भविष्यवाणियां करने की अनेक पद्धतियां हैं, जैसे टैरो कार्ड, अंक शास्त्र, हस्त रेखा, पाराशरी पद्धति, कृष्णमूर्ति पद्धति आदि। उपर्युक्त सभी पद्धतियों का उपयोग किया गया है, लेकिन सटीक भविष्यवाणियां तथा घटना कब घटित होगा, इसका निर्णय जितना सटीक कृष्णमूर्ति पद्धति में पाया गया, उतना शायद ही किसी पद्धति में है। कृष्णमूर्ति पद्धति कोई अलग से ज्योतिष की पद्धति नहीं है। यह तो पाराशरीय पद्धति एवं पाश्चात्य ज्योतिष का मिलाजुला सूक्ष्म रूप है। इस पद्धति में नक्षत्रों का विशेष महत्व है। वैसे देखा जाए, तो रामायण काल एवं महाभारत काल में भी नक्षत्रों का ही उल्लेख मिलता है।
जिन व्यक्तियों के पास अपनी जन्मपत्री, या जन्म समय का डाटा न हो, वह कृष्णमूर्ति पद्धति की होरा कुंडली के द्वारा जीवन की समस्त समस्याओं के बारे में जान सकता है, जैसे मां तथा बच्चे की कुंडली से यह गणना की जा सकती है कि मां ने इस बच्चे के लिए कब गर्भ धारण किया था? मनवांछित संतान प्राप्ति के लिए कौन सा मुहूर्त ठीक रहेगा? स्त्री एवं पुरुष के मधुर मिलन के तुरंत बाद यह मालूम किया जा सकता है कि अमुक स्त्री गर्भवती है, या नहीं। गर्भवती स्त्री की संतान का जन्म कब होगा? जुड़वा बच्चों का जन्म कम से कम 10 सैकेंड के अंतर पर भी होता है, तो उन दोनों का अलग-अलग भविष्य क्यों होगा? एक ही नर्सिंग होम में दो माताएं संयोगबश, एक ही समय पर अपने-अपने बच्चों को जन्म देती हैं। क्या उनका अलग-अलग भविष्य होगा, जबकि दोनों की कुंडली एक समान है? व्यक्ति को अपना जन्म समय सही-सही ज्ञात न हो, तो संशोधन कर ठीक किया जा सकता है।
एक निर्वाचन क्षेत्र से कई उम्मीदवार चुनाव में खड़े हांे, तो उनमें से कौन जीतेगा? इन सबकी गणना भी की जा सकती है। मैच में कौन जीतेगा? व्यक्ति को किस दिन धन लाभ होगा, या किस दिन धन की हानि होगी? लड़का, या लड़की को शादी के लिए देखने जाना है। वहां बात बनेगी, या नहीं? कई जन्मपत्रियों के बीच से छांटना है कि किससे शादी होगी? संतान का योग कब है? संतान होगी, या नहीं? पति-पत्नी में से कौन संतान के अयोग्य है? परस्पर अनुबंध होगा, या नहीं? निवेश करना चाहते हैं, तो लाभ होगा, या नहीं? बीमारी कब तक ठीक हो जाएगी? कब तक ठीक हो कर अस्पताल से अपने घर आ जाएंगे? सामने वाला व्यक्ति, साझेदार छल-कपट तो नहीं करेगा? साझेदार क्या लाभकारी रहेगा? साझेदारी टूटेगी तो नहीं? नौकर रखने से पहले मालूम करना कि वह वफादार रहेगा, या नहीं? किरायेदार मकान खाली कब करेगा? किरायेदार रखने से पहले मालूम करना किरायेदार ठीक रहेगा, या नहीं।
कहीं जेल जाने का योग तो नहीं? आय कर का छापा पड़ने का योग तो नहीं? अपहरण का योग तो नहीं? परीक्षा में पास हो जाएंगे, या नहीं? इंटरव्यू में सफलता मिलेगी, या नहीं? नौकरी करेंगे, या व्यापार? स्थान परिवर्तन का योग तो नहीं? नौकरी में परिवर्तन तो नहीं? तबादला कब होगा? अपने जीवन में कभी विख्यात होंगे, या नहीं? विवाह कब होगा? प्रेम विवाह सफल होगा कि नहीं? क्या विवाह में विलंब होने का योग है? क्या वैवाहिक जीवन ठीक रहेगा? वैवाहिक जीवन में कोई अलगाव, या तलाक का योग तो नहीं? जीवन के हर पहलू का इस पद्धति से विश्लेषण किया जा सकता है। एक उदाहरण कुंडली दी जा रही है, जिसके बारे में 3-3-2002 को भविष्यवाणी की गयी थी कि इस बच्चे का विवाह 28-4-2003 को होगा, जिसका विश्लेषण इस प्रकार हैः कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार विवाह के लिए निम्न लिखित नियम हैं:
Û यदि सातवें भाव (कस्प) का उपाधिपति उपस्वामी 2, 7, या 11 भाव का सूचक है, तो विवाह संभव है। यहां दूसरा भाव कुटुंब का, सातवां भाव विवाह का तथा ग्यारहवां भाव इच्छापूर्ति का है।
Û यदि सातवें भाव (कस्प) का उपाधिपति 1, 6, 4, 10 भाव का सूचक है, तो विवाह कतई नहीं होगा।
Û यदि सातवें भाव (कस्प) का उपाधिपति 2, 7, 11 तथा 1, 6, 4, 10 भाव का सूचक है, तो 2, 7, 11 सूचक ग्रहों की दशा में विवाह होगा तथा 1, 6, 4, 10 सूचक ग्रहों की दशा में अलगाव होगा।
Û यदि सातवें भाव (कस्प) का उपाधिपति बुध हो, या उपाधिपति बुध के नक्षत्र में हो, या द्विस्वभाव राशि में स्थित हो, या ऐसे नक्षत्र में हो, जिसका स्वामी द्विस्वभाव राशि में स्थित हो तथा 2, 7, 11 भाव का सूचक हो, तो एक से अधिक विवाह होते हैं।
Û यदि सातवें भाव (कस्प) का उपाधिपति, 7 वें भाव का सूचक न हो कर, 5 वेें भाव का सूचक हो, तो सिर्फ प्रेम ही होता है, विवाह नहीं।
Û यदि पांचवे भाव (कस्प) का उपाधिपति 2, 5, 7, 11 भाव का सूचक हो, तो प्रेम विवाह होता है।
Û यदि सातवें भाव (कस्प) का उपाधिपति 2, 5, 7, 11 भाव का सूचक हो, तो भी प्रेम विवाह होता है। 8. यदि दूसरे भाव (कस्प) का उपाधिपति 2, 5, 11, 8 भाव का सूचक हो, तो व्यक्ति जीवन भर प्रेम करता है। विश्लेषण: इस कुंडली में सातवें भाव (कस्प) का उपाधिपति शुक्र है, जो शुक्र के ही नक्षत्र में स्थित है। शुक्र, 12 भाव में, मंगल की युति में हैं। मंगल 7 एवं 12 भाव का स्वामी है। शुक्र गुरु के उपाधिपति में स्थित है। गुरु यहां, 8 एवं 9 भाव का स्वामी हो कर, लग्न में स्थित है। केतु में मीन स्थित हो कर गुरु का प्रतिनिधित्व कर रहा है तथा 11 वें भाव में स्थित है। शुक्र तथा मंगल की युति है तथा, नक्षत्र की स्थिति अनुसार, 6 एवं 12 भाव के सूचक हैं। 6 वें भाव का उपाधिपति बुध, 2 एवं 3 भाव में स्थित हो कर, लग्न में गुरु के साथ युति में हैं। बुध, नक्षत्र की स्थिति के अनुसार, 7 एवं 12 भाव का सूचक है। सभी सूचकों को जोड़ा जाए, तो 2, 7, 11, 3, 8, 12 भाव सूचक आते हैं, जो शुक्र ग्रह से संबंध रखते हैं। पत्नी सुंदर, लावन्यमयी, रमणीया, शैया सुख प्रदान करने वाली होगी। सूचक ग्रह:
Û दूसरे भाव में सूर्य स्थित है। सूर्य के नक्षत्र में कोई ग्रह नहीं है। दूसरे भाव का स्वामी बुध है। बुध के नक्षत्र में शनि एवं केतु स्थित हैं। अतः सूचक ग्रह सूर्य, शनि, केतु एवं बुध हैं।
Û सातवें भाव में कोई ग्रह नहीं है। सातवें भाव का स्वामी मंगल है। मंगल के नक्षत्र में बुध, गुरु एवं राहु स्थित हैं। अतः सूचक ग्रह बुध, गुरु राहु एवं मंगल है।
Û ग्यारहवें भाव में केतु स्थित है तथा केतु के नक्षत्र में चंद्र स्थित है। ग्यारहवें भाव का स्वामी शनि है। शनि के नक्षत्र में कोई ग्रह नहीं है। अतः सूचक ग्रह चंद्र, केतु एवं शनि हैं। भाव सूचक ग्रह 2 सूर्य, शनि, केतु, बुध 7 बुध, गुरु, राहु, मंगल 11 चंद्र, केतु, शनि अधिपति ग्रह: दिनांक 3-3-2002, समय 21.20, को स्थान मोदी नगर में निर्णय लिया गया। उस समय का अधिपति ग्रह मंगल, लग्न का नक्षत्राधिपति बुध, लग्नाधिपति राहु चंद्र नक्षत्राधिपति, शुक्र, चंद्राधिपति तथा सूर्य दिन का स्वामी है। वृश्चिक राशि में केतु स्थित है। अतः केतु भी अधिपति ग्रह हुआ। राहु एवं केतु यदि अधिपति ग्रह के साथ युति में हों, या भाव में हों, या उनपर दृष्टि हो, तो अधिपति ग्रह में शामिल कर लिया जाता है। राहु एवं केतु मजबूत सूचक हो जाते हैं। अतः अधिपति ग्रह मंगल, केतु, बुध, राहु, शुक्र एवं सूर्य हुए। विवाह का समय: अधिपति ग्रह तथा सूचक ग्रहों में से समान ग्रह छांट लें।
Û सूचक ग्रह: सूर्य, शनि, केतु, बुध, गुरु, राहु, मंगल, चंद्र
Û अधिपति ग्रह : मंगल, केतु, बुध, राहु, शुक्र, सूर्य अधिपति ग्रह एवं सूचक ग्रह में समान सूचक ग्रह, जो विवाह के 2, 7, 11 के सूचक हैं, छांट लें। सूर्य, केतु, बुध, राहु मुख्य सूचक हैं। सूर्य की महादशा 02-10-2001 से 2-10-2007 सूर्य में राहु 26-11-2002 से 21-10-2003 सूर्य -राहु-बुध 20-04-2003 से 06-06-2003 सूर्य-राहु-बुध-केतु 27-04-2003 से 29-04-2003 अतः विवाह 27-4-2003 से 29-4-2003 के मध्य दिनांक में होगा। विवाह का दिन निकालने के लिए उस दिन के ग्रहों को, खास कर चंद्र एवं सूर्य का सूचक ग्रहों के नक्षत्रों में होना चाहिए। 28-4-2003 विवाह के दिनांक की भविष्यवाणी की गयी थी। इसी दिन विवाह संपन्न हुआ। अब 28-4-2003 के गोचर ग्रहों का विश्लेषण करते हैं कि कौन ग्रह किस-किस नक्षत्र में स्थित थे।