कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में झिलमिल दीपों के बीच महालक्ष्मी का क्षीर सागर से धरा पर आगमन होता है। वे घर-घर में घूम-घाम कर अपने रहने योग्य स्थान का चयन करती हैं। जहां उनके अनुरूप वातावरण होता है, वहां रूक जाती हैं। लक्ष्मी जी हमारे घर में रूकें इस लिए हम प्रतिवर्ष उनकी विशेष पूजा-उपासना करके उन्हें प्रसन्न करते हैं ताकि हमारा घर वर्ष भर समृद्धि से परिपूर्ण रहे।
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्रत्येक लोक में मां लक्ष्मी को धन एवं ऐश्वर्य की महादेवी माना जाता है। धन का मानव जीवन में बहुत महत्व है। धन न हो तो कोई भी कार्य नहीं हो सकता। दीपोत्सव का पर्व वस्तुतः चार पर्वों का समुच्चय ै। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी, नरक चतुर्दशी, दीपावली एवं अन्नकूट, ये चारों पर्व मिलकर दीपावली पर्व को पूर्णता प्रदान करते हैं। दीपावली पर्व मनाने के लिए कई दिनों पूर्व पूरे घर की सफाई, घर क बाहर की सफाई, जहां कूड़ा फेंका जाता है, उस स्थान की सफाई कर के, हम लक्ष्मी मां के आगमन की तैयारी करते हैं।
जहां साफ-सफाई होती है वहां बीमारी नहीं फैलती, जहां स्वस्थ व्यक्ति रहते हैं, वहा लक्ष्मी स्वतः वैभव के साथ आती है। इसलिए वर्ष में पूरे घर की सफाई, घर के बाहर की सफाई किताबों व फाइलों आदि की सफाई, परिधानों व पर्दों आदि की सफाई करके हम लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी करते हैं। हर हिंदू परिवार में दीपावली की रात्रि को धन-संपदा की प्राप्ति हेतु लक्ष्मी का पूजन होता है।
ऐसा माना जाता है कि दीपावली की रात लक्ष्मी जी घर में आती हैं। इसीलिए लोग दहलीज से लेकर घर के अंदर जाते हुए लक्ष्मी जी के पांव (चरण) बनाते हैं। पुराणों के आधार पर कुल और गोत्रादि के अनुसार लक्ष्मी-पूजन की अनेक तिथियां प्रचलित रहीं, लेकिन दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन को विशेष लोकप्रियता प्राप्त हुई है।
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लक्ष्मी को चंचला कहा गया है जो कभी एक स्थान पर रूकती नहीं। अतः उसे स्थायी बनाने के लिए कुछ उपाय, पूजन, आराधना, मंत्र-जाप आदि का विधान है। लक्ष्मी साधना गोपनीय एवं दुर्लभ कही गई है। इसका मुख्य कारण विश्वामित्र का कठोर आदेश ही है।
विश्वामित्र ने कहा था - इस लक्ष्मी प्रयोग को सदैव गुप्त ही रखना चाहिए और जीवन के अंत में अपने अत्यंत प्रिय एवं सुयोग्य शिष्य को लक्ष्मी साधना समझाई जानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि समुद्र-मंथन में लक्ष्मी के प्रकट होने पर इन्द्र ने उनकी स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर लक्ष्मी ने इन्द्र को वरदान दिया कि तुम्हारे द्वारा दिए गए इस द्वादशाक्षर मंत्र का जो व्यक्ति नियमित रूप से प्रतिदिन तीनों संध्याओं में भक्तिपूर्वक जप करेगा, वह कुबेर सदृश ऐश्वर्य युक्त हो जाएगा। इस प्रकार से लक्ष्मी जी की पूजन विधि प्रचलित हुई।
लक्ष्मी जी का वास कहां? महर्षि वेद व्यास का कहना है धृतिः शमो दमः शौच कारूण्य बागनिष्ठुरा। मित्राणां चानभिद्रोहः सप्तैताः समिधः श्रियः।। महाभारत/उद्योग पर्व 38/38 अर्थात धैर्य, मनोनिग्रह, इन्द्रियों को वश में करना, दया मधुर वाक्य और मित्रों से वैर न करना ये सात बातें लक्ष्मी (ऐश्वर्य) को बढ़ाने वाली हैं। हितोपदेश में कहा गया है - उत्साह सम्पन्नम् दीर्घसूत्रं क्रिया विधिज्ञं असेनष्व सक्तम्। शूरं कृतज्ञं दृढ़ सौर दंच लक्ष्मी स्वयं यति निवास हेतो हितोपदेश-178 अर्थात उत्साही, आलस्यहीन, कार्य करने की विधि जानने वाला, अस्त्रों से रहित, शूर, उपकार मानने वाला तथा दृढ़ मित्रता वाले मनुष्य के पास लक्ष्मी स्वतः ही निवास के लिए पहुंच जाती हैं।
शारदातिलक 8/161 में उल्लेख किया गया है कि अधिक श्री की कामना करने वाले व्यक्ति को सदा सत्यवादी होना चाहिए, पश्चिम की ओर मुंह करके भोजन करना तथा हंसमुख मधुर भाषण करना चाहिए। एक बार लोक कल्याण के लिए प्रद्युम्न की माता रूक्मिणी ने लक्ष्मी जी से पूछा - ’देवी ! आप किस स्थान पर और किस प्रकार के मनुष्यों के पास रहती हंै? लक्ष्मी जी ने उत्तर दिया - ’जो मनुष्य मितभाषी, कार्य कुशल, क्रोधहीन, भक्त, कृतज्ञ, जितेंद्रिय और उदार है, उनके यहां मेरा निवास होता है।
सदाचारी, धर्मज्ञ, बड़े बूढ़ों की सेवा में तत्पर, पुण्यात्मा, क्षमाशील और बुद्धिमान मनुष्यों के पास सदा रहती हूं। जो स्त्रियां पति की सेवा करती हैं, जिनमें क्षमा, सत्य, इंद्रिय-संयम, सरलता आदि सद्गुण होते हैं, जो ब्राह्मणों तथा देवताओं में श्रद्धा रखती हैं, जिनमें सभी प्रकार के शुभ लक्षण मौजूद हैं, उनके समीप मैं निवास करती हूं। जिस घर में सदैव होम होता है, और देवता, गौ तथा ब्राह्मणों की पूजा होती है, उस घर को मैं कभी नहीं छोड़ती। लक्ष्मी कहां नहीं रहती है, उसके विषय में मार्कण्डेय पुराण 18/54/55 तथा शारंगधर पद्धति 657 में कहा गया है-’जिसके वस्त्र तथा दांत गंदे हैं, जो काफी खाता है तथा निष्ठुर भाषण करता है, जो सूर्यास्तकाल में भी सोया रहता है, वह चाहे चक्रपाणि विष्णु ही क्यों न हो, उसका लक्ष्मी परित्याग कर देती है।
वृहद्दैवतुरंजनम् 168 में कहा गया है कि ‘पराया अन्न, दूसरों के वस्त्र, पराया यान (सवारी), पराई स्त्री और परगृह वास - ये इन्द्र की श्री संपत्ति को भी हरण कर लेते हैं। लक्ष्मी जी का कथन है कि जो आलसी, क्रोधी, कृपण, व्यसनी, अपव्यययी, दुराचारी, कटु वचन बोलने वाले, अदूरदर्शी और अहंकारी होते हैं, उनके कितने ही प्रयत्न करने पर भी मैं अधिक दिन नहीं ठहरती। महाभारत/शांति पर्व 225 में उल्लेख मिलता है कि दैत्यराज बलि ने एक बार उच्छिष्ट भक्षण कर ब्राह्मणों का विरोध किया। श्री ने उसी समय बलि का घर त्याग दिया।
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लक्ष्मी ने कहा, चोरी, दुव्र्यसन, अपवित्रता एवं अशांति से मैं घृणा करती हैूं। इसी कारण आज मैं राजा बलि के राज्य का त्याग कर रही हूं भले ही वह मेरा अत्यंत प्रिय भक्त रहा है। लक्ष्मी जी को अपने घर बुलाएं तो कैसे यद्यपि मनुष्य पर्याप्त कार्य करता है, किंतु कर्मानुसार फल नहीं मिलता है, क्योंकि भाग्य उन्हें सहयोग नहीं देता एवं दरिद्रता तथा निर्धनता उसका साथ नहीं छोड़ती। जन्मकुंडली का द्वितीय भाव, धन, संपत्ति व वैभव कोष का भाव होता है। द्वितीयेश व द्वितीय भाव पर स्थित ग्रहों का विशेष महत्व है। शुक्र भोग तथा विलास का कारक ग्रह है, जो जीवन में भोग-विलास व काम प्रदान करता है।
यह जीवन में वैभव तथा समृद्धि का प्रतीक है। शनि कष्ट, दरिद्रता व अभावों का कारक ग्रह है। शनि मंत्र ‘ऊँ शं शनैश्चराय नमः’ अथवा ‘ऊं प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः मंत्र का कम से कम 23 हजार जप करें। उड़द, तिल, तेल, लोहा, काला वस्त्र, फूल या नीलम का यथाशक्ति दान कराएं। घर के पूजा गृह में दीपावली के दिन श्री यंत्र की स्थापना करें। महालक्ष्मी को कमल गट्टे की असली माला पहनायें।
‘ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्म्यै नमः’ का जाप करें। जप रूद्राक्ष, स्फटिक, लाल चंदन या कमल गट्टे की माला से करें। दीपावली के दिन शास्त्रोक्त विधि से मां लक्ष्मी की पूजा करें। ‘श्री सूक्त’ का यथेष्ठ पाठ, धन प्राप्ति के लिए अचूक उपाय माना जाता है। एक मुखी रुद्राक्ष समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है। 6-7 मुखी रुद्राक्ष मालाओं से महालक्ष्मी मंत्र का जाप करें। ‘‘प्रेम के दीप में सत्य की लौ जले, जगमगाता रहे हर्ष से घर तेरा। विपदा की घटाएं छटें शीघ्र ही, चमचमाता रहे चांद सा घर तेरा ।।
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