विवाह प्रश्न: किसी कुंडली के आधार पर कैसे निर्णय करेंगे कि जातक का विवाह प्रेमविवाह, अंतर्जातीय या पारंपरिक विवाह होगा? तथा बहु विवाह के कौन-कौन से योग हैं? यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि जातक का दूसरा विवाह सफल होगा या नहीं?
उदाहरण कुंडलियों से अपने कथन की पुष्टि करें। भारतीय संस्कृति में विवाह को एक पवित्र बंधन के रूप में मान्यता मिली हुई है। सोलह संस्कारों में विवाह संस्कार एक प्रमुख संस्कार है। सामान्यतः प्रेम विवाह या बहु-विवाह का प्रचलन समाज में नहीं है। इसके साथ ही हिन्दू विवाह अधिनियम भी बहु-विवाह को अवैध करार देता है।
परंतु विधुर या विधवा की स्थिति में द्वितीय विवाह कानूनन वैध है। साथ ही बदलते सामाजिक परिवेश में तलाक की स्थिति अनेक मामलों में बन जाती है और वैधानिक तलाक के बाद द्वितीय विवाह संपन्न होता है। इसके साथ ही विवाहित पुरुष-स्त्रियों के अंतरंग संबंध को भी विवाहेतर या बहु-विवाह की श्रेणी में ज्योतिषीय दृष्टिकोण से रखा गया है।
ऐसे संबंध लिव-इन-रिलेशनशिप के रूप में भी प्रकट हो रहे हैं। चूंकि बहु-विवाह अवैध है अतः बहु-विवाह के ज्योतिषीय योग को अंतरंग संबंध, उप-पत्नी (रखैल) रखना या फिर लिव-इन-रिलेशनशिप के रूप में भी देखा जाना चाहिए।
ज्योतिष में प्रेम-विवाह के योग:
1. पंचमेश व सप्तमेश की युति हो।
2. पंचमेश या सप्तमेश अथवा पंचम भाव या सप्तम भाव राहु या केतु से युत या दृष्ट हो।
3. पंचमेश और सप्तमेश में पारस्परिक दृष्टि-संबंध हांे, दोनों में राशि परिवर्तन योग हो या दोनों एक-दूसरे के भाव को देखते हों।
4. पंचमेश की उच्च राशि में राहु या केतु हो।
5. राहू या केतु की दृष्टि गुरु या शुक्र पर हो।
6. राहु की स्थिति कुंडली के लग्न भाव में हो।
7. सप्तम में शनि व केतु हों।
8. सप्तम भाव तथा शुक्र पर शनि की और राहु की दृष्टि हो।
9. शुक्र नवम भाव में हो।
10. चंद्रमा, लग्नेश तथा सप्तमेश लग्न या सप्तम भाव में हो।
11. मंगल सप्तम भाव या लग्न में सप्तमेश के साथ या पंचम में पंचमेश के साथ हो।
12. शुक्र लग्न में लग्नेश के साथ या सप्तम में सप्तमेश के साथ हो।
13. लग्नेश और सप्तमेश में राशि परिवर्तन हो।
14. लग्नेश और पंचमेश या लग्नेश और भाग्येश परस्पर युत हो, उनमें राशि परिवर्तन हो या वे एक दूसरे को देखते हों।
15. सप्तमेश और नवमेश या पंचमेश और नवमेश की युति हो।
16. मंगल पंचम या नवम भाव में हो तथा सप्तमेश और एकादश भाव के स्वामी में राशि परिवर्तन हो।
17. शुक्र जन्म लग्न अथवा चंद्र लग्न से पंचम में हो।
ज्योतिष में अंतर्जातीय विवाह के प्रमुख योग: जातक और जातिका के बीच अंतर्जातीय विवाह निम्नलिखित ज्योतिषीय योगों में होता है।
1. सप्तम भाव में लग्नेश शनि द्वारा दृष्ट हो।
2. सप्तम भाव, नवम भाव तथा गुरु पर शनि और राहु या केतु का प्रभाव हो और गुरु नवमेश हो।
3. शुक्र की युति शनि या राहु के साथ हो तथा लग्न, चंद्र और शुक्र का संबंध सप्तमेश से हो और द्वितीय भाव पाप पीड़ित हो।
4. शुक्र और सप्तमेश की युति हो तथा इन दोनों पर शनि और राहु का प्रभाव हो।
5. शुक्र, सप्तमेश और नवमेश की युति हो तथा इन तीनों पर शनि और राहु का प्रभाव हो।
द्विविवाह योग:
1. लग्न भाव या सप्तम भाव में अष्टमेश हो।
2. लग्नेश षष्ठ भाव में हो।
3. षष्ठ भाव में द्वितीयेश हो तथा सप्तम भाव में पाप ग्रह हों।
4. पाप ग्रह सप्तम भाव में हो।
5. नीच या शत्रु राशि में सप्तमेश शुभ ग्रहों से युत हो तथा सप्तम में पाप ग्रह हों।
6. कलत्र कारक शुक्र पाप युत हो।
7. शुक्र नीच या शत्रु ग्रह के नवांश में हो या अस्त ग्रह के नवांश में पाप युत हो।
8. सप्तमेश त्रिक भाव में पाप युत हो तथा मंगल लग्न भाव में हो।
9. शुक्र उच्च राशि या स्वराशि में सप्तम भाव में राहु या केतु से युत हो।
10. मंगल मेष, वृश्चिक, सिंह, मकर या कुंभ राशि में हो।
11. लग्न भाव में लग्नेश हो तथा द्वितीयेश और सप्तमेश में राशि परितवर्तन हो।
12. सप्तमेश पाप युत तथा शुक्र शुभ युत हो।
13. सप्तमेश और शनि की युति हो।
14. राहु और सप्तम भाव के स्वामी में युति या दृष्टि संबंध हों।
इसके अतिरिक्त जातक की पहली पत्नी जीवित होते हुए दूसरा विवाह होता है या उसको एक उप पत्नी (रखैल) भी होती है। कभी-कभी संतानाभाव के कारण जातक दूसरा विवाह कर लेता है और पहली पत्नी को किसी प्रकार इस बात के लिए मना भी लेता है।
दो जीवित पत्नी योग:
1. निर्बल सप्तमेश सप्तम भाव में पाप युत हो या पाप दृष्ट हो।
2. निर्बल द्वितीयेश द्वितीय भाव में पाप युत या पाप दृष्ट हो।
3. द्वादश भाव में मंगल हो तथा सप्तम भाव और अष्टम भाव में पाप ग्रह हों।
4. लग्नेश या सप्तमेश नीच या शत्रु राशि में हो या अस्तंगत हो।
5. सप्तम भाव में राहु और सूर्य की युति हो।
6. बुध सप्तम भाव में स्वराशि का हो तथा शुक्र शुभ दृष्टि रहित हो।
जातक के तीन या अधिक विवाह के योग:
1. द्वितीय भाव में एक से अधिक पाप ग्रह हों और द्वितीय भाव का स्वामी उन्हें देखता हो।
2. सप्तम भाव में एकाधिक पाप ग्रह हो और सप्तमेश की दृष्टि उन पर हो।
3. लग्न, द्वितीय एवं सप्तम भाव में पाप ग्रह हों और सप्तमेश नीच शत्रु राशि या अस्त हो।
4. चंद्र और शुक्र बली होकर युत हो।
5. बलि शुक्र सप्तम भाव को देखता हो।
6. लग्नेश, द्वितीयेश और षष्ठेश सप्तम भाव में पाप ग्रहों से युत हो।
7. शनि सप्तमेश होकर पाप ग्रहों से युत हो।
8. सप्तमेश जिस भाव में हो उससे तृतीय भाव में बली चंद्र हो।
8. तृतीय भाव में द्वितीयेश और द्वादशेश हो तथा गुरु या नवमेश से दृष्ट हो।
9. सप्तमेश बली होकर शुभ वर्ग में केंद्र या त्रिकोण में हो तथा दशमेश की दृष्टि उस पर हो।
10. सप्तमेश और एकादशेश में परस्पर युति या दृष्टि संबंध हो।
11. शुक्र, मंगल और राहु द्विस्वभाव राशि में युत हो तथा पाप दृष्ट हो।
12. एकादश भाव में पंचमेश और सप्तमेश पर तृतीयेश की दृष्टि हो।
13. लग्नेश और सप्तमेश परस्पर युत या दृष्ट हो।
14. शनि द्वितीयेश होकर पाप ग्रहों से युत हो।
चूंकि वर्तमान समय में बहु-विवाह की अवधारणा अवैध है इसलिए एक के बाद एक पत्नी की मृत्यु के बाद इसकी संभावना रहती है या फिर जातक के पत्नी के अतिरिक्त दूसरी स्त्रियों से यौन संबंध होते हैं।
उदाहरण 1: जातक की कुंडली में प्रेम विवाह एवं बहु-विवाह के योग:
1. राहु लग्न में स्थित है।
2. सप्तमेश तथा सप्तम भाव राहु केतु से युत दृष्ट है। अतः जातक का प्रेम विवाह हुआ।
बहु-विवाह के योग:
1. शनि सप्तमेश होकर लग्न में पाप ग्रह राहु से युत और केतु एवं मंगल से दृष्ट है।
2. सप्तमेश शत्रु राशि में है।
3. कलत्र कारक शुक्र क्रूर ग्रह सूर्य से युत है।
4. सप्तमेश लग्न भाव में है और उससे तृतीय भाव में बली चंद्र है।
जातक का जातिका के साथ प्रेम विवाह के कुछ महीने बाद ही तनाव के कारण अलगाव की स्थिति आ गई। दोनों अलग-अलग रहने लगे और अभी तलाक का आवेदन लंबित है। चूंकि दोनों पक्ष की रजामंदी है इसलिए तलाक का मात्र कोर्ट से अनुमोदन होना है और फिर दूसरी शादी जातक एवं जातिका की होगी। गुरु सप्तमेश भी है अतः जातिका की कुंडली से भी प्रेम विवाह का प्रबल संकेत मिला है।
जातिका की कुंडली में द्विविवाह योग ः
1. कलत्र कारक शुक्र पाप युत है।
2. मंगल सिंह राशि में है।
3. सप्तमेश गुरु और राहु का दृष्टि संबंध है।
उपरोक्त योगों के कारण तलाक की स्थिति आ गई और दूसरी शादी करने की बारी आने वाली है। जातिका की उपरोक्त कुंडली पर विचार करें। लग्न और चंद्रमा दोनों विषम राशि में हैं जिसके कारण जातिका का स्वभाव पुरुष प्रधान गुणों से पूर्ण है।
वह मृदु स्वभाव की न होकर पुरुष के सदृश आकृति वाली है। चंद्रमा पर मंगल के पाप प्रभाव के कारण वह कुशीला और गुणों से हीन भी है। सप्तमेश गुरु षष्ठ भाव में केतु से युत और राहु से दृष्ट है, वहीं शुक्र मंगल से युत है और सप्तम भाव भी शनि से दृष्ट है। शनि विच्छेदात्मक ग्रह भी है। शय्या सुख के भाव द्वादश मंे राहु है। इन सब कारणों से इस स्त्री जातक का दाम्पत्य सुख हीन है। अतः इसकी दूसरी शादी भी सफल नहीं रहेगी।
उदाहरण 2: यह कंुडली एक जातक की है, जातिका की कुंडली अनुपलब्ध है। जातक का विवाह पिछले वर्ष हुआ। शादी के एक महीने बाद ही शादी टूटने के कगार पर आ गयी। लड़की वालों ने दहेज उत्पीड़न एवं घरेलू हिंसा का मुकदमा लड़के वालों पर कर दिया। आपसी समझौते के आधार पर तलाक हो चुका है और न्यायालय से मुकदमा वापस लिया जा चुका है। लड़के की दूसरी शादी होने जा रही है।
लड़के (जातक) की कुंडली के आधार पर योगों की परीक्षा इस प्रकार है-
द्विविवाह योग:
1. जातक की कुंडली में कलत्र कारक शुक्र पाप युत है।
2. अष्टमेश शनि लग्न में है। बहु विवाह योग भी जातक की कुंडली में घटित हो रहा है क्योंकि लग्नेश चंद्रमा उच्च राशि में है।
इस प्रकार ज्योतिषीय योगों की परीक्षा उपरोक्त कुंडलियों के ग्रह-योगों पर करते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि निर्देशित प्रेम-विवाह के योग, द्विविवाह एवं बहु विवाह के योग परिलक्षित हो रहे हंै और वस्तु स्थिति भी यही है। जातक-जातिका का दूसरा विवाह सफल होगा या नहीं, यह भी कुंडली से जाना जा सकता है।
यह ज्योतिष का सामान्य नियम है कि सप्तम भाव, सप्तमेश, कलत्र कारक शुक्र निर्बल हो, पाप पीड़ित हो, पाप कर्Ÿारी में हो तो दाम्पत्य सुख की न्यूनता रहती है। जब कुंडली में इन चीजों के साथ व्यभिचार योग आदि भी घटित हो रहे हों तो दाम्पत्य जीवन को झकझोर देता है। स्त्री या पुरुष कोई भी पति/पत्नी के संदिग्ध विवाहेतर संबंध को स्वीकार नहीं करते और जीवन अलगाव एवं तनाव में आ जाता है। फिर दूसरी शादी की सफलता भी संदिग्ध हो जाती है।
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