होली व होलिका दहन का मुहूर्त- प्रदोष व्यापिनी ग्राह्य पूर्णिमा फाल्गुनी सदा। तस्या भद्रामुखं त्यक्त्वा पूज्या होला निशामुखे।। इति नारद-वचनात प्रदाकषव्यापिनीत्युक्तम। अर्थात सदा फाल्गुन मास की पूर्णिमा को प्रदोषव्यापिनी ग्रहण करें। ज्योतिर्निबंध में कहा गया है कि प्रतिपदा चतुर्दशी और भद्रा में जो होलिका के दिन पूजा करता है वह एक वर्ष तक उस देश और नगर को आश्चर्य से दहन करता है। प्रथम दिन प्रदोष के समय भद्रा हो और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले पूर्णिमा समाप्त होती हो तो भद्रा के समाप्त होने की प्रतीक्षा करके सूर्योदय होने से पूर्व होली का दहन करना चाहिये। यदि पहले दिन प्रदोष न हो और हो तो भी रात्रि भर भद्रा रहे। सूर्योदय होने से पहले न उतरे और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले ही पूर्णिमा समाप्त होती हो तो ऐसे अवसर में पहले दिन भद्रा हो तो भी उसके पुच्छ में होलिका दहन कर देना चाहिए।
यदि पहले दिन रात्रि भर भद्रा रहे और दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा का उत्तरार्द्ध हो तो भी उस समय यदि चन्द्र ग्रहण हो तो ऐसे अवसर में पहले दिन भद्रा हो तब भी सूर्यास्त के पीछे होली जला देनी चाहिए। यदि दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा हो और भद्रा उससे पहले उतरने वाली हो किंतु चंद्र ग्रहण हो तो उसके शुद्ध होने के पीछे स्नान-दानादि कर के होलिका दहन करनी चाहिये। यदि फाल्गुन दो हो, मलमास हो तो शुद्ध मास अर्थात दूसरे फाल्गुन की पूर्णिमा को होलिका दहन करना चाहिए। होली पूजन विचार- होली की पूजा रहस्यपूर्ण है। इसमें होली ढूंढा प्रींाद तो मुख्य है ही इसके अतिरिक्त इस दिन नवान्नेष्टि यज्ञ भी संपन्न होता है। इस परंपरा से धर्मध्वज राजाओं के यहां माघी पूर्णिमा के प्रभात में पूरी सामंत और सभ्य मनुष्य गाजे-बाजे सहित नगर से बाहर वन में जा कर शाख सहित वृक्ष लाते हैं और उसको गंध-अक्षतादि से पूजा कर नगर या गांव से बाहर पश्चिम दिशा में आरोपित करके स्थित कर देते हैं।
जनता में यह होलीदंड, होली का डांडा या प्रींाद के नाम से प्रसिद्व है। होलिका दहन के स्थान को जल छिड़क कर शुद्ध करके उसमें सूखी लकड़ी और सूखे उपले डालें, फिर होली के समीप जाकर शुभासन पर पूर्व या उत्तर मुख होकर बैठंे और तीन प्रदक्षिणा करके प्रार्थना करें और शीतल जल छिड़कें। फिर खेड़ा खांडा को होली में डालें तथा जौ, गेहूं की बाली और चने के झाड़ को होली की ज्वाला से सेंकें। होली की अग्नि तथा भस्म लेकर घर आयें। वहां आकर वास स्थान में गोबर से चैका लगा अन्नादि की स्थापना करें।
बाजे-गाजे सहित हास्य शब्द उच्चारें और गुड़ के बने पकवान बालकों को खाने के लिये दें। इस से ढूंढा के दोष शांत हो जाते हैं और सुख-शांति मिलती है। होली की राख से लाभ-आप यदि किसी भी ग्रह की पीड़ा भोग रहे हांे तो होलिका दहन के समय देशी घी में भिगो कर दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता अर्पित करना चाहिए। अगले दिन होली की राख लाकर अपने शरीर पर तेल की तरह लगा लें और एक घंटे बाद हल्के गरम पानी से स्नान कर लें, आप ग्रह पीड़ा से मुक्त हो जायेंगे। इसके अतिरिक्त आप किसी जादू-टोने से पीड़ित हैं तो यही क्रिया करने से भी मुक्त हो जायेंगे।
2- यदि किसी बच्चे या बडे़ को जल्दी-जल्दी नजर लगती हो तो इसी राख को तांबे के ताबीज में भर कर ताबीज को काले धागे में बाँध कर गले में पहन लें, नजर लगने से मुक्त हो जायंेगे।
3 - यदि आप किसी से कोई कार्य करवाना चाहते हैं तो तीन गोमती चक्र उसका नाम लेकर होली में अर्पित करें। अगले दिन होली की राख लाकर उसके मुख्य द्वार पर छोड़ आयें या चौराहे पर डाल आयें, वह आपका काम तुरंत कर देगा। होली दहन बेला होली पर्व सनातन धर्मावलंबियों के लिए विशेष हर्षोल्लास का पर्व है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में धार्मिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक रूप से समता तथा एकरूपता का प्रतीक भी है। होली दहन से आठ दिन पूर्व होलाष्टक प्रारंभ होता है।
इस समय में शुभ मांगलिक कार्यों को करने का निषेध होता है। इस बार होलाष्टक 5 मार्च से प्रारंभ होकर होलिका दहन के दिन 12 मार्च तक रहेगा। चतुर्दशी, प्रतिपदा एवं भद्रा के समय होलिका दहन निषिद्ध है। इस बार भद्रा प्रातःकाल में ही समाप्त हो जायेगी अतः सूर्यास्त के बाद 12 मार्च पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होगा तथा दूसरे दिन 13 मार्च को होली (धुलंडी) मनायी जाएगी।