गोमुखी कामधेनु शंख से  मनोकामना पूर्ति

गोमुखी कामधेनु शंख से मनोकामना पूर्ति  

व्यूस : 18207 | नवेम्बर 2013
गोमुखी शंख की उत्पत्ति सतयुग में समुद्र मंथन के समय हुआ। जब 14 प्रकार के अनमोल रत्नों का प्रादुर्भाव हुआ तब लक्ष्मी के पश्चात् शंखकल्प का जन्म हुआ। उसी क्रम में गोमुखी कामधेनु शंख का जन्म माना गया है। पौराणिक ग्रंथों एवं शंखकल्प संहिता के अनुसार कामधेनु शंख संसार में मनोकामनापूर्ति के लिए ही प्रकट हुआ है। अन्य रत्न और भी निकले जो इस प्रकार हैं- कल्पवृक्ष, कामधेनु, अमृत, चंद्रमा, धनवंतरी, कौस्तुभमणि आदि सभी शंख वर्तमान में भी समुद्र देव से ही प्राप्त हो रहे हैं। इस शंख की उत्प आज भी श्रीलंका और आस्ट्रेलिया के समुद्रों में अधिक होती है। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी शंख के नाम से जाना जाता है। पौराणिक शास्त्रों में इसका नाम कामधेनु गोमुखी शंख है। इस शंख को कल्पना पूरी करने वाला कहा गया है। कलियुग में मानव की मनोकामनापूर्ति का एक मात्र साधन है। यह शंख वैसे बहुत दुर्लभ है। इसका आकार कामधेनु के मुख जैसा है। लाल-पीला रंग का प्राकृतिक जबड़ा मुंह के रूप की शोभा बढ़़ा रहा है। ऊपर दो-तीन सिंग बने हुए हैं। - कामधेनु गोमुखी शंख के प्रयोग: किसी भी शुभ मुहूर्त में लाल वस्त्र धारण कर लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठकर सामने गोमुखी शंख को इस प्रकार से रखें कि आपके सामने शंख का मुंह रहे। रुद्राक्ष की माला से 11 दिन में 51 हजार जप करें। मंत्र जप के समय शंख के मुंह पर फूंक मारें। यह साधना 11 दिन में सिद्ध हो जाती है। यह शंख आपकी हर मनोकामना पूर्ण करता है साथ ही वाणी सिद्धि भी हो जाती है। मंत्र इस प्रकार हैः ऊँ नमः गोमुखी कामधेनु शंखाय मम् सर्व कार्य सिद्धि कुरु-कुरु नमः। लक्ष्मी प्राप्ति में कामधेनु शंख के विभिन्न प्रयोग: दुर्लभ कामधेनु शंख ऋषि-महर्षि साक्षी हैं - ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि मैं आज से लक्ष्मी को सिद्ध और प्रत्यक्ष करने के लिए साधना में कामधेनु शंख के सामने बैठ रहा हूं और संसार में इससे बड़ी साधना, इससे तेजस्वी मंत्र कोई नहीं है, ऐसा हो ही नहीं सकता कि मैं यह साधना करूं और लक्ष्मी मेरे आश्रम में पूर्णता के साथ प्रत्यक्ष प्रकट न हां। मंत्र- ऊँ नमः कामधेनु ह्रीं कमल वासिन्यै प्रत्यक्ष ह्रीं फट्। रात्रि को स्नान कर पीले आसन पर पूर्व की ओर मुंह करके कामधेनु शंख के सामने बैठें। 11 माला रुद्राक्ष से मंत्र जाप कर फूंक मारते समय लक्ष्मी अपने पूर्ण स्वरूप में वशिष्ठ के सामने प्रकट हुईं और कहा- मैं कामधेनु गोमुखी शंख की साधना से अत्यधिक प्रसन्न हूं और तुम्हारी साधना से जीवनपर्यंत तुम्हारे आश्रम में स्थापित रहूंगी एवं स्थिर वास कर हमेशा वरदान देती रहूंगी। इसी कारण ऋषि शंख को साथ में रखते थे। - महर्षि पुलस्त्य ने कामधेनु शंख के माध्यम से लक्ष्मी को पूर्णता के साथ प्राप्त करने के लिए विशेष प्रयोग सम्पन्न किया जिसकी आज भी पौराणिक शास्त्रों में विशेष चर्चा है। उन्होंने अपने सामने प्राकृतिक कामधेनु शंख स्थापित कर लाल आसन पर की ओर मुंह करके बैठं और स्फटिक माला से 21 बार जाप कर लक्ष्मी को प्रकट होने के लिए बाध्य कर दिया। यह सिद्ध कर दिया कि महर्षि पुलस्त्य का यह प्रयोग अत्यधिक चैतन्य पूर्ण है। मंत्र:- ऊँ कामधेनु शंखाय् ह्रीं ह्रीं ह्रीं कमल वासिन्यै आगच्छ ह्रीं ह्रीं ह्रीं नमः। अपार लक्ष्मी प्राप्ति के लिए महर्षि पुलस्त्य का यह प्रयोग पूर्ण सिद्ध है। साधक यह साधना कर अपार लक्ष्मी प्राप्ति कर सकता है। - शंकराचार्य अपने समय के अद्वितीय विद्वान हैं। उनके गुरु ने कहा शंकर जब तक तुम लक्ष्मी की आराधना और साधना सिद्धि कामधेनु शंख के द्वारा नहीं कर लेते तब तक जीवन में पूर्णता संभव ही नहीं है। लोक कल्याण के लिए उन्होंने एक गोपनीय प्रयोग शंकराचार्य को बताया कि किसी भी पूर्णिमा के दिन रात्रि के समय कामधेनु गोमुखी शंख के सामने सफेद वस्त्र धारण कर दिशा की ओर मुंह करके रुद्राक्ष की माला से 11 बार जाप कर शंख पर फूंक मारे। मंत्र- ऊँ नमः कामधेनु ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं फट्। जब मंत्र जाप पूरा हो जाये तो रात्रि में वहीं जमीन पर शंख के सामने सो जायें, प्रातः पूजन करें। - योगी शिवानंद संपूर्ण हिमालय में विख्यात हैं और लक्ष्मी से संबंधित सैकड़ों संस्मरण उनके साथ जुड़े हुए हैं। शरीर छोड़ने से पहले उन्होंने अपने मुख्य शिष्य योगी कृपाचार्य को यह लक्ष्मी सिद्ध प्रयोग बताया था जो सोने की कलम से लिखने योग्य है क्योंकि हिमालय पर संन्यासी और योगियों में इस साधना की अत्यधिक चर्चा है। मंत्र- ऊँ नमः कामधेनु शंखाय् मम् गृह धन वर्षा कुरु-कुरु स्वाहा। शुक्ल पक्ष में कामधेनु गोमुखी शंख के सामने की ओर मुंह करके लाल वस्त्र धारण कर लाल मूंगा की माला से लाल आसन पर बैठकर 51 बार जाप कर शंख पर फूंक मारें तो साधना सिद्ध होगी। - हिमालय पर नंदन वन में संन्यासी स्वामी योगीराज सच्चिदानंद जी का आश्रम है जो कि अत्यधिक विख्यात है। आज उसकी बड़ी चर्चा है। उन्हें नेपाल से एक प्राचीन गरथ शंख कल्प संहिता प्राप्त हुआ था। उसमें विशिष्ट लक्ष्मी प्रयोग था जिससे योगीराज सच्चिदानंद कामधेनु शंख के माध्यम से सिद्ध किया था। उनकी हस्तलिखित जीवनी में इस प्रयोग की चर्चा है एवं हिमालय के कई योगियों ने इस साधना से पूर्ण लाभ उठाया है। शुक्ल पक्ष के किसी भी बुधवार को पीली धोती धारण कर पीले आसन पर की ओर मंह करके कामधेनु शंख के सामने बैठ जायें। स्फटिक माला से 21 बार जाप कर शंख पर फूंक मारें। मंत्र- ऊँ नमः गोमुखी शंखाय् मम् गृह अन्न धन स्वर्ण वर्षा कुरु-कुरु स्वाहा। जाप के समय बीच में आसन नहीं छोड़ें चाहे छम-छम घुंघरुओं की आवाज या साक्षात् लक्ष्मी दिखाई दे। - पगला बाबा ने तो अपने जीवन में लाखों रुपये दान दिये फिर भी उनके खजाने में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने इसके लिए यौवनावस्था में एक कामधेनु गोमुखी शंख लक्ष्मी प्रयोग किया था जो कि अत्यंत गोपनीय है। लाल आसन पर लाल रंग की धोती धारण कर की ओर मुंह करके गोमुखी शंख के सामने बैठें और अपार लक्ष्मी की कामना करें। कमलगट्टे की माला से 21 बार जाप कर शंख पर फूंक मारें। मंत्र- ऊँ कामधेनु शंखाय ह्रीं ऐश्वर्य श्रीं धन धान्याधिपत्यै ऐं पूर्णत्व लक्ष्मी सिद्धयै नमः। यह प्रयोग कभी भी असफल नहीं हुआ। साधना सिद्ध होने पर शंखोदक जल का आचमन कर लक्ष्मी का आवाहन करने पर अपार धन वर्षा होती है। कामधेनु शंख के सिद्ध तांत्रिक: गोरखनाथ: तंत्र के क्षेत्र में गुरु गोरखनाथ का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। कामधेनु गोमुखी शंख से उन्होंने लक्ष्मी से संबंधित उच्च कोटि की साधना कर एक ऐसा वातावरण अपने आश्रम में बना दिया था कि वे जितना भी खर्च करते थे उससे सौ गुना ज्यादा प्राप्त होता था। कहते हैं कि उनके आश्रम में लक्ष्मी हर समय प्रत्यक्ष रहती थीं और किसी-किसी को दिखाई भी दे जाती थीं। किसी भी रविवार की रात्रि को गोमुखी कामधेनु शंख को सामने स्थापित कर रात्रि को साधक एक धोती पहनकर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर खड़ा हो जाये, हाथ में कमलगट्टे की माला से 21 बार जाप करे। मंत्र- ऊँ कामधेनु गोमुखी शंखाय् ह्रीं ह्रीं लक्ष्मी आगच्छ आगच्छ जट् फट् नमः। यह अचूक प्रयोग है। साधक अपने घर पर गोमुखी शंख को ईशान कोण में स्थापित कर दे। मत्स्येन्द्रनाथ: तंत्र के क्षेत्र में जितना गोरखनाथ का नाम है। उतना ही मत्स्येंद्रनाथ का भी। वे गोरखनाथ से भी कई गुना आगे थे। कामधेनु गोमुखी शंख से उन्होंने लक्ष्मी से संबंधित एक गोपनीय प्रयोग सिद्ध किया था जो तिब्बत के एक प्राचीन ग्रंथ शंखकल्प संहिता से प्राप्त हुआ। साधक स्नान करने के बाद सफेद धोती पहन कर जमीन पर बैठ जायें। दिशा की ओर मुंह करके सामने कामधेनु शंख स्थापित करके इस शंख के सामने रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र की 21 बार जाप करें मंत्र- ऊँ कामधेनु गोमुखी शंखाय् धन लक्ष्मी हुं फट्। ये अपने आप में लक्ष्मी का बीज मंत्र है। प्रत्येक साधक को इसका प्रयोग करके लाभ उठाना चाहिए। स्वामी भैरवानंदन: लक्ष्मी से संबंधित एक महत्वपूर्ण प्रयोग पूरे हिमालय में प्रचलित है और सैकड़ों साधकों ने इस प्रयोग को आजमाया है। अपने सामने गोमुखी शंख सीधा रख दें। शुक्ल पक्ष में रात्रि के समय में की ओर मुंह करके लाल आसन पर बैठ जायें और स्वयं भी लाल धोती धारण करें। रुद्राक्ष की माला से पूर्ण भाग्योदय लक्ष्मी का जाप करें। मंत्र- ऊँ कामधेनु शंखाय् लक्ष्मी आबद्ध आबद्ध सिद्धय सिद्धय फट्। इस मंत्र का 51 बार जाप करें। मंत्र जप सम्पन्न होते होते लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो जाती है। कालवी: हिमालय पर तपोवन में तांत्रिक कालवी का नाम विश्वविख्यात है। उनके अनुसार शुक्ल पक्ष को किसी भी रात्रि में कामधेनु गोमुखी शंख के सामने की ओर मुंह करके बैठ जायें। कमलगट्टे की माला से 51 बार मंत्र जाप करें। मंत्र-ऊँ कामधेनु शंखाय सिद्धेश्वराय। लक्ष्मी प्राप्ति की दृष्टि से यह प्रयोग अद्भुत और महत्वपूर्ण है। कामधेनु शंख के शास्त्रोक्त मतः शंखकल्प संहिता: यह शंख सभी मनोकामनाओं को पूर्ण कर अंत में मोक्ष के द्वार खोलता है। दक्षिणावर्ती शंख तो केवल लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं। यह लक्ष्मी के साथ-साथ मानव की हर महत्वाकांक्षा पूर्ण करता है। गोरक्ष संहिता: इस शंख की 108 बार शंखनाद बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा को तुरंत रोक देती है। इसे कामना सिद्धि का शंख कहा जाता है। केदार कल्प: यह शंख सभी शंखों में महान् कहा गया है क्योंकि यह सभी भौतिक एवं पारलौकिक सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। इसलिए प्राचीनकाल में देवी-देवता व ऋषि-महर्षि आयुध के रूप में इसे साथ रखते थे। इसकी महिमा अनुभव से ही सिद्ध हो सकती है। इसका रोजाना दर्शन करने मात्र से ही मोक्ष प्राप्त होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण: यह शंख समुद्र मंथन के 14 रत्नों में श्रेष्ठ रत्न है क्योंकि सतयुग से लेकर आज कलियुग तक इसका बराबर अस्तित्व रहा है तथा श्रीकृष्ण का पांचजन्य एवं अर्जुन का देवदन्त नामक शंख से भी भारी होने के कारण इसकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है। मुख मण्डल कामधेनु के समान होने से दर्शन तुल्य है। इसका शंखोदक जल व ध्वनि सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली है। अघोरी तंत्र ग्रंथ: कामधेनु शंख को शंखराज कहा गया है। यह दुर्लभ एवं चमत्कारी होने से इसके कई प्रयोग हैं। नागार्जुन तंत्र: कामधेनु शंख की साधना कर साधक सुखी-संपन्न बन सकता है। यह बहुपयोगी शंख है। क्रियोड्डीश तंत्र: कामधेनु शंख के सामने बैठकर साधना करने से कल्पना पूर्ण होती है, आत्म बल में वृद्धि होती है।



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