प्रश्न: ब्रह्म ग्रन्थि क्यों?
उत्तर: संसार में प्रायः यह परिपाटी प्रसिद्ध है कि जब तक हम किसी वस्तु को विशेष रूप से स्मरण रखना चाहते हैं तो उसके लिए कपड़े में एक गांठ लगा लिया करते हैं। ‘गांठ बांध लेना’ ऐसे ही अर्थ में एक प्रसिद्ध लोकोक्ति तक बन गई। फलतः ब्रह्मप्राप्ति रूप चरम लक्ष्य की स्मारक की ब्रह्मसूचक यह ग्रन्थि ‘ब्रह्मग्रन्थि’ कहलाती है। ब्रह्म ग्रंथि के ऊपर अपने-अपने गोत्र प्रवरादि के भेद से 1, 3, 5 गांठ लगाने की कुल परंपराएं होती हैं।
प्रश्न: विवाह के पूर्व बाना क्यों बैठाते हैं?
उत्तर: यह वर-वधू के शारीरिक सौन्दर्याधान की प्रक्रिया है। सात सुहागिन स्त्रियां जो हल्दी आदि पीसकर स्वयं उससे उबटन तैयार करती हैं, दही-तेल-दूर्वा, इन तीनों वस्तुओं से वर-कन्या का सात बार अभिषेक करती हैं अर्थात ये पदार्थ शरीर पर लगाये जाते हैं। दही शीतल, शांतिकारक, तेल स्निग्ध और कान्तिप्रद है। त्वचा संबंधी दोषों को दूर करने की यह रामबाण औषधि है। विवाह के सात दिन पूर्व इस उबटन (पीठी) के लगातार प्रयोग से वर-वधू के शरीर में विशेष कान्ति (नूर) का समावेश हो जाता है। कई जगह बाना को तेल चढ़ाना, पीठी बैठाना भी कहते हैं।
प्रश्न: वर-वधू के पांवों में रक्षा-सूत्र क्यों?
उत्तर: वर-वधू के पांव में खौंड़ी अथवा रक्षासूत्र (काकण-मीढ़ण) पहनाने की प्रथा प्रायः सभी प्रांतों में है। यह रक्षा-सूत्र कौड़ी, सुपारी, पीली सरसों, लोहे का छल्ला आदि वस्तुओं से निर्मित होता है। वस्तु विज्ञान के अनुसार यह सब वस्तुएं अदृश्य वातावरण जन्य हानियों से भावी दंपत्तियों की रक्षा के साथ उनकी विशेष स्थिति की परिचायक भी होती हैं। इससे आबद्ध होने के बाद उन्हें कठिन परिश्रमसाध्य कार्यों से अवकाश दे दिया जाता है। रक्षासूत्र शरीर में अचानक रोग या कष्ट उत्पन्न नहीं होने देता।
प्रश्न: तणी (मंठा) क्यों?
उत्तर: प्रायः जहां मंडप एवं विवाह वेदी बनी होती है उसके ऊपर मंूज की डोरी में मिट्टी के चार संछिद्र शकोरे (या मिट्टी के दीये) लटके होते हैं। चारों मृण्मय पात्र चारों आश्रम के प्रतीक हैं जो एक जीवन-सूत्र में बंधे होते हैं। इस तणी द्वारा बाहरी अभिचार कर्मों से जातक की रक्षा होती है।
प्रश्न: विवाह पश्चात ध्रुव-दर्शन क्यों?
उत्तर: विवाह के तत्काल पश्चात भारतीय संस्कृति में सप्त ऋषियों के साथ ध्रुवदर्शन ‘अथातो ध्रुवदर्शनम्’ की परिपाटी है। ध्रुव स्थिर है, उसी तरह तुम्हारा सुहाग भी स्थिर रहे। ध्रुव दृढ़ है, उसी तरह वर-वधू अपने गृहस्थधर्म एवं कत्र्तव्यपालन के प्रति अडिग दृढ़ रहें। यह पावन संदेश सप्तऋषियों के आशीर्वाद के साथ वर-वधू को दिया जाता है।
प्रश्न: विवाहोपरान्त जातरे (ग्राम परिक्रमा) क्यों?
उत्तर: विवाह के उपरांत वर-वधू को साथ ले जाकर जातरे दी जाती है। अपने कुलदेवता को नैवेद्य चढ़ाया जाता है। देव-दर्शन के माध्यम से गांव-नगर के प्रमुख तीर्थ-स्थल और मंदिरों का भ्रमण हो जाता है।
प्रश्न: वानप्रस्थ आश्रम क्यों?
उत्तर: यह सर्वसंग्रही व्यक्ति को सर्वत्यागी बनाता है तथा व्यक्ति को पूर्ण संन्यास की ओर प्रेरित करता है।
प्रश्न: संन्यास क्यों?
उत्तर: संन्यास मोक्ष मार्ग की ओर प्रवृत्त होने का प्रथम चरण है तथा व्यक्ति को सर्वस्व त्याग की पुनीत शिक्षा देता है। आज के संसार में मनुष्य को जीना तो आता ही नहीं पर मरना भी नहीं आता। संन्यास मृत्यु की सत्ता को व्यावहारिक रूप से अंगीकार करने की उत्तम व्यवस्था है।