सोयाबीन की खेती 2000 वर्ष ईसा पूर्व से होती आई है। भारत में सोयाबीन की खेती सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 75 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 13 प्रतिशत और राजस्थान में 10 प्रतिशत होती है। इसकी खेती भिन्न-भिन्न प्रकार की जमीन और जलवायु में होती है। अमेरिका, चीन, ब्राजील और अर्जेंटीना के बाद भारत सोयाबीन की खेती में विश्व का पांचवां देश है। इसके तेल का उत्पादन मूंगफली और सरसों के बाद होता है। सोयाबीन संपूर्ण भोजन है- क्योंकि इसमें कार्बोज, प्रोटीन और वसा तीनों ही मौजूद हैं। विटामिन बी 1 बी 2 और बी 6 , कैल्सिमय, फाॅस्फोरस मैगनेशियम और लौह तत्व इत्यादि। 100 ग्राम सोयाबीन से 432 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
सोयाबीन ऐसा शाकाहारी भोजन है जिसमें 43 प्रतिशत प्रोटीन होता है जबकि मछली और अंडों में केवल 20 प्रतिशत ही रहता है। लाइसिन ;स्लेपदमद्ध नामक एमिना एसिड इसमें प्रचुर मात्रा में रहता है। लाइसिन की अनाजों में कमी होती है। अनाजों के साथ सोयाबीन खाने से स्वाद के साथ-साथ पूर्ण पोषण भी मिलता है। रेशा सोयाबीन में सबसे ज्यादा रहता हैं। नियमित भोजन में रेशे ;थ्पइमतद्ध के पर्याप्त मात्रा में रहने से हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा एवं रक्त में बढ़े कोलेस्ट्रोल जैसे रोग नहीं होते। सोयाबीन के तेल में 85 प्रतिशत से भी ज्यादा असंतृप्त वसा ;न्देंजनतंजमक थ्ंजद्ध होती है। इसके तेल में ऐन्टी आॅक्सीडेंट ;।दजपवगपकंदजद्ध विटामिन ई पर्याप्त मात्रा में रहता है।
लंबे समय तक भोजन में सोयाबीन का तेल खाने से ऐथेरोस्क्लेरोसिस जैसे रोगों से बचा जा सकता है। सोयाबीन के सेवन से रक्त में खराब चर्बी भी कम होती है। इन्हीं खूबियों के कारण सोयाबीन हृदय रोगियों के लिए उपयुक्त भोजन है। इसके दूध में कार्बोज कम तथा जटिल प्रकार का होता है। इसका ग्लाइसीमिक इन्डेक्स ;ळसपबमउपब प्दकमगद्ध कम रहने के कारण मधुमेह रोगियों के लिए यह अति लाभकारी है। आइसोफ्लोवोन ;प्ेवसिंअवदमेद्ध नामक रसायन केवल में पाया जाता है।
हार्मोन्स पर आश्रित छाती ;ठतमंेजद्ध एवं गदूद ;च्तवेजंजमद्ध कैंसर से ग्रस्त जैसे रोगियों के लिए सोयाबीन अति लाभदायक है। औरतों में मासिक धर्म बंद होने पर होने वाले लक्षणों ;डमदवचंनेंस ैलउचजवउेद्ध से भी सोयाबीन भोजन राहत दिलाता है। इसी लिए जापनी औरतों में 40-50 वर्ष की उम्र के बाद होने वाले लक्षण ;डमदव चंनेंस ेलउचजवउेद्ध नहीं होते ह सोयाबीन बढ़ती उम्र में हड्डियों को कमजोर होने से भी बचाता है। जिन्हें भैंस या गाय के दूध के न पचने से दस्त हो जाते हैं या दूध से एलर्जी रहती है, उनके लिए सोयाबीन का दूध, दही या पनीर अमृत तुल्य है, क्योंकि इसमें लेक्टोज ;स्ंबजवेम ैनहंतद्ध या कैसीन ;ब्ंेमपदमद्ध नहीं होता। इससे बनाए जाने वाले पदार्थों की कमी नहीं जैसे दूध, पनीर, दही, सूप, ठंडा पेय पदार्थ, टोफू ;ज्वनिद्ध इत्यादि। कैसे बनाएं सोयाबीन का डोसा: इसे बनाने के लिए पहले सोयाबीन को 8 घंटा पानी में भिगोएं।
उसके बाद बचा हुआ पानी फेंक दें। अब उन्हें अंकुरित होने दंे, अंकुरित होने से विटामिन ई एवं बी समूह की मात्रा बढ़ जाती है। फिर उन्हें जैसे चावल का डोसा बनाते हैं वैसे ही पीसकर डोसा, इडली, बड़ा इत्यादि बना सकते हैं। सोयाबीन, साबुत मूंग तथा गेहूं को अंकुरित करके, भाप द्वारा पकाकर धनिया, पोदीना, इमली के पत्ते डालकर, या फिर हरी चटनी और दही के साथ खाना अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक होता है। तेल निकालने के बाद बचे हुए पदार्थ को साफ कर और भूनकर पीसा जाता है जिसे सोयाबीन पाउडर या ैवलं इमंद उमंस कहते हैं।
इसमें 48 प्रतिशत प्रोटीन रहता है। पश्चिमी फिलाडेल्फिया के हाई स्कूली छात्रों ने एक गैलन सोयाबीन तेल से 50 मील तक चलने वाली स्पोट्र्स कार का निर्माण किया है जिसका प्रदर्शन आॅटो शो में किया गया था। एक कंपनी ने तो सोयाबीन के रेशे से कपड़े तक बनाने का दावा किया है और शायद निकट भविष्य में ऐसे कपड़े बाजार में मिलने भी लगंे!