गुणों से भरपूर अपने नाम को चरितार्थ करने वाला रामदाना (चैलाई) का पौधा सारे संसार में सभी प्रकार की जलवायु में आसानी से उगने वाला है। इसका प्रयोग भोजन के रूप में भारत तथा दक्षिणी अमेरिका में हजारों वर्षों से होता आया है। भारत के हिमालय क्षेत्र एवं गुजरात में इसे रामदाना के नाम से जाना जाता है। रामदाना का वैज्ञानिक नाम ।उंतंदजीने भ्लचवबीवदकतपंबने है। इसके पुष्प गुच्छ में होते हैं तथा स्वाद में मधुर होता है। इसमें प्रोटीन, लौहतत्व, फालिक अम्ल, बायोटिन, बीटा केरोटिन, केल्सियम, रेशे ;थ्पइतमद्ध समुचित मात्रा में विद्यमान रहते हंै। रामदाना/चैलाई के लड्डू तो अक्सर खाये जाते हैं, परंतु यह पता नहीं होता कि इसमें प्रति 100 ग्राम अन्य मिठाइयों की अपेक्षा कितने अधिक प्रोटीन, कैल्सियम और विटामिन ई मौजूद हैं।
आजकल शहरों एवं देहातों में जब सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं तो ऐसे में चैलाई का बीज लेकर और उसे आसानी से उगाकर पूरे परिवार की सब्जी की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। केवल यही नहीं इसके भुने हुए बीजों को पीसकर गेहूं के आटे में मिलाने से उसमें प्रोटीन, कैल्सियम, फाॅलिक अम्ल तथा विटामिन ई जैसे पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। रामदाने की खेती कम मेहनत तथा कम पानी के द्वारा की जा सकती है। इसकी अपेक्षा चावल की खेती में पानी भरपूर तथा मेहनत भी कमरतोड़ लगती है।
रामदाना से लाभ:
- चर्म रोग (जलनयुक्त) में इसके पत्तों को पीसकर लेप करने से जलन शांत होती है।
- खुजली में इसकी जड़ एवं पत्तों को पीसकर लेप करने से अत्यंत लाभ होता है।
- उदर रोग में इसका साग/भाजी प्रतिदिन खाने से लाभ होता है।
- शरीर के किसी भी हिस्से से रक्त बहता हो तो इसके पत्तों के स्वरस में मिश्री मिलाकर नित्य सेवन करने से अप्रत्याशित लाभ मिलता है।
- रामदाना को भूनकर, दूध/दही एवं फल के साथ सुबह के नाश्ते में सेवन करने से न केवल स्वस्थ व्यक्ति बल्कि मधुमेह, रक्तचाप, हृदय रोग, जोड़ों के दर्द से ग्रसित व्यक्ति भी लाभान्वित होते हैं।
- चैलाई का साग उत्तम आहार एवं औषधि दोनों ही गुणों वाला है। शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों ने इसे रामदाना का नाम दिया है।