(1 नवंबर) धनतेरस यह पर्व कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि को होता है। इसे देवताओं के वैद्य धन्वन्तरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन नई वस्त, सोना, चांदी बर्तन आदि खरीद करने की शुभ परंपरा है। प्रदोष काल में यमराज के निमित्त दीप दान करने से परिवार में अकालमृत्यु के भय से रक्षा होती है। (2 नवंबर) नरक चतुर्दशी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चैदस रूप चतुर्दशी के रूप में मनाने की शास्त्रीय परंपरा है। देश में कई स्थानों पर इसे छोटी दीपावली के रूप में मनाने की प्रथा है तथा उत्तर भारत में हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रातःकाल में दंतधवन करके शरीर में तिलक, तेल की मालिश करके हल से उखड़ी हुई मिट्टी का ढेला, लौकी, अपामार्ग को अपने उपर बार-बार घुमाकर फिर शुद्ध स्नान करें। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को यमलोक की यात्रा से मुक्ति मिलती है। (4 नवंबर) गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा, अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है। इस दिन ब्रज मंडल नवंबर माह के मुख्य व्रत त्योहार में गोवर्धन की पूजा की जाती है तथा अन्य स्थानों में गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर गायों के साथ उसका पूजन किया जाता है। अन्नकूट के उत्सव में इस दिन अनेक प्रकार के व्यंजनों को बनाकर भगवान को नैवेद्य रूप में भोग लगाया जाता है। उसे भगवान के भक्तों को भोजन कराकर अन्य लोगों को वितरित कराना चाहिए। इससे भगवान बहुत प्रसन्न होकर धन-धान्य, सुख, समृद्धि प्रदान करते हैं। (5 नवंबर) भाई दूज कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मातृ द्वितीया, यम द्वितीया का पर्व मनाया जाता है। इस दिन यमुना में स्नान, दीपदान, यम पूजन करने का विशेष महत्व है। इस दिन बहन के घर जाकर भोजन करने से भाई की आयु की वृद्धि होती है तथा बहन का सुख सौभाग्य बढ़ता है। इसके अतिरिक्त इस दिन व्यापारी लोग मसिपात्र (दावत) का पूजन भी करते हैं, इसे कलमदान पूजा भी कहते हैं। (8 नवंबर) सूर्य षष्ठी (छठ) यह पर्व विशेष रूप से बिहार प्रांत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। प्रातःकाल नदी, तालाब, जलाशयों के तट पर व्रत रखकर सूर्य की पूजा की जाती है। इससे आयु आरोग्य सुख, धन, यश की प्राप्ति होती है। (13 नवंबर) देव प्रबोधिनी एकादशी कार्तिक शुक्ल एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु अपनी शयन शैय्या से जागते हैं। इस दिन व्रत, स्नान, दान, कथा श्रवण, जागरण का विशेष महत्व है। (15 नवंबर) बैकुंठ चतुर्दशी जिस दिन ब्रह्म मुहूर्त में चतुर्दशी तिथि व्याप्त होती है उस दिन ब्रह्म मुहूर्त में भगवान शिव तथा देवी का पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल में भगवान विष्णु ने वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव का सहस्र कमलों से पूजन किया था, तभी से यह बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध हुई। (17 नवंबर) कार्तिक पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा अत्यंत पुण्यदायिनी तिथि मानी गई है। इस दिन गंगा, पुष्कर आदि तीर्थों में स्नान करने से महान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त व्रत, दान, पूजा, आदि का विशेष माहात्म्य माना गया है।