मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दिल का दर्द, दिल का दौरा एवं मोटापा इत्यादि कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो संपूर्ण भारत के बालक, जवान एवं प्रौढ़ों को धीरे-धीरे अपने शिकंजे में कसती जा रही हैं। क्या इनकी गुलामी से बचने और इनके समाधान हेतु दवाओं (दबाइयों) के नशे से बचने का कोई उपाय नहीं है? इन रोगों पर काबू पाने के लिए किये जाने वाले खर्च का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केवल 27 करोड़ जनसंख्या वाले अमेरिका में कोलेस्ट्रोल को कम करने वाली स्टेटिन नामक समूह की 200 अरब रुपये की दवाएं प्रति वर्ष इस्तेमाल में आ जाती हैं।
106 करोड़ भारतवासियों में अगर सभी की रक्त जांच कराकर दवा देनी पड़ जाए तो कम से कम 800 अरब रुपयों की जरूरत प्रति वर्ष अकेले एक रोग को काबू में रखने की पड़ेगी। और तो और, हम भारतवासियों में एक ऐसा जीन पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा मधुमेह एवं रक्तचाप से छुटकारा - संतुलित आहार द्वारा है, जिसके कारण से ट्रीग्लिीसराइड का स्तर सारे विश्व की अपेक्षा भारतीयों में सबसे अधिक है। केवल यही नहीं, हम भारतीयों को एक और जीन विरासत में मिला है, जिसके फलस्वरूप बहुत से लोगों में इंसुलीन रेजिस्टेंस भी होता है।
इसलिए इन दोनों जीन्स की वजह से और हमारी आधुनिक आदतें, आधुनिक (पश्चात्य) भोजन के फलस्वरूप हम भारतीयों को पूरे विश्व में सबसे ज्यादा दिल के दौरे पड़ते हैं, वह भी भरी जवानी में। वह दिन दूर नहीं जब भारत के हर पांचवे पुरुष/स्त्री को इन बीमारियों में से कोई एक या दो या तीन या सभी रोग न हों। अब प्रश्न यह उठता है कि इतनी बड़ी महामारी का रूप ले रही इन बीमारियों से कभी बच भी पाएंगे या नहीं। इसका उत्तर ढूंढने के लिए हमें इन रोगों के कारणों एवं भिन्न-भिन्न खाद्य पदार्थो द्वारा भौतिक शरीर में होने वाली जटिल रासायनिक क्रियाओं की जानकारी का होना अति आवश्यक है। इस प्रथम लेख में इन्हीं कुछ क्रियाओं के बारे में प्रकाश डाला गया है। भोजन में खाये जाने वाले खाद्य पदार्थ हमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज, लवण, विटामिन, अति सूक्ष्म लवण एवं एन्ज़ाइम प्रदान करते हैं।
इस लेख में कार्बोहाइड्रेट से होने वाली रासायनिक क्रियाओं पर प्रकाश डाला जा रहा है। आम तौर पर भोजन में कार्बोहाइड्रेट प्रदान करने के लिए रोटी या सफेद चावल, पकाई हुई छिलका रहित दालें, बिस्कुट, पेस्ट्री, ब्रेड (सफेद एवं भूरी), गुड़, चीनी, मिठाइयां, चाकलेट, कृत्रिम रसायन युक्त पेय जैसे पेप्सी, कोका कोला, थम्सअप, लिम्का, मिरिंडा, आइसक्रीम, आलू इत्यादि इस्तेमाल किए जाते हैं। इन सभी वस्तुओं से शरीर को विभिन्न पाचन क्रियाओं के पश्चात ग्लुकोज मिलता है। ग्लुकोज आॅक्सीजन की सहायता से शरीर में होने वाली सभी क्रियाओं (छोटी से छोटी एवं बड़ी से बड़ी) के लिए वांछित ऊर्जा मुहैया कराता है।
जब यही ग्लूकोज रक्त में अपनी निर्धारित सीमा से अधिक, निर्धारित समय से पहले और निर्धारित समय से देर तक रक्त में बना रहता है तो इससे शरीर में कुछ क्रियाएं निम्न प्रकार से होनी शुरू होती हैं। जो काब्रोहाइड्रेट भोजन में होता है, शरीर उसका पाचन आधे से चार घंटे तक की अवधि में पूरा करता है। रक्त में पाचन के पश्चात ग्लुकोज के आते ही रक्त में पहले से नियमित रूप से स्थित इंसुलीन नामक हारमोन उस ग्लूकोज को रक्त में इसकी अधिकतम सीमा के स्तर से उपर न जाने देने के लिए उसे या तो ग्लाइकोजन में परिवर्तित कर देता है या जब ग्लाइकोजन भंडार पूरे भरे होते हैं तो चर्बी में परिवर्तित कर देता है।
कार्बोहाइड्रेट से मिलने वाला ग्लुकोज कितनी देर में और देर तक रक्त में विद्यमान रहेगा, इस पर निर्भर करता है कि खाये जाने वाले भोज्य पदार्थ का ग्लाइसिमिक इन्डेक्स क्या है।
उदाहरण के तौर पर यदि ग्लुकोज का ग्लाइसिमिक इंडेक्स 100 मानें तो विभिन्न खाद्य पदार्थों के अनुमानित मान कुछ इस प्रकार हैं। खाद्य पदार्थ ग्लाइसिमिक इंडेक्स - चीनी 65 - कोलड्रिंक्स 70-80 - शहद 73 - सफेद ब्रेड 96 - भूरी ब्रेड 75 - इडली 57 - मोटा आनाज 30-45 - दालें 28 - अंकुरित दालें (कच्ची) 18 - सोयाबीन 18 - कोर्न फ्लेक्स 84 - चिवड़ा 82 - सेव 35 - संतरा 43 - खुमानी/आड़ू 42 - केला 53 - तरबूज 72 - दूध 27 - दही 14 - आइसक्रीम 61 - चाकलेट 49 - नूडल 47 - मटर 23 - राजमा 27 - जौ 25 - आटा रोटी 58 - चोकर की रोटी 42 - आलु बुखारा 25 - चैरी 23 - पनीर प्रौसेस्ड 60 - संतरे का रस 57 - पाइन एप्पल 66 - किविफ्रूट 52 - आम 55 - आलू 85 - सीताफल 75 - गाजर 71 - मक्का 55 - कच्चा टमाटर 38 - हरी सब्जियां 5-10 कुछ भोज्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट अति शीघ्र पचने वाला होता है, जैसे कि चीनी, कृत्रिम पेय पदार्थ, मिठाई आदि। इनसे ग्लूकोज अपनी सीमा 139 मिलीग्राम प्रति 100 मिली लिटर पर शीघ्र पहुंच जाता है, और इस सीमा पर 2 घंटे तक की सीमा से भी अधिक घंटो तक उसी स्तर पर बना रहता है।
इसको कम करने के लिए पेंक्रियास नामक ग्रंथि को शरीर द्वारा यह आदेश होता है कि इन्सुलीन नामक हारमोन का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करे जो कि उस ग्रंथि के लिए एक अतिरिक्त कार्य के बराबर होता है।
यही क्रिया दिन में बार बार, प्रतिदिन, महीने दर महीने, वर्ष प्रति वर्ष तक दोहराई जाती रहती है, इससे वे बीटासेल जो इन्सुलीन का निर्माण करते हैं, उनकी आयु कम होती चली जाती है। परिणामस्वरूप यह मात्रा 139 मिली ग्राम की सीमा पार कर 200 मिली ग्राम या इससे अधिक तक पहुंच जाती है और मधुमेह रोग का तमगा लग जाता है। रासायनिक क्रियाओं के क्रम में सर्वप्रथम हाईपर इंसुलिनिज्म (रक्त में इन्सुलिन का अधिक मात्रा में होना) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जो कि बार-बार दिन में, महीनों में, वर्षों तक दोहराई जाती रहती है। इंसुलीन पैदा करने वाले अवयव (सेल) रोजाना अधिक से अधिक कार्य करते रहने से थक जाते हैं, इसलिए इंसुलीन की गुणवत्ता पर भारी असर पड़ता है।
इसी कारण से ग्लुकोज का रक्त में बढ़ा हुआ स्तर निरंतर ज्यादा इन्सुलीन के बावजूद बना रहता है। इस रासायनिक क्रिया के उपरांत धमनियों की अंतरतम कोशिका समूह जिसे एंडोथिलियम कहते हैं का शनैः-शनैः नष्ट होना शुरू हो जाता है। यही क्रिया बार-बार दोहराये जाने से एंडोथिलियम के ऊपर की सतह कोलाजेन एक्सपोज़ हो जाती है। इस कोलाजेन परत के उपर कोलेस्ट्रोल, ट्राइग्लाइसराइड एवं एल डी एल नाम की चर्बियां आक्सीक्रत (आक्सीडाइज) हो जाती हैं और यह चर्बी वहां पर गोंद की तरह चिपक जाती है। फलस्वरूप धमनियांे का रास्ता अवरुद्ध होने लगता है। साथ ही धमनियों का लचीलापन भी कम होता जाता है। इसी को आरटीरियोस्कलोरोसिस कहते हैं।
इसका परिणाम बहुत भयंकर होता है। शरीर में कैपिलेरीज़ और अति छोटी धमनियों पर इसका असर जल्दी होकर रोग के लक्षणों को जन्म देता है। इन छोटी-छोटी धमनियों एवं धागे से भी बारीक केपिलेरीज के अवरुद्ध होने एवं इनका लचीलापन कम होने से हृदय पर बहुत खराब असर पड़ता है और हृदय को ज्यादा ताकत से रक्त का प्रवाह करना पड़ता है। इसी बढ़ी हुई ताकत को मापने पर चिकित्सक बढ़े हुए रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) का स्वर्ण आभूषण पहना देते हैं। यह बात गौरतलब है कि इससे पहले कि मनुष्य को मधुमेह के लक्षण दिखाई पड़ें, औसतन 8-10 वर्ष पहले से ही उसके हृदय की धमनियों में उपर बताये गये परिवर्तन शुरू हो जाते हैं। जब रक्तचाप बढ़ना शुरू होता है
तो सारे शरीर का तो काम सुचारु रूप से चलता रहता है परंतु इन सब रासायनिक क्रियाओं का भुगतान हृदय को करना पड़ता है। हृदय एक ऐसी मशीन है जो कि एक मिनट में 72 बार काम (सिस्टोल) करती है और आराम (डायस्टाॅल) भी करती है। जब हृदय काम करता है तो सारे शरीर को रक्त और आॅक्सीजन पहुंचती है, हृदय को नहीं और जब हृदय आराम करता है तभी उसे आॅक्सीजन एवं ग्लुकोज मिलता है। जब उच्च रक्तचाप होता है और निरंतर बढ़ा ही रहता है, तब हृदय की मांसपेशियांे के आकार एवं आयतन में बढ़ोतरी होती चली जाती है। यही बढ़ोतरी हृदय के आराम समय में आॅक्सीजन को हृदय में पहुंचने पर अवरोध पैदा करती है।
यही स्थिति दिन-प्रतिदिन, महीने दर महीने, वर्ष प्रति वर्ष चलते रहने से हृदय निरंतर कमजोर पड़ता जाता है और एक दिन या तो यह अधिक काम, कम खुराक, कम आॅक्सीजन एवं कम आराम से फेल हो जाता है (हार्ट फेल्यर) या फिर कोरोनरी आर्टरी के अंदर चर्बी के बढते हुए जमाव से एक दिन कोरोनरी आर्टरी पूर्णतया बंद हो जाती है और हृदय को आॅक्सीजन नहीं मिलने की स्थिति में हृदय का दौरा (मायोकार्डियल इनफारक्शन) पड़ जाता है। ठीक इन्हीं रासायनिक क्रियाओं के चलते मधुमेह के रोगियों को अन्य कई रोग हो जाते हैं, तथाकथित दवाइयों के खाने के बावजूद। इसका कारण दवाइयों द्वारा केवल बीमारी के लक्षणों का दबाया जाना और बीमारी के कारणों का न ढूंढना है। बेकाबू मधुमेह रोग से उत्पन्न रोग जिनसे आज के रोगी अनभिज्ञ हैं, कुछ निम्न हैं।
- गुर्दे का खराब हो जाना
- आंखों में सफेद मोतिया का होना
- आंखों में काला मोतिया होना
- अचानक आंखों की रोशनी का चले जाना, या अंधे हो जाना।
- अधरंग हो जाना
- पैरो की उंगलियांे का काला पड़ जाना और उन्हें या फिर पैर को ही काटा जाना
- पैरों की उंगलियों का सो जाना एवं पिंडलियों में दर्द होना
- बिना दर्द के हृदय का दौरा पड़ जाना। (साइलेंट हार्ट अटैक)
- हृदय का फेल होना, इत्यादि, इत्यादि। ठीक इन्हीं रासायनिक क्रियाओं के चलते मोटापा जैसी महामारी फैली हुई है।
जिससे केवल अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में भी 10-15 प्रतिशत बच्चे, 30-40 प्रतिशत वयस्क ग्रस्त हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि आम नागरिक क्या करे जिससे कि इन महामारियों के चुंगल से न केवल छूट जाए, अपितु ऐसा हो कि भविष्य में कोई भी बालक कल या आने वाले समय में इन रोगों से अलंकृत न हो। इसके लिए निम्न उपाय दिये जा रहे हैं।
- सर्वप्रथम ऐसे खाद्य पदार्थों का चयन करें जो कि शरीर की जरूरत के मुताबिक हांे, फल, सब्जियों से युक्त हांे, कम ग्लाइसेमिक वाले कार्बोहाइड्रेट्स हांे, जिनसे पैनक्रियाज, हृदय, गुर्दे, आमाशय एवं यकृत आदि शरीर के अंगों पर अतिरिक्त कार्यभार न बढ़े।
-. भोजन ऐसा हो जो न केवल देखने में, संूघने में अच्छा हो बल्कि साथ ही शरीर को भी प्रसन्न करे। इसके लिए केवल ऐसा भोजन करें जो सात्विक हो। चीनी, अंडे, मांस, मछली, मुर्गी, मदिरा, तले हुए पदार्थ, बिना चोकर की रोटी, पालिश किया हुआ चावल, बिना छिलके की दाल, कृत्रिम पेय पदार्थ एवं मिठाइयांे को रसोई में न आने दें। इन खाद्य पदार्थो का केवल बहिष्कार ही न करें अपितु इसका ज्ञान सर्वदा फैलाएं ताकि हर देशवासी रोगरहित होकर सदा प्रसन्न रहे।
- योगाभ्यास एवं व्यायाम को सीखें एवं इसका अभ्यास एवं प्रचार नियमित करें।
- प्रतिदिन ध्यान लगाएं। इससे हमारे शरीर की ग्रंथियों से निकलने वाले हारमोन्स ठीक प्रकार से निकलते हैं, हृदय संकट की स्थिति में नहीं घबराता और उसके आराम के समय में कोई कमी नहीं आती।
- भोजन में कम से कम एक तिहाई से दो तिहाई मात्रा केवल कच्चा भोजन जैसे सलाद, फल, अंकुरित अनाज, अंकुरित दालें एवं कच्ची सब्जियां हों।
- प्रतिदिन 10-15 ग्राम तक मेवा जैसे अखरोट, बादाम, किशमिश, काजू चिलगोजा या खुमानी इत्यादि जरूर खाएं। ये सारी वस्तुएं शरीर में बढे़ हुए क्लोस्ट्राॅल को कम, साथ ही एच डी एल को बढ़ाने में सहायक हैं। यही नहीें मेवे, दमा, जोड़ों का दर्द, एवं हृदय रोग में भी लाभदायक हैं।
- अंकुरित अनाजों में गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, जौ आदि कच्चा या फिर केवल भाप से पकाकर खाना अति उत्तम है।
- दालों में सभी दालें, मूंग, मोठ, मसूर, काला चना, सफेद लोभिया, सोयाबीन, मूंगफली एवं मटर आदि अंकुरित कर कच्ची या भाप से पका कर प्रयोग करें।
- अंकुरित मेथी प्रति व्यक्ति एक से दो चम्मच जरूर लें क्योंकि इससे आंत के एपीथीलियल सेल जो कि तीन से पांच-दिन में मर जाते हैं उन्हें शरीर से निकालने में बहुत सहायता मिलती है साथ ही अंकुरित मेथी कड़वी भी नही होती। इसमें कोलीन नामक पदार्थ होता है जिससे कि न्यूरो ट्रांसमिटर एसीटाइलकोलीन बनाने में सहायता मिलती है। कोलीन यकृत को सुचारु रूप से चलाने में बहुत सहायक है।
- अलसी के बीज (फ्लैक्स सीड) 5-15 ग्राम तक की मात्रा में पीसकर, सलाद के उपर छिड़क कर या अंकुरित अनाज के ऊपर डालकर जरूर खाएं। इसमें 3 ओमैगा फैट्टी एसिड होते हैं जो रक्त में खराब कोलेस्ट्रोल, ट्राईग्लिसराइड एवं एल डी एल को तो कम करते ही हंै साथ ही एच डी एल (अच्छी चर्बी) को भी बढ़ाते हंै।
यह ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है कि जहां भी रहें, जैसे भी रहें, हमेशा प्रसन्न रहें और सभी को हमेशा प्रसन्न देखने की इच्छा रहे ताकि सभी में प्रसन्नता फैले जिससे न केवल हम बल्कि सारा समाज, राज्य, देश और विदेश इन महामारियों के न छूटने वाले चुंगल से आजाद हो जाए। अंत में सप्ताह में एक या दो दिन तक व्रत जरूर रखें, जिससे शरीर में स्थित रिपेयर करने वाले सेल को मरम्मत करने का समय मिल सके, क्योंकि शरीर में स्वतः ही रिपेयर की क्षमता है।
व्रत में केवल शीतल पानी या गुनगुना गर्म पानी लेवें। इससे गुर्दों को आराम मिलता है, साथ ही गुर्दों की कार्यक्षमता बहुत बढ़ जाती है एवं धमनियों में जमा क्लोस्ट्राॅल शारीरिक ऊर्जा के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। ैनिक खाद्य तालिका सुबह उठकर प्राणायाम, व्यायाम, योगाभ्यास एवं हरी घास पर नंगे पाव चलें, सूर्य नमस्कार करें। 2-3 गिलास गर्म पानी पियें। सुबह के भोजन में अंकुरित दाल 30 ग्राम, मेथी 5 ग्राम, गेहूं 30 ग्राम, फल 50 ग्राम,, मेवा 5 ग्राम अल्सी बीज का पाउडर 5 ग्राम, हरे पत्ते का साग/कच्ची सब्जी 100 ग्राम हों।
दिन/दोपहर के भोजन में दो चपाती, गेहंू, चोकर युक्त या मोटे अनाज की या मंडवा/कोदरा के आटे की रोटी। अंकुरित साबुत दाल भाप द्वारा पकाई हुई। सलाद-150 ग्राम, दही-100 ग्राम, हरी सब्जी/साग सायं 5-6 बजे। फल एवं गाजर/लौकी का रस, रात्रि का भोजन - 2 चपाती, सब्जी, हरे पत्ते वाली सब्जी, अंकुरित अनाज, अगर हो सके तो सलाद-200 से 250 ग्राम