीं है कि मनुष्य वेदों में लिखे गये इस दावे को कि किस प्रकार भविष्य बता दिया जाता था, ठीक मान ले। जब वेद के अन्य कथन सत्य हो सकते हैं, तो सटीक भविष्य बता देने का कथन भी अवश्य ही सत्य होगा। आज ज्योतिष के प्रति भावना श्रेष्ठ नहीं है। यह बात कुछ हद तक इसलिए सही है कि समाज में जितने विद्वान ज्योतिषी उपलब्ध हैं, उससे कहीं अधिक उनकी मांग है। जब विद्वान नहीं मिलते, तो अज्ञानी भी इसका फायदा उठा लेते हैं। बात वैसी ही है, जैसे गांव में चिकित्सक उपलब्ध नहीं होते, तो अनाड़ी भी डाॅक्टर बन जाते हैं। यह ज्योतिष हजारो वर्षों से चला आ रहा है। कोई भी असत्य हजारों वर्ष, बिना किसी कसौटी के, चल नहीं सकता। वैदिक ज्ञान भारत की एक शान रही है। ऐसा न हो कि विदेशी यहां का ज्ञान ले जा कर, उस पर अपनी मुहर लगा कर, हमें वापिस दें और तब हम जागें। इस ज्ञान को हमें ही सही प्रकार से जनोपयोगी बनाना है।

इन्हीं उद्देश्यों को ले कर अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ का गठन हुआ है एवं भारत के 40 से भी अधिक शहरों में ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र एवं वास्तु शास्त्र पढ़ाने का कार्यक्रम शुरू किया गया है। हमें विश्वास है कि यह प्रयास अवश्य ही एक नयी जागृति पैदा करेगा एवं भारत के कोने-कोने में वैदिक शिक्षा का अध्ययन कराया जाएगा। गुणवान अवश्य ही, शोध द्वारा, इस लुप्त विद्या को दोबारा से जनोपयोगी बनाएंगे।


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