भारतीय ज्योतिष के उपग्रह: मान्दि या गुलिक
भारतीय ज्योतिष के उपग्रह: मान्दि या गुलिक

भारतीय ज्योतिष के उपग्रह: मान्दि या गुलिक  

ओ.पी. शुक्ला
व्यूस : 25948 | जुलाई 2004

भारतीय ज्योतिष के आधार स्तंभ राशि, ग्रह और भाव हैं। एक दैवज्ञ का इनसे पूर्ण परिचय हो जाने पर किस कुंडली में कौन सा ग्रह कब कैसा प्रभाव उत्पन्न करेगा, इसका वह अध्ययन कर सकता है। किंतु जिस प्रकार खगोल शास्त्र में कुछ ग्रहों के कतिपय उपग्रह खोजे गये हैं, उसी प्रकार भारतीय ज्योतिष में भी नव ग्रहों में से प्रत्येक के एक-एक उपग्रह की सत्ता स्वीकार की गयी है। खगोल शास्त्र के उपग्रह जहां अपना-अपना स्वतंत्र और वास्तविक अस्तित्व रखते हैं

और नंगी आखों (जैसे चंद्रमा) अथवा दूरबीन की मदद से देखे जा सकते हैं, वहां भारतीय ज्योतिष के उपग्रह, आकाशीय पिंड न हो कर, कुछ गणित सिद्ध बिंदु (जैसे राहु एवं केतु) हैं, किंतु उनका मानव जीवन पर स्पष्ट प्रभाव माना गया है। दैवज्ञ वैद्यनाथ दीक्षित अपने ग्रंथ ‘जातक पारिजात’ में विभिन्न उपग्रहों का परिचय देते हुए लिखते हैं: क्रमशः काल परिधि घूमार्द्ध प्रहरा ह्वयाः। यमकंटक कोदंड मान्दि पातोपकेतवः।। अर्थात सूर्यादि नव ग्रहों के क्रमशः काल, परिधि, धूम, अर्धयाम, यमघंट, कोदंड, मांदि, पात तथा उपकेत- ये नौ उपग्रह हैं।


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बृहत् पाराशर होरा शास्त्रं में इन उपग्रहों को ‘अप्रकाश ग्रह’ कहा गया है। आचार्य मंत्रेश्वर ने ‘फलदीपिका’ के पच्चीसवें अध्याय के प्रथम श्लोक में, उपर्युक्त नव उपग्रहों को प्रणाम करते हुए, मांदि, अथवा गुलिक के विभिन्न भावों में स्थित फल की चर्चा की है। उन्होने लिखा है: ‘‘गुलिकस्य तु संयोगे दोषांसर्वत्र निर्दिशेत’’, अर्थात् गुलिक के संयोग से सर्वत्र दोष ही होते हैं, केवल छठे और ग्यारहवें भाव को छोड़ कर। गुलिक स्पष्ट करना: किसी भी स्थान के दिनमान में 8 का भाग देख कर प्रत्येक भाग में एक-एक उपग्रह की स्थिति मानी गयी है। आठवें खंड को निरीश माना गया है। जिस खंड का अधिपति शनि होता है, उसी में मांदि की स्थिति मानी गयी है।

प्रत्येक दिन के इन भागों के अधिपतियों की गणना उस दिन के वारेश से की जाती है, अर्थात् यदि रविवार का जन्म है, तो इस दिन पहले आठवें भाग का स्वामी सूर्य होगा, फिर चंद्र, मंगल, बुध आदि। स्पष्ट है कि रविवार के सातवें खंड का अधिपति शनि होगा और आठवां खंड निरीश होगा। यदि रात्रि के समय जन्म हो, तो प्रक्रिया में कुछ भेद हैं। रात्रि में जन्म होने पर दिनमान की तरह रात्रिमान के भी 8 भाग करें। रात्रि के प्रथम खंड के अधिपति का निर्धारण उस वार के वाराधिपति से पंचम ग्रह से करें; अर्थात् यदि रविवार को सूर्यास्त के पश्चात् किसी का जन्म हुआ है, तो रात्रिमान के पहले आठवें भाग का स्वामी सूर्य से पंचम, यानी बृहस्पति ग्रह होगा और तदनुसार इस रात्रि के तृतीय खंड का स्वामी शनि होगा और यहीं पर मांदि, अथवा गुलिक की स्थिति मानी जाएगी।

इसे निम्न चक्र से बड़ी आसानी से समझा जा सकता है: गुलिक ज्ञापन चक्र वार रवि सोम भौम बुध गुरु शुक्र शनि दिवा मांदि खंड 7 6 5 4 3 2 1 रात्रि मांदि खंड 3 2 1 7 6 5 4 जिस दिन का मांदि, या गुलिक स्पष्ट करना हो, तो यदि दिन का जन्म है, तो दिनमान में और यदि रात्रि का जन्म है, तो रात्रिमान में आठ का भाग दें। जो लब्ध आवे, उसमें उपर्युक्त चक्र में लिखित उस दिन के अंक से गुणा कर देने पर गुलिक का इष्ट काल ज्ञात हो जाता है।


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इस इष्ट काल से लग्न साधन की प्रक्रिया के अनुसार जो लग्न निकलेगा वह गुलिक खंड के अंतिम बिंदु का लग्न स्पष्ट होगा। इस संदर्भ में ‘वृहत पाराशर होरा शास्त्रम्’ का निम्न श्लोक विशेष रूप से दृष्टव्य है: ‘‘गुलिकारम्भ काले यत् स्फुटं यज्जंम कालिकम्। गुलिकं प्रोच्यते तस्ताम् जातकस्य फल वदेत्।। अर्थात् गुलिक लग्न का निर्णय गुलिक काल के प्रारंभ बिंदु को गुलिक का इष्ट काल मान कर गुलिक इष्ट की गणना करनी चाहिए। उदाहरण- जन्म तिथि 19 नवंबर 1917, समय 11ः11 रात्रि, स्थान-इलाहाबाद, स्थानीय सूर्योदय 06ः22, स्थानीय सूर्यास्त 5ः04, दिनमान 10 घं. 42 मि. दिन सोमवार। क्योंकि जन्म सोमवार की रात्रि का है, अतः रात्रिमान 13 घं. 18 मि. के आठ भाग किये प्रत्येक खंड 1 घं. 41 मिनट का होगा। क्योंकि रात्रि में जन्म होने पर प्रथम खंड का स्वामी उस वाराधिपति से पांचवा ग्रह होता है,

अतः सोमवार की रात्रि के प्रथम खंड का स्वामी चंद्रमा से पंचम ग्रह, यानी शुक्र होगा। स्पष्ट है शनि यहां द्वितीय खंड का स्वामी होगा। अतः सूर्यास्त के समय में यदि रात्रिमान कि आठवें भाग को जोड़ दिया जाए, तो रात्रि के प्रथम खंड की समाप्ति एवं द्वितीय खंड का प्रारंभिक बिंदु प्राप्त हो जाएंगे। इसका लग्न स्पष्ट करने पर गुलिक लग्न प्राप्त हो जाएंगे। प्रस्तुत उदाहरण में गुलिक का इष्ट काल सूर्यास्त $ रात्रिमान का 1/8, अर्थात् 16 घं. 16 घं. 59 मि. $ 1 घं. 41 मि. = 18 घं. 40 मि., अर्थात् 6ः40 रात्रि होगा। ध्यान दें, यह स्थानीय समय होगा। यह रात्रि के द्वितीय खंड का प्रारंभिक बिंदु होगा। इसपर गुलिक स्पष्ट 01ः28ः29ः48 होगा; अर्थात् गुलिक की स्थिति वृष राशि में मानी जाएगी, जो इस कुंडली का एकादश भाव होगा।


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इस प्रकार जो कुंडली बनेगी वह कुछ इस प्रकार है: इस कुंडली में गुलिक स्पष्ट क्योंकि 01ः28ः29ः48 है, अतः गुलिक थी। कुंडली की वृष राशि एकादश भाव में दर्शायी जाएगी। यह भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जन्मकुंडली है। लग्न शुद्धि में गुलिक लग्न का उपयोग: ज्योतिष शास्त्र में गुलिक लग्न द्वारा जन्म लग्न की शुद्धता की जांच करना बताया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार यदि गुलिक लग्न से जन्म लग्न राशि विषम स्थान में हो, तो पूर्व साधित लग्न को शुद्ध मानना चाहिए, अन्यथा उसकी शुद्धि का उपाय करना चाहिए। श्रीमती इंदिरा गांधी की कुंडली में जन्म लग्न गुलिक लग्न से तृतीय राशि में है। अतः उपर्युक्त कुंडली शुद्ध माननी चाहिए। फल कथन: गुलिक, अथवा मांदि के फल के संदर्भ में फलदीपिकाकार ने लिखा है:

‘‘गुलिकस्य तु संयोगे दोषांनसर्वत्रा निर्दिशेत्, गुलिक के संयोग से प्रायः अशुभ फल ही मिलते हैं। शास्त्रों में भावानुसार मांदि, अथवा गुलिक की स्थिति के निम्न फल कहे गये हैं: Û यदि गुलिक लग्न में हो, तो जातक कृश, चोर, क्रूर, विनयरहित, क्रोधी, मूर्ख और भीरु प्रकृति का होता है। ऐसा जातक शास्त्र विरोधी, विषय वासना में लिप्त तथा लंपट स्वभाव का होता है। Û जन्मकुंडली में मांदि यदि द्वितीय स्थान में हो, तो जातक कटुभाषी तथा व्यर्थ का वाद-विवाद करने वाला होता है। जातक के पास धन-धान्य की कमी रहती है तथा वह प्रायः घर से दूर रहता है।

Û यदि गुलिक तीसरे घर में हो, तो जातक घमंडी, क्रोधी और लोभी होता है। ऐसे व्यक्ति को भाई-बहन का सुख बहुत कम मिलता है। ऐसा व्यक्ति प्रायः अकेले रहना पसंद करता है तथा अत्यंत मद प्रिय (घमंडी, अथवा व्यसनी, अथवा दोनों) होता है। Û जिसकी जन्मकुंडली में मांदि चतुर्थ भाव में स्थित हो, वह व्यक्ति प्रायः बंधु एवं धनहीन होता है। ऐसे व्यक्ति को वाहन सुख भी बड़ी कठिनाई से ही मिल पाता है। Û यदि गुलिक पांचवें घर में हो, तो जातक दृढ़ बुद्धि होता है। उसके निर्णय क्षण-क्षण बदलते हैं तथा वह किसी एक बात पर दृढ़ नहीं रह पाता। ऐसे व्यक्ति की नैतिक मूल्यों पर भी आस्था नहीं होती तथा वह अल्प संतान वाला होता है। 6. जिसके छठे घर में गुलिक हो, वह बहुत शूरवीर होता है तथा उसके शत्रु उससे प्रायः पराजित ही रहते हैं। ऐसा व्यक्ति भूत विद्या का शौकीन होता है।


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जो व्यक्ति डाकिनी, शाकिनी, यक्षिणी, भूत-प्रेत आदि की आराधना कर उनसे काम निकालते हैं, उन्हें भूत विद्या का प्रेमी कहा जाता है। Û यदि गुलिक सातवें घर में हो, तो जातक कलह प्रिय तथा समाज से द्वेष करने वाला होता है। ऐसा जातक अनेक स्त्रियों से संबंध स्थापित करता है। वह कामी और कृतध्न दोनों ही होता है। Û यदि गुलिक अष्टम् भाव में हो, तो जातक का शरीर छोटा होता है। चेहरे तथा नेत्रों में कोई अस्वाभाविकता होती है। तात्पर्य यह है कि ऐसे जातक के शरीर मेें कोई दोष, अथवा विकलांगता अवश्य होती है। Û यदि किसी कुंडली के नवम भाव में गुलिक स्थित हो, तो जातक अपने गुरु तथा पुत्र से हीन होता है।

यहां गुरु का तात्पर्य पिता से भी है। Û यदि दशम घर में गुलिक हो, तो जातक अशुभ कर्म करने वाला होता है। उसके हाथ एवं शरीर से दान, धर्म, यज्ञादि जैसे शुभ कार्य नहीं होते। Û एकादश भाव का गुलिक जातक को सुखी, धनी, अति तेजस्वी तथा कांतिवान बनाता है। उसे पुत्र सुख भी प्राप्त होता है। Û यदि मांदि द्वादश भाव में हो, तो जातक व्यर्थ भ्रमण करने वाला, अपव्ययी तथा व्यसनी होता है। ऐसा जातक विषय सुख से रहित तथा दीन और निर्धन होता है। इसी प्रकार सामान्य नियम यह है कि गुलिक जिस किसी ग्रह के साथ बैठता है, वह प्रायः उस ग्रह के कारकत्व को दूषित करता है। इसलिए शास्त्रों में कहा गया है:

Û यदि गुलिक सूर्य के साथ हो, तो जातक के पिता के लिए अरिष्टकारी। Û यदि चंद्रमा के साथ हो, तो जातक की माता को कष्ट। Û यदि मंगल के साथ हो, तो भाइयों से विरोध, अथवा वियोग । Û यदि बुध के साथ हो, तो जातक को उन्माद, हिस्टीरिया, पागलपन जैसे मनोरोग। Û यदि बृहस्पति के साथ हो, तो जातक धार्मिक कम, पाखंडी अधिक। Û यदि शुक्र के साथ हो, तो जातक नीच स्त्रियों में रत, कामी, निर्लज्ज। Û यदि शनि के साथ हो, तो कुष्ठ जैसी व्याधियों से पीड़ित। Û यदि राहु के साथ हो, तो विष रोगी तथा Û यदि केतु के साथ हो, तो जातक अग्नि से पीड़ित होता है।


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जिस दिन बालक का जन्म हुआ है, उस दिन गुलिक यदि त्याज्य काल में पड़े, तो जातक, राजपुत्र ही क्यों न हो, भीख मांगता है। तात्पर्य यह है कि गुलिक के त्याज्य काल में पड़ने का फल बड़ा गर्हित है। नक्षत्रों के त्याज्य काल इस प्रकार हैं: नक्षत्र त्याज्य काल नक्षत्र त्याज्य काल

1. अश्विनी 50 से 54 घटी

2. भरणी 24 से 28 घटी

3. कृतिका 30 से 34 घटी

4. रोहिणी 40 से 44 घटी

5. मृगशिरा 14 से 18 घटी

6. आद्र्रा 21 से 25 घटी

7. पुनर्वसु 31 से 34 घटी

8. पुष्य 20 से 44 घटी

9. अश्लेषा 32 से 36 घटी

10. मघा 30 से 34 घटी

11. पू.फा. 20 से 24 घटी

12. उ.फा. 18 से 22 घटी

13. हस्त 21 से 25 घटी

14. चित्रा 20 से 24 घटी

15. स्वाती 14 से 18 घटी

16. विशाखा 14 से 18 घटी

17. अनुराधा 10 से 14 घटी

18. ज्येष्ठा 14 से 18 घटी

19. मूल 56 से 60 घटी

20. पू.षा. 24 से 28 घटी

21. उ.ष. 20 से 24 घटी

22. श्रवण 10 से 14 घटी

23. धनिष्ठा 10 से 14 घटी

24. शताभिषा 18 से 22 घटी

25. पू.भा. 16 से 20 घटी

26. उ.भा. 24 से 28 घटी

27. रेवती 30 से 34 घटी

उपर्युक्त के अलावा Û व्यतिपात एवं वैघृति योग Û भद्रा तथा विष्टिकरण Û क्षय और वृद्धि तिथियां Û कुलिक, अर्धयाम, पात योग, विष्कुंभ तथा वज्र योग Û परिध योग का पूर्वार्ध Û गंड की छह तथा Û व्याघात योग की 9 घटियां भी त्याज्य हैं। गुलिक और आयुर्दाय: जातक की आयु गणना के लिए सूर्य, चंद्र, गुलिक एवं लग्न से प्राण, देह तथा मृत्यु स्फुट निकालंे और फिर प्राण तथा देह स्फुट का योग करें।

यह योग यदि मृत्यु स्फुट से अधिक हो, तो जातक को दीर्घायु जानना चाहिए। यदि मृत्यु स्फुट देह एवं प्राण स्फुट के योग से अधिक हो, तो जातक की अकाल एवं अनायास मृत्यु जाननी चाहिए। स्व. इंदिरा गांधी की कुंडली में मृत्यु देह और प्राण स्फुट के योग से अधिक था, इसलिए उनकी अप्रत्याशित मृत्यु हुई थी।

प्राण, देह एवं मृत्यु स्फुट निम्न प्रकार निकालें: Û प्राण स्फुट = लग्न स्पष्टांश × 5 $ गुलिक स्पष्ट Û देह स्फुट = चंद्र स्पष्टांश × 8 $ गुलिक स्पष्ट Û मृत्यु स्फुट = गुलिक स्पष्ट × 7 $ सूर्य स्पष्टांश उपचार: अरिष्ट की निवृत्ति एवं इष्ट की प्राप्ति के लिए भारतीय ज्योतिष में अनेक प्रकार के उपाय एवं उपचार बताये गये हैं। गुलिक के उपचार के लिए महर्षि पराशर लिखते हैं: ‘दीप शिवालये भक्त्या गोघृतेन प्रदापयेत’ अर्थात् भगवान शिव के मंदिर में सांय गो घृत का दीपक जलाएं। अन्य उपायों में सूर्य तथा विष्णोपासना भी गुलिक प्रदत्त दोषों को शांत करती है।


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प्रमाण गुलिक: गुलिक स्पष्ट के ठीक 6 राशि आगे स्थित राशि में गुलिक स्पष्ट के समान अंश कला-विकला में भी गुलिक जैसे ही दुष्प्रभावों की स्थिति मानी गयी है। इसे भारतीय ज्योतिष में प्रमाण गुलिक कहा गया है। गुलिक तथा प्रमाण गुलिक दोनों के ही राश्याधीश एवं नवांशपति अपनी-अपनी महादशाओं तथा अंतर्दशाओं में अशुभ एवं मारक फल देने वाले माने गये हैं।

गुलिक प्रदत्त राजयोग: गुलिक का राश्याधीश, अथवा नवांशपति, अथवा दोनों, यदि जन्मकुंडली के कंेद्र, अथवा त्रिकोण में हांे, स्वराशि, अथवा उच्चराशि के हों, तो, गुलिक प्रदत्त दोष समाप्त हो कर, राजयोग फलित होता है। श्रीमती इंदिरा गांधी की कुंडली में गुलिक का नवांशपति सुध पंचम त्रिकोण है तथा राश्याधीश स्वनवांश में है। अतः राजयोग फलित हुआ है। फिर भी मारकत्व दोष की निवृत्ति नहीं होगी।



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