अनुभूति आज बहुत खुश थी। बहुत मन्नत मांगने के बाद आज उसपर ईश्वर की कृपा हुई थी और उसने चांद सी खूबसूरत बेटी को जन्म दिया था। पूरे घर में खुशियां मनाई जा रही थी और बेटी का नाम रखा गया रिदिमा। रिदिमा का लालन-पालन बहुत प्यार से किया जाने लगा। अनुभूति और मनीष उसका हरदम ख्याल रखते। रिदिमा जब 11-12 महीने की हुई तो अनुभूति उसे बैठाने की कोशिश करती तो वह बैठ नहीं पाती थी जबकि उसके उम्र के बच्चे अब पकड़ कर चलने भी लगे थे। पहले तो डाॅक्टर यही कहते रहे कि कुछ बच्चे ज्यादा समय लेकर बैठते हैं
पर अब ज्यादा समय हो गया तो कई बड़े अस्पतालों में जांच कराने से पता चला कि रिदिमा को ब्मतमइतंस च्ंसेल नामक समस्या है और उससे वह चलने फिरने में असमर्थ ही रहेगी। देशी भाषा में कहें तो उसके दिमाग से उसके शरीर के कुछ हिस्सों से संदेश देरी से आने के कारण उसकी ैचममबीए ैचपदमए पैर, और एक हाथ सभी प्रभावित थे। अनुभूति और उसके परिवार वालों के लिए यह बहुत बड़ा ैीवबा था। उनकी प्यारी रिदिमा के साथ इतना बड़ा मजाक भगवान कैसे कर सकते थे। कुछ दिन तो अनुभूति को विश्वास ही नहीं हो रहा था। वह भगवान के आगे बहुत रोई, गिड़गिड़ाई और अपनी बच्ची की कुशलता के लिए हजार दुआएं मांगी और फिर मानो भगवान ने उसके अंदर ऐसी शक्ति दे दी कि उसने ठान लिया कि चाहे जो हो जाए वह अपनी रिदिमा को पढ़ाएगी, उसका इलाज कराएगी और उसे हर संभव खुशी देने की पूरी कोशिश करेगी। उसे लेकर वह स्पेशल चाइल्ड वाले सभी स्कूलों में गई और मुंबई जाकर बड़े से बड़े डाॅक्टर से मिली और रिदिमा की बीमारी और उससे जुडे़ हर पहलू पर विस्तार से जाना।
इंटरनेट पर पूरी जानकारी हासिल की और मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह अपनी बेटी को पढ़ाएगी। वह रिदिमा के साथ पूरा समय बिताने लगी और कोशिश करती कि उसके दिमाग को हर समय किसी न किसी बात में व्यस्त रखे और जब वह चार वर्ष की हो गई तो वह उसे वहां के नामी स्कूल में लेकर गई और प्रिसिंपल से मिल कर उससे विनती कर उसका दाखिला वहां पर करवा दिया। वह पूरे समय उसके साथ वहां बैठती और हर तरह से यह कोशिश करती कि रिदिमा अपने को और बच्चों की तरह से समझे और उसके अंदर कोई हीन भावना न आए लेकिन किसी वजह से जब कुछ दिन उसके साथ नहीं जा सकी तो स्कूल वालांे ने रिदिमा को अपने यहां रखने से मना कर दिया और अनुभूति ने फिर से बहुत से स्कूलों के चक्कर काटे और पूरी कोशिश की कि रिदिमा को किसी अच्छे स्कूल में दाखिला मिल जाए। लेकिन जब उसे उसमें सफलता नहीं मिली तो मनीष ने एक निर्णय लिया।
उसने खुद अपना स्कूल अपने आलीशान घर के नीचे खोल दिया और पहली से आठवीं क्लास तक की पढ़ाई वहां होने लगी। रिदिमा की पढ़ाई में अब कोई दिक्कत नहीं थी और वह नुभूति आज बहुत खुश थी। बहुत मन्नत मांगने के बाद आज उसपर ईश्वर की कृपा हुई थी और उसने चांद सी खूबसूरत बेटी को जन्म दिया था। पूरे घर में खुशियां मनाई जा रही थी और बेटी का नाम रखा गया रिदिमा। रिदिमा का लालन-पालन बहुत प्यार से किया जाने लगा। अनुभूति और मनीष उसका हरदम ख्याल रखते। रिदिमा जब 11-12 महीने की हुई तो अनुभूति उसे बैठाने की कोशिश करती तो वह बैठ नहीं पाती थी जबकि उसके उम्र के बच्चे अब पकड़ कर चलने भी लगे थे। पहले तो डाॅक्टर यही कहते रहे कि कुछ बच्चे ज्यादा समय लेकर बैठते हैं पर अब ज्यादा समय हो गया तो कई बड़े अस्पतालों में जांच कराने से पता चला कि रिदिमा को ब्मतमइतंस च्ंसेल नामक समस्या है
और उससे वह चलने फिरने में असमर्थ ही रहेगी। देशी भाषा में कहें तो उसके दिमाग से उसके शरीर के कुछ हिस्सों से संदेश देरी से आने के कारण उसकी ैचममबीए ैचपदमए पैर, और एक हाथ सभी प्रभावित थे। अनुभूति और उसके परिवार वालों के लिए यह बहुत बड़ा ैीवबा था। उनकी प्यारी रिदिमा के साथ इतना बड़ा मजाक भगवान कैसे कर सकते थे। कुछ दिन तो अनुभूति को विश्वास ही नहीं हो रहा था। वह भगवान के आगे बहुत रोई, गिड़गिड़ाई और अपनी बच्ची की कुशलता के लिए हजार दुआएं मांगी और फिर मानो भगवान ने उसके अंदर ऐसी शक्ति दे दी कि उसने ठान लिया कि चाहे जो हो जाए वह अपनी रिदिमा को पढ़ाएगी, उसका इलाज कराएगी और उसे हर संभव खुशी देने की पूरी कोशिश करेगी।
उसे लेकर वह स्पेशल चाइल्ड वाले सभी स्कूलों में गई और मुंबई जाकर बड़े से बड़े डाॅक्टर से मिली और रिदिमा की बीमारी और उससे जुडे़ हर पहलू पर विस्तार से जाना। इंटरनेट पर पूरी जानकारी हासिल की और मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह अपनी बेटी को पढ़ाएगी। वह रिदिमा के साथ पूरा समय बिताने लगी और कोशिश करती कि उसके दिमाग को हर समय किसी न किसी बात में व्यस्त रखे और जब वह चार वर्ष की हो गई तो वह उसे वहां के नामी स्कूल में लेकर गई और प्रिसिंपल से मिल कर उससे विनती कर उसका दाखिला वहां पर करवा दिया।
वह पूरे समय उसके साथ वहां बैठती और हर तरह से यह कोशिश करती कि रिदिमा अपने को और बच्चों की तरह से समझे और उसके अंदर कोई हीन भावना न आए लेकिन किसी वजह से जब कुछ दिन उसके साथ नहीं जा सकी तो स्कूल वालांे ने रिदिमा को अपने यहां रखने से मना कर दिया और अनुभूति ने फिर से बहुत से स्कूलों के चक्कर काटे और पूरी कोशिश की कि रिदिमा को किसी अच्छे स्कूल में दाखिला मिल जाए। लेकिन जब उसे उसमें सफलता नहीं मिली तो मनीष ने एक निर्णय लिया। उसने खुद अपना स्कूल अपने आलीशान घर के नीचे खोल दिया और पहली से आठवीं क्लास तक की पढ़ाई वहां होने लगी। रिदिमा की पढ़ाई में अब कोई दिक्कत नहीं थी और वह आठवीं कक्षा तक बेरोक-टोक पढ़ती रही।
उसके बाद उसने उसे मुक्त विद्यालय में प्रवेश करा दिया और धीरे-धीरे बारहवीं पास करने के बाद आज ईश्वर की कृपा से वह ग्रेजुएट हो गई है। रिदिमा चल नहीं सकती, ठीक से बोल भी नहीं पाती पर अपनी पूरी बात वह च्ीवदम से, ैडै द्वारा, म्उंपस से और थ्ंबम इववा तथा ॅींजश्ेंचच द्वारा सबसे कर लेती है। उसे अपने दिल की बात बताने में कोई रूकावट नहीं आती और एक हाथ की उसकी उंगलियां ज्ञमल ठवंतक पर इतना तेज चलती हैं कि आम अच्छा व्यक्ति उसका मुकाबला नहीं कर सकता। यह अनुभूति और मनीष के कठिन तपस्या, लगन और हठ का परिणाम है
कि रिदिमा इस मुकाम तक पहुंची है और अनुभूति के चेहरे पर जो सुख व संतुष्टि दिखाई देती है वह वाकई बहुत प्रेरक है क्योंकि ज्यादातर माता-पिता ऐसे बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते हैं तो बच्चे अपने आप को बहुत उपेक्षित महसूस करते हैं और खुद अपने ही खोल में सिमट जाते हैं पर अनुभूति और मनीष ने बहुत मेहनत से प्यार व दुलार से उसे पाला है और उसकी हर इच्छा को खुशी-खुशी पूरा करते हंै। बचपन में मनीष उसे रोज खिलौने की दुकान पर ले जाते थे और रोज नया खिलौना उसके पास होता। रिदिमा का भाग्य ही कहेंगे जहां एक ओर उसे बेहद प्यार करने वाले माता-पिता मिले हैं वहीं ंउसे एक साथी ममता भी मिली जो उसकी परछाईं की तरह उसके साथ रहती है।
अनुभूति और मनीष ममता को भी अपनी बेटी की तरह पालते हैं और वह भी दसवीं कक्षा में पढ़ती है और परछाईं की तरह रिदिमा के साथ रहती है। दोनों मिलकर कूकिंग करती हैं, फिल्म देखती हैं यू कहें कि दो शरीर और एक जान हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। रिदिमा को फिल्में बहुत पसंद है और फिल्मों के अनेक हीरो व हीरोइनों से भी वह मिल चुकी है। उसकी इच्छा पूरी करने के लिए मनीष उसे अनेक बार मुंबई ले जाकर उनसे मिला कर लाए हैं और अब वह उसे पोस्ट ग्रेजुएशन कराना चाहते हैं
ताकि रिदिमा भी और पढ़ाई कर औरों की तरह अपनी शिक्षा से पैरांे पर खड़ी हो सके और उसे आर्थिक दृष्टि से कभी कोई कमी महसूस न हो और वह खुद भी अपनी उपलब्धियों पर गर्व कर सकें। रिदिमा की कुंडली का विश्लेषण रिदिमा की कुंडली में बुध ग्रह लग्नेश और चतुर्थेश होकर पराक्रमेश सूर्य के साथ त्रिकोण भाग्य स्थान में स्थित हैं। जहां एक ओर बुद्धादित्य योग रिदिमा को बुद्धिमान बनाता है वहीं अस्त और मृतप्राय बुध उसे सेरेब्रल पल्सी के लक्षण भी दे रहा है।
इसी तरह भाग्येश शनि, पंचमेश शुक्र एवं रोगेश मंगल तीनों ग्रहों की अष्टम भाव में युति बन रही है। चंद्र कुंडली से शनि मारकेश होकर मारक भाव में क्रूर मंगल के साथ स्थित है और चूंकि शनि नसों का कारक ग्रह है इसलिए नसों से संबंधित बीमारी दे रहे हैं। वाणी स्थान का स्वामी चंद्रमा अपने भाव से छठे भाव में (जो मारक भाव भी है) नीचस्थ राहु के साथ स्थित है और वाक् स्थान पर शनि और मंगल की दृष्टि भी है जिसके कारण रिदिमा की वाणी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और रिदिमा अपनी जिह्वा का पूरा उपयोग नहीं कर पाती अर्थात बोलने में, खाने में, सटकने में इन सभी कार्यों में तकलीफ होती है। रिदिमा की कुंडली में षष्ठेश, द्वादशेश और अष्टमेश की एक साथ अष्टम में युति के होने से विपरीत राजयोग भी बन रहा है
जिससे जीवन में बचपन से ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होने के बावजूद रिदिमा आज ग्रेजुएट हो गई है और वह और पढ़ लिखकर अपने जीवन को उन्नत बनाना चाहती है। अष्टक वर्ग से विचार किया जाए तो रिदिमा की कुंडली के छठे भाव में 45 प्वाइंट मिल रहे हैं जो कि कुंडली के सबसे अधिक हैं। छठे भाव में इतने रेखाओं का होना शुभ नहीं है। वहां पर कम से कम रेखा होनी चाहिए इतनी अधिक रेखाएं निश्चित रूप से रिदिमा की कमर व निचले हिस्से में रोग का कारण है। अष्टम भाव में भी शनि व मंगल जैसे क्रूर ग्रहों की स्थिति उसकी रीढ़ की हड्डी में कष्ट होने का संकेत दे रहे हैं।
लग्नेश बुध शनि की राशि में स्थित है तथा शनि रोगेश मंगल के साथ युति बना रहे हैं अर्थात बुध को भी प्रतिकूल रूप से मंगल और शनि दोनों प्रभावित कर रहे हैं। रिदिमा की कुंडली में आंशिक ग्रहण कालसर्प योग भी विद्यमान है। चंद्र और राहु की युति ने उसके रोग को और बढ़ावा दिया है और प्रथम एवं सप्तम भाव से निर्मित काल सर्प योग इसे शारीरिक रूप से कष्ट दे रहा है। रिदिमा की कुंडली में पिता का कारक सूर्य भाग्य स्थान में स्थित होकर गुरु से भी दृष्ट है व नवम भाव में त्रिकोण में स्थित होने के कारण रिदिमा को अपने पिता से संपूर्ण प्रेम व सपोर्ट मिल रहा है।
इसके अतिरिक्त दशम भाव को देखंे तो उसपर कोई क्रूर दृष्टि नहीं है। उसके स्वामी गुरु सूर्य के घर में बैठ कर सूर्य को पूर्ण दृष्टि दे रहे हैं। यह न केवल उसे पिता का प्यार देने में सक्षम है अपितु वह पिता के लिए भी भाग्यशाली है। रिदिमा की कुंडली के नवांश में लग्नेश बुध का शुक्र के साथ चतुर्थ भाव में अपनी राशि में युति होने के कारण रिदिमा को संगीत, फिल्म, फोटोग्राफी आदि का बहुत शौक है और बोलने में असमर्थ होते हुए भी अपनी बात ै ड ै ए थ्ंबम ठववा - ॅींजेश्ंचच पर बहुत जल्दी से ब्वउउनदपबंजम कर देती है और चैटिंग के द्वारा अपने मन की सभी बात कह देती है और मनचाहा काम तुरंत करवा भी लेती है। इसी में इंटरनेट से अपनी मनपसंद रेसिपी से नाॅर्थ के भोज्य पदार्थ बनवाना भी शामिल है।
अंत में यही कहेंगे कि रिदिमा शारीरिक रूप से निर्बल व रोगी होते हुए भी अत्यंत भाग्यशाली है जो उसने ऐसे परिवार में जन्म लिया जो उसे पूरा प्यार व सहयोग दे रहे हैं, उसकी हर इच्छा पूरी कर रहे हैं। यह शायद प्रारब्ध का ही फल है जो उसे शारीरिक कष्ट भोगना पड़ रहा है। लेकिन इसके बावजूद उसे जीवन के सभी सुख प्राप्त हो रहे हैं जो एक सामान्य व्यक्ति को मिलना मुश्किल होते हैं।