तंत्र-मंत्रादि की साधना-सिद्धि, पुरश्चरण एवं चार्जिंग (पुनः सक्रिय करना) की चार मुख्य रात्रियां तंत्र-ग्रंथों में उल्लेखित की गयी हैं। ये हैं क्रमशः श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (मोह रात्रि), दीपावली- (काल रात्रि), शिव रात्रि (महा रात्रि) एवं होलिका दहन (महा पूर्णिमा रात्रि)। प्रथम तीन रात्रियां कृष्ण पक्ष में तथा होली की रात्रि महा पूर्णिमा को ही होती है, शास्त्रानुसार इसी दिन ‘सूर्य देव’ का जन्म भी हुआ था।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा (होलिका दहन) को साधक लोग तंत्र की अनेकों साधनाएं करते हैं जिनमें कुछ सिद्धियां समाज के कल्याण एवं आत्म रक्षा हेतु विशिष्ट होती हैं।
यहां कुछ सरल क्रियाओं का उल्लेख है जो अनेक विद्वानों एवं सिद्ध-महात्माओं द्वारा उद्घोषित क्रियाये हैं:
प्रयोग नं.-1 स्फटिक श्रीयंत्र को होली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी की रात्रि में ‘गुलाबजल’ में रखकर ‘फ्रीजर’ में रख दें। प्रातः जमे हुये ‘श्री यंत्र’ को फ्रीजर से निकाल नहाने वाले जल के बर्तन में डुबोकर जमी हुई बर्फ को घुलने दें, फिर बाहर निकाल लें। स्नान के बाद ‘श्री यंत्र’ पूजन करें, फिर ‘श्रीसूक्त’ के प्रत्येक ऋचा के आरंभ और अंत में इस मंत्र -‘‘ऊँ ओम ह्रीं क्रौं ऐं श्रीं क्लीं ब्लूं सौं रं वं श्रीं’- को लगाकर, इत्र से लिप्त नाग-केशर ‘श्री यंत्र’ पर चढ़ायें। इसके बाद रात में ‘श्री यंत्र, के सम्मुख ही उक्त मंत्र की 1008 आहुतियां - मधु, घी, दूध युक्त हवन-सामग्री से अग्नि में आहुतियां दें या 108 आहुतियां सूखे बिल्व पत्र, मधु, घी, दूध से लिप्त कर ‘जलती होली’ में अर्पित करें। अंत में ‘श्रीयंत्र’ तथा अर्पित ‘नाग केशर’- लाल वस्त्र में बांधकर अपनी तिजोरी में रखें। संपूर्ण वर्ष घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा, इसमें संदेह नहीं है।
प्रयोग नं.-2 होली (पूर्णिमा) की रात्रि को स्थिर लग्न में मां काली की पंचोपचार पूजा कर निम्न मंत्र से 1008 आहुतियां, हवन सामग्री में काली मिर्च, पीली सरसों, भूत केशी मिलाकर- अग्नि में दें। प्रत्येक 108 आहुतियों के बाद पान के पत्ते पर सफेद मक्खन, मिश्री, 2 लौंग, 3 जायफल, 1 नींबू, 1 नारियल (गोला), इत्र लगी रूई, कपूर रखकर मां काली का ध्यान कर अग्नि में अर्पण करें। यह आहुति 10 बार अग्नि में अर्पित करें। यह प्रयोग समस्त नजर दोष, तंत्र एवं रोग बाधाओं को समाप्त कर देता है। मंत्र: ‘‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै बिच्चै, ऊँ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै बिच्चै ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।’’
प्रयोग नं.-3 होली (पूर्णिमा) के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले पीपल पर हल्दी मिश्रित गुलाबजल चढ़ायें, देशी घी का दीपक और धूप जलायें, 5 तरह की मिठाई, 5 तरह के फल, 21 किशमिश का भोग लगायें तथा कलावे से 7 परिक्रमा करते हुये पीपल का बंधन करें और निम्न मंत्र का जप करें। इससे घर में धन-समृद्धि आती है। मंत्र - ‘‘ऊँ’’ ह्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी मम् गृहे धन पूरय चिंता दूरय दूरय स्वाहा।’’
प्रयोग नं.-4 होली की रात्रि में साबुत उड़द और चावल- एक साथ उबाल कर पत्तल पर रखें। 5 प्रकार की मिठाई और सरसों के तेल के दीपक में 1-1 रुपये के 5 सिक्के डालकर, दीपक जलाकर, निम्न मंत्र का 108 बार जप करके, सभी सामान को निर्जन स्थान पर रख आयें, पीछे मुड़कर न देखें। इससे धन का आगमन होता है। मंत्र -‘‘ऊँ ींीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ींीं’’
प्रयोग नं.-5 होली की रात्रि को स्थिर लग्न में पीपल के पांच अखंडित (साबुत) पत्ते लेकर, पत्तल में रखें, प्रत्येक पत्ते पर पनीर का एक टुकड़ा तथा एक रसगुल्ला (सफेद) रखें। आटे का दीपक बनाकर, सरसों का तेल भरकर जलायें। मिट्टी की कुलिया (बहुत छोटा-सा कुल्हड़) में, जल-दूध-शहद और शक्कर मिलाकर, भक्ति-पूर्वक सारा सामान पीपल पर चढ़ाकर, हाथ जोड़कर श्रद्धा से आर्थिक संकट दूर होने की प्रार्थना करें, वापसी में पीछे मुड़कर न देखें। यही प्रयोग आने वाले मंगल तथा शनिवार को पुनः करें।
किंतु फिर से पीपल के पत्तों का प्रयोग न करें। तीनों बार घर लौटकर लाल चंदन की माला पर निम्न मंत्र की 3 माला जपें: मंत्र: ‘‘ ऐं ींीं क्लीं सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः। मनुष्योमत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः क्लीं ह्रीं ऐं।।’’