चक्कर आना : कारण और निवारण
चक्कर आना : कारण और निवारण

चक्कर आना : कारण और निवारण  

वेद प्रकाश गर्ग
व्यूस : 121455 | फ़रवरी 2007

चक्कर आते ही सिर घूमने लगता है और आस-पास की सभी वस्तुएं घूमती नजर आती हैं। कई बार अधिक ऊंचाई पर जाने या गहरे पानी को देखने से भी चक्कर सा आने लगता है। ऐसी स्थिति में क्या चिकित्सकीय उपचार लिए जाने चाहिए, जानने के लिए पढ़ें, यह आलेख...

यूं तो महीने के आखिरी दिनों में यदि मेहमान घर में आ जाएं तो कुछ मेजबानों को चक्कर आ जाता होगा, परंतु यहां हम उस चक्कर की नहीं बल्कि वास्तविक चक्कर, वर्टिगो (टमतजपहव) की बात कर रहे हैं।

वर्टिगो (Vertigo) क्या है?

बचपन में गोलाकार घूमते-घूमते अचानक रुक जाने के बाद जमीन तथा आसपास का क्षेत्र घूमता महसूस होता है, इसी को वर्टिगो कहा जाता है।

कुछ लोग चक्कर खा कर गिर भी जाते हैं, अगर समय रहते वे बैठ न जाएं या कोई उन्हें सहारा न दे।

असंतुलन (Ataxia) से चक्कर कैसे भिन्न है?:

असंतुलन मनुष्य में दिमाग के हिस्से, सेरेबेलम (Cerebel lum) के रोगग्रस्त होने से होता है।

कारण: ज्यादातर वर्टिगो का कारण लोगों के भीतरी कान का अति संवेदनशील होना होता है। ऐसे लोग जब झूला झूलें, चलते-चलते अचानक रुक जाएं, फिर चलें, घुमावदार रास्तों पर जाएं या फिर मेरी गो राउंड (डमततल ळव त्वनदक) इत्यादि की सवारी करें तभी वर्टिगो होता है।

दूसरा कारण कैल्सियम कार्बोनेट के रवाकणों का शरीर की अलग-अलग अर्धगोलाकार नलियों से निकल कर केवल एक अर्धगोलाकार नली में एकत्रित होना है। इन्हें ‘ओटोकोनिया’ कहते हैं।

जब रोगी अचानक ही सिर को नीचे की ओर झुकाते हैं, उस समय क्रिस्टल (Otoconia) बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं और चक्कर का कारण बनते हैं। इस रोग को बीपी. पी.वी. (Benige paroxysmal Positional Vertigo) कहते हैं। यह रोग ज्यादातर बड़ी उम्र के लोगों में ही देखने में आता है।

मेनियर रोग (Meniere’s Disease) यह भीतरी कान का रोग है। इसका कारण भीतरी कान में सूजन या शोथ होता है। यह रोग वायरल संक्रमण, चोट लगने या एलर्जी होने पर होता है। कभी कभी इसके कारण का पता लगाना मुश्किल होता है। इन रोगियों को रोगग्रस्त कान में आवाजें सुनाई पड़ती हैं। कान में भारीपन या बंद रहने की अनुभूति होती है और श्रवण शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जाती है। चक्कर कुछ से कुछ घंटों तक रह सकता है। ऐसे रोगियों को वर्टिगो के दौरे में उलटी भी आ सकती है।

मिनियर रोग से ग्रस्त कई महिलाओं की शिकायत रहती है कि उन्हें रजोधर्म के समय ही चक्कर आते हैं। ऐसा होना क्या सामान्य सी बात है? हां, क्योंकि मिनियर के रोग से शरीर में नमक संचित हो जाता है, और रजोधर्म के समय भी कुछ कुछ ऐसा ही होता है।

वायरल संक्रमण:

इससे वेस्टिबुलर नाड़ी में सूजन आ जाती है। फलतः कान की संतुलन प्रक्रिया प्रभावित होती है। सामान्यतः जब मनुष्य किसी भी तरफ गर्दन घुमाता है, तब एक तरफ के कान से संदेश ज्यादा और दूसरे से कम जाते हैं, दिमाग विश्लेषण करके कहता है ‘मै घूम रहा हूं’। परंतु जब एक कान में वायरल संक्रमण के बाद लेबिरिन्थाइटिस रोग हो जाता है, तब जाने वाले संदेश एकदम कम हो जाते हैं, और इस तरह कम हो जाना ही कारण होता है चक्कर आने का। इसके साथ उलटी भी आ सकती है। यह सब अमूमन तीन दिन तक रहता है, इसके बाद कुछ हफ्तों तक थोड़ा सा असंतुलन रहता है और फिर तीन से चार हफ्तों के बाद बिना दवा के सब कुछ सामान्य हो जाता है। सरवाइकल वर्टिगो में गर्दन का लचीलापन कम हो जाता है और ठोड़ी से कंधे को छूने पर चक्कर आता है। इस रोग में गर्दन की हड्डियों के बढ़ जाने से, वहां से निकल रही नाड़ियां दब अथवा क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और दिमाग को संदेश भली प्रकार से नहीं पहुंचा पाती हैं।

टी.आइ.ए. (Transient Ischemia Attack): रोगियों के दिमाग की रक्त नलियों में रक्त बहाव कम हो जाता है। इसे वी.बी.आई. कहते हैं। वी.बी.आई. में चक्कर के साथ साथ आवाज थरथराना, कोई चीज दो-दो दिखाई देना, एक हाथ या पैर में कमजोरी, हाथ पैरों के बीच समन्वय न रहना आदि भी हो सकते हैं। कभी कभी अधरंग का दौरा (Brain Attack) पड़ने से पहले भी चक्कर आ सकता है। परंतु ऐसे लोगों में इसके साथ-साथ शरीर के किसी भी अन्य हिस्से में लकवा मार जाने जैसे लक्षण कुछ समय बाद नजर आते हैं।

दवाओं के कारण वर्टिगो: मिरगी के दौरे की एप्टाइन क्लोरप्रोमाजीन (Chlorpromajine) जैसी कुछ दवाएं हैं, जो भीतरी कान को क्षति पहुंचाती हैं। अमिनोग्लाइकोसाइड जैसे स्ट्रेप्टोमाइसिन, एमिकासिन, जेंटामाइसिन, ऐस्पिरिन, कैंसर निरोधी दवा सिस्प्लेटिन (Cisplatin) और वैसी दवा जिससे पेशाब ज्यादा आता है, फ्यूरोसेमाइड आदि भी इन्हीं दवाओं की श्रेणी में आती हैं। सिर में चोट लगना, मिरगी के दौरे पड़ना, दिमाग में रसौली बनना या फिर दिमाग में रक्तस्राव होना आदि वर्टिगो के कुछ अन्य कारण हैं।

चिंता से चक्कर:

चिंता से भी चक्कर आता है। हालांकि यह आवश्यक नहीं कि केवल चिंता से ही चक्कर आए। केवल वे रोगी जो चिंता से अत्यधिक घबरा जाते हैं, चक्कर महसूस कर सकते हैं।

लक्षण: इसमें रोगी को जमीन, वातावरण आदि गोलाकार (लट्टू की तरह) घूमते हुए नजर आते हैं या फिर वह खुद भी चक्रण महसूस करता है। इससे रोगी का चलना, कार चलाना आदि मुश्किल हो जाते हंै। चक्कर के दौरे में अक्षिदोलन भी हो सकता है, जिसे अंग्रेजी में निस्टेगमस कहते हैं। अक्षिदोलन में पुतली एक तरफ तेजी से जाती है, फिर धीरे-धीरे पूर्व स्थान पर आती है। कुछ लोगों को उलटी का आभास (Nausea) होता है या उलटी आती भी है।

चक्कर आए तो क्या करें?ः

चक्कर आता हो, तो कान, नाक या गले के रोग के किसी योग्य विशेषज्ञ या फिर मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ से मिलें। यदि एक ही चिकित्सक से रोग की पूरी जानकारी न मिले तो दूसरे चिकित्सक से परामर्श लें।

निदान: चिकित्सक पूरे लक्षणों का विश्लेषण करते हैं। साथ ही यह भी देखते हैं कि कैसे और कहां चक्कर आता है? रोगी के संतुलन (Balance), उसकी श्रवण शक्ति की भी जांच की जाती है। पुतली की जांच अक्षिदोलन की जांच के लिए की जाती है। कभी कभी निदान हेतु, रोगी को चिकित्सक कक्ष में ही अक्षिदोलन करने का प्रयत्न करने को कहा जाता है। इसे केलोरी टेस्ट कहते हैं। इसमें बर्फ सा ठंडा पानी कान में डाला जाता है। रोगी को मोटे मैग्निफाइंग शीशे का चश्मा पहना कर उसकी गर्दन को 20 सेकेंड तक तेजी से दायें-बायें घुमाया जाता है। सरवाइकल वर्टिगो (ब्मतअपबंस टमतजपहव ) के निदान के लिए रोगी को घूमने वाली कुरसी पर बिठाकर और उसके सिर को स्थिर रख कर दायें-बायें घुमाया जाता है।

बचाव एवं इलाज: मोशन सिकनेस (Motion Sickness) जैसे रोग में Cinnarizine, Prochlorperajine, Promethajine, Domperidone जैसी दवाओं का उपयोग उचित रहता है। बी.पी.पी.वी. के इलाज के लिए एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया की जाती है। इसे एप्ले (Epley) प्रक्रिया कहा जाता है। इस प्रक्रिया में ओटोकोनिया के कणों (Crystals) को अलग अलग अर्द्धगोलाकार नलियों में पुनः स्थापित किया जाता है। रोगी को पलंग के किनारे पर बैठाकर तेजी से लिटाते हैं, सिर को 45 OE के कोण पर रोगग्रस्त कान की दिशा में, 20 से 30 सेकेंड तक, फिर विपरीत दिशा में उतने ही कोण पर, और फिर 45 OE कोण से तेजी से घुमाते हैं। उसके बाद एक बार फिर तेजी से 45 OE तक घुमाते हैं। अंत में पूर्व स्थान पर बिठा देते हैं और फिर एक दिन अधलेटी अवस्था में रखते हैं। अगर सरवाइकल वर्टिगो है, तो गर्दन का एक नर्म पट्टा पूरे दिन पहनना, फिजियोथैरिपी करना तथा मासं पेशियों को शिथिल करने वाली दवा लेना लाभप्रद रहता है।

नियमित व्यायाम: कान के इस रोग के उपचार के बावजूद जब चक्कर आना बंद नहीं होता, तो नियमित व्यायाम से उसे कम किया जा सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य दिमाग को टेªनिंग देना है क्योंकि इसमें कान काम नहीं कर रहा होता है। कुछ खास प्रकार के व्यायामों से पहले तो चक्कर बंद हो जाता है। परंतु इन व्यायामों को नियमानुसार करते रहने से दिमाग का संतुलन बनाए रखने वाला भाग धीरे-धीरे कुशलता से कार्य करना सीख लेता है। व्यायाम में साधारणतया आंखों की पुतलियों, गर्दन और सिर को दायंे-बायें घुमाया जाता है।

दवाएं: वेस्टिबुलर निरोधक दवा वर्टिन (Vertin) दिमाग के उस भाग का काम करना कम कर देती है, जो अंदरूनी कान के खराब होने से ज्यादा काम करने लगता है। इस दवा के फलस्वरूप रोग, जो केवल कुछ दिनांे या एक-आध हफ्ते तक ही सीमित रहता है, महीनों या वर्षों तक खत्म नहीं होता। अतः यह कारगर नहीं है। परंतु वे लोग, जो ऐसी दवाओं पर पहले से ही निर्भर हैं, इनका सेवन धीरे-धीरे कम करते हुए ऊपर बताए गए व्यायाम शुरू कर स्थायी आराम पा सकते हैं। चिंता अगर है, तो चिंता निरोधी दवा Diajepam, Alprajomlam या फिर Lorajepam इस्तेमाल की जा सकती है।

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