पीलिया रोग नहीं बल्कि रोग का एक लक्षण है। पीलिया में त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीले हो जाते हैं। यह रक्त में बिलिरुबिन नामक रसायन के अधिक हो जाने से होता है। साधारणतया रक्त में बिलिरुबिन 0.2-1.0 मि.लीतक रहता है। इसके 30 मि.ली. से अधिक होने पर ही आंखों में पीलिया नजर आता है।
किन कारणों से पीलिया होता है?
-साधारणतया जब लाल रक्त कोशिकाएं अपनी आयु के 120 दिन पूरे कर लेती हैं तब प्लीहा (ैचसममद) में खत्म हो जाती हैं और इन कोशिकाआंे में से लौह तत्व निकल जाने के पश्चात जो तत्व बचा रहता है उससे बिलिरुबिन (ठपसपतनइपद) बन जाता है। इसे अनकान्जुगेटिड बिलिरुबिन (न्दबवदरनहंजमक ठपसपतनइपद) कहा जाता है।
-जिगर के कई कार्य होते हैं, जिनमें वसा को पचाने हेतु पिŸा ;ठपसमद्ध का उत्पादन और रक्त में मौजूद विजातीय पदार्थों को निष्कासित करना प्रमुख हैं। बिलिरुबिन ऐसा ही एक विजातीय पदार्थ है। निष्कासन से पहले बिलिरुबिन एक अन्य रसायन ग्लुक्रोनिक अम्ल के साथ मिल जाता है, इसलिए इसे कान्जुगेटिड बिलिरुबिन कहा जाता है।
-बिलिरुबिन का उत्पादन ज्यादा हो, जैसे हिमोलिटिक एनीमिया। -कभी-कभी गुम चोट लगने से उत्पन्न रसोली के धुलने से भी पीलिया हो जाता है क्योंकि इस रसोली में रक्त जमा हो जाता है। -जिगर में शोथ ;प्दसिंउउंजपवदद्ध हो, जैसे वायरल हेपेटाइटिस (टपतंस भ्मचंजपजपे)।
-शराब से होने वाले रोग सिरोसिस के कारण: षराब पीने से जिगर में सूजन आ जाती है, और बिलिरुबिन के बहाव में अवरोध पैदा हो जाता है। धीरे-धीरे जिगर कोषिकाओं में चर्बी इकट्ठी होती चली जाती है (थ्ंजजल स्पअमत) और अगर इतना सब हो जाने पर भी षराब पीना बंद न किया गया, तो दुनिया की कोई ताकत जानलेवा सिरोसिस (ब्पततीवेपे) होने से नहीं रोक सकती।
-बुखार उतारने वाली दवा पेरासिटामोल (च्ंतंबमजंउवसद्ध से होने वाला पीलिया जिगर में पित्त के बहाव में रुकावट आ जाने से हुआ करता है।
-पुराना जिगर रोग (ब्ीतवदपब भ्मचंजपजपे ठ वत ब्) हिपेटाइटिस बी तथा सी से संक्रमित रोगियों में षुरू में कोई लक्षण नहीं मिलते। लंबे समय के बाद ही पीलिया नजर आता है, तब तक सिरोसिस (ब्पततीवतपे) हो चुका होता है।
-आॅटोइम्यून हेपेटाइटिस ;।नजवपउउनदम भ्मचंजपजपेद्ध जैसे प्राइमरी बिलियरी सिरोसिस होना। यह ज्यादातर अधेड़ उम्र की महिलाओं में देखा गया है। यह रोग बढ़ते-बढ़ते जानलेवा हो जाता है। थकान रहना, खुजली बने रहना आदि इस रोग के लक्षण हैं।
-जिगर में पदार्थों या अवांछित कोशिकाओं का जमा होना जैसे लौह तत्व, तांबा आदि। कान्जुगेटिड बिलिरुबिन बढ़ने के कारण जिगर के अंदर, पित्त के बहाव में अवरोध हो जाए या फिर जिगर के बाहर अवरोध जैसे पित्त थैली में पथरी या पित्त थैली या पैंनक्रियाज कैंसर हो जाए।
-पैंक्रियाज शोथ ;च्ंदबतमंे प्दसिंउउंजपवदए च्ंदबतमंेजपजपेद्ध से भी पीलिया होता है, जिसका कारण शराब का सेवन या फिर पित्त नली में पथरी का होना है।
-पिŸा नली में अवरोध होना जैसे पिŸा की थैली में पथरी। आजकल अक्सर देखने में आती है। इस पथरी से पित्त थैली में शोथ ;प्दसिंउउंजपवदद्ध हो जाता है या फिर संक्रमण भी हो सकता है।
-पैंक्रियाज ग्रन्थि का कैंसर या फिर जिगर का कैंसर, पिŸा थैली में कैंसर इत्यादि।
पीलिया कब होता है?
-बिलिरुबिन के अधिक मात्रा में बनने से पीलिया होता है। हिमोलिटिक एनीमिया (भ्ंउवसलजपब ।दमउपं) रोग में लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने की रफ्तार तेज हो जाती है। ऐसा इन कोशिकाओं की आयु कम हो जाने से होता है।
-हिमोलिटिक एनिमिया के कारण, वंषानुगत स्फीरोसाइटोसिस (भ्मतमकपजंतल ैचीमतवबलजवेपे) थेलासिमिया (ज्ींससंेमउपं) सिक्ल कोषिका रोग (ैपबासम ब्मसस कपेमंेम) या फिर ग्लुकोज -6- फास्फेटेज डिहाइड्रोजेनेज की कमी (ळण्6ण्च्ण्क्ण् कमपिबपमदबल) हो सकते हैं। इन सभी कारणों से होने वाला पीलिया 5-6 मि.ग्रा. से ज्यादा नहीं बढ़ पाता है।
-जिगर में कोई विकार हो जाए और यह बिलिरुबिन को रक्त में से निकाल न पाए।
-पिŸा नली (ठपसम क्नबज) में अवरोध हो जाने से पिŸा का बहना कम हो जाने के कारण कैंसर, पिŸा की थैली में पथरी या फिर पिŸा नली में संक्रमण होता है।
पीलिया से क्या परेशानी हो सकती है?
-पीलिया त्वचा या फिर आंखों के सफेद भाग को पीला करने के अलावा ज्यादा कुछ नहीं करता, बस मूत्र बहुत अधिक पीला आने लगता है। इसके अतिरिक्त मल का रंग हल्का या फिर मिट्टी जैसा भी हो सकता है।
-कुछ लोगों को खुजली (च्तनतपजपे) होने लगती है। यह कभी-कभी इतनी तीव्र हो जाती है कि त्वचा को खुजलाते-खुजलाते रोगी उस पर घाव बना लेते हैं।
-जिस रोग से पीलिया हो रहा होता है, उससे रोगी को परेशानी होती है जैसे रक्ताल्पता, जिगर का संक्रमण या फिर सिरोसिस (ब्पततीवेपे)। अन्य हानिकारक दवाएं: खासकर गर्भनिरोधक इस्ट्रोजन दवा से पीलिया हो जाता है। किंतु दवा बंद करने के कुछ सप्ताह के अंदर यह ठीक हो जाता है।
पैदाइशी विकार जैसे क्रिग्लर नजार ;ब्तपहहसमत छंहंतद्ध रोग। इस रोग में बिलिरुबिन को निष्क्रिय करने वाला एन्जाइन ही नहीं रहता। अन्य पैदाइशी विकार हैं डुबिन जाॅन्सन और रोटर विकार, जो बिलिरुबिन के अनियमित स्राव से होते हैं। इन रोगों का कोई इलाज नहीं है।
-गिल्र्बट ;ळपसइमतजद्ध विकार: करीब 7 प्रतिशत जनसंख्या को यह विकार होता है। गिलबर्ट रोग ;ळपसइमतज क्पेमंेमद्ध में बिलिरुबिन थोड़ा ही बढ़ता है। किंतु जिगर सुचारु रूप से कार्य करता रहता है। इस रोग के साथ शारीरिक तनाव होने, या अधिक दिन तक उपवास करने या फिर अन्य कोई रोग होने पर पीलिया ज्यादा हो जाता है। इस रोग में ज्यादातर लोगों को खास परेशानी नहीं होती है। अतः उन्हें इलाज की आवश्यकता नहीं होती।
-पिŸा नली में पैदाइशी विकार रहने से इसमें रसोली, जिसे कोलीडोकलसिस्ट ;ब्ीवसमकवबींस बलेजद्ध कहते हैं, बन जाती है। गर्भावस्था में पीलिया: गर्भावस्था में यह रोग कम ही होता है। यह केवल तीसरी तिमाही में हो सकता है।
इसमें खासकर खुजली होने लगती है और किसी-किसी को पीलिया भी हो जाता है। कुछ खास महिलाओं में यह ज्यादा होता है। स्कैंडेनेविया और चिली के वासियों में इस रोग का कारण इस्ट्रोजन ;व्मेजतवहमदद्ध नामक हारमोन को माना जाता है। एक्यूट फैट्टी जिगर ;।बनजम थ्ंजजल स्पअमतद्ध: यह उन गर्भवती महिलाओं को हो जाता है जिन्हें एक्लेम्प्सिया ;म्बसंउचेपंद्ध हो गया हो। इस रोग में जिगर काम करना बंद कर देता (स्पअमत ंिपसनतम) है। इसका इलाज बच्चे को तुरंत मां के गर्भ से निकालना है। अगर ऐसा न करें, तो बच्चे की मौत का भी खतरा हो सकता है। शिशु में पीलिया: यह जन्म के कुछ दिनों के अंदर हो जाता है।
सभी नवजात शिशुओं में से करीब आधे बच्चों को पीलिया हो जाता है। किंतु ज्यादातर कुछ परेशानी पैदा नहीं करता। इसका कारण नवजात शिशु के रक्त में पाए जाने वाले फीटल हिमोग्लोविन ;थ्वमजंस भ्ंमउवहसवइपदद्ध का तीव्रता से नष्ट होना है। नवजात शिशु का जिगर इतना परिपक्व नहीं होता कि इतना सारा काम जल्दी या आसानी से कर सके।
किंतु 2-3 सप्ताह में स्वतः ही शिशु बिना किसी उपचार के ठीक हो जाता है। ठपसपंतल ैलेजमउ तपहीज ीमचंजपब कनबज समजि ीमचंजपब कनबज च्ंदबतमंे ैजवउंबी बवउउवद ीमचंजपब कनबज बवउउवद इपसम कनबज चंदबतमंजपब कनबज कनवकमदनउ बलेजपब कनबज हंसस इसंककमत स्पअमत कुछ नवजात शिशुओं में मां का दूध पीने के बाद पीलिया हो जाया करता है।
इसमें 2 सप्ताह में पीलिया नजर आता है और एक सप्ताह बाद कम होते-होते दो तीन सप्ताह में खत्म हो जाता है। मां के दूध में कोई ऐसा तत्व मौजूद रहता है जिसके कारण बिलिरुबिन को जिगर निष्क्रिय नहीं कर पाता है। इस प्रकार का पीलिया समय से पूर्व जन्मे शिशुओं ;च्तमउंजनतम छमूइवतदेद्ध में ही ज्यादा होता है।
कुछ शिशुओं में अगर रक्त में बिलिरुबिन ज्यादा मात्रा में बढ़ जाए तब उपचार के लिए फोटोथेरेपी (च्ीवजवजीमतंचल) या फिर एक्सचेंज ट्रांस्फ्यूजन (म्गबींदहम ज्तंदेनिेपवद) भी करना पड़ सकता है। एक और जानलेवा कारण हो सकता है नवजात शिशु में पीलिया का, जिसे नवजात का हीमोलिटिक रोग (भ्ंउवसलजपब क्पेमंेम व िछमू ठवतद) कहते हैं।
इस रोग का कारण आर. एच. नेगेटिव (त्ीण् छमहंजपअम) मां के गर्भ में आर. एच. पाॅजिटिव (त्ीण् च्वेपजपअम) बच्चे का होना माना जाता है। आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के रहते हुए इस कारण से नवजात शिशुओं में पीलिया देखने में नहीं आता है, क्योंकि पहले बच्चे पैदा होने के 24 घंटे के अंदर एक इन्जेक्शन, जिसे एन्टी डी (।दजप क्) कहते हैं, मां को लगा दिया जाता है। जिगर शोथ का कारण हिपेटाइटिस (ए) वायरस द्वारा संक्रमण है। वायरस शरीर में दूषित पानी, गन्ने के रस या दूषित भोजन के सेवन से होता है।
इस रोग में रोगी को पहले कुछ दिन बुखार और पेट में दर्द रहता है और उल्टियां आती हैं। फिर बुखार उतर जाने के पश्चात आंखों का सफेद भाग पीला हो जाता है और मूत्र गहरे पीले या फिर सरसों के तेल के रंग का आने लगता है। वाइरल हेपेटाइटिस बी का संक्रमण ज्यादातर दूषित सिरिंज, दूषित ;ब्वदजंउपदंजमकद्ध रक्त आदि से होता है। इससे संक्रमण के कारण 50 से 150 दिन के अंदर या फिर इससे भी देर बाद पीलिया नजर आता है। इसका निदान तभी संभव है जब रक्त में आॅस्ट्रेलिया ऐन्टीजन ;भ्इै।हद्ध मौजूद हो।
पीलिया के निदान मूत्र की जांच:
-मूत्र का सरसों के तेल की तरह अत्यधिक पीला होना और उसमें बिलिरुबिन का होना पीलिया रोग का संकेत देता है। मूत्र में केवल कान्जुगेटिड बिलिरुबिन ;ब्वदरनहंजमक ठपसपतनइपदद्ध ही आता है, क्योंकि यह पानी में घुलनशील होता है।
-रक्त में अनकान्जुगेटिड बिलिरुबिन (न्दबवदरनहंजमक ठपसपतनइपद) और कान्जुगेटिड बिलिरुबिन (ब्वदरनहंजमक ठपसपतनइपद) के स्तर की माप: रक्त जांच में लाल रक्त कोशिका की सूक्ष्मदर्शी द्वारा जांच से टूटी फूटी रक्त कोशिकाओं और रेटिकुलोसाइट की संख्या भी बढ़ जाएगी। ऐसा हिमोलिटिक अनिमिया में देखने में आता है।
-एसजीओटी (ैळव्ज्), एसजीपीटी (ैळच्ज्) के स्तर: जब जिगर में शोथ का कारण हिपेटाइटिस या वायरल का संक्रमण हो तब एसजीओटी तथा एसजीपीटी का स्तर सामान्य से कई गुणा बढ़ जाता है और अगर दवाओं का दुष्प्रभाव हो, खासकर पेरासिटामोल का, तब तो इनका स्तर 10,000 यूनिट या फिर इससे भी अधिक तक पहुंच सकता है।
-एल्केलाइन फास्फेटेज (।सांसपदम च्ीवेचींजंेम): रक्त में एल्केलाइन फास्फेटेज नामक एंजाइन का बढ़ा होना, जिगर में पित्त के बहाव आदि अवरोध के सूचक हैं। रक्त में बढ़ा हुआ अमाइलेत्र पैंक्रियाज ग्रंथि में शोथ दर्शाता है। -अल्ट्रासाउंड (न्सजतं ेवनदक): इस विधि से पिŸा थैली में पथरी और पैंक्रियाज (च्ंदबतमंे) और जिगर में रसोली आदि का पता लगाया जाता है।
-टामोग्राफी स्कैन (ब्ज् ैबंद): इसमें एक्स-रे द्वारा पिŸा थैली, जिगर तथा पैंक्रियाज के कैंसर जैसे रोगों का इलाज किया जाता है।
-एमआरआइ स्कैन (डत्प् ैबंद)ः इस विधि से पिŸा की नली के रोगी का ठीक प्रकार से इलाज करना अति आसान होता है।
-ईआरसीपी स्कैन (म्त्ब्च् ैबंद)ः इस विधि से पिŸा की नली की ठीक प्रकार से जांच करना आसान होता है और यह भी कि नली में अवरोध कहां और कैसे हुआ है। इस विधि द्वारा कई बार पथरी, जो किसी अन्य विधि से बिना आॅपरेशन के नहीं निकाली जा सकती, को भी बड़ी आसानी से निकाल लिया जाता है। कभी-कभी अवरोध को भी दूर करने या फिर कैंसर होने की अवस्था मंे नली को खुला रखने के लिए स्टेंट (ैजमदज) भी डाल दिया जाता है। कंैसर का पता बायोप्सी ;म्त्ब्च्द्ध द्वारा भी आसानी से लगाया जा सकता है।
-जिगर बायोप्सी (स्मअमत ठपवचेल): इसमें जिगर का बहुत छोटा टुकड़ा लेकर उसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा जाता है। इस विधि से जिगर शोथ, पिŸा नली शोथ, सिरोसिस (ब्पततीवेपे) कैंसर, फैट्टी (थ्ंजजल) जिगर (स्पअमत) तथा प्राइमरी बिलियरी सिरोसिस जैसे रोगों का इलाज किया जाता है।
इलाज: इलाज कारण पर निर्भर करता है। जिगर संक्रमण रोगी को आराम की जरूरत होती है। उसे ज्यादा से ज्यादा कार्बोज युक्त और चर्बी रहित भोजन करने की सलाह दी जाती है जैसे चावल, शहद, किशमिश, केला, चीकू, गन्ने का रस इत्यादि। सुबह खाली पेट मूली के 10 ग्राम रस का मिश्री के साथ सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है।
अन्य रोगों से होने वाले पीलिया, जैसे पित्त की थैली की पथरी, का इलाज पित्त की थैली का आॅपरेशन कर पथरी को निकाल कर किया जाता है। जन्मजात विकार: गिल्बर्ट विकार, डुबिन जाॅन्सन रोग, क्रिगलर नजार तथा रोटर विकार आदि से ग्रस्त रोगी का इलाज संभव नहीं है।
दवाओं के सेवन से होने वाला पीलिया दवा बंद करने से ठीक हो जाता है। बचाव: हिपेटाइटिस ‘ए’ (भ्ंचंजपजपेश्।श्) से बचने के लिए दूषित पानी और गन्ने का रस न पीएं तथा दूषित भोजन न करें। हिपेटाइटिस ‘बी’ से बचने के लिए दूषित सिरिंज (ब्वदजंउपदंजमक ैलतपदहम) तथा दूषित रक्त से बचें। इन दोनों रोगों से बचाव वैक्सीन के टीके लगवाकर भी किया जा सकता है।