आजकल ज्योतिषियों के पास आने वाले लोगों के द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों में एक प्रमुख प्रश्न, उनकी विदेश यात्रा के विषय मे होता है। उनमें यह जानने की उत्सुकता होती है कि क्या वे कार्य, शिक्षा, व्यापार आदि के लिए विदेश जा सकते हैं ? कुछ लोगों का प्रमुख प्रश्न यह भी होता है कि क्या वे विदेश जा कर बस सकते हैं ?
प्राचीन काल में विदेश यात्रा, या वहां जा कर बसना हिंदू समाज में बहुत खराब माना जाता था और विदेशियों (म्लेच्छों) के साथ संपर्क रखने वाले व्यक्ति का समाज से बहिष्कार कर दिया जाता था। परंतु आज समय बदल चुका है। अब विदेश यात्रा गौरव की बात मानी जाती है। दूसरी बात यह भी है कि पुराने समय में, यातायात के साधनों की कमी के कारण, दक्षिण भारत को भी विदेश का दर्जा दिया जाता था। पर अब विमानादि गतिशील यानों के अविष्कार ने विश्व को बहुत छोटा कर दिया है और अब लोग विमान के द्वारा कुछ ही घंटों में विश्व के किसी भी कोने में पहुंच सकते हैं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से किसी व्यक्ति की कुंडली में कुछ भाव, राशि तथा ग्रह उस व्यक्ति को विदेश यात्रा कराने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इनमें अगर आपसी संबंध हों, तो यात्राएं होती हैं। यात्रा कराने वाली राशियां: मेष, कर्क, तुला और मकर राशियां, चर राशियां होने के कारण, यात्राएं दर्शाती है। यदि किसी व्यक्ति के ज्यादा से ज्यादा ग्रह इन राशियों में हों, तो वह बहुत यात्राएं करता है। किसी व्यक्ति के लग्न और राशि दोनों चर हों, तो भी यात्राएं होती है। जल राशियों में (कर्क, वृश्चिक और मीन) में ज्यादा ग्रह जल यात्राएं और वायुज राशियों में (मिथुन, तुला और कुंभ) ग्रह विमान यात्राएं दर्शाती हैं। यात्रा कराने वाले भाव: चतुर्थ भाव घर का होता है और उससे बारहवां भाव, अर्थात् तृतीय भाव छोटी यात्राएं दर्शाता है। नवम भाव धार्मिक और लंबी यात्राओं को दर्शाता है। द्वादश भाव विदेश का होता है और सप्तम भाव विदेश में जा कर रहने के बारे में बताता है। अष्टम भाव कष्टपूर्ण, या चिकित्सा के लिए की नयी यात्राओं के बारे में बताता है।
यात्रा कराने वाले ग्रह: तृतीयेश, नवमेश, द्वादशेश और सप्तमेश या, तृतीय, नवम, द्वादश और सप्तम भाव से संबंधित ग्रह और यात्रा के कारक ग्रह, चंद्र, शुक्र, राहु, शनि(वायु) और गुरु यात्राएं करवाते हैं। जब इन राशियों, भावों और ग्रहों के आपस में संबंध बनते हैं, तब विदेश यात्रा के योग बनते हैं। यात्रा का कारण: शिक्षा हेतु: पंचम भाव का नवम, सप्तम और द्वादश भाव का आपस में संबंध हो। शोध हेतु: पंचम, नवम, सप्तम, द्वादश और अष्टम भाव का आपस में संबंध हो। नौकरी हेतु: सप्तम, नवम, दशम का द्वादश भाव से संबंध डेपुटेशन (प्रतिनियुक्ति) पर: चर, या द्विस्वभाव राशियों में प्रायः सभी ग्रहों की स्थिति, चतुर्थ भाव में पाप प्रभाव और तृतीय, नवम, दशम, सप्तम और द्वादश भाव में आपसी संबंध और राजयोगों का समावेश विवाह के पश्चात: सप्तम, नवम और द्वादश भाव में आपसी संबंध, चतुर्थ भाव में पीड़ा और राहु तथा शुक्र का उनसे संबंध विदेश में जा कर बसना: लग्न स्वयं जातक और चतुर्थ भाव उसका जन्म स्थान होता है।
इसी कारण अगर चतुर्थ भाव में पाप प्रभाव, चतुर्थेश और लग्नेश षष्ठ, अष्टम, या द्वादश भावों में पीड़ित हों, तो जातक को अपने जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है। इसी प्रकार चंद्र से भाव को भी देखना चाहिए। यात्रा कब होगी ? तृतीय, नवम, सप्तम और द्वादश भाव के स्वामियों, या उन भावों से संबंधित ग्रहों की दशा में यात्राएं होती हैं। जब गोचर में किसी पापी ग्रह का प्रभाव लग्न, या चंद्र से चतुर्थ में हो और जिस ग्रह की दशा चल रही हो, वह लग्न, या चंद्र से तृतीय, षष्ठ, नवम, या द्वादश भाव से गोचर करे, तब वह व्यक्ति विदेश यात्रा करता है। दिशा ज्ञान: अब प्रश्न यह हो सकता है कि व्यक्ति किस दिशा में यात्रा करेगा, या किस दिशा से उसको लाभ हो सकता है ? ज्योतिष में बारह राशियों और नौ ग्रहों को उनकी अपनी दिशाएं दी गयी हैं, उदाहरणतः