हृदय रोग: कारण और निवारण
हृदय रोग: कारण और निवारण

हृदय रोग: कारण और निवारण  

वेद प्रकाश गर्ग
व्यूस : 5962 | आगस्त 2006

मेरे एक मित्र के मित्र जो कि स्वयं एक चिकित्सक थे, वजन में थोड़े भारी थे। उनका रक्तचाप ज्यादा रहता था। एक दिन समोसा और चाय लेने के बाद कुछ बेचैनी महसूस करने लगे। सभी कहने लगे कि तला हुआ खाया है, तेजाब बन गया होगा और गैस बन गई होगी। उन्हें डाइजीन ;क्पहमदमद्ध की गोली दी गई पर बेचैनी बनी रही।

डाॅ. साहब बिना समय गंवाए, अपने मित्र को पास के बड़े सरकारी अस्पताल में ले गए और इ. सी. जी करवा डाला। ई. सी. जी का कागज मशीन में से निकाल भी नहीं पाए थे कि देखा कि उनके मित्र पसीने से लथपथ हो गए, सांस उखड़ने लगी और कुछ ही मिनटों में उन्होंने दम तोड़ दिया। एमरजेंसी में सभी चिकित्सकों एवं दवाओं के रहने के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। ऐसी घटनाएं कई बार आपने सुनी और सुनाई होंगी। इस हादसे का मुख्य कारण हृदय का दौरा था।

हृदय रोग अथवा आइ. एच. डी. ;प्ण्भ्ण्क्ण्द्ध हृदय की मांसपेशी को रक्त कम या न मिलने से उत्पन्न होता है। इसमें केवल आॅक्सीजन का कम मिलना ही नहीं बल्कि अन्य पोषक तत्वों का न मिलना, हृदय की मांसपेशी की क्रियाओं के उपरांत उत्पन्न कार्बन डाइ आॅक्साइड का रक्त में से निष्कासन न होना भी शामिल है। 90 प्रतिशत से भी ज्यादा लोगों में कोरोनरी धमनियों ;ब्वतवदंतल ।तजमतपमेद्ध में रक्त के बहाव की कमी का कारण ऐथेरोस्कलेरोसि ;।जीमतवेबसमतवेपेद्ध होता है। कई वर्षों से धीरे-धीरे एथेरोस्क्लोरिसिस के थक्के धीरे-धीरे शरीर की छोटी, बड़ी सभी धमनियों को ग्रस्त करते रहते हैं।

जब ये थक्के कोरोनरी धमनियों को भी अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं, तब हृदय रोग के लक्षण धीरे-धीरे या फिर अचानक भी महसूस होते हैं। यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि पूरे शरीर में, हृदय मांसपेशी को डायस्टोल ;क्पंेजवसमद्ध के दौरान ही रक्त प्रवाह होता है जबकि शरीर के बाकी सभी हिस्सों को सिस्टोल ;ैलेजवसमद्ध के समय। हृदय एक मिनट में 72 बार सिस्टोल और डायस्टोल की क्रिया करता है जिसमें सिस्टोल का समय अधिक और डायस्टोल का कम रहता है।


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कुछ हालात में हृदय को आॅक्सीजन कम मिलती है। ऐसा तब होता है जब या तो हृदय की ऊर्जा जरूरत बढ़ जाए (जैसे हृदय मांसपेशी का आयतन बढ़ जाएद्ध या फिर ऐथेरोस्क्लेरोसिस से रक्त धमनियों का रास्ता अवरुद्ध होने से रक्त प्रवाह कम हो जाए। हृदय गति के बढ़ने से पहले तो हृदय मांसपेशी ;डलबवतकपनउद्ध की रक्त की मांग बढ़ जाती है क्योंकि उसे प्रति मिनट ज्यादा बार धड़कना पड़ता है, दूसरे डायरस्टोल का समय कम हो जाने से रक्त प्रवाह के समय में भी कमी आ जाती है।

हृदय रोग का होना इस बात पर निर्भर करता है कि ऐथेरोस्क्लेरोसिस किस कदर फैला हुआ है और धमनियों का रास्ता कितने प्रतिशत तक अवरुद्ध है। दिल का दौरा पड़ना: यह अचानक ही बिना किसी पूर्व सूचना के भी पड़ सकता है। इसका कारण स्थायी थक्कांे का विस्थापन होता है, जिससे घाव बन जाता है या थक्के के ऊपर झिल्ली का छिलना, दरार पड़ना, अलग होना या फिर उसमें रक्त स्राव होना। इन सभी क्रियाओं के उपरांत थक्के की माप बढ़ जाती है या फिर थक्के के स्थान पर थ्रोम्बस ;ज्ीतवउइनेद्ध बनकर जम जाता है। ऊपर लिखित क्रियाओं को दो श्रेणियों में बांट सकते हैं।

एक, थक्के ;।जीमतवउंजवने च्संुनमद्ध का विस्थापित होना या फिर थक्के में अचानक बदलाव होना। जब कोरोनरी धमनियों में चर्बी के इतने थक्के जमा हो जाते हैं कि उनमें से रक्त प्रवाह 75 प्रतिशत तक कम हो जाता है, तभी व्यायाम या भागने-दौड़ने के उपरांत छाती में दर्द हो जाया करता हैं, क्योंकि व्यायाम करते समय ज्यादा रक्त प्रवाह की जरूरत पूरी नहीं हो पाती। व्यक्ति को ऐसे ही कष्ट अन्य कारणों से जैसे धूम्रपान करने पर या गुस्सा करने पर भी महसूस होते हैं।

जब रक्त प्रवाह 90 प्रतिशत तक कम हो जाता है, तब बायीं तरफ छाती में, बायें कंधे में या फिर बायें हाथ की अनामिका एवं छोटी उंगली में दर्द होता है। यह दर्द आराम की अवस्था में भी होता रहता है। कोरोनेरी धमनियों में अवरोध ;ब्वतवदंतल ठसवबांहमेद्ध एक, दो या फिर तीनों ही स्थितियों में हो सकता है। चर्बी के थक्कों में समय-समय पर परिवर्तन होते ही रहते हैं। इन्हीं के चलते, अच्छे खासे ठीक ठाक व्यक्ति में भी छाती में दर्द होना, ठंड में भी पसीना आना या फिर सांस फूलना जैसे लक्षण पाए जा सकते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि जिन लोगों का रक्तचाप बढ़ा रहता है

उन्हें या मधुमेह के रोगियों को सुबह ही दिल का दौरा क्यों पड़ता है? पता चला है कि जागने और उठने से आये परिवर्तनों से सुबह 6 से 12 बजे के बीच रक्तचाप अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है और चर्बी के थक्के को विस्थापित कर कुछ क्रियाओं को जन्म देता है। इन क्रियाओं के फलस्वरूप पहले से ही अवरुद्ध धमनियां अधिक अवरुद्ध होती-होती अंततः बंद हो जाती हैं। अन्यथा कारणों में दर्दनाक या भयावह खबर या किसी हादसे का घटना या महसूस करना हो सकता है। इन्हीं दो कारणों से अचानक हृदय गति रुक जाने जैसे घातक परिणाम भी हो सकते हैं।

इसीलिए भूकंप/सुनामी/बाढ़ बम फटने जैसी खबरें आने पर हृदय के दौरों के आंकड़े बढ़ जाते हैं। सौ बातों की एक बात यह कि इतने सारे वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं तथ्यों के जानने के बाद भी हम यह नहीं बता सकते कि किस व्यक्ति को क्यों, कब और कितना बड़ा दिल का दौरा पड़ेगा और उसका हश्र क्या होगा, क्योंकि थक्के तो विस्थापित होते रहते हैं, और उसके उपरांत उत्पन्न घाव भी धीरे-धीरे भरते रहते हैं

- व्यक्ति को दर्द हो या न हो। ऐथेरोस्क्लेरोसिस कैसे उत्पन्न होता है? पहले धमनी की अंतरतम दीवार ;म्दकवजीमसपनउद्ध पर श्वेत रक्त कण, टी सेल ;ज् ब्मससद्ध और मैक्रोफेज ;डंबतवचींहमद्ध जमा होकर एक बस्ती बना लेते हैं। यह सब इसलिए होता है कि एन्डोथिलियल सेल द्वारा ऐसे प्रोटीन बनाए जाते हैं, जिन्हें चिपकन प्रोटीन कहते हैं।

ऐसे पदार्थ भी उस स्थान पर छोड़े जाते हैं जो मैक्रोफेज को क्रियाशील बनाते हैं। ये मैक्रोफेज आक्सीकृत चर्बी ;व्गपकपेमक स्क्स्द्ध को हजम कर फूलते चले जाते हैं। बस इन्हीं पेटू मैक्रोफेज के साथ कोलाजेन ;ब्वससंहमदद्ध भी समय-समय पर जमा होता जाता है।


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कुछ वर्षों बाद मैक्रोफेज से कुछ ऐसे एन्जाइम निकलते हैं जो कोलाजेन के रेशों को घोल देते हैं। रेशों के घुलने से, रक्त चाप के बढ़ने से या सदमे से ऐथेरोमेटस थक्के विस्थापित हो जाते हैं और धमनियों में रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करते हैं। इन्फ्लेमेशन को मापने की सी. रिएक्टिव प्रोटीन ;ब्ण्त्ण्च्ण्द्ध के स्तर से भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

खासकर एन्जाइना ;।दहपदंद्ध के रोगियों, और उन लोगों में जिन्हें एक बार दिल का दौरा पड़ चुका हो। धमनियों का सिकुड़ना: धमनियों के सिकुड़ने से रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो जाता है, जिससे चर्बी के थक्कों (च्संुनमद्ध के विस्थापन की संभावना बढ़ जाती है।

इस प्रकार की सिकुड़न रक्त मंे एड्रीनर्जिक ;।कतमदमतहपबद्ध हार्मोन्स उत्पन्न करते हैं। ये हार्मोन्स सदमा होने पर या गुस्सा करने पर, रक्त में बढ़ जाते हैं, या फिर प्लेटलेट में से निकलते हैं। एन्डोथिलियल सेल से एन्डोथेलिन ;म्दकवजीमसपदद्ध कम आने से भी धमनियों की सिकुड़न बढ़ जाती है, क्योंकि चर्बी के थक्के एन्डोथेलियम की सामान्य कार्यप्रणाली को बाधित करते हैं।

ऐथेरोस्क्लेरोसिस, जिन कारणों से होती है, वे इस प्रकार हैं:

- उम्र, 40-60 वर्ष के बीच या ज्यादा होती है।

- पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा ज्यादा ऐथेरोस्क्लेरोसिस, होती है।

- कुछ परिवारों में ऐसे कई जीन्स रहते हैं, जिनसे ऐथेरोस्क्लेरोसिस अधिक होती है। इन परिवारों में लाइफस्टाइल बीमारियां अधिक होती हैं।

उदाहरण के तौर पर उच्च रक्तचाप, मधुमेह, रक्त में चर्बी का अधिक रहना इत्यादि। ऐसे कारण, जो मनुष्य की खराब खाने एवं व्यायाम की कमी जैसी आदतों से रोगों को जन्म देते हैं, इस प्रकार हैं:

- रक्त में अधिक चर्बी का होना। मांस, मछली, अंडे या मक्खन, पनीर तथा दूध से बने अन्य पदार्थों का सेवन भी एक कारण है। इनके सेवन से भोजन में संतृप्त वसा ;ैंजनतंजमक थ्ंजेद्ध की मात्रा अधिक हो जाती है। उच्च रक्तचाप ;भ्लचमतजमदेपवदद्ध धूम्रपान कुछ वर्षों तक लगातार करने से हृदय के दौरे आते हैं जिससे मौत की संभावना 200 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ जाती है। मधुमेह रोगियों में रक्त चर्बी बढ़ने से ऐथेरोस्क्लेरोसिस रोग अधिक होता है। होमोसिस्टीन ;भ्वउवबलेजमपदमद्ध नामक रसायन का रक्त स्तर बढ़ने से भी हृदय रोग ज्यादा हो सकते हैं।

इसका कारण भोजन में फाॅलिक अम्ल और विटामिन बी-6 की कमी होना है। रक्त में लाइपोप्रोटीन एल.पी. (ए) ;स्पचवचतवजमपद स्च;ंद्ध के स्तर और हृदय रोग में सीधा संबंध है। नित्य व्यायाम की कमी, टाइप ए व्यक्तित्व ;ज्लचम । च्मतेवदंसपजलद्ध और मोटापा भी इसके कारण हैं।


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अरक्तता ;प्ेबींमउपंद्ध के कारण रोग को चार श्रेणियों में बांटा गया है।

- मायोकार्डियल इन्फाकर््शन ;डलबवतकपंस प्दंितबजपवदए डण् प्द्धरू यह एक जानलेवा रोग है। इस रोग में हृदय को रक्त प्रवाह इतने कम और ज्यादा समय तक रहता है कि इसमंे हृदय की मांसपेशी पूर्णतया मृत हो जाती है।

- ऐन्जाइना पेक्टोरिस ;।दहपदं च्मबजवतपेद्ध रू इस रोग में अवरोध के कारण रक्त प्रवाह में कमी अल्प समय तक रहने से मांसपेशी की मौत नहीं होती। - लंबे समय तक रक्त प्रवाह कम रहने या हृदय रोग रहने से हृदय फेल ;भ्मंतज थ्ंपसनतमद्ध हो जाता है।

- अचानक हृदय गति रुकना (Sudden Cardiac Arrest) हृदय दौरे के लक्षण- नाड़ी गति बढ़ जाती है, बायीं तरफ छाती में या फिर बायें कंधे में दर्द होता है। अत्यधिक पसीना आना और सांस फूलना दोनों इसके प्रमुख लक्षण हैं। 10-15 प्रतिशत लोगों में ऊपर बताए गए लक्षण नहीं होते। केवल इ. सीजी ;म्ण्ब्ण्ळण्द्ध करने पर पता चलता है कि हृदय का दौरा पड़ा है।

इन्हें साइलेन्ट दौरा ;ैपसमदज ड प्द्ध भी कहा जाता है। यह दौरा ज्यादातर बूढों एवं मधुमेह के रोगियों को पड़ता है। रक्त में कार्डियेक ट्राॅपोनिन ;ब्ंतकपंब ज्तवचवदपदद्ध तथा एम. बी क्रिएटीन काइनेज ;ब्ज्ञ.डठद्ध की मात्रा बढ़ जाती है। ब् ज्ञ. डठ की मात्रा हृदय दौरे के 2-4 घंटे में बढ़नी शुरू होकर, 24 घंटे में अपनी सीमा पर पहुंच जाती है और फिर 72 घंटे के अंदर सामान्य हो जाती है।

अगर दो दिन तक रक्त में सी के, ;ब्ज्ञद्ध तथा सी. के. एम. बी. और ट्राॅपोनिन के स्तर सामान्य रहें तो हृदय दौरा नहीं हो सकता। रक्त में सी आर पी ;ब्ण्त्ण्च्द्ध की मात्रा अगर 1-3 हो तो हृदय रोग की संभावना अधिक और 3 से अधिक हो तो अत्यधिक हो जाती है। अंजाम कभी-कभी दुखद होता है जिन्हें मधुमेह रोग हो या कभी हृदय का दौरा पड़ा हो या फिर उम्र ज्यादा हो, उन्हें जब हृदय का दौरा पडता है तो उनमें से शायद ही 50 प्रतिशत लोग अस्पताल तक पहुंच पाते हैं।

इलाज: सीधा है, और वह है किसी हृदय चिकित्सा केंद्र या फिर किसी अस्पताल में भर्ती होना और अपने आप को चिकित्सकों की मर्जी पर छोड़ देना। बचाव: एक बार हृदय का दौरा पड़ जाए तो शायद आपके ग्रह अच्छे हों अथवा कोई चमत्कार हो कि आप बच जाएं, अन्यथा बचना असंभव है।

हृदय रोग से बचने के लिए क्या-क्या करें:

- भोजन ऐसा करें जो पूर्णतः शाकाहारी हो।

- जहां तक हो सके, अंकुरित पदार्थ कच्चा ही या भाप द्वारा पकाकर खाएं।

- सोयाबीन या इससे बने पदार्थों जैसे, दूध, दही, पनीर आदि का नित्य सेवन करें। या फिर दाल के स्थान पर सोयाबीन की बड़ी इस्तेमाल करें।


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- प्रत्येक समय भोजन के साथ एक-एक फल अवश्य लें।

- प्रतिदिन कम से कम दो से तीन प्रकार की हरी सब्जियां लें। - रात्रि के भोजन में पत्तेदार सब्जी या साग जरूर लें।

- प्रतिदिन 500 से 600 ग्राम तक सलाद अवश्य लें।

- प्रतिदिन 20 से 25 ग्राम तक मेवा अवश्य लें।

- अंकुरित कर 5 ग्राम मेथी अगर अनुकूल हो तो खाएं। - 20 ग्राम तक अलसी के बीज अवश्य खाएं।

- गेहूं की घास या ज्वारे नियम से प्रतिदिन खाएं।

- शकरकंद ;ैूममज च्वजंजवद्ध का सेवन करें।

- प्रतिदिन ऊंट की तरह पानी पीएं।

- हर हाल में खुश रहें।

- सप्ताह में कम से कम एक दिन उपवास रखें।

- बाजार में उपलब्ध तेल से बना कोई भी पदार्थ न खाएं। उनके खाने से खराब चर्बी बढ़ जाती है और अच्छी चर्बी कम हो जाती है, क्योंकि उन्हें बनाने में ट्रांसफैटी एसिड का ;ज्तंदे थ्ंजेद्ध उयोग किया जाता है।

- चीनी, बिस्कुट, मैदा, नूडल्स, बर्गर, पिज्जा आदि न खाएं। याद रखें, इन सभी अप्राकृतिक पदार्थों को घर के अंदर भी न आने दें।

- ब्रेड और बेकरी पदार्थ ;ठंामतल च्तनकनबजेद्ध न खाएं और न खिलाएं।

- अप्राकृतिक पेय पदार्थ, पेप्सी, कैंपा कोला, कोका कोला इत्यादि न पीएं।

- डिब्बा बंद पदार्थ, अधिक नमक युक्त पदार्थ न खाएं।

- मांस, मछली, अंडा आदि न खाएं और न किसी को खाने दें।

- धूम्रपान तथा शराब का सेवन न करें।

- गुस्सैल व्यक्तित्व को हंसमुख व्यक्तित्व में बदलने का प्रयास करें।

- समय समय पर मधुमेह रोग का पता लगाने हेतु जी. टी. टी. ;ळण्ज्ण्ज्ण्द्ध नामक रक्त जांच कराते रहें।

- खाली न बैठें, क्योंकि खाली दिमाग गुस्से, शैतान, चिंता तथा हृदय रोग का घर होता है। यदि समय निकाल सकें, तो सप्ताह में कम से कम एक फलदार /छायादार वृक्ष खुश होकर लगाएं, क्योंकि उन्हें बढ़ते देखकर आपकी खुशियां बढ़ती रहेंगी और यही नहीं आपको, परिवार को, समाज को और अंततः संसार को उन पेड़ों से प्रतिदिन आॅक्सीजन और साल दर साल फलों का लाभ मिलता रहेगा।

विशेष: लेख में दिए गए खाने और न खाने की जानकारी न केवल हृदय रोग अपितु मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्त चाप, जोड़ों के दर्द, शारीरिक कमजोरी एवं अन्य रोगों से भी रक्षा करेगी।



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