पंडित जगदंबा प्रसाद गौड़ अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ के क्षितिज के एक देदीप्यमान सितारे थे। उनका यूं अचानक ब्रह्मलीन होना न केवल आईफास बल्कि उनके लाखों चाहने वालों के लिए अत्यंत क्षतिपूर्ण है। गौड़ साहब से हमारे संबंध अत्यंत पुराने हैं। पिछले 20 वर्षों से ये हमारे परिवार से जुड़े हुये थे और बंसल साहब से आत्मिक रूप से प्रेम करते थे। उन्हीं के मुखारबिंद से सुने उनके जीवन के कुछ अंश उनके पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रही हूं।
गौड़ साहब का जन्म पंजाब में सुनाम में हुआ था। उनके दादा जी पंदुर्गा दास गौड़ वहां के विख्यात ज्योतिषी थे और उनका काफी नाम था। लेकिन उनके पिता को ज्योतिष में दिलचस्पी नहीं थी। वे आढ़त का व्यापार करते थे। एक दिन गौड़ जी जब बच्चे थे तो घर की बैठक में एक पत्री मिली जिसमें कुछ पैसे रखे थे तो बाल सुलभ उत्सुकता में उन्होंने पूरी अलमारी छान मारी कि शायद कुछ और पैसे मिल जाएं और इसी खोज ने उनके मस्तिष्क में इस विद्या को जानने की उत्सुकता भर दी।
वे उन जन्म पत्रियांे को लेकर उनके बारे में जानने की कोशिश करने लगे। घर में रखी ज्योतिष की किताबांे का अध्ययन करने लगे और 12 वर्ष की आयु तक उन्होंने श्री कोटेश्वर गिरी जी महाराज को अपना गुरु बना लिया था और उनसे दीक्षा ग्रहण कर ली थी। पिता ने उन्हें व्यापार में लगाने की बहुत कोशिश की परंतु उनका मन व्यापार में नहीं लगता था। वे घर से भाग कर सभी अखाड़ांे के साधु संतों से मिलने व उनकी सेवा में ही अपना सारा समय निकाल देते थे।
प्रत्येक कुंभ मेले में जूना अखाड़े के साथ जाना और कोई भी कार्य जैसे चंवर झुलाना आदि सहर्ष स्वीकार करते। इन्होंने जगरांव में महावीर दल के प्रधान के रूप में भी कार्य किया और 1972 से पूरी तरह से अध्यात्म व ज्योतिष से जुड़ गये। तभी से सुबह एवं सायंकाल में दुर्गा सप्तशती व रूद्री का पाठ उनकी दिनचर्या में शामिल था। यह पाठ तो उन्होने मान सरोवर की कठिन यात्रा के दौरान भी नहीं छोड़ा था। पंडित जी को सभी धार्मिक स्थलों की यात्रा करने में बहुत आनंद आता था।
कठिन से कठिन यात्रा वे सहज ही पैदल कर लेते थे। अपने जीवन काल में वे पांच बार मणि महेश, पांच बार अमरनाथ, असंख्य बार कुंभ मेले में, कामाख्या देवी, चिन्तपूर्णी, इलाहाबाद में प्रयाग राज के दर्शन करने गये। धार्मिक यात्राएं व दैनिक पूजा पाठ उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था। इसके बिना उन्हें जीवन में आनंद ही नहीं आता था। पिछले चालीस वर्षों से नवरात्र में सिर्फ उबला पानी पीते थे तथा सारा समय पूजा में ही व्यतीत करते थे।
पिछले पंद्रह वर्षों से अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ के पंजाब प्रांत के गर्वनर के रूप में कार्यरत थे और हजारों की संख्या में उन्होंने वहां के विद्यार्थियों को ज्योतिष की शिक्षा प्रदान की। मुंडेन एस्ट्रोलाॅजी पर अत्यंत ज्ञानवर्धक पुस्तक लिखी और अनेक बार दिल्ली में अष्टक वर्ग व मुंडेन पर कार्यशाला भी की जिसमें सौ से भी ज्यादा विद्यार्थियों ने भाग लिया। फ्यूचर समाचार में पिछले कई वर्षों से लगातार ‘ग्रह स्थिति एवं व्यापार’ पर लिख रहे थे और अपने पाठकों में अत्यंत प्रिय थे।
दुनिया भर से उनके पास बाजार की जानकारी लेने के लिए फोन आते थे। पंजाब के आढ़ती दूर-दूर से उनके पास आकर जानकारी लेते थे और मुनाफा कमाते थे। गौड़ साहब अत्यंत ही सरल, संस्कारी, कर्तव्यनिष्ठ एवं समर्पित व्यक्ति थे। फ्यूचर पाॅइंट, आईफास के प्रति उनका समर्पण वास्तव में प्रशंसनीय है। उनका असामयिक निधन न केवल उनके परिवार बल्कि आईफास परिवार के लिए भी अत्यंत क्षति पूर्ण है।
गौड़ साहब के जीवन का अधिकांश समय पूजा पाठ में व्यतीत होता था इसी कारण उन्होंने अपनी अंतिम श्वांस योग मुद्रा में ही छोड़ी और उन्हें लेशमात्र भी कष्ट नहीं हुआ। अपने नाम के अनुरूप जगदंबा जी के अनन्य भक्त थे और इसीलिए मां जगदंबा ने अपने प्रिय पुत्र को बिना कष्ट दिए अपनी गोद में समेट लिया। 5 मई को लुधियाना में उन्हें अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए जाना था।
इस दिन अपने सहकर्मियों से जल्दी आने का वादा करके आए थे इसलिए दोपहर 12 बजे भोजन के बाद 10 मिनट आराम करने के लिए अपने कक्ष में चले गये। 10 मिनट बाद जब पुत्र उठाने गया तो योग मुद्रा में बैठे-बैठे ब्रह्मलीन हो गये थे। ईश्वर से करबद्ध यही प्रार्थना है कि वे सदा मार्गदर्शक बन आईफास व उनके विद्यार्थयों को प्रेरणा देते रहें और ज्योतिष के प्रति उनके समर्पण की तरह सभी उसी तरह इस विद्या पर समर्पित हो सकंे यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
स्वर्गीय गौड़ साहब की कुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण ज्योतिष के अनुसार मेष लग्न के जातकों का जन्म आध्यात्मिकता व सांसारिकता में सामंजस्य स्थापित करने के लिए होता है। गौड़ साहब के व्यक्तित्व में इन दोनों गुणों का सुंदर समावेश था। इनकी रूचि पठन-पाठन व पूजा-पाठ में तो थी ही साथ ही इन्होंने ज्योतिष की सत्यता स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किये। लुधियाना शहर के लोग इनको पंडित जी के नाम से जानते थे।
देश-विदेश के व्यापारी वर्ग की इनके प्रति विशेष श्रद्धा भावना थी क्योंकि इन्हें ज्योतिष विद्या से न केवल जातक बल्कि बाजार की तेजी-मंदी की पूर्णतया सटीक भविष्यवाणी करने की विशेष योग्यता प्राप्त थी। गौड़ साहब की जन्मपत्री में मेष लग्न पर चंद्रमा व शुक्र की दृष्टि के प्रभाव से ये बड़े शालीन व सज्जन व्यक्ति थे। लग्न में केतु, पंचम भाव में बुध व पंचमेश की गुरु व गुप्त विद्याओं के कारक अष्टमेश से युति के कारण इन्हें ज्योतिष का विशेष ज्ञान प्राप्त हुआ।
आपकी कुंडली में पंचमेश सूर्य, नवमेश गुरु तथा लग्नेश एवं अष्टमेश मंगल की युति छठे भाव में एक साथ हो रही है और सभी की दृष्टि व्यय भाव (बारहवें भाव) पर होने से उनका अधिकांश समय पूजा पाठ, तीर्थ यात्रा, धार्मिक कार्यों एवं व्रत आदि में व्यतीत हुआ। पंचम स्थान पर स्थिर राशि सिंह पर बुध की स्थिति होने से तथा साथ ही नवांश में पंचमेश सूर्य व चतुर्थेश चंद्रमा की बृहस्पति के नवमांश में स्थित होने से इनका ज्योतिष विद्या के प्रति अत्यंत लगाव तथा समर्पण का भाव जीवन पर्यंत बना रहा।
गौड़ साहब की कुंडली में अनेक अच्छे योग हैं जिनका विश्लेषण यहां दिया जा रहा है। वाशि योग सूर्य से द्वादश स्थान में चंद्र को छोड़कर यदि कोई अन्य ग्रह हो तो यह योग बनता है। इनकी कुंडली में सूर्य से बारहवें भाव में बुध होने से यह योग पूर्ण रूप से घटित हो रहा है जिसके फलस्वरूप ये उद्यमी, उच्च विचार एवं सात्विक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। विमल योग यदि जन्मकुंडली में बारहवे भाव का स्वामी दुःस्थान में हो और वह अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो यह योग बनता है।
इनकी कुंडली में बारहवंे भाव का स्वामी गुरु अशुभ स्थान में अशुभ ग्रह मंगल से युक्त है जिसके कारण वे सुखी, सद्गुणी अच्छे कार्यकत्र्ता एवं समदर्शी प्रकृति के उदार व्यक्ति थे। सुनफा योग यदि कुंडली में सूर्य को छोड़कर चंद्रमा से दूसरे भाव में कोई ग्रह हो तो यह योग बनता है। इनकी कुंडली में चंद्रमा से दूसरे भाव में शनि स्थित होने से यह योग घटित हो रहा है।
इस योग के कारण वे धार्मिक, यशस्वी, गुणी तथा पंजाब प्रांत में अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ के गवर्नर भी बने रहे। आपकी कुंडली में लग्नेश मंगल एवं दो शुभ ग्रह शुक्र तथा चंद्र की लग्न पर दृष्टि होने से आप सच्चरित्र, कत्र्तव्यनिष्ठ, सरल एवं मृदु स्वभाव के व्यक्ति थे। गौड़ साहब के आकास्मिक मृत्यु के कारण इनकी आयु के संबंध में ज्योतिषीय ग्रह योग का विचार करें तो अधिकांश रूप से इनकी कुंडली में मध्यम आयु योग घटित हो रहा है। मध्यायु योग लग्नेश व अष्टमेश मंगल पूर्णतया अस्त है।
जीवन में रक्षा कवच प्रदान करने वाला गुरु लग्न से छठे व चंद्रमा से द्वादश भाव में स्थित होकर शकट योग का निर्माण कर रहा है। अतः निर्बल होकर सुरक्षा देने में असमर्थ है। अन्य शुभ ग्रह चंद्रमा व शुक्र पीड़ित व बलहीन हैं, साथ ही पापकर्तरी में भी हैं। बुध ग्रह भी शनि से दृष्ट होकर पापी हो गया है। इस प्रकार कुंडली में लग्नेश, गुरु, बुध, शुक्र व चंद्रमा आदि सभी शुभ ग्रहों में से एक भी बलि न होने के कारण इनका शनि अष्टमस्थ होने के बावजूद भी आयु योग कमजोर ही रहा।
वर्तमान समय में शनि की साढ़ेसाती चल रही थी और शनि सप्तम भाव पर चंद्र के ऊपर चल रहे थे इसलिए उनकी पत्नी से बिछोह करा के उन्हें घोर कष्ट दिया। जैमिनी ज्योतिष के अनुसार यदि आत्मकारक ग्रह से द्वितीयेश और अष्टमेश (दोनों में जो बली हो), वह यदि पणफर स्थान 2, 5, 8, 11 में हो तो मध्यायु होती है।
इनकी कुंडली में बुध आत्म कारक ग्रह है उससे द्वितीय स्थान स्वामी स्वयं बुध ही है और वह पणफर स्थान पंचम में है जिसके फल स्वरूप इनकी मध्यायु हुई। अन्य जैमिनी सूत्र के अनुसार यदि लग्नेश और अष्टमेश द्विस्वभाव राशि में हो तो मध्यायु होती है। इनकी कुंडली में मंगल लग्नेश तथा अष्टमेश होकर द्विस्वभाव कन्या राशि में है जिससे मध्यायु योग बनता है।
बिना पीड़ा मृत्यु योग फल दीपिका ज्योतिष ग्रंथ के अनुसार यदि जन्मकुंडली में द्वादशेश सौम्य ग्रह की राशि अथवा सौम्य ग्रह के नवमांश में हो तो बिना पीड़ा कष्ट के मृत्यु होती है। इनकी कुंडली में द्वादश भाव का स्वामी ग्रह बृहस्पति सौम्य ग्रह बुध की राशि में है एवं नवमांश में भी बुध की ही राशि में है जिसके फलस्वरूप इनकी मृत्यु बिना कष्ट व पीड़ा सहे हुई।
पुनर्जन्म योग फल दीपिका ग्रंथ के अनुसार ही यदि द्वादशेश मंगल से संबंध स्थापित करता हो तो जातक मरणोपरांत शीघ्र पृथ्वी पर जन्म लेता है। इनकी कुंडली में द्वादश भाव का स्वामी बृहस्पति मंगल के साथ होने से यह योग बना रहा है जिससे उनकी शीघ्र पृथ्वी पर दोबारा जन्म लेने की संभावना बन रही है।