प्रश्न: घर अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान का दक्षिण-पश्चिम भाग यदि नीचा अथवा दबा हुआ हो तो यह किस प्रकार की परेशानियां पैदा कर सकता है? इन परेशानियों से बिना तोड़-फोड़ किये कैसे निजात पायी जा सकती है?
उत्तर: जय इंदर मलिक के अनुसार- दक्षिण-पश्चिम अर्थात् र्नैत्य कोण का भाग वास्तु की मान्यता के अनुसार वास्तु पुरूष के पैर र्नैत्य में होते हैं। जब देवताओं ने वास्तु पुरूष को अधोमुखी गिराया था तो उसका सिर ईशान कोण में एवं पैर र्नैत्य कोण में थे और यदि यह कोण दबा हुआ और नीचा होगा तो यह भवन या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में व्याधियां पैदा कर सकता है। इस कोण में पृथ्वी तत्व की प्रधानता है।
जिस प्रकार पृथ्वी अनेक तत्वों और अनेक प्रकार के खनिजों जैसे लोहा, तांबा आदि से भरपूर है उसी प्रकार हमारे शरीर में भी अन्य धातुओं के अतिरिक्त लौह धातु भी हैं। अर्थात हमारा शरीर भी चुंबकीय है और इसकी चुंबकीय शक्ति से हमारा शरीर प्रभावित है। इस दिशा के अधिपति राक्षस (राहु/ केतु) हैं।
परिवार के मुखिया को हानि: यदि र्नैत्य कोण का भवन नीचा या दबा हुआ होगा तो परिवार के मुखिया या बड़े बेटे को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान करेगा। परिवार के स्त्री पुरुषों में आपसी कलह होती रहती है।
बोरिंग एवं कुआं: यदि र्नैत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा में बोरिंग या कुआँ होगा तो यह भू-स्वामी के लिए विवादित वास्तु :
जय इंदर मलिक
ईश्वर लाल खत्री
के. के. निगम मृत्यु का कारक होगा।
रोग- यदि इस दिशा में उपरोक्त दोष होगा तो गुर्दा, गर्भाशय विकार, उदर विकार, अपव्यय, आंतों की बीमारी आदि होने की संभावना रहती है।
प्रवेश द्वार: यदि भवन का मुख्य प्रवेश द्वार नीचा हो तो अपयश, जेल-दुर्घटना, आत्म हत्या के शिकार बन सकते हैं।
रसोई घर: इस कोण में दोष होने पर घर में लड़ाई झगड़ों में वृद्धि- परेशानी और दुर्घटना का भय रहता है। इनके अतिरिक्त इस दिशा में दरवाजे और खिड़कियां अधिक नहीं होनी चाहिये। उन्हें बंद करवा कर उनकी संख्या कम कर देनी चाहिए।
सीढ़ियाँ बनाने के लिए नैर्ऋत्य कोण उत्तम स्थान है इस दोष को दूर करने के उपाय :
1. नै्र्रत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा सदैव ऊंची एवं भारी बनायें। इस दिशा में भवन का भाग ऊंचा व भारी रखें जिससे अन्य दिशाओं का जल इस ओर न आये।
2. र्नैत्य दिशा शुद्ध रखने पर भाग्य वृद्धि होती है।
3. इस दिशा में यदि खाई हो तो उसे भरवा लें तथा वहां भारी सामान, जैसे अलमारी, मशीनें आदि रखें ।
4. र्नैत्य दिशा में ऊंचा चबूतरा बनवा लेना चाहिये। यह भाग्य यश, समृद्धि व धन कारक होता है।
5. इस दिशा के आस-पास ऊंचे वृक्ष लगवाने चाहिये।
6. गृह स्वामी का शयन कक्ष इस दिशा में होना चाहिये। सिर दक्षिण दिशा में और पैर उत्तर में होना चाहिए। शयन कक्ष में र्नैत्य कोण के द्वार न हों।
7. शयन कक्ष में दक्षिण-पश्चिम भाग खाली नहीं होना चाहिए वहां भारी सामान फर्नीचर आदि रख दें।
8. मुकदमेबाजी, कानूनी अड़चनों से बचने के लिये इस दिशा को उत्तर-पूर्व की अपेक्षा ऊंचा रखें। यह सुख समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य का कारक है।
9. इस दिशा में काँटेदार पौधे, बबूल आदि न हों।
10. दक्षिण और र्नैत्य के मध्य शोचालय भी शुभ है।
11. जलपान गृह का कक्ष दक्षिण-पश्चिम भाग में बनायें।
12. भंडार गृह इसी भाग में बनायें और तलघर इस भाग में भूल कर न बनायें।
13. राहु यंत्र स्थापित करें।
14. घर के मुख्य द्वार पर भूरे या काले या मिश्रित रंग के गणपति लगायें।
15. दक्षिण-पश्चिम कमरे में सूर्य का प्रकाश न करें तो शुभ होता है।
16. र्नैत्य कोण में अग्नि या विद्युत संबंधी कोई संयंत्र नहीं होना चाहिये। ऐसा करने से अग्नि कांड या किसी दुर्घटना की आशंका रहती है।
17. इस दिशा में इमली-जामुन, कदंब के वृक्ष लगाने चाहिये।
18. इस दिशा में खुला स्थान न छोड़ंे। इस क्षेत्र में मुख्य द्वार अथवा चारदीवारी का द्वार न बनायें।
19. महत्वपूर्ण दस्तावेज, अमूल्य वस्तुएं, जेवरात आदि अलमारी में इस दिशा में रखें।
20. र्नैत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) भाग ईशान कोण अर्थात (उत्तर-पूर्वी) भाग से नीचा हो, तब ईशान कोण में चैड़ा दर्पण लगा दें। इससे यह फर्श की ऊंचाई का एहसास दिलाता है और शुभ फल अर्थात आय आदि में वृद्धि होती है।
21. घर का कबाड़ इसी दिशा में रखें और कबाड़ घर का द्वार एक पल्ले का टीन या लोहे का होना चाहिए और वहां किसी देवता का चित्र नहीं होना चाहिये। ईश्वर लाल खत्री के अनुसार - जहां एक ओर उŸार-पूर्व अर्थात् र्नैत्य में वास्तु पुरुष के पैर रहते हैं वास्तु पुरुष के पैर धरातल से संतुलन में रहने चाहिए, लेकिन ईशान से कुछ ऊपर होने चाहिए। यदि यह भाग दबा हुआ, नीचा या अंदर धंसा हुआ हो तो असंतुलन होने से सर्वप्रथम जातक का स्वास्थ्य बाधित होगा।
जातक अस्वस्थ होकर कई बीमारियों जैसे- मधुमेह, मानसिक तनाव, अनिद्रा, क्रोध, चिड़चिड़ापन, निराशा, ऊपरी बाधा, भूत-प्रेत चक्कर, जादू-टोने एवं विष प्रभाव आदि से ग्रसित हो जायेगा। दादा, बाबा को कष्ट, चोरी, चोट व नौकर द्वारा इस स्थान पर कब्जा करना, षडयंत्र, धूर्तता, जुआ, टोटका, कपट, दुर्घटना, अचानक घटने वाली घटनायें, तंत्र-मंत्र, प्राकृतिक आपदायंे, नाखूनों का नीला पड़ना, आंखों के नीचे काले घेरे पड़ना, सौंदर्य में कमी, त्वचा रोग, पागलपन, मिर्गी, मोटापा, हकलाहट, विवाह में विलंब, ससुराल से असहयोग, संबंधों में दूरियां बढ़ना, राज्यसरकार से हानि, दादा-नाना, पत्नी को कष्ट, अपयश, किसी कार्य से संतुष्ट न होना, हत्या-आत्महत्या का विचार आना, आर्थिक तंगी, वाणी दोष, कठोर वचन कहना, शत्रु, कर्ज व रोग-रिपु परेशानी, अकाल भय व मृत्यु आदि नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं।
यदि इस भाग में धंसे हुए के अलावा अन्य दोष जैसे- इस भाग को गीला रहने से आर्थिक परेशानी, खुले रहने से सकारात्मक ऊर्जा के न टिकने से स्वास्थ्य का खराब होना आदि प्रमुख हैं, अतः इस भाग का अन्य भागों व दिशाओं से ऊंचा होना शुभ रहता है। इसके अलावा इसका ठोस, बंद, सूखा, समकोण व भारयुक्त होना शुभ रहता है। दक्षिण-पश्चिम र्नैत्य में क्रमशः दक्षिण व पश्चिम भाग के नीचे या दबे हुए या अन्य दोष होने पर क्रमशः स्त्रियों व पुरुषांे के मानसिक स्वास्थ्य के अलावा अन्य उपर्युक्त परेशानियां पैदा होंगी। अतः बिना तोड़-फोड़ के निम्न उपाय लाभदायक रहते हैं।
उपाय:
1- सर्वप्रथम भवन निर्माण या व्यावसायिक निर्माण इसी कोण से आरंभ करना चाहिए तथा 1-2 फुट अधिक ऊंचा रखना चाहिए, जिससे यह हिस्सा निर्माण दोष से मुक्त रहता है तथा उपरोक्त समस्या भी नहीं रहती है।
2- इस भाग में राहु, केतु, र्नैति, सरस्वती, गणेश जी के यंत्रों की स्थापना करें व इनकी साधना, पूजा करें।
3- घर के समस्त भारी समान इसी भाग में रखें।
4- मंनोरंजन की कोई भी वस्तु इस कोण में न रखें।
5- यह भाग नीचा हो तो इसी भाग में टी.वी. का काफी ऊंचा एंटीना लगाया जाये तो वास्तु दोष में काफी सुधार होता है।
6- यहां देवी-देवताओं का फोटो न लगाएं।
7- इस भाग में खिड़की, दरवाजे, रोशनदान, गैरेज आदिं न रखें।
8- गृहस्वामी इस भाग में दक्षिण में सिर करके सोयें।
9- ससुराल, पार्टनर व बोस से संबंध अच्छे रखें।
10- राहु-केतु के मंत्रों का जप करें।
11- शिवजी व श्रीहरि की पूजा करें।
12- दादा-नाना से संबंध-मधुर रखें।
13- सतनाज व जल दान करें या पक्षियां को खिलाएं।
14- धर्म का सदैव पालन करें।
अनैतिक कार्य कभी न करें। के. के. निगम के अनुसार - वास्तुशास्त्र का सिद्धांत है कि घर अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान, आयत या वर्ग में ही शुभ फलदायी होते हैं जबकि इनके चारों कोण समकोण हों परंतु कुछ स्थितियों में वह भूखंड भी शुभ फलदायी होते हैं जोकि भिन्न-भिन्न दिशाओं में बढ़े हुये भी होते हैं और कुछ भूखंड अशुभलदायी होते हैं जोकि भिन्न-भिन्न दिशाओं और उपदिशाओं में नीचे या दबे हुए होते हैं।
इसी क्रम में घर अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान का दक्षिण-पश्चिम (र्नैत्य) भाग यदि नीचा या दबा होता है, जिनका विकास निम्न चित्र के अनुसार हो सकता है तो ऐसी स्थिति में चूंकि दक्षिण-पश्चिम भाग में पृथ्वी तत्व की प्रधानता होती है और जब यही भाग नीचा या दबा हुआ हो तो इस प्रकार के घर और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में निम्न प्रकार की परेशानियों पैदा होती हैं-
1- यह घर रोग कारक होते हैं तथा इनमें निवास करने वालों में स्थिरता का अभाव हो जाता है।
2- संतान के लिए कष्टकारी होते हैं।
3- घर स्वामी को आर्थिक नुकसान एवं राजभय बना रहता है।
4- दक्षिण-पश्चिम भाग के देवता यम और स्वामी राहु-केतु होते हैं, इस कारण राहु और केतु के जो स्वाभाविक गुण और अशुभ कारकत्व होते हैं वे हो जाते है जैसे- राहु और केतु दादा और नाना के कारक हैं। इस कारण घरवासी के संबंध इनसे खराब हो जाते हैं। ससुराल से मधुरता नहीं रहती है, पत्नी की क्षति, नौकरी में दिक्कतें, अपनों से अलगाव, झूठ बोलने की प्रवृŸिा, जुए की खराब लत, भूत-प्रेत आदि ऊपरी हवाओं से स्त्रियों में मानसिक विकार, मधुमेह आदि से संबंधित परेशानियां पैदा हो जाती हैं।
5- व्यावसायिक प्रतिष्ठान में भंडारण में हानि, कर्ज हो जाना, व्यापार न चलने के कारण कुछ दिनों बाद स्थल का उजाड़ व सुनसान हो जाना, आग लगना, साख पर आंच आना, व्यापार में मन न लगना, दुर्घटनाएं आदि होने की परेशानियां पैदा होती हैं। उपर्युक्त परेशानियों से छुटकारा पाने हेतु बिना तोड़-फोड़ निम्न उपाय करके निजात पाई जा सकती है-
6- तीर्थ स्थान से लाये गये पांच पत्थरों को दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थापित किया जाये तथा इस भाग में कोई लंबा बढ़ने वाला पेड़ लगाया जाये।
7- इस दिशा में घर की वस्तुओं का भंडारण करें एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठान में माल का भंडारण तथा भारी मशीनें यहां पर लगवाएं।
8- राहु यंत्र की स्थापना करें तथा प्रतिदिन इसकी धूप-दीप से पूजा करें।
9- शुभ चिह्न स्वास्तिक, ऊँ, पंचागुलक, 786, ओमकार, क्रास, क्रिस्टल बाल आदि लगाएं।
10- कर्ज न उतर रहा हो तो इस दिशा को थोड़ा ऊंचा कर दें।
11- मन न लगता हो, इन्फेक्शन हो, आंतों में शिकायत हो, राजभय बना रहता हो, हानि हो तो इस दिशा में जरा सा गड्ढा खोदकर गोमेद दबा दें।
12- पिरामिड की स्थापना विधि अनुसार करें।
13- इस दिशा में लाल रंग का प्रकाश रखें।
14- गृहस्वामी, प्रतिष्ठान स्वामी काली गूंजा की माला पहनें।
15- सिद्ध गणपति की स्थापना करें।
16- गुरु पूर्णिमा के दिन शिवलिंग का धतूरे से अभिषेक करें।
17- राहु/केतु मंत्रों का जाप करें।
18- पाम्बा यंत्र लगाएं।
19- इस दिशा में वास के एक लंबे डंडे में पताका लगाएं।
20- सतनाजा तथा जल पक्षियों को खिलाएं।
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