शिव शक्ति के स्त्रोत
शिव शक्ति के स्त्रोत

शिव शक्ति के स्त्रोत  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 9295 | जुलाई 2007

शिव शक्ति के स्त्रोत शिव सदाशिव हैं, भोले भंडारी हैं, उन्हीं का एक रूप नटराज का भी है, उनमें अथाह शक्तियां समाई हुई हैं, उनकी शक्तियों के स्रोत क्या हैं, वे उनसे कैसे ऊर्जा ग्रहण करते हैं, जानिए इस आलेख में...

तीनों देवों में शिव को सर्वाधिक शक्तिशाली माना गया है। उनकी पूजा ब्रह्मा ने भी की, विष्णु ने भी। अर्थात वे सर्वपूज्य, सर्वशक्तिमान हुए। सृष्टि की रचना के बाद ब्रह्मा का कार्य पूर्ण हो जाता है, विष्णु उसके पालक रक्षक का दायित्व निभाते हैं। इस क्रम के लगातार चलते रहने से सृष्टि में जो असंतुलन पैदा होता है, उस पर नियंत्रण की जिम्मेदारी शिव को दी गई है। इस प्रकार शिव की भूमिका संहारक की दिखाई देती है।

लेकिन वे केवल संहार करने वाले या मृत्यु देने वाले नहीं हंै, वे तो मृत्युंजय हैं, समन्वय के देवता हैं। व े सहं ार कर नए बीजा,ंे मल्ू या ंे क े लिए जगह खाली करते हैं। शिव की भूमिका उस सुनार व लोहार की तरह है, जो अच्छे आभूषण एवं औजार बनाने के लिए सोने व लोहे को गलाते हैं लेकिन उसे नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि उसके बाद सुंदर रूपाकार में आभूषण व उपयोगी औजार का निर्माण होता है।

शिव का स्वरूप कई प्रतीकों का योग है। उनके आसपास की वस्तुएं, आभूषण भी ऐसे हैं जिनसे वे शक्ति ग्रहण करते हैं। अर्धनारीश्वर रूप शिव का अर्धनारीश्वर रूप उनके शक्तिरूप का प्रतीक है। वही एकमात्र देव हैं जिनका आधा रूप पुरुष का और आधा स्त्री का है। इस रूप के मूल में सृष्टि की संरचना है। शक्ति बिना सृष्टि संभव नहीं है। बिना नारी के किसी का जन्म नहीं हो सकता।

संसार के सभी पुरुष शिव हैं, तो नारियां शक्तिस्वरूपिण् ाी हैं। दोनों सृष्टि के मूलाधार हैं और शिव में समाए हुए हैं। शक्ति बिना शिव शव हैं। शीश में गंगा शिव के शीश में अथाह वेग वाली गंगा नदी समाई हुई है। यदि वे अपने जटाजटू म ंे गगं ा का े नही ं थामत,े ता े वह धरती को तहस-नहस कर देती। शिव ने उस गंगा को अपने सिर पर धारण कर लोक कल्याण के लिए उसकी केवल एक धारा को ही प्रवाहित किया।

जटाजूट शिव के शीश की जटाओं को प्राचीन वट वृक्ष की संज्ञा दी जाती है, जो समस्त प्राणियों का विश्राम स्थल है, वेदांत, सांख्य और योग उस वट वृक्ष की शाखाएं हैं। कहा जाता है उनकी जटाओं में वायु का वेग भी समाया हुआ है।

अर्ध चंद्र शापित चंद्र को सम्मान देकर अपने शीश पर धारण करने वाले शिव समय चक्र की गतिशीलता से सबको अवगत कराते हैं। सृष्टि निर्माण व विनाश के मूल में समय ही प्रमुख है। चंद्र समय की निरंतरता का प्रतीक है। त्रिनेत्र शिव त्र्यंबक कहलाते हैं। उनकी दायीं आंख में सूर्य का तेज, बायीं आंख में चंद्र की शीतलता और ललाट पर स्थित तीसरे नेत्र में अग्नि की ज्वाला विद्यमान है।

दुष्टों एवं दुष्प्रवृत्तियों के विनाश के लिए वे तीसरे नेत्र का उपयोग करते हैं। उनकी अधखुली आंखें उनके योगीश्वर रूप का परिचय देती हैं। त्रिशूल शिव के हाथ का त्रिशूल उनकी तीन मूलभूत शक्तियों इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञान का प्रतीक है। इसी त्रिशूल से वे प्राणिमात्र के दैहिक, दैविक एवं भौतिक तीनों प्रकार के शूलों का शमन करते हैं।

इसी त्रिशूल से वे सत्व, रज और तम तीन गुणों तथा उनके कार्यरूप स्थूल, सूक्ष्म और कारण नामक देहत्रय का विनाश करते हैं। डमरू शिव के हाथ में विद्यमान डमरू नाद ब्रह्म का प्रतीक है। जब डमरू बजता है, तो आकाश, पाताल एवं पृथ्वी एक लय में बंध जाते हैं। यही नाद सृष्टि सृजन का मूल बिंदु है। पिनाकपाणि शिव पिनाकपाणि कहलाते हैं।

पिनाक ऐसा शक्तिशाली धनुष है जिसे शिव के अतिरिक्त वही अधिज्य कर सकता है जो स्वयं शिवरूप हो गया हो। इस धनुष के दंड में अनंत शक्ति रहती है। उस शक्ति को व्यक्त करने या क्रियान्वित करने के लिए धनुष की एक सिरे की प्रत्यंचा को दूसरे सिरे से मिलाना अनिवार्य होता है।

यही कारण था कि जनक के राजमहल में रखे शिव धनुष को जब सीता ने एक स्थान से उठाकर दूसरी जगह रख दिया तो उनके शक्ति स्वरूप का परिचय मिला और फलस्वरूप सर्वशक्तिमान शिव स्वरूप राम ने उस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाई। गले में सर्प शिव के गले में सांप लिपटा रहता है जो उनके योगीश्वर रूप का प्रतीक है।

सांप न तो घर बनाता है, न कुछ संचय करता है और न कुछ साथ लेकर चलता है। मुक्त हवा में, पर्वतों व जंगलों में विचरण करता है। सांप तीन बार शिव ग्रीवा में लिपटा रहता है जो उनके भूत, वर्तमान एवं भविष्य के द्रष्टा होने का प्रतीक है। शक्ति की कल्पना कुंडली की आकृति जैसी की गई है इसलिए उसे कुंडलिनी कहते हैं। यह शक्ति शिव ग्रीवा में लिपटी रहती है और उचित अवसर पर प्रकट होती है। शिव वस्त्र के रूप में बाघ की खाल धारण करते हैं। बाघ माता शक्ति का वाहन है।

इस प्रकार ये वस्त्र अतीव ऊर्जा शक्ति के प्रतीक हैं। विभूति शिव अपने शरीर पर विभूति रमाते हैं। शिव का शृंगार श्मशान की राख से किया जाता है। शिव का एक रूप सर्वशक्तिमान महाकाल का भी है। वे जन्म-मृत्यु के चक्र पर नियंत्रण करते हैं। श्मशान की राख जीवन के सत्य को प्रतिभासित करती है। वृष वाहन वृष अथाह शक्ति का परिचायक है।

वृष कामवृत्ति का प्रतीक भी है। संसार के पुरुषों पर वृष सवारी करता है और शिव वृष पर सवार होते हैं। शिव ने मदन का दहन किया है, वे जितेंद्रिय हैं। मनुष्य यदि अपने उदर और रसेंद्रिय पर विजय पा ले, तो वह इतना शक्तिमान बन सकता है कि चाहे तो संपूर्ण विश्व पर विजय प्राप्त कर ले। इस प्रकार शिव शक्ति के अनन्य स्रोत हैं।

संसार की निकृष्ट से निकृष्ट, त्याज्य से त्याज्य वस्तुओं से वे शक्ति ग्रहण कर लेते हैं। भांग, धतूरे जो सामान्य लोगों के लिए हानिकारक हैं उनसे वे ऊर्जा ग्रहण करते हैं। यदि वे विष को अपने कंठ में धारण नहीं करते, तो देवताओं को अमृत कभी नहीं मिल पाता।

इस प्रकार देवताओं को अमरत्व प्रदान करने वाले शिव जब अपने रौद्र रूप में अवतरित होते हैं तो उनकी शक्ति पर नियंत्रण पाना सभी देवताओं के लिए कठिन हो जाता है।

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