रत्नों का संसार: सम्मानप्रदायक रत्नराज पुखराज
रत्नों का संसार: सम्मानप्रदायक रत्नराज पुखराज

रत्नों का संसार: सम्मानप्रदायक रत्नराज पुखराज  

रत्ना दीक्षित
व्यूस : 8804 | अकतूबर 2004

पुल्परागः पीतमणिः गुरुरत्नम् गुरुप्रियम्। याकूतमस्करं पुष्पराजो टायेस नामकः।। पुखराज जवाहरतों में सबसे अधिक लोकप्रिय है। पुखराज को संस्कृत में पुष्पराग, पीतमणि, गुरु रत्न, गुरुप्रिय पुष्पराज कहते हैं। अंग्रेजी में इसे टोपाज़, येलो सफ़ायर उर्दू में अस्फर, याकूत कहते हैं।

रंग: यह अपने नामानुसार चमकीले, पीले रंग का शानदार रत्न है। इसकी आभा अमलतास के पुष्प के समान है। पुखराज के साथ पीले रंग का संबंध इतना घनिष्ठ है कि सामान्यतया पुखराज का असली रंग पीला है, जबकि वास्तविकता में पुखराज एक रंगहीन रत्न है। पीला नीलम, धुमेश स्फटिक, धमियत पुखराज साइट्रीन, अथवा पीला स्फटिक स्काॅच पुखराज के नाम से बिकते हैं। परंतु वास्तव में ये पुखराज नहीं होते हैं।

रासायनिक बनावट की दृष्टि से पुखराज ‘फ्लुओं सिलिकेट’ है। परंतु इसकी वैज्ञानिक रचना के अनुसार इसमें फ्लोरीन है। इसमें उपस्थित जल की उपस्थिति तथा कुछ दूसरी अशुद्धियों के कारण, प्रकृति से रंगहीन होते हुए भी यह जल जैसी स्वच्छ दशा में कम मिलता है। भूरे , सलेटी, हल्के नीले, हल्के हरे रंग के भी पुखराज मिलते हैं।

जांच एवं परख: पुखराज की सत्यता जानने हेतु ब्रोनोफार्म में इतना श्रेणीन डालें कि उसका गुरुत्व 2.65 हो जाये। इस द्रव में असली पुखराज फौरन डूब जाएगा। परंतु रंगहीन, या पीला बिल्लौर, या एमिथिस्ट या तो तैरेंगे, या बहुत धीरे-2 नीचे जाएंगे।

भारतीय मान्यतानुसार श्रेष्ठ एवं मांगलिक पुखराज का वर्णन इस प्रकार किया गया है:

”पुष्परांग गुरु स्निग्धं स्वच्छं स्थूलं समं मृदु। कर्णिकारप्रसूनाभं मसृणं शुभमष्टधा।।“ उत्तम पुखराज आठ गुणों वाला होता है: हाथ पर रखने पर वजनी हो, उसकी छवि स्निग्ध हो, धब्बे न हों, परतरहित हो, मुलायम हो, खिले हुए कनेर के पुष्प समान हो, चिकना हो। उत्तम पुखराज घिसने पर अपना रंग और अधिक बढ़ा देता है।

पुखराज के प्राप्ति स्थान

पुखराज प्रायः ग्रेनाइट, नाइट तथा पैग्मटाइस शिलाओं में मिलता है। इन शिलाओं में आग्नेय पदार्थ एकत्र होने के कारण उनसे निकलने वाली जल वाष्प तथा फ्लोरीन गैस की अंतःक्रिया से वहां पुखराज बनते हैं।

”सैक्सनी“ में पुखराज बिल्लौरी शिलाओं में अस्तर की तरह जमा हुआ मिलता है। रूस तथा साइबेरिया में ग्रेनाइट की शिलाओं में नीले रंग का पुखराज मिलता है। ब्राजील की खानों में मिलने वाले पुखराज सबसे बढ़िया किस्म के होते हैं।

ज्योतिषीय मूल्यांकन

जातक परिजात अनुसार: ”देवष्यस्थ व पुष्परागम। पुखराज 5 महारत्नों में प्रमुख है। यह अपने धारक को धार्मिक बनाता है तथा शुभ कार्यों को करने के लिए प्रेरित करने वाला, मंगल करने वाला रत्न है। धनु एवं मीन राशि में जन्मे लोगों का यह राशि रत्न है।

यह रत्न उनकी आयु को बढ़ाता है। मिथुन लग्न एवं कन्या लग्न वालों का सप्तमेश होने के कारण इसे धारण करने पर उनका विवाह शीघ्र तथा मनोनुकूल होता है। सिंह लग्न एवं वृश्चिक लग्न वालों का पंचमेश होने के कारण यह उन्हें पुत्र संतति देता है। मेष तथा कर्क लग्न वालों के लिए यह भाग्य के द्वार खोलता है। विदेशी मान्यता के अनुसार नवंबर माह में जन्मे लोगों का ‘बर्थ स्टोन’ पुखराज है। अंक शास्त्र के हिसाब से 3,12,11 एवं 20 तारीख को जन्मे लोगों का स्वामी बृहस्पति है तथा पुखराज धारण करने से तीन मूलांक वालों का भाग्य बदल जाता है; खासकर जिन व्यक्तियों का जन्म गुरुवार को इन तारीखों में हुआ हो, उनके लिए पुखराज धारण करना सर्वश्रेष्ठ होता है।

चिकित्सा के लिए उपयोगी: पुखराज लघु शीत, वीर्य, कफ, वात शामक और विषघ्न है। इसकी उत्पत्ति, पुराण के अनुसार, बलि के चर्म से मानी गयी है। यह कुष्ठ एवं चर्म रोगों का शत्रु है।

ब्रितानी संग्रहालय में संगृहीत एक प्राचीन ग्रंथ के अनुसार ”पुखराज को धारण करने वाले व्यक्ति को रात में डर नहीं लगता।“ बुद्धिवर्धक होने के साथ ही, यह क्रोध तथा पागलपन को भी शांत करता है। पुखराज पीस कर इसकी भस्म से अनेक प्रकार की दवाएं वैद्य बनाते हैं, जो कफजन्य रोगों में आराम देती है।

पुखराज के उपरत्न

सुनैला: पीत रत्न, पीत स्फटिक सुनैला के नाम हैं। चिकना, सोने के समान पीला, वजन में हल्का, चमकदार, सुनैला पुखराज जैसा होता है। ब्राजील, स्पेन, यूराल पर्वत तथा स्काॅट देश की खानों में सुनैला मिलता है।

नरम पुखराज: पुखराज कोमल, चिकना, वजन में हल्का, रंग में पीला तथा सफेद, चमकदार साफ नरम होता है। यह देखने में बहुत सुंदर होता है। यह भी पुखराज के साथ खान से निकलता है। धुनैला: धूमरत्न, ध्रम स्फटिक इसके नाम है। यह धुंए जैसा, हल्की पीली आभा वाला, सलेटी तथा भूरा होता है। पीले रंग के धुनैला को ”स्काॅटलैंड का पुखराज“ कहा जाता है।

टाटरी पुखराज: कोमल, वमन में भारी, अति चमक वाला, सफेद रंगत वाला है। रंग से और कांति से पुखराज के समान होने से यह पुखराज का उपरत्न है।

लेमन टोपाज: यह नरम होता है। किंतु इसका रंग नींबू के रंग का कुछ हल्का पीले-हरे रंग का होता है।

पीली धारी वाला सुलेमानी हकीक: पीली धारी वाला सुलेमानी हकीक पुखराज जैसा ही कार्य करता है। यह अल्प मोती पत्थर तथा मुस्लिम संप्रदाय का पवित्र पत्थर है।

पुखराज धारण करने की विधि:

- पुखराज हमेशा सवा 5 रत्ती, सवा 9 रत्ती, सवा 12 रत्ती की मात्रा में धारण करें।

- पुखराज विषम संख्या में धारण करना शुभ होता है।

- पुखराज हमेशा शुक्रवार को खरीदें तथा, पीले रेशमी वस्त्र में लपेट कर, दायीं भुजा में बांटंे। गुरुवार से गुरुवार तक, रत्न अपने पास रख कर, परीक्षा कर लें। रत्न अनुकूल होने पर ही धारण करें।

- पुखराज की प्राण प्रतिष्ठा के लिए गुरु पुष्य, रवि पुष्य सर्वश्रेष्ठ योग है। इसके अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग तथा रवि योग, जो गुरुवार को हो, उत्तम रहता है।

- रत्न के अभाव में केले की जड़, पीले कपड़े में बांध कर अभिमंत्रित कर के, पहनने से रत्न, जैसा ही प्रभाव होता है।

- पुखराज हमेशा सोने में, तर्जनी उंगली में ही, धारण करें।

- धारण करने से एक दिन पूर्व पुखराज को रात में गाय के दूध में डाल कर रखें, दूसरे दिन प्रातः उसे, गंगा जल से धो कर, नैवेद्य-पुष्प ले कर पुष्प अर्चना कर के, अपने इष्ट देवता का ध्यान कर के धारण करें। धारण करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें: बुध्यायस्यसमानेस्ति देवतानां च पुरोहितः। त्राता च सर्वदेवानां गुरुमादहयाभ्यहम्।।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.