ज्योतिषशास्त्र के द्वारा पति और पत्नी दोनों का ग्रहमान, ग्रहदशा तथा अन्य काल निर्णय पद्धति का इस्तेमाल करके उन्हें सही साल, सही दिन मतलब सुमुहूर्त सुझाया जाता है। जिन पति और पत्नी को इच्छा होने पर भी 1 साल से ज्यादा वक्त बीत जाने तक संतान प्राप्ति नहीं होती उस बीमारी को शास्त्रीय शब्दों में ‘वंध्यत्व’ कहा जाता है। संतान प्राप्ति न होने के और भी कई घटक होते हैं पर उनमें स्त्री और पुरूष दोनों और दोनों में से कोई एक जिम्मेदार हो सकता है। उसके लिए अलग-अलग प्रकार की जांच प्रयोगशाला में की जाती है।
पुरूषों के लिए सीमेन अनॅलिसिस, हार्मोन्सटेस्टींग, ट्रान्सेक्ट्रल और स्क्रोटल अल्ट्रासाऊंड उसी तरह स्त्रियों के लिए मेन्सुरेशन सायकल स्टडी से लेकर एफ, एस.एच. सव्र्हीकल म्युकस टेस्ट, अल्ट्रासाऊंड टेस्ट, हार्मोन टेस्ट, हीस्ट्रोस्कोपी, लॅप्रोस्कोपी, इंडोमेट्री अल बायोप्सी इत्यादि। कई प्रकार की जांच करने के बाद ही किस प्रकार का दोष है यह ढूढ़ा जाता है। प्ण्न्ण्प् ;प्दजतंनजंतपदम पदबमउमदजंजपवदद्ध - प्ण्टण्थ्ण् ;प्द अमतजव थ्मतजपसप्रंजपवदद्ध इन दो पद्धतियों से स्त्री पुरूषों पर उपचार किये जाते हैं।
प्ण्न्ण्प् पद्धति में शुक्रबीज संस्कारित करके स्त्री के योनि मार्ग में कृत्रिम प्रकार से इनजेक्ट करे। डोनर से या पति से शुक्रबीज लेकर कृत्रिम तरह से स्त्री के योनि मार्ग में छोड़ा जाता है। इस प्िरक्रया के लिए स्त्री के शरीर का तापमान, ऋतुकाल खुन इन सभी की जांच करके अगर अल्ट्रासाउंड के जरिए जांच करके शुक्रबीज प्रयोगशाला में धोकर एक ट्रीटमेंट सांयकाल में दो बार इन्सर्ट किया जाता है। इस उपचार पद्धति के जरिए गर्भ धारण न हुआ तो कुछ समय तक रूककर डाॅक्टर प्ण्टण्थ्ण् ट्रीटमेंट कराने की सलाह देते हैं। प्ण्न्ण्प् - प्ण्टण्थ्ण् में सफलता मिलने की गुंजाईश अद्ययावर्त तंत्रज्ञान के बराबर में बहुत कम है।
उसके लिए जग भर में सारी वैद्यकीय संस्थाएं, संशोधक, डाॅक्टरर्स प्ण्न्ण्प् - प्ण्टण्थ्ण् का सक्सेस रेट बढ़ाने हेतु दिनरात कार्यरत है। प्ण्ब्ण्ैण्प्ण् इस पद्धति में सशक्त शुक्रबीज कृत्रिम तरीके से शुक्राणु के अंडे को फोड़कर निर्दोष रूप से नहीं हो रही हो तो उस वक्त यह उपचार दी जाती हैं ज्योतिषशास्त्र के द्वारा पति और पत्नी दोनों का ग्रहमान, ग्रहदशा तथा अन्य काल निर्णय पद्धति का इस्तेमाल करके उन्हें सही साल, सही दिन मतलब सुमुहूर्त सुझाया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में बृहत पाराशर होरा शास्त्र इस मुल ग्रंथ में संतान दोष के लिए शाप योग दिए गए हैं। उन में से प्रमुख योग नीचे दिए हुए हैं। 1. सर्पशाप 2 पितृशाप 3. मातृशाप 4. भातृशाप 5. मातुल शाप 6. ब्रह्म शाप 7. प्रेत शाप 8. पत्नी शाप । कुंडली विवेचन 18 दिसंबर 2003 में यह दो व्यक्तियों का विवाह हुआ इनके विवाह के बाद सात साल तक इन दोनों को संतान प्राप्त नहीं हो रही थी तब वैद्यकीय जांच करके ऐसा ध्यान में आया कि स्त्री के शरीर में बीजवाहक नलिका बंद थी उसी कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही थी।
इन घटनाओं की तरफ वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो इन दोनों ने संतान प्राप्ति की तकलीफों की धार्मिक चिकित्सा की तो ऐसा ध्यान में आया कि पति राजा के घर में उनके दादाजी गोद लिए गए थे और गोद लिए घर में खेती, घर इत्यादि प्राप्त हुए थे उसके लिए दोनों के कुंडलियों में बृहत पराशरी ग्रंथ में कहे गए ‘सर्पशाप’ योग थे उस योग के लिए उन्होंने 2006 साल में शाप योग पर उपाय नारायण नागबलि एवं त्रिपिंडी यह अनुष्ठान सही पद्धति से किया। पति राजा के कुंडली में पंचम स्थान में रवि - मंगल, कन्या राशि में तथा मंगल की राशि में राहु उसी तरह स्त्री के कुंडली में पंचम स्थान में रवि-शनि दृष्ट उसी तरह गुरु-मंगल राहु के साथ इस योग के कारण ये दोनों पति और पत्नी की कुंडलियां सर्पशाप की है तो उन्ही पर उपाय किया गया। इस घटना के बाद सन 2010 में प्ण्टण्थ्ण् करने का निर्णय लिया, उसी तरह से उन्होंने दिसंबर महीने में एक अद्ययावर्त सेंटर में उपचार लेने की शुरूआत की।
3 दिसंबर 2010 में पति के शरीर में से शुक्र जंतु लेकर स्त्री बीज के साथ शरीर के बाहर प्रयोगशाला में फलन करके वह एम्ब्रीयो में तीसरे दिन मतलब 6 दिसंबर 2010 में स्त्री के शरीर में सही जगह छोड़ा उसी तरह पांचवें दिन यानि 8 दिसंबर में फिर से स्त्री के शरीर में पांच दिन का एम्ब्रीयो छोड़ दिया, उसकी फल प्राप्ति ऐसी हुई कि स्त्री को 22 जुलाई 2011 में स्त्री संतान मतलब कन्या रत्न की प्राप्ति हुई।
विवाह तारीख: 18.12.2003 स्पष्ट ग्रह स्पष्ट ग्रह लग्न वृषभ 00.32.37 कर्क 07.04.29 रवि कन्या 04.46.52 वृश्चिक 2.10.49 चंद्र वृश्चिक 16.14.54 तुला 19.48.01 मंगल कन्या 12.15.03 सिंह 5.53.09 बुध कन्या 28.51.53 वृश्चिक 5.40.39 गुरु कुंभ 17.20.24 सिंह 14.27.41 शुक्र सिंह 22.53.19 वृश्चिक 24.07.27 शनि मिथुन 23.57.44 कन्या 1.20.09 राहु वृश्चिक 20.26.54 सिंह 10.36.58 केतु वृषभ 20.26.54 कुंभ 10.36.58 हर्षल तुला 02.47.05 तुला 28.00.19 नेप्च्यून वृश्चिक 13.38.26 वृश्चिक 25.44.53 प्लुटो कन्या 12.51.33 प्लुटो 26.57.02 स्पष्ट चंद्र 06.19.48.01 1. स्त्री (क्षेत्र) = $ स्पष्ट मंगल 04.05.53.09 $ स्पष्ट गुरु 04.14.27.01 03.10.08.12 सम राशि (कर्क राशि) तुला नवमांश स्पष्ट रवि 05.04.46.59 1. पुरुष (बीज)= $ स्पष्ट गुरु 10.17.20.24 $ स्पष्ट शुक्र 04.22.53.19 08.15.00.42 विषम राशि (धनु राशि) सिंह नवमांश 3.12.2010 को जब उपचार करने की शुरुआत की तब चंद्र , शुक्र की युति थी उसी तरह चंद्र , शुक्र गुरु के साथ नवपंचम कर रहे थे और पुरुष के कुंडली में मुल के गुरु के गुरु का भ्रमण हो रहा था, शुक्र के अंतर्गत गुरु और गुरु के अंतर्गत शुक्र की विदशा थी।
शुक्र लग्नेश की थी और वह गुरु के साथ अंशतः समसप्तक योग कर रही थी। उसी तरह स्त्री के कुंडली में मूल के चंद्र के ऊपर से चंद्र और शुक्र का भ्रमण होता है। उसी तरह पंचम में से गुरु का भ्रमण होता है और चंद्र शुक्र से नवपंचम योग कर रहा था और शनि के अंतर्गत राहु और राहु के अंतर्गत शनि की अंतर्दशा थी और उसी कारण 8 दिसंबर को कृत्रिम गर्भधारणा के लिए किए गए प्रयत्न सफल हुए। पुरूष बीज विषम राशि विषम नवमांश में होने के कारण बलवान है तथा स्त्री क्षेत्र राशि विषय नवमांश में होने के कारण मध्यम है उसी की तरह स्त्री के बीज नलिकाएं बंद थी और उसके ऊपर सही काल ग्रह योग देखकर प्ण्टण्थ्ण् करे। इसे ही वंध्यत्व निवारण का सही-सही मुहूर्त माना गया है, वंध्यत्व के कुछ माने गए स्थूल नियम नीचे दिए हैं।
1. स्त्री पुरुषों के कुंडली में पाराशरी के अनुसार शाप योग ढ़ूढकर उनका निवारण करना।
2. पुरूष बीज और स्त्री क्षेत्र दोनों निकालकर दोनों में से किसके कुंडली में दोष है वह देखना।
3. गोचर भ्रमण, दशा, महादशा, अंतर्दशा, विदशा, वर्ष प्रवेश कुंडली, अष्टकवर्ग की जांच कर ट्रीटमेंट के लिए सही काल मतलब महीना, दिन ढूंढना।
4. निर्धारित दिन में ही प्ण्टण्थ्ण् और प्ण्न्ण्प्ण् ट्रीटमेंटस करें। ऊपर दिए गए प्रकारों का अध्ययन करके सेकंडों कुंडलियों का अध्ययन करके सूक्ष्म नियम बनाए जा सकते हैं।