श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर गुजरात के प्रभास पाटन क्षेत्र में स्थित सोमनाथ मंदिर में त्रिदिवसीय कार्यक्रम हुआ। इसमें कृष्ण एवं महाभारत को, केवल काल्पनिक कथा न बताते हुए, इतिहास का एक सच्चा पृष्ठ साबित किया गया। इतिहास एवं ज्योतिष का सहारा लेते हुए कृष्ण के जन्म एवं मोक्ष काल की उद्घोषण् ाा की गयी। यह उद्घोषणा परिव्राजक श्री ज्ञानानंद सरस्वती जी द्वारा, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के समीप, हिरण्य नदी के तट पर, श्री कृष्ण के मोक्ष स्थल पर की गयी। इस काल की गणना में फ्यूचर पाॅइंट द्वारा विकसित ज्योतिषीय प्रोग्राम लियो गोल्ड एवं लियो पाम की मुख्य भूमिका रही।
यह तो सर्वविदित है कि श्री कृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में, मध्य रात्रि को, वृष लग्न एवं वृष राशि में, मथुरा के कारावास में हुआ। इसी के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष जन्माष्टमी समारोह मनाया जाता है। लेकिन कितने वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ, इसकी गणना के लिए पहले उनकी मोक्ष तिथि ज्ञात की गयी, क्योंकि मोक्ष की चर्चा अनेक ग्रंथों में प्राप्त होती है। मोक्ष तिथि में से आयु घटा कर जन्म वर्ष ज्ञात किया गया एवं जन्म वर्ष ज्ञात होने पर, भाद्र कृष्ण अष्टमी की गणना कर, जन्म दिवस ज्ञात किया गया। कहा जाता है कि श्री कृष्ण के देहोत्सर्ग से कुछ ही दिन पहले उनकी बसायी हुई सोने की द्वारिका समुद्र में लय हो गयी। श्री कृष्ण को पहले ही ज्ञात हो गया था कि द्वारिका डूबने वाली है। अतः उसे पहले ही खाली कर दिया।
सभी संबंधियों को ले कर वह इंद्रप्रस्थ की ओर निकल पड़े। लेकिन रास्ते में, ऋषि के श्राप के कारण, सभी यदुवंशी आपस में लड़ पड़े एवं मूसलों से एक दूसरे को मार डाला। तत्पश्चात वह खिन्न मन से आगे बढ़े और थक कर एक वृक्ष के नीचे, पैर के ऊपर पैर रख कर, आराम करने लगे। तभी एक व्याध्र ने, हिरण का शिकार करते हुए, भालका तीर्थ स्थान पर जहरीला वाण मारा, जो श्री कृष्ण के पैर के तलवे में जा लगा। यही तीर उनके मोक्ष गमन का कारण बना। तीर लगने के पश्चात वह, 2-3 कि.मी. की दूरी तय कर, हिरण्य नदी के तट पर पहुंचे, जहां उन्होने बड़े भाई बलराम जी को नाग के रूप में समुद्र में समाते हुए देखा। तत्पश्चात उसी स्थल पर उन्होंने स्वयं मोक्ष प्राप्त किया। कहते हैं जिस क्षण उन्हेांने यह शरीर त्यागा, उसी क्षण द्वापर युग समाप्त हुआ और कलि युग का प्रारंभ हुआ।
यस्मिन्दिने हरिर्यातो दिवं सन्त्यज्य मेदिनीम्। तस्मिन्नेवावतीर्णोऽयं कालकायो बली कलिः।।
(श्रीविष्णुपुराण, अध्याय-38, श्लोक-8)
जिस दिन भगवान् पृथ्वी को छोड़ कर स्वर्ग सिधारे थे, उसी दिन से वह मलिन देह महाबली कलि युग पृथ्वी पर आ गया।
यदा मुकुन्दो भगवानिमां महीं जहौ स्वतन्वा श्रवणीयसत्कथः।
तदाहरेवाप्रतिबुद्धचेतसामधर्महेतुः कलिरन्ववर्तत।।
(श्रीमद्भागवत, अध्याय-15, स्कंध-1, श्लोक-36)
जिसकी मधुर लीलाएं श्रवण करने योग्य हैं, उस भगवान श्री कृष्ण ने जब अपने मानव शरीर से पृथ्वी का परित्याग कर दिया, उसी दिन विचारहीन लोगों को अधर्म में फँसाने वाला कलि युग आ धमका।
कंप्यूटर गणना के अनुसार चैत्र प्रतिपदा शुक्रवार, तदनुसार 18 फरवरी 3102 ई.पू., को कलि युग का प्रारंभ हुआ। कलि युग 3102ई.पू. में ही प्रारंभ हुआ, इसकी पुष्टि निम्न प्रकार से होती है ।
ग्रह स्पष्ट
लग्न |
वृष |
20: 03 |
सूर्य |
सिंह |
18: 08 |
चंद्र |
वृष |
18: 13 |
मंगल |
कर्क |
02: 52 |
बुध |
कन्या |
01: 52 |
गुरु |
सिंह |
28: 12 |
शुक्र |
कर्क |
15: 06 |
शनि |
वृश्चिक |
23: 37 |
राहु |
कर्क |
15: 04 |
केतु |
मकर |
15: 04 |
श्री कृष्ण जन्मांग 21 जुलाई 3228 ई.पू. 12:00, मथुरा
- प्रत्येक राजा के वर्ष-माह-दिन का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। युधिष्ठिर से विक्रमादित्य तक के चार राजवंशों के वर्षों की संख्या को जोड़ने पर योग 3,178 वर्ष होता है, जो कलि युग का 3141वां, अथवा ईस्वी सन् का 39 वां वर्ष है। यह उस तिथि का द्योतक है, जब विक्रमादित्य ने संसार का त्याग किया था।
- काशी विश्वविद्यालय से प्रकाशित ‘विश्व पंचांग’, सोलन के ‘विश्व विजय पंचांगम’ एवं अनेक अन्य पंचांगों के अनुसार विक्रम संवत् 2061 के पूर्व, अर्थात सन् 2004 ई. तक कलि युग के 5,105 वर्ष बीत चुके हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि कलियुग सन् 2004 ई. में अपने 5,105 वर्ष पूरे कर चुका है।
- महानतम खगोलविद तथा गणितज्ञ आर्यभट्ट का जन्म सन् 476 ई. में हुआ था। खगोल शास्त्र को उनकी देन विद्वानों का संबल है। उन्होंने चपत्र3.1416 का शुद्ध आंकड़ा उपलब्ध कराया। उनकी प्रसिद्ध कृति ‘आर्यभट्टीय’ सन् 499 ई. में पूरी हुई, जिसमें उन्होंने कलि युग के आरंभ के सही वर्ष का उल्लेख किया है:
षष्टयब्दानां षष्टिर्यदा व्यतीतास्त्रयश्च युगपादाः।
न्न्यधिका विंशतिरब्दास्तदेह मम जन्मनोऽतीताः।।
‘जब तीन युग (सत युग, त्रेता युग और द्वापर युग) बीत चुके हैं, कलि युग 60×60 (3,600) वर्ष पार कर चुका है, मेरी आयु 23 वर्ष की हो चुकी है। तात्पर्य यह कि कलि युग के 3,601 वर्ष पूरे होने के समय वह 23 वर्ष के थे। आर्यभट्ट का जन्म सन् 476 ई. में हुआ था। इस प्रकार, कलि युग का आरंभ 3601-(476$23)=3102 ई. पू. हुआ। श्री कृष्ण ने 125 वर्ष 7 माह तक इस पृथ्वी पर राज्य किया। इस बात के ठोस प्रमाण निम्न श्लोकों में मिलते हंै।
तदतीतं जगन्नाथ वर्षाणामधिकं शतम्।
इदानीं गम्यतां स्वर्गो भवना यदि रोचते।।
(श्री विष्णुपुराण, अध्याय-37, श्लोक -20)
हे जगन्नाथ ! आपको भूमंडल में पधारे हुए सौ वर्ष से अधिक हो गये। अब, यदि आपको पसंद आवे तो, स्वर्ग लोक पधारिये।।
यदुवंशेऽवतीर्णस्य भवतः पुरुषोत्तम। शरच्छतं व्यतीताय पंचविंशाधिकं प्रभो।।
(श्रीमद् भागवत, अ.6, स्क.11, श्लो.25)
पुरुषोत्तम सर्वशक्तिमान् प्रभो ! आपको यदुवंश में अवतार ग्रहण किये एक सौ पच्चीस वर्ष बीत गये हैं।
ग्रह स्पष्ट
लग्न |
कर्क |
23: 47 |
सूर्य |
मीन |
20: 54 |
चंद्र |
मीन |
27: 34 |
मंगल |
मीन |
17: 52 |
बुध |
मीन |
05: 48 |
गुरु |
मेष |
02: 46 |
शुक्र |
मेष |
03: 30 |
शनि |
कुभ |
25: 25 |
राहु |
तुला |
12: 54 |
केतु |
मेष |
12: 54 |
श्री कृष्ण देहावसान 18 फरवरी 3102 ई.पू. 14ः27ः30, सोमनाथ
3102 ई. पू. में से 125 वर्ष घटाएं, तो 3227 ई. पू. आता है एवं उसके पूर्व भाद्र कृष्ण अष्टमी की गणना करने पर 21.7.3228 ई. पू. आता है, जो श्री कृष्ण की जन्म तिथि है। श्री कृष्ण का जन्म आज से 5230 वर्ष पूर्व ही हुआ एवं सन् 2004 की जन्माष्टमी के दिन, 5231
वर्ष पूर्ण होकर, 5232वां वर्ष आरंभ हुआ है। इस तथ्य की पुष्टि कि श्री कृष्ण के जन्म को 5231 वर्ष बीत चुके हैं, द्वारिका के इतिहास से भी होती है। अतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि श्री कृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी को, 18 जुलाई 3228 ई.पू. को एवं 125 वर्ष 7 माह पश्चात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, शुक्रवार,18 फरवरी 3102 ई. पू. को वह ब्रह्मस्वरूप विष्णु भगवान में लीन हो गये।