(लग्न भाव) से लेकर द्वादश भाव तक स्थिति के अनुसार 12 प्रकार के ‘कालसर्प दोष’ देखने में आते हं जिनका फल भी भिन्न-भिन्न होता है तथा भावों के अनुसार बनने वाले कालसर्प दोष की शांति के उपाय भी पृथक-पृथक ही करने चाहिये, जो इस प्रकार हैं:
1. प्रथम से सप्तम भाव (अनंत कालसर्प योग) जब राहु प्रथम (लग्न भाव) तथा केतु सप्तम भाव में हो तो अनंत कालसर्प योग का निर्माण होता है। यह ग्रह स्थिति जातक के स्वास्थ्य, शरीर तथा आयु पर भी प्रश्न चिह्न लगाता है। विशेष: (कालसर्प योग जिस भाव से लेकर जिस भाव तक बनता है, उसको तथा जिस-जिस भाव पर राहु-केतु की दृष्टि पड़ती है, उन भावों को भी प्रभावित करता है। जैसे प्रथम भाव से लेकर द्वादश भाव तक बनने वाले कालसर्प योग में राहु की पंचम दृष्टि पंचम भाव पर, सप्तम भाव तथा नवम भाव पर होगी अतः यह कुंडली के लग्न, पंचम, सप्तम तथा नवम् भावों को भी प्रभावित करेगा। इसी प्रकार क्रमशः विभिन्न भावों के कालसर्प योगों का फल समझना चाहिए।)
उपाय: नीले रंग के वस्त्रों का अत्यधिक प्रयोग न करें तथा सदैव चांदी धारण करें। यदि स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव अधिक हो तो उत्तम स्वास्थ्य प्रदाता सूर्य देव को रविवार को तांबे के लोटे में जल, रोली, शहद और लाल पुष्प मिलाकर अघ्र्य प्रदान करें।
2. द्वितीय से अष्टम भाव (कुलिक कालसर्प योग) यदि राहु द्वितीय तथा केतु अष्टम भावगत हों तथा इनके बीच में सभी ग्रह हों तो ‘कुलिक’ नामक कालसर्प योग बनेगा। इस योग से प्रभावित जातक के जीवन में संघर्ष, वाणी-दोष, धनहीनता, परिवार एवं संबंधियों से अलगाव इत्यादि का बाहुल्य रहता है।
उपाय: मंदिर में बहुरंगी कंबल दान करें। बुधवार को गाय को हरा चारा खिलायें।
3. तृतीय से नवम् भाव (वासुकि कालसर्प योग) जब राहु-केतु तृतीय तथा नवम् भाव में स्थित होकर वासुकि कालसर्प योग का निर्माण करें तो निम्न उपाय करने चाहिये। इसमें राहु के पराक्रम स्थान में स्थित होने के कारण पराक्रम में कमी, आलस, आपस में मनमुटाव, वैमनस्य, साथी से अनबन, भाग्य तथा लाभ में कमी रहेगी।
उपाय: वृद्धजनों का सम्मान करें, सोना धारण करें। मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ करें तथा किसी भी पशु या पक्षी को पिंजरे में बंदी बनाकर न रखें।
4. चतुर्थ से दशम् भाव (शंखपाल कालसर्प योग) चतुर्थ भाव में राहु तथा दशम भावगत केतु के बीच में सभी सातों ग्रहों की स्थिति ‘शंखपाल’ कालसर्प योग’ का निर्माण करती है। इस ग्रहयोग में जन्मे जातक के जीवन में सुख का अभाव मुख्यतः (मातृसुख का अभाव), वाहन से कष्ट, घर, मकान का देर से बनना इत्यादि जैसे कष्ट आते रहते हैं।
उपाय: 400 ग्राम साफ सुथरे बादाम पानी में बहायें, भगवान शिव को कच्चा दूध अर्पित करें, चंद्रमा के मंत्र का जाप अथवा पूर्णिमा का व्रत करें।
5. पंचम से एकादश भाव (पद्म कालसर्प योग) यदि पंचम भाव में राहु तथा एकादश भाव में केतु द्वारा कालसर्प योग का निर्माण हो तो उसे ‘पद्म कालसर्प योग कहेंगे। पंचम भाव को संतान तथा बुद्धि एवं प्रसिद्धि का भाव कहा जाता है। अतः जातक को संतान से कष्ट, बुद्धि, विवेक की न्यूनता तथा ऊपरी हवा इत्यादि का प्रभाव भी रहता है।
उपाय: जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिये सरस्वती जी की पूजा, पीले वस्त्रों का प्रयोग तथा हल्दी का टुकड़ा सदैव अपने पास रखना चाहिये, विद्यालय में दान देना चाहिये, आचरण में सत्यता एवं शुचिता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
6. षष्ठ से द्वादश भाव (महापद्म कालसर्प योग) षष्ठ भाव में राहु तथा द्वादश में केतु द्वारा महापद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। छठा भाव: रोग, विवाद, ऋण, जीवन में अभाव, चोर, शत्रु तथा अधीनस्थ कर्मचारियों का भाव है। अतः कालसर्प योग की इस स्थिति में जातक को विविध रोग, कमर में पीड़ा, शत्रु भय, कर्जे की स्थिति तथा अपने सेवकों से परेशानी होती है।
उपाय: बहन की सेवा करें, मामा मामी से संबंध मधुर रखें, बेटी अथवा बुआ को उपहार दें तथा उनका पूर्ण सम्मान करें। कर्जे से मुक्ति पाने के लिये किसी भी मंगलवार से मूंगे के हनुमान जी की पूजा करें और उनके समक्ष ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें।
7. सप्तम से लग्न भाव (तक्षक कालसर्प योग) यदि सप्तम भाव में राहु तथा लग्न में केतु हों तो तक्षक नामक कालसर्प योग का निर्माण होता है जो जातक को अपने जीवन साथी से अनबन, साझा व्यापार में हानि जैसे फल प्रदान करता है।
उपाय: मंगलवार को नारियल बहते पानी में प्रवाहित करें। घर में कुत्ता न पालें, लोहे की एक गोली पर लाल रंग करके सदैव अपने पास रखें। यदि इस योग के फलस्वरूप विवाह में अड़चन आ रही हो अथवा जीवन साथी से रिश्ते अच्छे न हों तो लाभ प्राप्त करने के लिये विष्णु तथा लक्ष्मी जी का पूजन करना चाहिये।
8. अष्टम से द्वितीय भाव (कार्कोटक कालसर्प योग) अष्टम आयु भाव होने के कारण इस योग से प्रभावित जातक को अल्पायु, प्रेम विवाह में बाधा तथा गुप्त रोगों की संभावनाएं बनी रहती हैं।
उपाय: किसी भी प्रकार का व्यसन न पालें, शनि चालीसा का पाठ करें, रोगों से मुक्ति के लिये बटुक भैरव का मंत्र जाप अथवा पूजन करें। 800 ग्राम शीशे के आठ टुकड़े करके बुधवार को एक साथ बहते जल में प्रवाहित करें।
9. नवम से तृतीय भाव (शंखचूड़ कालसर्प योग) जब राहु नवम् भाव में हो तथा केतु तृतीय भाव में हो तो शंखचूड़ कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित जातक का भाग्य उसका साथ नहीं देता, जातक नास्तिक होता है, उच्च शिक्षा प्राप्ति में बाधाएं आती हैं तथा भाग्य प्रभावित होने के कारण प्रतिभावान होने के बाद भी जीवन में उतनी प्रगति नहीं हो पाती है जितनी होनी चाहिए।
उपाय: गुरुवार से प्रारंभ करके तीन दिन लगातार चने की दाल बहते पानी में प्रवाहित करनी चाहिए, गुरुवार को दोपहर में पांचमुखी रुद्राक्ष पीले धागे में गले में धारण करें, किसी कन्या के विवाह में यथाशक्ति दान दें। गुरुवार को पक्षियों को जौ खिलायें।
10. दशम से चतुर्थ भाव (घातक कालसर्प योग) जब राहु दशम, केतु चतुर्थ तथा इन दोनों के बीच सभी सातों ग्रह स्थित हों तो घातक नामक कालसर्प योग का निर्माण होता है। दशम् भाव चूंकि पिता, उच्चाधिकारियों एवं जीविका का भाव है तो इस योग से प्रभावित जातक को अपने व्यवसाय तथा नौकरी में परेशानी, उच्चाधिकारियों एवं पिता से संबंध मधुर न रहना, जीवन में सफलता, परेशानियां व प्रसिद्धि न मिलना इत्यादि रहती हैं।
उपाय: प्रत्येक मंगलवार हनुमान जी को चोला चढ़ायें, हरे रंग का कोई भी वस्त्र सदैव अपने पास रखें, बुधवार से प्रारंभ करके प्रतिदिन सरस्वती चालीसा का पाठ करें। पीतल के बर्तन में किसी पवित्र नदी का पानी भरकर घर में रखें।
11. एकादश से पंचमभाव (विषधर कालसर्प योग) एकादश भाव में राहु तथा पंचम भाव में केतु हो तथा इनके बीच में सभी ग्रह हों तो विषधर नामक कालसर्प योग होता है। ऐसे जातक के जीवन में लाभ में कमी, इच्छाओं, अभिलाषाओं की पूर्ति न होना इत्यादि परेशानियां आती रहती हैं।
उपाय: अपने आप से कुछ हिस्सा मंदिर में दान करें। 400 ग्राम शीशे के दस टुकड़े करके दस बुधवार तक जल में प्रवाहित करें, गुरुवार के दिन नौ मुखी रुद्राक्ष पीले धागे में गले में धारण करें। घर में कबाड़ इकट्ठा न करें, खराब पड़े बिजली के उपकरणों को यथाशीघ्र घर से बाहर फेंक दें, नवरात्रों में घर के सभी सदस्य अपने हाथ में स्पर्श करके एक नारियल जल में प्रवाहित करें।
12. द्वादश से षष्ठ भाव (शेषनाग कालसर्प योग) यदि द्वादश भाव में राहु तथा षष्ठ भावगत केतु के बीच में सभी सप्त ग्रह (सूर्य से शनि पर्यन्त) स्थित होकर कालसर्प योग का निर्माण करें तो इस कालसर्प योग को ‘शेषनाग काल सर्प योग’ की संज्ञा दी जाती है। इस योग से प्रभावित जातक को अपने जीवन के विविध क्षेत्रों में हानि, विभिन्न प्रकार के दंड तथा कभी-कभी कारावास भी भोगना पड़ता है। उसे अपने जीवन काल में अपनी पत्नी से संबंध विच्छेद इत्यादि दुखों का सामना भी करना पड़ता है। इन अशुभ फलों में न्यूनता तथा लाभ प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित उपाय करने चाहिये।
उपाय: रसोईघर में अथवा जमीन पर बैठकर ही भोजन करें। लाल रंग के कपड़े की छोटी थैली में खांड़ या सौंठ भरकर अपने पास रखें। सोमवार के दिन चांदी के दो टुकड़े लेकर एक पानी में बहायें, दूसरा अपने पास रखें। प्रत्येक शनिवार जलेबी का दान करें। शनिवार के दिन काला धागा गले में धारण करें। शनिवार को राहु का मंत्र ‘‘ऊँ रां राहवे नमः तथा केतु का मंत्र ऊँ कें केतवे नमः का जाप अवश्य करें। उपर्युक्त उपायों को श्रद्धापूर्वक करने से कालसर्प दोष से होने वाले अशुभ फल काफी हद तक समाप्त हो जाते हैं तथा शुभ फल की प्राप्ति होती है। अतः राहु-केतु जनित कालसर्प दोष की शांति के लिये तथा शुभ फलों की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम और सदैव प्रभु के श्री चरणों की शरण में रहना परम आवश्यक है।